वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

डॉ ओ पी शर्मा जी  द्वारा लिखित पुस्तक पर आधारित लेख श्रृंखला का 12वां   लेख  

22 जुलाई  2024 सोमवार का ज्ञानप्रसाद

आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी द्वारा लिखित पुस्तक “अज्ञात की अनुभूति” पर आधारित लेख शृंखला का आज 12वां  लेख प्रस्तुत है। डॉ साहिब द्वारा रचित इस ज्ञान के अथाह सागर में से डुबकी मार कर, हम अमूल्य रत्न ढूंढ कर, जाँच परख कर अपने साथिओं के साथ दैनिक गुरुकक्षा में चर्चा के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। साथिओं के कमैंट्स से पता चल रहा है कि उन्हें इस श्रृंखला के सभी लेख अति रोचक एवं ज्ञानवर्धक लग रहे हैं , हों  भी क्यों न क्योंकि  हर एक पन्ना, हर एक पंक्ति, हर एक शब्द ऐसा कुछ संजोए  हुए है कि सचमुच अमृत ही है। 

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के समर्पित साथिओं के लिए इससे बड़ा सौभाग्य कोई हो ही नहीं सकता कि डॉ साहिब की इस रचना से हम (विशेषकर वोह परिजन जिन्हें गुरुदेव के साक्षात् दर्शन न हो पाए ) स्वयं गुरुदेव का सानिध्य अनुभव कर रहे हैं। 

आज के लेख में परम पूज्य गुरुदेव के लिए उपनिषद का मन्त्र “अणोरणीयान् महतो महीयान्” अर्थात आप महान् से महान् हैं  और अणु-परमाणु से भी छोटे हैं, का प्रयोग स्वयं ही गुरुदेव के बारे में बता रहा है। आदरणीय डॉ शर्मा जी को गुरुदेव की जन्मस्थली आंवलखेड़ा में  कार्यरत होना आज के लेख का महत्वपूर्ण भाग है।    

जिन  साथिओं ने हमारे दोनों सुझावों में सहायता देकर हमारा कार्य सरल किया है उन्हें ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं। बहिन विदुषी जी द्वारा लिखा गया यह वाक्य “ भाई सा. अपने आप को अयोग्य कहना बंद करें, यदि आप अयोग्य हैं तो हम किस श्रेणी में आयेंगे”, इतना अपनत्व से भरा  लगा जैसे कोई अपनी ही बहिन भाई को डाँट रही हो।  एक दम ऐसा लगा कि गुरुदेव का “प्रेम और अपनत्व” का मन्त्र सार्थक हो गया, वाह रे मेरे गुरुदेव “कौन कौन गुण गाऊँ गुरु”   

हमारे साथिओं ने देखा होगा कि आद डॉ साहिब की पुस्तक में से चयन करके हम शुभरात्रि सन्देश भी बनाते आये हैं, उसी तरह का सन्देश आज रात को भी प्रकाशित करेंगें लेकिन यह सन्देश एक नए रूप में होगा। सुझाव के अनुसार संकल्प सूची को समाप्त करके केवल गोल्डमेडलिस्ट एवं सभी साथिओं पर केंद्रित रहेगी। 

गुरुपूर्णिमा के उपलक्ष्य में साथिओं ने इतना अधिक योगदान भेजा है कि इसे प्रकाशित करने के लिए साथिओं को 3 अगस्त तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी क्योंकि आने वाला शनिवार 27 जुलाई को है, महीने के अंतिम शनिवार को इस बार भी हमने अपना योगदान न दिया तो सुमनलता बहिन जी से डाँट पड़ना स्वाभाविक है।      

तो साथिओ अब समय है सीधा गुरुकक्षा की ओर कदम बढ़ाने का। 

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जनवरी 1986 में परम पूज्य गुरुजी ने अपने प्रवचन में कहा था, “हमारे कान बहुत बड़े हो गये हैं, हम दूर की बातों को सुनते हैं और हमारी आँखें बहुत दूर की चीजों को देखती हैं। मैं किसी का गुरु नहीं हूँ। मैं राई रत्ती से भी छोटा हूँ, मेरा पैर छूने का मतलब गायत्री माता का पैर छूना और वन्दनीया माताजी के  पैर छूने का मतलब गुरुदेव जी का पैर छूना है।” फिर पूज्य गुरुजी अपने प्रवचन में कहने लगे- ” मैं स्टारवार नहीं होने दूँगा, वैज्ञानिकों, बुद्धिजीवियों के दिमाग को बदल दूंगा आदि-आदि।” 

जब प्रवचन समाप्त हो गया, 12:00  बजे के बाद हम परम पूज्य गुरुदेव जी के दर्शन करने ऊपर गये, नमन के बाद, हमने हाथ जोड़कर परम पूज्य गुरुजी से कहा, “पिताजी आज आपने स्वयं बता दिया कि आप कौन हैं ?” 

फिर हमने उपनिषद् का मन्त्र “अणोरणीयान् महतो महीयान्” उनके समक्ष सुनाया। इस मन्त्र  है कि आप महान् से महान् हैं  और अणु-परमाणु से भी छोटे हैं।” परम पूज्य पिताजी प्रसन्न मुद्रा में सुनते रहे और उन्होंने स्वीकार किया। हम थोड़ी देर बैठे देखते  रहे और फिर नमन करके नीचे आ गये।

1986 की गायत्री जयंती को हम और हमारी धर्मपत्नी गायत्री जी,गायत्री जयंती  के एक दिन पूर्व परम वन्दनीया माताजी के दर्शन के पश्चात् परम पूज्य गुरुदेव का आदेश लेने व दर्शन करने ऊपर चले गये। परम पूज्य पिताजी ने बच्चों का समाचार पूछा, मार्गदर्शन करने के बाद आशीर्वाद दिया, हम लोग नमन करके नीचे आ गये।

लगभग 3:00 बजे हम  ऊपर गये,पूज्यवर टहल रहे थे, नमन-वन्दन के बाद पूज्यवर ने कहा, “बेटा ! जहाँ हमने शरीर पाया है (आँवलखेड़ा) हमारी जन्मस्थली की व्यवस्था में हम तुमको डालना चाहते हैं ।” हमने कहा, “पिताजी हम केवल आपको चाहते हैं, जिसके आप स्वयं साक्षी हैं।”

गुरुदेव उस कमरे (गुरुदेव का कक्ष) में टहल रहे थे जहाँ आजकल हम सब दर्शन करने जाते हैं।  गुरुदेव टहलते-टहलते  रुक गये और हमारी तरफ देखते हुए कहने लगे,”मैं चाहता हूँ आप आंवलखेड़ा की व्यवस्था सम्भालो।” हम हाथ जोड़कर बैठे थे, ऐसा अनुभव हुआ कि शक्ति की तरंग  हमें पीछे से ढकेल रही है। हमने कहा, “जैसी आपकी इच्छा।” फिर थोड़ी ही देर बाद परम पूज्य गुरुदेव जी ने कहा- “बेटा अब की गुरुपूर्णिमा पर तुम शान्तिकुञ्ज मत आना, हमारी जन्मस्थली (आंवलखेड़ा ) चले जाना।” तीन-चार दिन के बाद हम लखनऊ चले गये।

अधिकार प्राप्त करने की लेश मात्र इच्छा नहीं लगभग 15 दिन के अन्दर ए- 201, लालबाग कॉलोनी के पते पर शान्तिकुञ्ज से एक रजिस्ट्रीआयी। उसमें वन्दनीया माताजी द्वारा पावर ऑफ एटारनी, आँवलखेड़ा के विभिन्न कार्यों के लिए कहा गया था । हमने उसको देखकर माथे पर लगाकर अलमारी में रख दिया और किसी से उसका जिक्र भी नहीं किया क्योंकि अन्दर से अधिकार प्राप्त करने की लेशमात्र भी इच्छा नहीं थी। इच्छा थी तो मात्र सेवा करने की और उनके बताए आदेश पर चलने की। हमें इसी में जो आनन्द, सन्तोष एवं उल्लास का अद्वितीय आभास होता था उसका वर्णन करना संभव नहीं है। यही अद्वितीय आभास आज भी होता है।

गुरुदेव द्वारा निर्धारित कार्यक्रमों को लगभग 10 दिनों में पूरा करने के बाद हम  शान्तिकुञ्ज वन्दनीया माताजी, परम पूज्य का दर्शन करने और आगे के कार्यक्रमों का आदेश लेने के लिए शान्तिकुञ्ज आये । परम वन्दनीया माताजी के दर्शन किये, नमन के बाद, हाथ जोड़कर हमने कहा,“आप स्वयं साक्षी हैं, माताजी ! हमारी कोई इच्छा नहीं थी।” 

वन्दनीया माताजी ने कहा,

परम वन्दनीया माताजी ने परम पूज्य गुरुजी के समक्ष ऊपर भेजा। पिताजी ने कहा,

“आओ बेटा ओमप्रकाश !” हमने नमन किया और अन्दर से दिव्य शक्ति का दर्शन कर रहे थे। पूज्य पिताजी ने वहाँ का समाचार लिया और श्री गजाधर भारद्वाज जी, जो वहाँ की व्यवस्था एवं निर्माण कार्य को देख रहे थे, उनको हर तरीके का सहयोग करने के साथ-साथ राजकीय कन्या विद्यालय एवं एक चिकित्सालय के स्थापना की बात कही। वहाँ की कन्याओं की शिक्षा एवं जन स्वास्थ्य के लिए कहा। गुरुदेव सब निर्देश टहलते दे  रहे थे, पूज्यवर रुककर, फिर कृपा कर बोले,

हम आशीर्वाद एवं आदेश लेकर लखनऊ वापस चले गये।

1986 की गुरुपूर्णिमा  के दो दिन पूर्व, हम गायत्री जी के साथ, प्रथम बार अपनी कार से लखनऊ से कानपुर, इटावा, मैनपुरी, एटा होते हुए आँवलखेड़ा पहुँचे। प्रातः जन्मस्थली का दर्शन कर लगभग 10:00  बजे आगरा के लिए प्रस्थान किया।आगरा में कार्यकर्त्ताओं एवं अधिकारियों से सम्पर्क स्थापित कर,आगरा जनपद में जन्में एक महान् स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी, तपस्वी एवं उत्कृष्ट समाज-निर्माण के उद्घोष करने वाले महामानव की जन्मस्थली के बारे में जानकारी दी जिससे उनका कल्याण हो और हमारा भला। उस समय कार्यकर्त्ता के नाम पर श्री नेमीचन्द्र शर्मा जी और सक्सेना जी का नाम बताया गया, बाद श्री हरीश चन्द्र महरोत्रा जी और अन्य कार्यकर्त्ता बढ़ गये । हम  ADM साहब से मिलने गये, परस्पर  परिचय हुआ,शान्तिकुञ्ज से चलने वाली गतिविधियों, पावन जन्मस्थली आँवलखेड़ा की चर्चा हुई । चाय-पानी के बाद ADM  साहब ने कहा, “आगरा मण्डल के Forest Conservator जी पी शर्मा जी से भी सम्पर्क कर लीजिए।” हम लोग उनके घर गये,परिचय हुआ,मिशन द्वारा किये जा रहे कार्यों, परम पूज्य गुरुदेव एवं माताजी की तपस्या, उनके द्वारा मानव मात्र के कल्याण के लिए दी गयी फिलोसोफी की चर्चा, गुरुदेव व्यक्ति नहीं मिशन हैं एवं उनकी  साझेदारी कर दिव्य प्रेरणा के रूप में आशीर्वाद कैसे प्राप्त किया जा सकता है, विषयों पर चर्चा हुई” हमने कहा, “सद्विचार, जो तपस्वी(गुरुदेव) के आचरण से निकले हैं, सबसे बड़ी दवा है। ” शर्मा जी  बहुत प्रसन्न हुए तथा आँवलखेड़ा दर्शन करने  का निश्चय किया, उन्होंने ने प्रश्न किया, “आप दोनों (पति-पत्नी) वरिष्ठ चिकित्सक होने के बावजूद ऐसा क्यों करते हैं? हमने उन्हें बताया कि हमने महसूस किया है कि महान् तपस्वी का विचार सबसे बड़ी दवा है। इसीलिए हम दोनों चिकित्सालय के कार्य के बाद साहित्य एवं संस्कार के माध्यम से गुरुदेव के विचारों को जन-जन तक पहुचाते हैं। लोगों को उनका आशीर्वाद मिलता है और हम लोगों को भी उनका आशीर्वाद, दिव्य मार्गदर्शन और आत्मसन्तोष, दैवी अनुग्रह के रूप में मिलता है। लोगों का मन अच्छा होता है, उसके फलस्वरूप शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहता है। आज 60% से अधिक मानसिक बीमारियाँ व्याप्त हैं, सद्विचार उनकी रोकथाम हैं। कहते हैं “Prevention is better than cure ” सुनकर शर्मा जी बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने कहा, “क्या आप हम लोगों का परसों होने वाला विवाह दिवसोत्सव मनवा देंगे ? हम लोगों ने कहा, “इसीलिए तो आये हैं, आप भाग्यशाली हैं, पूज्य गुरुजी का आशीर्वाद मिलेगा।”

हम बातचीत समापत कर आँवलखेड़ा वापस गये ततः आँवलखेड़ा से यज्ञकुण्ड लेकर एक-दो सहायकों के साथ शर्मा जी के निवास पर पहुँच गये। उन्होंने पूरी तैयारी कर रखी थी। पाँचों जिलों (आगरा, मैनपुरी, अलीगढ़, हाथरस, एटा) के DFO, गणमान्य व्यक्ति,आगरा के ADM शुक्ला जी एवं कांग्रेस के विधायक आदि वहाँ उपस्थित थे। सफलतापूर्वक कार्य सम्पन्न हुआ। एक साथ जिले से प्रशासनिक अधिकारीयों  एवं अनेकों  गणमान्य व्यक्तियों ने मिशन को जाना तथा अखण्ड ज्योति पत्रिका के सदस्य बने । पूज्य गुरुजी की जन्मस्थली जानकर, अपने को भाग्यशाली होने की बात कही और यह भी कहा अभी इसकी जानकारी न होने का खेद भी है।

अन्त में Forest Conservator जी पी शर्मा जी   ने कहा, “डॉ. साहब आप जब भी लखनऊ से आयेंगे, हमको सूचित करिएगा, आप बस से आँवलखेड़ा नहीं जायेंगे, DFO  की कार में जायेंगे। हमने कहा, “आवश्यकता होगी, तो बताएँगे।” लगभग सात दिन रहकर हम दोनों लखनऊ वापस चले गये ।

परम पूज्य गुरुदेव जी को हर तीसरे दिन पत्र द्वारा पूरे कार्यक्रमों की सूचना देते रहे । पूज्य गुरुदेव का आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन का पत्र अधिकतर श्रद्धेय डॉ. प्रणव पण्ड्या जी के द्वारा लिखा हुआ और माताजी के हस्ताक्षर के साथ मिलता था। श्रद्धेय डॉ. साहब की लेखनी हरे रंग की स्याही में इतनी सुन्दर थी, जैसे टाइप हुआ हो, बड़ी प्रेरणा एवं सन्तोष मिलता था।

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शनिवार  के विशेषांक  का  जिस श्रद्धा और दिव्यता से अमृतपान किया गया है उसे  610 टोटल कमैंट्स,39 मेन कमेंटस चरितार्थ कर रहे हैं। आज के ज्ञानयज्ञ में आदरणीय चंद्रेश जी और संध्या जी ने सबसे  अधिक कमैंट्स रुपी आहुतियां प्रदान करके गोल्डमेडलिस्ट होने का सम्मान प्राप्त किया है,उन्हें परिवार की बधाई।  ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार द्वारा आयोजित दैनिक ज्ञानयज्ञ में भाग लेने वाले सभी साथिओं का ह्रदय से आभार व्यक्त करते हैं। 


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