वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

डॉ ओ पी शर्मा जी  द्वारा लिखित पुस्तक पर आधारित लेख श्रृंखला का 13वां लेख  

आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी द्वारा लिखित पुस्तक “अज्ञात की अनुभूति” पर आधारित लेख शृंखला का आज 13वां  लेख प्रस्तुत है। डॉ साहिब द्वारा रचित इस ज्ञान के अथाह सागर में से डुबकी मार कर, हम अमूल्य रत्न ढूंढ कर, जाँच परख कर अपने साथिओं के साथ दैनिक गुरुकक्षा में चर्चा के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। साथिओं के कमैंट्स से पता चल रहा है कि उन्हें इस श्रृंखला के सभी लेख अति रोचक एवं ज्ञानवर्धक लग रहे हैं , हों  भी क्यों न क्योंकि  हर एक पन्ना, हर एक पंक्ति, हर एक शब्द ऐसा कुछ संजोए  हुए है कि सचमुच अमृत ही है।

पिछले कल से कमैंट्स-काउंटर कमैंट्स  प्रक्रिया को नए स्वरूप में प्रस्तुत करते हुए हमने अपनी भावना व्यक्त की थी कि स्वरूप चाहे कोई भी हो,अपने गुरु के प्रति श्रद्धा और इस प्रक्रिया की शक्ति में रत्ती भर भी कमी नहीं आएगी। बहिन संध्या जी ने हमारी भावना का समर्थन करते हुए बहुत ही साफ़ शब्दों में कहा था कि सभी परिजन कमेंट अवश्य करें। हम सबने इन कमैंट्स के माध्यम से बहुत कुछ सीखा है। बहिन विदुषी जी ने अपनत्व भरे कमेंट से हमारा दिल ही जीत लिया एवं बहिन कोकिला जी ने हमारे सम्मान में जो शब्द प्रयोग किये हैं, वोह तो बहुत ही बड़े हैं, हम तो साधारण से मनुष्य हैं। आजकल कोकिला जी अपने बच्चों के पास कनाडा में आई हुई हैं ,फ़ोन पर बात हुई थी। 

हमारे प्रत्येक प्रयोग से अगर परम पूज्य गुरुदेव की अपनत्व और प्रेम से भरी भावना सार्थक हो पाती है तो समझ लेना चाहिए कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार ने बहुत बड़ा कार्य कर लिया है। हमारी  सोच के अनुसार यही सबसे बड़ी गुरुभक्ति है क्योंकि जिस गति से प्रेम, विश्वास आदि ओझल हुए जा रहे हैं उससे हम सब भलीभांति परिचित हैं।      

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के समर्पित साथिओं के लिए इससे बड़ा सौभाग्य कोई हो ही नहीं सकता कि डॉ साहिब की इस रचना से हम (विशेषकर वोह परिजन जिन्हें गुरुदेव के साक्षात् दर्शन न हो पाए ) स्वयं गुरुदेव का सानिध्य अनुभव कर रहे हैं। 

आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी ने “अज्ञात की अनुभूति” पुस्तक की रचना करके हमारे ऊपर बहुत बड़ा उपकार किया है।  बहुत ही सरल भाषा में हम सबको गुरुदेव से साक्षात्कार कराना कोई छोटा कार्य नहीं है। कई बार तो ऐसा लगता है कि बहुत ही छोटे छोटे संस्मरण हैं लेकिन पढ़ने पर पता चलता है कि बहुत बड़ा ज्ञान समाया हुआ है। आज के लेख में भी बहुत कुछ जानने को मिल रहा है। जो साथी वर्तमान के आंवलखेड़ा के दिव्य दर्शन कर चुके हैं, स्वयं ही अनुभव कर सकते हैं की जिन दिनों की डॉ साहिब बात कर रहे हैं, क्या स्थिति होगी। हमारे ही चैनल पर आंवलखेड़ा से सम्बंधित अनेकों वीडियोस/लेख प्रकाशित हो चुके हैं, हमारे साथी उन्हें फिर से देखकर Revise कर  सकते हैं। 

तो आइये चलते हैं आज के दिव्य विवरण की ओर, गुरुचरणों में समर्पित होकर आज की गुरुकक्षा में। 

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आगरा के इंचार्ज  मन्त्री चौधरी नरेंद्र सिंह जी से मीटिंग:

परम पूज्य गुरुदेव की पावन जन्मस्थली, आंवलखेड़ा (आगरा) का मार्ग कच्चा एवं कीचड़ से भरा था, आना-जाना बहुत ही मुश्किल होता था। लखनऊ जाने के बाद अन्दर से प्रेरणा आयी चौ. नरेन्द्र सिंह, कृषि मन्त्री से मिल लो। उनसे भेंट करने गये, वह आगरा के भी इंचार्ज मन्त्री थे। हमने माननीय मन्त्री जी से परम पूज्य की पावन जन्मस्थली के बारे में विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा,”डॉ. साहब, हम आगरा दौरे पर 10 दिन के बाद जा रहे हैं, सरकिट हाउस में रुकेंगे ।” दूसरे दिन यज्ञ करते समय फिर पूज्यवर की प्रेरणा आयी कि  श्री नरेन्द्र सिंह से मिलकर उन्हें जन्मस्थली के दर्शन के लिए  आँवलखेड़ा आमन्त्रित कर लो। 

हम तुरन्त मन्त्री जी के घर गये, उनके पी.ए. श्री वर्मा जी से समय लिया। हमने उनसे आग्रह किया कि आप अन्य सरकारी कार्यक्रमों के साथ परम पूज्य गुरुदेव  जी की जन्मस्थली के दर्शन का भी कार्यक्रम रख लीजिए । मार्ग बहुत खराब है, मंत्री जी के आने से बन जायेगा। पूज्यवर की कृपा से माननीय मन्त्री जी ने अनुरोध स्वीकार कर लिया। जन्मस्थली दर्शन का कार्यक्रम जुड़ गया। माननीय मन्त्री जी के पहुँचने से  तीन दिन पहले हम रेलगाड़ी  से लखनऊ से आगरा और फिर आगरा से बस द्वारा अकेले ही आँवलखेड़ा पहुँच गये। किसी की गाड़ी लेकर सर्किट हाउस में माननीय मन्त्री जी से मिलने गये। BDO, दीक्षित जी से मिलकर माननीय मन्त्री जी के  पावन जन्मस्थली आँवलखेड़ा आगमन की सूचना दी। आनन-फानन में इमरजेंसी की तरह सभी के सहयोग से पावन जन्मस्थली का मार्ग  ईंट का बन गया, बड़े आराम से व्यक्ति एवं गाड़ियाँ आने जाने लगीं ।

मण्डल एवं जिले के लगभग सभी वरिष्ठ अधिकारी, माननीय मन्त्री जी के आगमन के कारण  प्रथम बार आँवलखेड़ा आये, गायत्री माता मन्दिर का दर्शन एवं पावन जन्मस्थली का दर्शन किया। कार्यक्रम से दो घण्टे पूर्व मन्त्री जी को प्रधानमन्त्री कार्यालय से बुलावा आ गया, इसलिए वोह  कार्यक्रम में नहीं आ पाये, लेकिन जनहित के सभी कार्य संपन्न हो गये। लोगों को वहाँ जाने से नयी प्रेरणायें मिलीं। 

पत्र द्वारा कार्यक्रम की सफलता की सूचना शान्तिकुञ्ज में परम पूज्य गुरुजी को दे दी ।

नौ दिवसीय साइकिल यात्रा

आंवलखेड़ा एवं उसके आस पास के 10 किलोमीटर परिधि के गांवों में लोक संपर्क एवं एवं गुरुदेव के कार्यक्रमों को पूर्ण करने हेतु हमने 9 दिन साइकिल यात्रा सम्पन्न की। आंवलखेड़ा स्थित गायत्री शक्तिपीठ के गायत्री माता मन्दिर की तीन बार परिक्रमा करने के पश्चात् हम 10-11 लोग शंख बजाकर साइकिल यात्रा प्रारम्भ करते थे। यात्रा प्रारम्भ होने के पूर्व हम सभी को तिलक लगाते थे तथा श्री श्याम शर्मा, श्री बंगाली बाबू एवं श्री त्यागी जी घण्टी बजाने एवं ब्लाक प्रमुख श्री शीरध्वज सिंह शंख बजाने का कार्य करते थे ।गाँवों में जाकर परिचय इत्यादि क्रम के बाद, मिशन व परम पूज्य गुरुदेव के तप की बात बताना, उनके सौभाग्य की सराहना करना हमारे कार्यक्रम के भाग थे। परम पूज्य गुरुदेव की इच्छा के अनुसार एक राजकीय कन्या विद्यालय की आवश्यकता के लिए परजिनों की राय लेना,उन्हें प्रेरित करना, स्वास्थ्य सम्बन्धी शिक्षा प्रदान करना एवं उपचार की बात, स्वच्छता की उपयोगिता, आवश्यकता एवं क्रियात्मक कार्यप्रणाली पर विचार-विनिमय आदि करना इस साइकिल यात्रा के उद्देश्य थे  

बरहन एवं कई अन्य स्थानों पर वरिष्ठ नागरिकों ने स्वतन्त्रता संग्राम में पूज्य गुरुदेव जी के साथ चलने, उनकी सेवा की भावना, कुरीतियों से संघर्ष, अच्छाइयों की स्थापना आदि की बातें बतायीं । लवानियाँ जी ने आश्चर्यजनक जानकारियाँ दीं ।लवानियाँ जी ने बताया था  किसानों की लगान माफी को क्रियान्वित कराने में पूज्य गुरुदेव जी द्वारा संगठन बनाने, विरोधियों का बिना विरोध किये उनका भी मूक समर्थन ले लेना, उनकी कला थी। लवानियाँ जी ने कहा,गुरुदेव की  सरलता, संगठन की कला एवं  सेवा कार्य अद्वितीय था। आज भी लोग उन्हें बहुत ही  याद करते हैं। हम लोगों को लगता है कि अब तो गुरुदेव के  दर्शन हमारे भाग्य में नहीं हैं । 

शान्तिकुञ्ज पहुचने पर परम पूज्य गुरुदेव जी को जब सभी समाचार बताया, तब वे बहुत प्रसन्न हुए, कहने लगे,“बेटा! लवानियाँ अभी जिन्दा है।” 

जगन प्रसाद रावत जी का ज़िकर गुरुदेव के साहित्य में अनेकों बार कहीं न कहीं आता ही रहता है। रावत जी, परम पूज्य गुरुदेव के साथ स्वतंत्रता सेनानी थे और नीचे दिया विवरण बता रहा है कि गुरुदेव की एक बात ने उन्हें कैसे वकालत छोड़ कर स्वंत्रता संग्राम की ओर प्रेरित किया:

पीली कोठी में रावत जी से हुई वार्ता : 

श्री जगन प्रसाद रावत जी, जो बाद में गृहमंत्री भी बने, गुरुदेव के साथ स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी थे। पीली कोठी, आगरा में उनका निवास था। हम लोग उनके निवास पर गये।  रावत जी ने कहा,“ वर्ष 1932 के आसपास की बात है, हम आँवलखेड़ा से जनता की मीटिंग लेने के बाद इक्के से चले आ रहे थे, कच्ची सड़क थी। कांग्रेस मूवमेण्ट ढीला पड़ गया था, हमने सोचा अब वकालत करेंगे। जब “मत्त”  जी यानि गुरुदेव ने इस बात को सुना, तब इक्के में बैठते  बहुत धीरे से हमारे कान में कहा, जब आप जैसे बड़े वकील स्वतन्त्रता के लिए कार्य नहीं करेंगे, तो भारत का और हम जैसे कार्यकर्त्ताओं का क्या होगा ?” रावत जी ने कहा कि यह बात हमारे हृदय में तीर की तरह लग गयी और आगरा पहुँचने से  पहले, हमने निश्चय कर लिया कि वकालत नहीं करेंगे और  देश की आज़ादी  के लिए ही मर मिटेंगे । (स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों का विस्तृत इतिहास उ.प्र. शासन, सूचना निदेशालय, लखनऊ से प्रकाशित है, जिसे पढ़ा जा सकता है)

कार का मन से निकल जाना यानि  मोह का अंत:  

धूप में गाँव की छोटी-पतली मेड़ और कच्चे ऊबड़-खाबड़  रास्तों पर साइकिल से यात्रा, सम्मानित समर्पित नागरिकों के साथ जनसम्पर्क एवं राजकीय कन्या विद्यालय खुलवाने के लिए ग्राम प्रधान एवं जनता के हस्ताक्षर लेने के साथ-साथ प्रचार-प्रसार का भी कार्य करते रहना, उनके साथ बैठकर चौपाल करना  एवं उन्हीं के साथ भोजन करने से आत्मीयता का विकास हुआ। ग्रामवासियों की मानसिकता, सांस्कृतिक, शैक्षिक और आर्थिक स्थिति का भी कुछ भान हुआ। भौतिक रूप में ग्रामवासियों की सेवा अच्छी लगती थी। 24 वर्षों के बाद परम पूज्य गुरुजी की परमकृपा से साइकिल चलाने का उद्देश्यपूर्ण कार्य महान् तपस्वी के आशीर्वाद के साथ प्रथम बार सम्पन्न हुआ। 

वर्ष 1962 में जब हम लखनऊ विश्वविद्यालय में विद्यार्थी थे, तब पुरानी साइकिल से विश्वविद्यालय जाते थे। एम.बी.बी.एस. में सेलेक्सन होने से छात्रावास में रहने लगे थे।1970 में सरकारी सेवा के लिए  कार लेकर गये। हमारे मन में कार, उसका रख-रखाव, उसमें खराबी का होना बहुत पहले से ही बना रहता था। कभी-कभी कार लेने की  कल्पना से भी तनाव हो जाता था। 1984 में शान्तिकुञ्ज से जब प्रथम बार कार से उत्तर प्रदेश,राजस्थान, गुजरात कार्यक्रमों में जाने का आदेश हुआ, तब भी मन में कार खराब होने की शंका बन गयी थी; लेकिन आदेश का पालन करना ही था। 

इसी लगाव को मोह कहते हैं और मोह ही दुःख का कारण है ।

लगभग पाँच दिन के अन्दर ही मन से कार की भावना निकल गयी। मन हलका हो गया, साक्षात् आन्तरिक अनुदान की प्राप्ति हुई। हमने इस महान् कृपा के लिए परम वन्दनीया माताजी एवं परम पूज्य गुरुजी को पत्र लिखा कि आपकी महान् कृपा हुई । आपने कार के मोह को मन से समाप्त कर दिया, जीवन धन्य हो गया। मन हलका हो गया, मोह कटा । परम पूज्य गुरुजी द्वारा साक्षात् आन्तरिक अनुदान की प्राप्ति हुई । हमने इस महान् कृपा के लिए परम वन्दनीया माताजी एवं परम पूज्य गुरुजी को पत्र लिखा कि आपकी महान् कृपा हुई । आपने कार के मोह को मन से समाप्त कर दिया, जीवन धन्य हो गया । मन प्रसन्नता से भर गया । आशीर्वाद पत्र प्राप्त हुआ ।

कल वाले लेख में कुछ और रोचक एवं ज्ञान से भरपूर संस्मरण प्रस्तुत किये जायेंगें। 

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कल वाले दिव्य लेख के अमृतपान से 384 टोटल कमैंट्स, 30 मेन कमेंटस पोस्ट हुए हैं। आज के ज्ञानयज्ञ में आदरणीय सुजाता जी और संध्या जी ने सबसे  अधिक कमैंट्स रुपी आहुतियां प्रदान करके गोल्डमेडलिस्ट होने का सम्मान प्राप्त किया है,उन्हें परिवार की बधाई।  ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार द्वारा आयोजित दैनिक ज्ञानयज्ञ में भाग लेने वाले सभी साथिओं का ह्रदय से आभार व्यक्त करते हैं।


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