आज जुलाई माह का अंतिम शनिवार है और तिथि है 27 जुलाई 2024, इस स्पेशल सेगमेंट का शीर्षक स्वयं ही बता रहा है कि आदरणीय सुमनलता बहिन जी ने सुझाव दिया और हमारे लिए उस सुझाव का पालन करना हमारा परम कर्तव्य है।
क्या था सुझाव?
आदरणीय बहिन जी ने माह के अंतिम शुक्रवार को (जब ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से युवा साथियों का स्पेशल योगदान होता है) आधार बनाते हुए सुझाव दिया कि माह का अंतिम शनिवार भाई साहिब (अरुण त्रिखा, हमारे लिए) के लिए रिजर्व कर दिया जाए। इस सुझाव के पीछे बहिन जी ने निम्नलिखित लॉजिक भी दिया था जिसे अनेकों साथियों ने समर्थन भी प्रदान किया था:
30-31 दिन के लंबे महीने का एक दिन अगर अरुण भाई साहिब के लिए सुरक्षित कर दिया जाए तो कुछ भी अनुचित नहीं होगा।
अनेकों साथियों ने उस समय समर्थन प्रदान किया, हमारी लेखनी की न केवल प्रतीक्षा की बल्कि भरपूर सराहना करके हमारा उत्साहवर्धन भी किया।
27 अप्रैल,2024, को इस श्रृंखला का प्रथम एपिसोड प्रस्तुत किया गया था। उस समय भी लिखा था, आज फिर लिख रहे हैं, हम कोई लेखक नहीं हैं; जो भी अंतरात्मा से निकलता जाता है, साथियों के समक्ष प्रस्तुत करते जाते हैं। जब भी लिख रहे होते हैं, अनेकों साथियों के चेहरे हमारी आंखों के आगे ऐसे प्रकट होते जाते हैं जैसे न जाने हम कब से उनसे परिचित हों। जहां तक हमें स्मरण होता है, हम तो बहुत ही कम साथियों से साक्षात मिले हैं।
लिखते समय एक और महत्वपूर्ण बात सदैव याद आती रहती है कि लेखनी का एक भी शब्द ऐसा न हो जिससे अपनी स्वयं की वाहवाही, घमंड इत्यादि की झलक मिल रही हो।
हम तो मात्र गुरु से मिला प्रसाद, उन्हीं की अनुपम कृपा से, साथियों के समक्ष अर्पित किए जा रहे है। गुरु के चरणों की रज को मस्तक पर धारण कर, चरणामृत को अंजली में भर कर, परिवार के प्रत्येक साथी पर अमृतवर्षा करके स्वयं के लिए सौभाग्य की अभिलाषा कर रहे हैं
27अप्रैल वाले प्रथम एपिसोड में Milestone यानि “मील के पत्थर” की बात की थी, सड़क के किनारों पर लगे signs की बात की थी जो यात्रा के अनेकों पड़ाव की दूरी की जानकारी देते हैं।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की यात्रा के भी अनेकों पड़ाव हैं ; गुरु-सानिध्य, गुरु-समर्पण, गुरु-श्रद्धा, गुरु-प्राप्ति आदि। Ultimate destination (अंतिम पड़ाव) तो गुरु-प्राप्ति ही है।
हम बहुत बार स्वयं से प्रश्न कर चुके है कि क्या हमने कभी अपना मूल्यांकन किया है कि हम जीवन यात्रा के कौन से पड़ाव पर पहुंचे हैं?
हमारा परम सौभाग्य है कि आदरणीय डॉक्टर ओ पी शर्मा जी की पुस्तक “अज्ञात की अनुभूति” पर प्रकाशित हुए अनेकों लेखों से, अनेकों प्रश्नों के समाधान हो रहे हैं एवम जीवन यात्रा के पड़ाव को पहचानने में सहायता मिल रही है।
जब हम स्वयं का मूल्यांकन करते हैं तो निम्नलिखित शब्दों में, हमें लिखने को प्रेरित करता हुआ गुरुदेव का प्रोत्साहन भरा अनुदान दिखता है:
जीवन यात्रा के ऊबड़ खूबड़ रास्तों पर, गड्डों एवम दलदल भरी पगडंडी पर अति धीमी गति से आरंभ हुई ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की गाड़ी, आज सुपर हाईवे पर, राजमार्ग पर, अकल्पनीय स्पीड से दौड़ती दिख रही है। यूट्यूब/अन्य मीडिया साइट्स का data इस स्पीड का साक्षी है।
यह गुरु की शक्ति ही है जिसने हमें कहां से कहां पंहुचा दिया। यही कारण है कि हम अक्सर सिख गुरु अर्जुन देव जी के बहुचर्चित शब्द
“जिसके सिर ऊपर तू स्वामी,वोह दुःख कैसा पावे” दोहराते रहते हैं।
हमें वोह दिन पूरी तरह याद हैं जब हम ऑनलाइन ज्ञानरथ परिवार (उस समय गायत्री शब्द शामिल नहीं था) के विजिटिंग कार्डस लगभग प्रत्येक जान पहचान वाले में, प्रत्येक आयोजन में, प्रत्येक सोशल मीडिया साइट पर, अपने रेडियो शो में, अपने TV शो में बांटते फिरते थे। यहां तक कि ऐसे लोगों में भी बांटते रहते थे जिनसे हमें कोई आशा नहीं थी। लगभग हर रोज़ तो क्या, दिन में कई-कई बार subscribers की प्रगति देखते रहते थे, चिंतित होते रहते थे। समझ नहीं आता था कि क्या किया जाए, किससे सहायता याचना की जाए। प्रशंसा करने वाले तो अनेकों मिले लेकिन प्रगति कोसों दूर रही। प्रशंसा करने वालों के संबंध में शायद lip sympathy कहना अनुचित न हो।
सोते जागते, गुरुदेव सामने प्रत्यक्ष खड़े, डांटते दिखते थे, कह रहे होते थे कि पात्रता तो है नही, आशाएं बड़ी-बड़ी बांधे फिरते हो।
बेटी संजना की कल की वीडियो में परम पूज्य गुरुदेव के शब्द भी बार-बार कानों में गूंजते रहते थे: तू एक कदम तो आगे बढ़ा, मैं दस कदम न बढ़ाऊं तो कहना।
बार-बार यह प्रश्न भी अंतर्मन में उठता रहा कि कहीं हम अंधेरे में ही तीर तो नहीं मार रहे हैं,कहीं हम दिशाहीन यात्रा तो नहीं कर रहे।
सोशल मीडिया पर पोस्ट होने वाले कॉमेंट्स से भी सहायता मिलती रही लेकिन हृदय के किसी कोने में, गलती से भी कहीं ऐसा विचार तो नहीं उठा कि “ गुरुदेव, हमने तो सारा प्रयत्न कर दिया,इससे अधिक न तो हमारी शक्ति है, न समर्था, अब आप जानो आपका काम”
ऐसा कॉमेंट हमने यूट्यूब पर पोस्ट हुआ देखा तो एकदम प्रश्न उठा कि भैया जी तो गुरुदेव पर अहसान जता रहे हैं, गुरुदेव तो पत्थरों से कार्य करवा लेते हैं, हम क्या चीज़ हैं।
कबीर जी का सुप्रसिद्ध दोहा:धीरे धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय, माली सिंचित सौ घड़ा ऋतु आए फल होए, ने भी बहुत ही साथ एवम सहारा दिया लेकिन चिंता का विषय सदैव बना ही रहा कि गुरुदेव क्या करें?
हम अपने साथियों के साथ बिना किसी संकोच के ,बिना किसी छिप-छिपाव के, अपने अंतर्मन की भावना शेयर कर रहे हैं कि गुरुकृपा के बिना, गुरु सानिध्य के बिना हमारी क्या स्थिति थी।
अब प्रश्न उठता है कि अब ऐसा क्या हो गया जिसने हमारे जीवन की गाड़ी को सुपर हाईवे पर दौड़ाना आरंभ कर दिया?
अवश्य ही मूल्यांकन करने पर क्लियर होता है कि 18 मई 2020 को जब हमने ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच पर प्रथम ज्ञानप्रसाद लेख पोस्ट किया था तो सारे महीने के केवल पांच ही लेख पोस्ट किए जाते थे। एक महीने बाद जून में 15 लेख पोस्ट हुए। न तो कोई वीडियो पोस्ट होती थी, न ही कोई स्पेशल सेगमेंट था, कभी-कभार कॉमेंट्स देख लेते थे, अनियमतता से ही अधिकतर काम चल रहा था।
आज जब आर्काइव में उन दिनों का रिकॉर्ड देखते हैं तो ऐसे ही धिक्कारते हैं जैसे गुरुदेव ही सामने साक्षात खड़े हों।
स्वयं से प्रश्न करते हैं:
अगर महीने के 31 दिन होते हैं और 15 maximum लेख प्रकाशित होते हैं तो बाकी 16 दिन क्या होता रहा? इस प्रश्न का केवल एक ही उत्तर समझ आता है:
ज्ञानरथ के संचालन में श्रद्धा और समर्पण की कमी रही होगी, दिखावा और दुनियादारी अधिक रही होगी, बढ़ाई और वाहवाही की भूख गुरुभक्ति में खलल डाल रही होगी। कभी मन किया तो ज्ञानरथ में दिखावे मात्र के लिए समयदान कर दिया होगा।
आज स्थिति बिल्कुल अलग है।गुरुकृपा ऐसी हुई कि खुद बखुद ही सब कुछ होता चला जा रहा है। न किसी को विजिटिंग कार्ड देने की आवश्यकता है,न किसी आयोजन में जाकर मिन्नतें करने की आवश्यकता है।गुरुदेव स्वयं ही सिलेक्शन करके, पात्रता चेक करके, appointment letter दिए जा रहे हैं। यह बात अलग है कि अनेकों साथी अपनी ही कमजोरी के कारण, probation period पूरा न कर पाए और गुरुदेव ने उन्हें निलंबित कर दिया। आदरणीय ओमकार पाटीदार भाई साहिब के अमृत वाक्य को दोहराना बहुत ही उचित है कि “यह हमारा सौभाग्य है कि हम गुरु के साथ जुड़ सके, यह हमारा परम सौभाग्य है कि हम गुरुकार्य में समयदान कर सके और यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम गुरु के पास आकर भी टिक नहीं सके।
अब स्थिति ऐसी है कि सोते जागते, रात दिन एक ही कार्य अंतरात्मा में उठता है-गुरुकार्य ही सर्वोपरि है।नियमितता का पालन करना इतना महत्वपूर्ण लगता है कि कहीं भी हों, किसी भी आयोजन में हों, किसी व्यक्तिगत स्थिति में हों,शॉपिंग कर रहे हों, गाड़ी चला रहे हों, खाना का रहे हों,सब कुछ रोक कर ज्ञानप्रसाद का कार्य संपन्न करना ही सबसे बड़ी मानसिक शांति देता है।
गुरुदेव की अनुकम्पा से प्राप्त हुई गुरुकृपा,अंतिम सांस तक ऐसे ही मिलती रहे, यही एकमात्र ध्येय है।
यहां पर अपने बाल्यकाल की स्कूल प्रार्थना की निम्नलिखित पंक्तियां स्मरण हो आती हैं:
दया कर दान भक्ति का हमें परमात्मा देना,
दया करना हमारी आत्मा में शुद्धता देना।
हमारे ध्यान में आओ, प्रभु आँखों में बस जाओ।
अँधेरे दिल में आकर के, परम ज्योति जगा देना।
हमारा कर्म हो सेवा, हमारा धर्म हो सेवा।
सदा ईमान हो सेवा, व सेवक चर बना देना।
बहा दो प्रेम की गंगा दिलों में प्रेम का सागर।
हमें आपस में मिल जुल के प्रभो रहना सिखा देना।
अब हम पूर्ण सन्तोष की साँस ले रहे हैं , कोई भटकन नहीं है।एक ही संकल्प है: मानवीय गरिमा को उठाने का कार्य पूर्ण विवेक और सन्तोष से करते रहें। पूर्वजन्म के कर्म,इस जन्म में माता पिता से मिले संस्कार, गायत्री माँ की कृपा,गुरु के अनंत अनुदान ऐसे प्राप्त हुए कि सब कुछ स्वयं ही होता चला जा रहा है।
ज्यों ज्यों गुरुकार्य में गंभीरता आती जा रही है,भौतिक चीजें दूर होती जा रही हैं, लगाव तो पहले भी कोई अधिक नहीं था लेकिन अब तो बिलकुल ही समाप्त सा हो गया है।
यहां पर स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी के अनमोल वचन स्मरण हो आते हैं:
अगर वाराणसी जाना है तो कोलकाता को पीछे छोड़ना ही पड़ेगा।
अब तो अन्त:करण से एक ही प्रार्थना उठती है कि हमारी आत्मा को आपका कार्य करने की शक्ति प्रदान करते रहें, जिससे अपने पूर्ण समय, शक्ति, एवं साधनों का सदुपयोग करके गुरुकार्य कर सकें। आपकी इच्छा ही मेरी इच्छा है।
अगर ऐसा नहीं होता है तो हमारा termination letter किसी समय भी आ सकता है।
आज के स्पेशल सेगमेंट का यहीं पर समापन होता है।
साथियों के सहयोग से प्रस्तुत किया जाने वाला स्पेशल सेगमेंट 3 अगस्त 2024 को प्रस्तुत करने की योजना है। इस सेगमेंट में बहुत सारे साथी, अपने छोटे बड़े योगदान लेकर आ रहे हैं।
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संजना बेटी की वीडियो के अमृतपान से 331 टोटल कमैंट्स, 29 मेन कमेंटस पोस्ट हुए हैं। आज का गोल्ड मेडल आदरणीय संध्या बहिन जी को जा रहा है, अनेकों अन्य साथियों का योगदान भी कोई कम सराहनीय नहीं है।सभी साथिओं का ह्रदय से आभार व्यक्त करते हैं