प्रत्येक शनिवार का दिन ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में एक उत्सव की भांति होता है। यह एक ऐसा दिन होता है जब हम सब सप्ताह भर की कठिन पढाई के बाद थोड़ा Relaxed अनुभव करते हैं और अपने साथिओं के साथ रूबरू होते हैं, उनकी गतिविधिओं को जानते हैं। हर कोई उत्साहित होकर अपना योगदान देकर गुरुकार्य का भागीदार बनता है एवं अपनी पात्रता के अनुसार गुरु के अनुदान प्राप्त करता हुआ अपनेआप को सौभाग्यशाली मानता है।
6 जुलाई वाले अंक में अपने उन साथिओं से क्षमा याचना कर ली थी जिनकी प्रतियां उस अंक में शब्द सीमा/अतिरिक्त होमवर्क के कारण प्रकाशित न हो पायी थीं।
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तो चलते हैं आज के उत्सव की ओर जिसमें उन प्रतियों को शामिल किया गया है जो उस समय मिस करनी पड़ी थीं। इसके इलावा भी इस अंक में बहुत कुछ जानने के लिए है। आइए सभी बातें एक-एक करके, संक्षेप में, pointwise शेयर करने प्रयास करेंगें।
1. सबसे पहला पॉइंट हमारी आदरणीय बहिन पुष्पा जी के संबंधित है। कुछ समय पूर्व बहिन जी ने देव संस्कृति यूनिवर्सिटी के प्रांगण में प्रज्ञेश्वर महाकाल के मंदिर में स्थित शिवलिंग में “परम पूज्य गुरुदेव की छवि” दिखने की बात की थी। हमारा उस में कोई भी ज्ञान/अनुभव न होने के कारण हमने परिवार के दिव्य मंच पर शेयर कर दिया था। अनेकों साथिओं ने कमैंट्स कर के अपने-अपने विचार रखे थे, सभी का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं। उसके बाद हमने इस शिवलिंग से सम्बंधित एक लेख भी प्रकाशित किया।
यह सब कुछ तो हम करते रहे लेकिन मन में जिज्ञासा थी कि इसका प्रश्न का कोई सटीक उत्तर मिले।
प्रश्न का उत्तर प्राप्त करने के लिए हम न जाने कहाँ-कहाँ भटकते रहे, किस-किस से बात करते रहे, हमने शांतिकुंज लाइव दर्शन का यूट्यूब चैनल रोज़ाना प्रातः/सायं नाद योग आदि के समय और भी ध्यान से देखना शुरू कर दिया। कई तरह के विचार, भावनाएं, अनुभूतियाँ आदि हुईं लेकिन यह सभी व्यक्तिगत होने के कारण शेयर करना उचित नहीं समझते।
प्रज्ञेश्वर महाकाल की गोद में बैठी अपनी प्रिय बेटी संजना से फ़ोन पर बात करते हुए हमने बोला कि तुम महाकाल शिवलिंग में गुरुदेव की फोटो/वीडियो हमें भेज सको तो बहुत उचित होगा लेकिन उसकी समस्या यह है कि DSVV के प्रतिबंध के कारण विद्यार्थी हॉस्टल से बाहिर फ़ोन नहीं ला सकते, तो इसलिए इस विषय को उसके साथ आगे न बढ़ा पाए।
हम साथ-साथ शांतिकुंज के कुछ वरिष्ठजनों के साथ भी चर्चा करते रहे और जो फाइनल निष्कर्ष निकला वोह निम्नलिखित है :
“साधक की भावना से उनको दर्शन होता है और इस दर्शन में गुरुसत्ता का अनुग्रह भी निहित होता है ।”
हमारे विचार में तो यही सबसे उत्तम निष्कर्ष होना चाहिए क्योंकि हमें यही रिप्लाई अलग-अलग अति-शिक्षित,अति-वरिष्ठ सहयोगियों से मिला जिन्हें परम पूज्य गुरुदेव का वषों का सानिध्य प्राप्त हुआ है ।
उपरोक्त पंक्तियों को लिखते समय हम बहुत ही सावधानी एवम शिष्टाचार की भावना व्यक्त कर रहे है ताकि किसी की भी भावना को ठेस न पंहुचे। यह भावना ही है जो पत्थर में भी भगवान को प्रकट कर लेती है और यह विश्वास ही है जिसने कुछ वर्ष पूर्व गणेश जी को दूध पिलाने के चक्कर में लाखों-करोड़ों लीटर दूध नालियों में बहा दिया था। यूनिवर्सिटी ग्रांट्स कमीशन के उस समय के चेयरमैन स्वर्गीय प्रोफेसर यश पाल ने भांति भांति के वैज्ञानिक logic दिए थे लेकिन किसी ने उनकी एक नहीं सुनी। यह सही है कि प्रोफेसर यश पाल नास्तिक थे और मूर्तियों आदि में विश्वास नहीं करते थे लेकिन गरीब बच्चों के मुंह के दूध छीन कर नालियों में बहाना कहाँ की आस्तिकता है, अगर है तो हमें इससे सख्त ऐतराज है (बहुत नम्रता से कह रहे हैं यह हमारे व्यक्तिगत विचार हैं)
भावना के संदर्भ में 1970 की बॉलीवुड मूवी “डोली” का गीत स्मरण हो आता है:
“आज मैं देखूं जिधर जिधर, न जाने क्यों उधर उधर,मुझे दो दो चांद नजर आए”
यह कोरी भावना,विश्वास और कल्पना नहीं तो और क्या है? दो-दो चांद दिखने कहां संभव है, हां हमने एक ही समय हाईवे पर ड्राइव करते हुए, दो-दो इंद्रधनुष अवश्य देखें हैं। इस प्राकृतिक दृश्य को (जिसका वैज्ञानिक तर्क भी दिया था), देखते ही हमनें रेडियो पर ब्रॉडकास्ट करके सभी को अवगत भी कराया था।
हम बहुत ही सौभाग्यशाली हैं कि हम ऐसे गुरु के परिवार से जुड़े हैं जिन्होंने जितना बल आध्यात्मिकता को दिया उससे कहीं अधिक वैज्ञानिकता को दिया है।
2.दूसरा प्वाइंट एक ऐसा प्वाइंट है जो साक्षात परिवार की भावना को प्रकट कर रहा है।
यह हमारे चिरंजीव बेटे बिकाश शर्मा (मस्तीचक) से संबंधित है। प्रयास करेंगें कि हम इस संस्मरण का उसी भावना से चित्रण कर सकें जो हमें अनुभव हुई थी।
बेटे ने जब हमारी नेत्र सर्जरी की बात सोशल मीडिया पर पढ़ी तो एकदम निम्नलिखित कॉमेंट किया:
ओह माई गॉड, मेरे बाबू जी को क्या हो गया? गुरुदेव सहायता करें”
हमने एकदम रिप्लाई करके उसे समझाने का प्रयास किया कि बेटे कुछ भी घबराने की बात नहीं है, बिल्कुल छोटा सा ऑपरेशन था, हमने तो इसे रेगुलर ब्लड टेस्ट( जो हमारा हर तीन महीने बाद होता रहता है) की संज्ञा दे दी थी।तीन घंटे में तो हम घर वापिस भी आ गए थे और 1 दिन के बाद सब कुछ नॉर्मल दिनचर्या भी आरंभ कर दी थी।
यह सब सुनकर बेटे को कुछ सहारा मिला।
उसके बाद फिर, कुछ दिन पहले उसने हमें मैसेज करके पूछा, “मेरे बाबू जी कैसे हैं?” तो हमने संक्षिप्त सा उत्तर दिया कि सब ठीक है बेटे, रिकवरी 1 महीना चलनी है। लेकिन उससे रहा नहीं गया, वोह हमें प्रत्यक्ष देखना चाहता था, हम उस समय Costco में शॉपिंग कर रहे थे, उसने वीडियो कॉल की, मन प्रसन्न हो गया।
यहां एक बात वर्णन योग्य है जिसे बताकर इस संस्मरण का समापन करते हैं:
हमने बेटे को कहा: हम एक निवेदन करते हैं कि नवनिर्मित Centre of Excellence और नवग्रह मंदिर की फोटो हमें भेज दे, तो उसके उत्तर (जो वोह आगे भी कहता है) ने हमारा दिल जीत लिया ।उत्तर था, “बाबू जी, बच्चों को निवेदन नहीं, ऑर्डर करते हैं।” हमारे घर पंहुचने की देर थी, उसने 15 फोटो भेज दिए। यह है गुरु (शुक्ला बाबा) की शक्ति, सत-साहित्य की शक्ति, वातावरण की शक्ति जहां से केवल प्रेम की ही अविरल धारा बहती है। यही धारा हम सब साथियों को एक अटूट बंधन में बांधे हुए है।
पहले भी बहुत बार लिख चुके हैं , नए जुड़े साथियों के लिए लिख रहे हैं कि बिकाश बेटे का हमसे कॉमेंट्स के माध्यम से जुड़ पाना, कॉमेंट्स की शक्ति को वर्णन करता है, यही कारण है कि हम सार्थक ( जय गुरुदेव आदि के इलावा ?) कॉमेंट को बल देते रहते हैं । चुने हुए कॉमेंट्स को विशेषांक में एक बार फिर से प्रकाशित करके पढ़ाने का एक और प्रयास भी करते हैं, आखिरकार यह भी गुरुआज्ञा का पालन ही तो है, परिवार केवल कहना मात्र न होकर, भावनात्मक हो जाए तो इससे बड़ी बात क्या हो सकती है। हमारे दरवेश गुरु ने बिना किसी विज्ञापन और मार्केटिंग के आज के युग में केवल प्रेम की शक्ति से ही इतना बड़ा विश्व्यापी परिवार रच कर रख दिया। नमन करते हैं ऐसे गुरु को और उनके बताए मार्ग पर चलने का संकल्प लेते हैं, इससे बढ़कर गुरुभक्ति कोई हो ही नहीं सकती।
3.तीसरा प्वाइंट हमारी बहिन मंजू मिश्रा जी की ट्रेन वाली निम्नलिखित अनुभूति है:
मेरी एक अनुभूति है 24 तारीख को मैं पटना से असम के लिए घर से निकली थी ट्रेन हाजीपुर से पकड़नी थी तो हम 7:30 पर घर से निकले थे हाजीपुर जाने वाला पुल जाम था पता लगाने पर पता चला कोई ठीक नहीं है 5,6 घंटे जाम नहीं खुलेगा बड़ी समस्या हो गई अब तो ट्रेन छूट जायेगी। फिर दूसरे रास्ते से जाने के लिए बैक हुए, काफी लंबा रास्ता था ठीक से रास्ते की जानकारी भी नहीं थी। मन घबराने लगा अब तो ट्रेन छूट जायेगी। मन ही मन गुरुदेव जी को याद किया, गुरुदेव जी से प्रार्थना करी आप तो सब कुछ जानते हो कोई रास्ता निकालिए गुरुदेव जी। भीतर से आवाज आई घबराओ मत, ट्रेन 10:00 बजे से पहले नहीं आयेगी। प्लेटफॉर्म पर पहुँचे तो ट्रेन 1 घंटा लेट थी। दूसरा मेरी बर्थ ऊपर वाली थी, मैं ऊपर नहीं चढ़ पाती हुँ। एक बच्ची मेरे पास बैठी थी। मैने कहा बेटा,मेरी सीट ऊपर है, आप उस पर चले जाओ लेकिन उसने तो मना कर दिया। इतने मे एक लड़का आया, शायद बेटी का भाई था। उसने जब यह बात सुनी तो झट से अपनी सीट जो नीचे थी, मुझे दे दी। मैने धन्यवाद दिया और मैं उस बेटे की सीट पर बैठ गई। चुटकियों मे गुरुदेव जी ने समस्या का समाधान कर दिया। मेरे आँसू निकले जा रहे थे, गुरुदेव को याद किये जा रही थी।
आदरणीय चंद्रेश भैया जी ने कमेंट में मुझे लिखा था बहन जी आप अकेली नहीं है आपके साथ गुरुदेव हैं जो एकदम सही लिखा था,भैया जी ने। कोटि-कोटि धन्यवाद भैया जी सादर प्रणाम
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395 कमैंट्स और 8 युगसैनिकों से आज की 24 आहुति संकल्प सूची सुशोभित हो रही है।आज की सूची के सभी साथी गोल्ड मैडल विजे ता हैं। सभी को हमारी व्यक्तिगत बधाई एवं योगदान के लिए धन्यवाद्।
(1)वंदना कुमार-27,(2)नीरा त्रिखा-31,(3)सुमनलता-29,(4 )सुजाता उपाध्याय-41,(5 )अरुण वर्मा-39,(6 )संध्या कुमार-34 ,(7 )राधा त्रिखा-27 ,(8 )मंजू मिश्रा-28
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई