वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

डॉ ओ पी शर्मा जी  द्वारा लिखित पुस्तक पर आधारित लेख श्रृंखला का 14वां लेख  

24   जुलाई  2024 बुधवार  का ज्ञानप्रसाद

आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी द्वारा लिखित पुस्तक “अज्ञात की अनुभूति” पर आधारित लेख शृंखला का आज 14वां  लेख प्रस्तुत है। डॉ साहिब द्वारा रचित ज्ञान के इस अथाह सागर में से डुबकी मार कर, हम अमूल्य रत्न ढूंढ कर, जाँच परख कर अपने साथिओं के साथ दैनिक गुरुकक्षा में चर्चा के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। साथिओं के कमैंट्स से पता चल रहा है कि उन्हें इस श्रृंखला के सभी लेख अति रोचक एवं ज्ञानवर्धक लग रहे हैं , हों  भी क्यों न क्योंकि  हर एक पन्ना, हर एक पंक्ति, हर एक शब्द ऐसा कुछ संजोए  हुए है कि सचमुच अमृत ही है।

आज के लेख का एक एक शब्द गुरुदेव एवं वंदनीया माताजी की शक्ति एवं सूक्ष्म उपस्थिति  का साक्षात् वर्णन का रहा है। आदरणीय डॉ शर्मा जी जब गुरुदेव को अत्यंत उत्साहपूर्वक आंवलखेड़ा आदि का व्योरा वर्णन कर रहे  थे तो गुरुदेव ने कहा ,मैं वहीँ पर था। गुरुदेव की शक्ति पर कौन विश्वास करेगा ? आज के समय में जो कुछ हो रहा है उसमें हम बच्चों का दाइत्व है कि गुरुदेव जैसे दिव्य महापुरुष की शक्ति से अवगत कराएं, नहीं  तो औरों की भांति गुरुदेव को भी शंका की दृष्टि से देखा जायेगा।  

इस लेख को लिखते समय हमारी आँखों के सामने हमारे अनुज भाई और परिवार के समर्पित साथी आदरणीय अरुण वर्मा जी की छवि दिखाई दिए जा रही थी। भाई साहिब द्वारा भेजी गयी  भूमि पूजन की वीडियो उनके समर्पण को दर्शा रही है।  आज के लेख के नायक आदरणीय बैजनाथ सिंह जी की भांति अरुण जी के  पांडाल को भी परम पूज्य गुरुदेव एवं वन्दनीया माताजी के आशीर्वाद तथा परिवार के सभी साथिओं के सहयोग ने ही भरना है। 3 अगस्त वाले शनिवार में अन्य साथिओं के योगदान समेत, अरुण जी के यज्ञ से  सम्बंधित जानकारी भी मिलने की सम्भावना है। 27 जुलाई वाले शनिवार में हमारा प्रयास अंकित होने की आशा है और इस शुक्रवार को हमारी प्रिय बेटी संजना की ऑडियो बुक प्रस्तुत हो रही है। हमने आज से ही, मात्र 4-5 मिंट की ऑडियो/वीडियो की मार्केटिंग आरम्भ कर दी है,हम दो बार सुन चुके हैं, इतनी दिव्य वाणी कि  क्या कहें। बेटी से क्षमाप्रार्थी हैं कि उसे इस प्रस्तुति के प्रकाशन के लिए 119 दिन प्रतीक्षा करनी पड़ी। बेटी ने अपना प्रयास 30 मार्च को भेजा था।  

हम अपने साथिओं के साथ शेयर  करना चाहते हैं कि इन लेखों को लिखते समय हमें निम्नलिखित दो समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है जिसके लिए करबद्ध क्षमाप्रार्थी है : 

1. 202 पन्नों की इस दिव्य पुस्तक में इतने अधिक छोटे-बड़े संस्मरण छिपे पड़े हैं कि कई बात हम अस्मंजस में पड़ जाते हैं कि  किसे लिखें और किसे  छोड़ें। प्रत्येक संस्मरण अपनेआप में कुछ न कुछ सन्देश लिए हुआ है। 

2. देखने में तो केवल 202 पन्ने हैं लेकिन इतना ज्ञान से भरपूर ग्रन्थ है  कि याद ही नहीं रहता कि किसी  विषय विशेष की  पहले चर्चा हो चुकी है कि नहीं, इस दुविधा में उचित तो यही रहता है कि मिस करने के बजाए रिपीट कर दिया जाए तो कोई हर्ज़ नहीं होगा। हमें विश्वास है कि हमारे समर्पित साथिओं की पैनी दृष्टि अवश्य ही मूल्यांकन कर लेगी। 

इन्हीं ओपनिंग रिमार्क्स और लेख से सम्बंधित भूमिका के साथ आज की गुरुकक्षा का शुभारम्भ होता है। 

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यज्ञ का सामूहिक प्रसाद ग्रहण

माह के अन्त में कार्यक्रम के समापन पर गायत्री शक्तिपीठ के प्रांगण में पाँच कुण्डीय यज्ञ और अमृताशन सामूहिक प्रसाद का कार्यक्रम रखा गया। कार्यकर्त्ताओं सहित प्रधानों से जहाँ-जहाँ सम्पर्क हुआ था, सभी को आमन्त्रित किया गया। सभी ने यज्ञ में भाग लिया। अन्त में परम पूज्य गुरुजी एवं परम वन्दनीया माताजी की इच्छा को, उनके शक्ति और सहयोग द्वारा पूरा करने का संकल्प लिया गया, जिसके अन्तर्गत गाँव में शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता एवं स्वावलम्बन के विकास हेतु पूर्ण सहयोग की भावना थी । हम सभी ने एक साथ अमृताशन ग्रहण किया। सभी ने शान्ति, सन्तोष एवं उल्लास जैसी महान् ऊर्जा का आभास किया। बाद में श्री गजाधर जी (व्यवस्थापक) के सहयोग से प्रसाद का वितरण किया गया। थोड़ा प्रसाद हमने बचा लिया कि लखनऊ जाकर श्री जे. सी. पन्त, शिक्षा सचिव, उत्तर प्रदेश  शासन, लखनऊ को देंगे। मन में भाव था कि प्रसाद देने के साथ राजकीय कन्या विद्यालय खुलने में प्रतिभा दान के रूप में सहयोग की भी बात करेंगें। 

शान्तिकुञ्ज जाने पर पहले माताजी का दर्शन किया और सारी बातें विस्तार से बताईं । माताजी ने परम पूज्य गुरुदेव जी के पास भेजा। ऊपर कमरे में गये, पिताजी टहल रहे थे, खड़े हो गये,उन्होंने कहा, “आओ बेटा ओमप्रकाश!” वाणी में शहद टपक रहा था। चरणों पर सिर रखकर नमन किया। पूज्य गुरुदेव जी को पूरी बात बतायी जिसे सुनने के बाद, परम पूज्य गुरुजी ने कहा-”बेटा, प्रसाद बचाया क्यों ? वह भी बाँट देते।” अन्दर से आवाज उठने लगी कि बेटा  जैसे हमने सब कुछ बाँट दिया, कुछ भी बचाया नहीं, बस तुमको भी  करना चाहिए था। हम मौन हाथ जोड़कर बैठे रहे ।

गुरुदेव ने कहा, “मैं वहीं था” : 

वर्ष 1986 में आँवलखेड़ा से सीधे लखनऊ चले गये थे। परम वन्दनीया माताजी के आशीर्वाद से कन्या विद्यालय खुलने के लिए गणमान्य व्यक्तियों से प्रार्थनापत्र पर हस्ताक्षर, वहाँ की जनसंख्या आदि की जानकारी ले ली थी। श्री पन्त जी, प्रोफेसर वासुदेव सिंह, तत्कालीन अध्यक्ष विधानसभा से मिलकर तथा शिक्षा मन्त्री (श्री सिबते रजी) के लिए सिफारशी  पत्र लेकर उनसे निवेदन किया। तत्पश्चात् हम परम पूज्य गुरुजी एवं परम वन्दनीया माताजी को सभी क्रिया-कलापों बताने और आशीर्वाद लेने शान्तिकुञ्ज गये। सड़क बनने से लेकर, सभी अधिकारियों एवं जनता का सहयोग आदि सारा कार्य देखकर बड़ा आश्चर्य लग रहा था। ऐसा अनुभव हो रहा था कि कोई “विशेष शक्ति” का प्रवाह चल रहा हो, जो लोगों के मन को बदलकर सहयोग देने के लिए बाध्य कर रही हो । अपनी शक्ति-सामर्थ्य और प्रतिभा इतनी न्यून थी, जो इतनी बड़ी सफलता के लिए असम्भव प्रतीत हो रही थी।

जब हमने बताया कि ” माननीय मन्त्री जी को तो प्रधानमन्त्री कार्यालय में बुला लिया था लेकिन आपकी कृपा से जन्मस्थली मार्ग बन गया।” तो परम पूज्य गुरुदेव  के मुखारबिन्द पर हलकी सी मुसकान थी । कहने लगे, ” बेटा मैं वहीं पर था ।” परम पूज्य गुरुदेव जी, वन्दनीया माताजी एवं दादा गुरुदेव जी की छाया उपस्थिति का अधिकांश रूप में जो मानसिक आभास होता था, उसको पूज्यवर के मुखारविन्द से सुनकर हमारे विश्वास में और दृढ़ता आ गयी एवं  मनोबल, आत्मबल एवं आन्तरिक प्रसन्नता और बढ़ गयी ।

पाण्डाल तुम बनाना और भरेंगे हम : 

अक्टूबर 1986 से क्षेत्रीय कार्यक्रमों की श्रृंखला  के शुभारम्भ के साथ पूर्वी उत्तर प्रदेश , बिहार एवं उड़ीसा के कार्यक्रमों हेतु शान्तिकुञ्ज से विदाई हुई। लगभग तीन माह में 30, दो दिवसीय कार्यक्रम सम्पन्न होने थे। कहीं- कहीं पर कार्यकर्त्ताओं द्वारा विशेष अनुभूति, परम पूज्य गुरुजी एवं परम वन्दनीया माताजी द्वारा विशेष अनुदान प्राप्त होने एवं उनकी श्रद्धा-निष्ठा की बात बड़ी प्रेरणाप्रद होती थी, जो स्वयं की जानकारी बढ़ाने के साथ-साथ श्रद्धा का विकास करती है। उन्हीं में से एक गाजीपुर के मेहनाजपुर ग्राम की बैजनाथ सिंह जी से सम्बंधित घटना है ।

हमारी टोली के पाँच भाई, वाराणसी और अन्य स्थानों के कार्यक्रम करने के बाद मेहनाजपुर पहुँचे। वहाँ ग्रामीण क्षेत्र में एक बड़े खेत में छोटी-सी गायत्री प्रज्ञापीठ बनी थी। हम लोगों ने थोड़ा विश्राम कर कार्यकर्त्ताओं की गोष्ठी आयोजित की। कलशयात्रा से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ । दीपयज्ञ में ट्रैक्टर, ट्रॉली एवं अन्य साधनों से इतने व्यक्ति आये कि 1000 व्यक्तियों के बैठने का पाण्डाल छोटा पड़ गया। कार्यक्रम अच्छे तरीके से सम्पन्न हो गया। विदाई के पहले गोष्ठी ले रहे थे, हमने बैजनाथ सिंह जी से  पूछा:हमारी आशा के विपरीत इतने लोग आये, क्या आपको यह विश्वास था कि इतना बड़ा पाण्डाल आप बना रहे हैं, वह भर जायेगा ? सिंह साहब ने कहा-“हाँ।” हमने पूछा, ‘“इतना विश्वास आपको कैसे पैदा हुआ ? तो  उन्होंने बताया कि हमारा एक ही लड़का था,उसकी  हमारे ही ट्रैक्टर से  टक्कर होने के कारण मृत्यु हो गयी थी । हम सब बहुत दुःखी थे, तीन या चार माह बाद शान्तिकुञ्ज गये, वन्दनीया माताजी का दर्शन किया, समाचार बताया। माताजी ने कहा- गुरुदेव जी से मिल लो, पूज्यवर का दर्शन कर सारी बात बतायी। पूज्य गुरुदेव जी ने कहा:

“बेटा, जब भगवान्  कृष्ण अभिमन्यु को नहीं बचा सके तो हम क्या कर सकते हैं। कर्म की गति में हम कैसे हस्तक्षेप  करें ?” 

खैर, हम नमन कर वन्दनीया माताजी के पास नीचे आ गये । वन्दनीया माताजी ने पूछा गुरुदेव जी ने क्या कहा, हमने सुना दिया। फिर वन्दनीया  माताजी ने कहा, “बेटा क्या चाहते हो ? उन्होंने हमारी इन्च्छाओं को एक  माता की तरह अनुभव किया और कहा, “बेटा, अच्छा, उसी आत्मा को एक वर्ष के अन्दर आपके पास  भेज देंगे।” हमारा मन भारी तो था ही, माताजी का आश्वासन  सुनकर हमारे मन में एक साथ प्रसन्नता एवं स्तब्धता  उत्पन्न हुई। श्री बैजनाथ सिंह कहने लगे, जब हम लोग कार्यक्रम लेने गये थे तब पूज्य गुरुदेव जी ने कहा था “पाण्डाल तुम बनाना, भरेंगे हम” इस दर्शन में पूज्य गुरुजी ने यह भी बता दिया था कि  “मैं कौन हूँ- कृष्ण ?” हमें विश्वास है कि वन्दनीया माताजी, गुरुजी हमारे अनुभव में एक ही आत्मा हैं, हमारे दुःखी मन ने विश्वास कर लिया। एक वर्ष के बाद हमारी धर्मपत्नी को पुत्र पैदा हुआ, उसके सिर में वही चोट का निशान था जो  पहले वाले बच्चे में था । सिंह साहब ने कहा कि जैसे वन्दनीया माताजी ने कहा था, एक वर्ष के अन्दर वैसा ही हुआ। हमारी थोड़ी सी श्रद्धा-पात्रता और गुरुदेव की  इतनी बड़ी कृपा ने हमारे जीवन में उनके प्रति श्रद्धा को और अधिक बढ़ाकर हमारा  जीवन ही बदल दिया, हमें  नया जीवन प्रदान किया। 

तभी से हमें गुरुदेव/माताजी के  वचनों में दृढ़ विश्वास हो गया, उसी को याद करके  हमने बड़ा पाण्डाल बनाया। अपने कार्य के साथ गुरुदेव के  वचनों को याद करते रहे और कहते रहे  “पाण्डाल भरने की कृपा आप करिएगा।” बस डॉक्टर साहब, सब  हो गया। 

इसी विश्वास का नाम है अर्जुन और महामानव के वचनों में अविश्वास का नाम है दुर्योधन । इस घटना ने वन्दनीया माताजी की शक्ति को उजागर किया है।

आज की गुरुकक्षा का यहीं पर समापन होता है, अगली कक्षा में कुछ और दिव्य संस्मरण प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगें। 

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कल वाले दिव्य लेख के अमृतपान से 496  टोटल कमैंट्स, 32  मेन कमेंटस पोस्ट हुए हैं। आज के ज्ञानयज्ञ में आदरणीय सुजाता जी ने फिर से सबसे अधिक कमैंट्स रुपी आहुतियां प्रदान करके गोल्डमेडलिस्ट होने का सम्मान प्राप्त किया है,उन्हें परिवार की बधाई।  ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार द्वारा आयोजित दैनिक ज्ञानयज्ञ में भाग लेने वाले सभी साथिओं का ह्रदय से आभार व्यक्त करते हैं।


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