वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

गुरुपूर्णिमा 2024 को समर्पित लेख श्रृंखला का चतुर्थ एवं समापन  लेख 

18  जुलाई 2024 का ज्ञानप्रसाद

अखंड ज्योति जनवरी/फ़रवरी  2003 में प्रकाशित लेखों  पर आधारित, गुरुपूर्णिमा को समर्पित,आरम्भ हुई लेख श्रृंखला का आज चतुर्थ एवं समापन लेख प्रस्तुत है। इस लेख शृंखला के माध्यम से परम पूज्य गुरुदेव के अनेकों प्रथम शिष्यों में से एक और शिष्य आदरणीय रामचंद्र सिंह जी की गुरुभक्ति का आभास कराती यह लेख श्रृंखला सच में हमें ऐसी  बातों का ज्ञान प्रदान करा रही है जिनका अमृतपान करते हुए हम नतमस्तक हुए बिना नहीं रह पाते। 

पहले प्रयासों की भांति,हमने इस प्रयास में भी उपलब्ध साहित्य की सहायता से एक कम्पलीट जानकारी देने का प्रयत्न किया है।अगर भविष्य में आदरणीय रामचंद्र सिंह जी से सम्बंधित कोई भी जानकारी प्राप्त होती है तो उसे साथिओं के समक्ष लाने का प्रयास करेंगें। हमारे साथी जानते हैं कि लीलापत शर्मा जी,शुक्ला बाबा, मसूरी इंटरनेशनल स्कूल,अखंड ज्योति हॉस्पिटल, मस्तीचक शक्तिपीठ, सलाखों के पीछे, जगदीश चंद्र पंत और वर्तमान डॉ ओ पी  शर्मा आदि विषयों पर लेख लिखकर एक ऐसा प्रयास किया है जिसके अमृतपान से  पाठक न केवल गुरुदेव को “जाने” बल्कि गुरुदेव को “जिएं” भी। गुरुदेव ने स्वयं ही  तो बार-बार कहा है कि “मेरे को” मानने  की आवश्यकता के साथ-साथ, “मेरी भी” मानने की आवश्यकता है। 

सोमवार से एक बार फिर, डॉ ओ पी शर्मा जी के दिव्य, रोचक संस्मरण प्रस्तुत करने की योजना है इन संस्मरणों को बीच में रोकने के लिए करबद्ध क्षमाप्रार्थी हैं। इस बार, शुक्रवार की वीडियो कक्षा में गुरुपूर्णिमा से ही सम्बंधित कोई वीडियो देखने का सौभाग्य प्राप्त होने वाला है, शनिवार को सप्ताह का अतिरोचक विशेषांक तो आ ही रहा है।

आज के लेख में आदरणीय रामचंद्र सिंह जी के शब्दों में विवरण से पहले शांतिकुंज के बारे में संक्षिप्त सी  जानकारी देने का प्रयास किया है, आशा करते हैं यह जानकारी एक  Cheat Sheet की भांति काम करेगी।    

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के समर्पित साथिओं के साथ इस लेख श्रृंखला के शुभारम्भ पर भी कुछ जानकारी प्रस्तुत की थी, कुछ अतिरिक्त जानकारी आज शेयर करने की चेष्टा कर रहे हैं। ऐसा हम इसलिए कर रहे हैं कि भविष्य में अगर किसी साथी को आदरणीय रामचंद्र सिंह जी पर आधारित इन लेखों का स्वाध्याय करने की जिज्ञासा उठे तो हमारे लेख तो हैं ही लेकिन उन लेखों को भी जानना अनुचित नहीं होगा जिन पर हमारे लेख आधारित हैं। तो इस  सन्दर्भ में निम्नलिखित वर्णन उचित रहेगा : 

अखंड ज्योति के जनवरी एवं फ़रवरी 2003 के अंकों में “गुरुकथामृत-39/40-मेरे हृदयेश्वर-मेरे भगवान्” शीर्षक के अंतर्गत दो लेख प्रकाशित हुए -लेख क्या साक्षात् ईश्वर की वाणी, सीधी ह्रदय में उतरती जाती है, तभी तो रामचंद्र सिंह जी ने इन लेखों में गुरुदेव को हृदयेश्वर-मेरे भगवान् सम्बोधित किया  है। आज संजना बेटी ने अपने कमेंट में  निम्नलिखित भावना प्रकट की है : 

हृदय और ईश्वर के मिलन से हमें भी हमारे हृदयेश्वर के प्रेम को देखकर ऐसा ही लग रहा है जैसे “लगें कुटिया भी गुलशन सी, मेरे घर राम आएं हैं”

हम अपने साथिओं के साथ इस तथ्य को भी शेयर करना आवश्यक समझते हैं कि इन लेखों को आदरणीय लीलापत शर्मा जी की पुस्तक “गुरुकथामृत” के साथ MIX  न किया जाए। वोह एक पुस्तक है और अखंड ज्योति वाले लेख एक नियमित श्रृंखला का शीर्षक हैं जिसके अंतर्गत प्रथम लेख अगस्त 1999 में प्रकाशित हुआ था। लेख क्या, यह तो साक्षात् गुरु का अमृत ही हैं, गुरुदेव का मार्गदर्शन रहा तो आने वाले समय में, गुरुकक्षा में इन लेखों का प्रकाश भी अवश्य ही फैलेगा।  

तो आइए चलें गुरुकक्षा की ओर, गुरुचरणों में समर्पित हो जाएँ।   

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शांतिकुंज Cheat sheet : 

परम पूज्य गुरुदेव ने 60 वर्ष की आयु में 20 जून 1971 को मथुरा छोड़कर हिमालय में एक वर्ष की उग्र तपश्चर्या के लिए प्रस्थान किया। वंदनीया माताजी के मार्गदर्शन में शांतिकुंज, हरिद्वार में “नए शक्तिकेंद्र” का संचालन प्रारंभ हुआ। 

1971 में जब परम वंदनीया माता जी ने पत्रिका संपादन, तप द्वारा शक्ति उपार्जन, अनुदान वितरण की महत्वपूर्ण  जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली तो  1959 की तुलना में उनके  लिए यह ज़िम्मेदारी और भी अधिक कठिन परीक्षा का समय था। परम पूज्य गुरुदेव तो हिमालय में चले गए थे,माता जी के लिए यह बिलकुल ही नया स्थान था, माताजी के पास  कुंवारी  कन्याएं थीं  जिन्हें साधना पथ पर प्रशस्त करना था, सहयोग के लिए मात्र तीन ही कार्यकर्त्ता थे। शांत-साधना के लिए शांतिकुंज जैसा स्थान तो सर्वाधिक उपयुक्त था लेकिन मथुरा में आते-जाते रहने वाले आगंतुक परिजन, चहल-पहल की तुलना में शैशव अवस्था वाले शांतिकुंज में, आने-जाने का क्रम न के बराबर ही  था। अतः वंदनीया माताजी के लिए यह समय और स्थान,दोनों ही कड़ी परीक्षा के थे ।

वंदनीया माता जी ने देवकन्याओं को साथ लेकर अखण्ड दीप के सान्निध्य में 24 घंटे अखण्ड जप का क्रम चलाया। बाद में देव कन्याओं के माध्यम से ही एक वर्षीय कन्या प्रशिक्षण सत्र तथा तीन माह वाले महिला प्रशिक्षण सत्र परम वंदनीया माता जी के सान्निध्य में चलाए गए।

सन् 1972 की गायत्री जयंती के बाद से शांतिकुंज में, दुर्गम हिमालय में कार्यरत ऋषियों की परंपरा का बीजारोपण कर, उसे एक सिद्धपीठ के रूप में विकसित किया गया। सन् 1972-73 में गुरुदेव ने भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार हेतु, विदेश यात्रा की तथा वहां से लौटकर “समस्त विश्व को भारत के अजस्र अनुदान” नामक 464 पन्नों के एक महत्त्वपूर्ण ग्रंथ की रचना की। परमपूज्य गुरुदेव ने जाग्रत आत्माओं के लिए शांतिकुंज में प्राण-प्रत्यावर्तन, चांद्रायण कल्प, संजीवनी साधना, जीवन-साधना, वानप्रस्थ सत्र, युगशिल्पी सत्र आदि अनेक तरह के सत्रों का आयोजन किया। विशाल शांतिकुंज परिवार के अंतर्गत हजारों पूर्ण समयदानी कार्यकर्त्ताओं का उनके आह्वान पर आगमन हुआ एवं उन्होंने गुरुदेव के पदचिह्नों पर चलने का संकल्प लिया।

आदरणीय रामचंद्र सिंह जी का सत्संग: 

जैसे ही मैंने गुरुदेव के मथुरा से विदाई समारोह (16 से 20 जून, 1971)  के समाचार सुने, मेरा भी मन करने लगा कि मैं भी इसमें सम्मिलित होऊँ। मैंने भी आने के लिए  पत्र लिखा, तत्काल उत्तर आया कि हनुमान ने भगवान राम के पहुँचने से पूर्व लंका में सारी व्यवस्था बना दी थी। तुम्हें वहाँ की सारी व्यवस्था हमारे आगमन के पूर्व करनी है, ताकि हमारे हिमालय प्रस्थान के बाद माताजी को कोई असुविधा न हो। पत्र पाकर “कर्त्तव्य-बोध” हुआ। मैं जी-जान से सारी तैयारियाँ करने में जुट गया। भगवान श्री का पत्र आया कि प्रयास करना कि हमारे आने से पूर्व टेलीफोन लग जाए। टेलीफोन इंस्पेक्टर का ऑफिस ऋषिकेश था। संयोग से वह “अखण्ड ज्योति” पढ़ता था, तत्काल शाँतिकुँज आया। सर्वे किया व एक नियम शुल्क जमा कराने को कहा। काम शुरू हो गया व ऋषियुग्म के आने के पूर्व ही फोन लग गया। इसे मैं उनकी अनुकंपा ही मानता हूँ कि सारी व्यवस्था हो गई, नहीं तो मैं अल्पशिक्षित यह सब कैसे कर पाता।

गुरुदेवश्री 20 जून को शाम आठ बजे माताजी व अखण्ड दीपक के साथ आए एवं दस दिन बाद सबको सोता छोड़ कर अज्ञातवास के लिए विदा हो गए। एक साल बाद वे हिमालय से लौटे। आते ही युगतीर्थ का विस्तार, कन्या प्रशिक्षण, प्राण- प्रत्यावर्तन, विदेश यात्रा एवं विभिन्न शिविरों के क्रम में लग गए। हिमालय से लौटकर उन्होंने  मत्स्यावतार का रूप धारण कर लिया। शाँतिकुँज, गायत्रीनगर, ब्रह्मवर्चस् बने एवं फिर हजारों शक्तिपीठ बनते चले गए। सभी इस लीला को जानते है लेकिन  इस अवधि में मेरे साथ बहुत कुछ अलौकिक घटा। मैं ऐसी घटनाओं का साक्षी बना, जो बड़ी विलक्षण थीं, इनमें से केवल दो ही निम्नलिखित घटनाएं यहाँ पर प्रस्तुत की जा रही हैं : 

1. मेरे एक मित्र दमा से पीड़ित थे। जब मैंने उनके बारे में बताया तो गुरुदेवश्री ने कहा, तुम उन्हें पत्र लिखो कि वोह  तुलसी का काढ़ा पिएँ। वैसे संभावना यही है कि तुम्हारा पत्र मिलने से पहले ही वोह  ठीक हो जायेंगें और  ऐसा ही हुआ। बाद में हमारे मित्र रामउदार सिंह शाँतिकुँज आए और बोले, “स्वप्न में गुरुदेव के दर्शन हुए।उन्होंने छाती पर हाथ फेरकर कहा: 

2.एक और संस्मरण  1976-77 का  है। पटना से एक इंजीनियर बाबू श्री सत्यतन सिंह जी शिविर करने शांतिकुंज आए, उन्होंने मुझसे कहा, “सीढ़ियों के पास जो शौचालय-कमरा बना है, उसमें निर्माण संबंधी दोष है और सुधार जरूरी है।” मैंने गुरुदेव भगवान को यह बात बताई। इंजीनियर साहब को बुलाकर गुरुदेव ने  चर्चा की। शिविर के बाद उनसे रुकने व नुक्स ठीक करने को कहा। मजदूर लगाकर दुरुस्ती करवा दी गई। इंजीनियर साहब बोले, “मेरा पाँच वर्ष का पोता था। बिच्छू के डंक से उसकी तत्काल मृत्यु हो गई। मेरी पत्नी तथा सभी परिवारीजन इससे दुःखी  हैं । तीन लड़कियाँ है लेकिन  लड़का एक ही था। गुरुदेव ने कहा कि यदि बच्चे की आत्मा ने कहीं और जन्म न लिया होगा तो उसी को आपके घर में लौटा देंगे।इंजीनियर साहब का परिवार लौट गया। वे यहीं रह गए, निर्माण कार्य देखते रहे। ठीक 10  माह बाद पटना से इंजीनियर साहब का पत्र आया कि उसी शक्ल-सूरत का लड़का हुआ है। इंजीनियर साहब ने गुरुदेव के चरण पकड़ लिए। कुछ दिनों बाद परिवार के सभी सदस्य नन्हें शिशु को लेकर आए व आशीर्वाद दिलाकर ले गए।

इति श्री, जय गुरुदेव 

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490   कमैंट्स और 11  युगसैनिकों से आज की 24 आहुति संकल्प सूची सुशोभित हो 

रही  है।आज तीन  साथिओं के अंक (39,40)पास-पास हैं,तीनों  गोल्ड मेडलिस्ट युगसैनिकों को बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्। 

(1)रेणु श्रीवास्तव-39,(2)नीरा त्रिखा-26,(3)वंदना कुमार-24,(4)सुमन लता-30 ,(5)चंद्रेश बहादुर-40,(6)संध्या कुमार-39,(7)सुजाता उपाध्याय-26,(8)पूजा सिंह-26,(9)सरविन्द पाल-34,(10)अरुण वर्मा-24,(11)पुष्पा सिंह-24  


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