10 जुलाई 2024 का ज्ञानप्रसाद
आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी द्वारा लिखित पुस्तक “अज्ञात की अनुभूति” पर आधारित लेख शृंखला का आज दसवां लेख प्रस्तुत है। डॉ साहिब द्वारा रचित इस ज्ञान के अथाह सागर में से डुबकी मार कर, हम अमूल्य रत्न ढूंढ कर, जाँच परख कर अपने साथिओं के साथ दैनिक गुरुकक्षा में चर्चा के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। साथिओं के कमैंट्स से पता चल रहा है कि उन्हें इस श्रृंखला के सभी लेख अति रोचक एवं ज्ञानवर्धक लग रहे हैं , हों भी क्यों न क्योंकि हर एक पन्ना, हर एक पंक्ति, हर एक शब्द ऐसा कुछ संजोए हुए है कि सचमुच अमृत ही है।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के समर्पित साथिओं के लिए इससे बड़ा सौभाग्य कोई हो ही नहीं सकता कि डॉ साहिब की इस रचना से हम (विशेषकर वोह परिजन जिन्हें गुरुदेव के साक्षात् दर्शन न हो पाए ) स्वयं गुरुदेव का सानिध्य अनुभव कर रहे हैं।
आज के लेख में परम पूज्य गुरुदेव के प्रति श्रद्धा और विश्वास को दर्शाते कुछ संस्मरण प्रस्तुत किये गए हैं जिनसे उन साथिओं की चिंता का समाधान हो सकता है जिन्हें गुरुदेव के प्रति तनिक भी शंका है।
आज के लेख से आदरणीय अरुण जी को 28 से 31 जुलाई 2024 तक होने वाले 5 कुंडीय गायत्री महायज्ञ की सफलता में कोई भी शंका नहीं रहेगी क्योंकि यह महायज्ञ गुरुदेव की योजना के अंतर्गत ही आयोजित हो रहा है। अरुण जी के जन्म स्थान, ( छोटकी कोपा नौबतपुर,बिहार) में होने वाले इस महायज्ञ की सफलता के लिए सभी परिवारजनों से आशीर्वाद का आग्रह है।
तो साथिओ अब समय है सीधा गुरुकक्षा की ओर कदम बढ़ाने का।
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पाण्डाल तुम बनाना और भरेंगे हम:
अक्टूबर 1986 से क्षेत्रीय कार्यक्रमों की शृंखला के शुभारम्भ के साथ पूर्वी उ.प्र., बिहार एवं उड़ीसा के कार्यक्रमों हेतु हमारी शान्तिकुञ्ज से विदाई हुई । लगभग तीन माह में हमने 30 कार्यक्रम सम्पन्न कराने थे जो दो-दो दिन के थे। कहीं- कहीं पर कार्यकर्त्ताओं द्वारा विशेष अनुभूति, परम पूज्य गुरुजी एवं परम वन्दनीया माताजी द्वारा विशेष अनुदान प्राप्त होने एवं उनकी श्रद्धा-निष्ठा की बात बड़ी प्रेरणाप्रद अनुभव होती थी, जो स्वयं की जानकारी बढ़ाने के साथ-साथ श्रद्धा का विकास करती है। गाजीपुर के मेहनाजपुर ग्राम की निम्नलिखित घटना कुछ ऐसी ही प्रेरणादायक है:
वाराणसी एवं अन्य स्थानों के कार्यक्रम करने के बाद हम पांच गुरुभाई मेहनाजपुर पहुँचे। वहाँ ग्रामीण क्षेत्र में, एक बड़े खेत में छोटी-सी गायत्री प्रज्ञापीठ बनी थी। हम लोगों ने थोड़ा विश्राम कर कार्यकर्त्ताओं की एक गोष्ठी आयोजित की। कलशयात्रा से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। बहुत ही संक्षिप्त से दीपयज्ञ में ट्रैक्टर ट्रॉली एवं अन्य साधनों से इतने व्यक्ति आये कि 1000 व्यक्तियों की क्षमता वाला पाण्डाल छोटा पड़ गया। सारा कार्यक्रम अच्छे तरीके से सम्पन्न हो गया। विदाई के पहले गोष्ठी ले रहे थे, हमने पूछा कि हमारी आशा के विपरीत इतने लोग आये, क्या आपको यह विश्वास था कि आप इतना बड़ा पाण्डाल बना रहे हैं, वह भर जायेगा ? बैजनाथ जी ने कहा,“हाँ, हमें अटूट विश्वास था।” हमने पूछा,“ इतना विश्वास आपको कैसे पैदा हुआ ?” तब उन्होंने बताया कि हमारा एक ही लड़का था, हमारे ही ट्रैक्टर की टक्कर से उसकी मृत्यु हो गयी थी,हम सब बहुत ही दुःखी थे। 3-4 माह बाद शान्तिकुञ्ज गये, वन्दनीया माताजी का दर्शन किया, सारी बात बताई । माताजी ने कहा- गुरुदेव जी से मिल लो। हमने पूज्यवर का दर्शन कर,उन्हें भी सारी बातबतायी। पूज्य गुरुदेव जी ने कहा:
“बेटा जब भगवान कृष्ण अभिमन्यु को नहीं बचा सके तो हम क्या चीज़ हैं ? कर्म की गति का हम क्या करें ? “
खैर, नमन वंदन कर हम फिर से वन्दनीया माताजी के पास नीचे आए । वन्दनीया माताजी ने कहा, “गुरुदेव जी ने क्या कहा?” हमने सुना दिया। फिर वन्दनीया माताजी ने कहा, “बेटा क्या चाहते हो ?” उन्होंने हमारी इच्छाओं को माता की तरह अनुभव किया और कहा, “बेटा हम,उसी आत्मा को एक वर्ष के अन्दर ही आपके घर भेज देंगे।” हमारा मन तो भारी था ही, माताजी का आश्वासन सुनकर प्रसन्नता एवं स्तब्धता एक साथ मन में उत्पन्न हुई।
बैजनाथ सिंह हमें बता रहे थे कि जब हम लोग कार्यक्रम लेने के लिए गुरुदेव के पास गये थे तो पूज्य गुरुदेव जी ने कहा था:
“पाण्डाल तुम बनाना, भरेंगे हम ”
आज के आयोजन में परम पूज्य गुरुदेव ने यह भी बता दिया कि मैं कौन हूँ। सिंह साहिब बता रहे थे कि हमारे अनुभव में वन्दनीया माताजी और गुरुजी एक ही आत्मा हैं। जब वन्दनीया माताजी ने एक वर्ष की बात कही थी तो हमारे दुःखी मन ने विश्वास कर लिया था । एक वर्ष के बाद हमारी धर्मपत्नी को पुत्र पैदा हुआ और उसके सिर में वही चोट का निशान था, जो पहले वाले बच्चे में था,वन्दनीया माताजी ने कहा था, एक वर्ष के अन्दर तो वैसा ही हुआ। हमारी थोड़ी सी श्रद्धा-पात्रता के बदले में गुरुदेव-माताजी ने इतनी बड़ी कृपा की जिसने हमारे जीवन में श्रद्धा बढ़ाकर हमारा जीवन ही बदल डाला,हमें नया जीवन प्रदान किया। तब से हमें उनके वचनों में दृढ़ विश्वास हो गया। गुरुदेव के वचन को ही स्मरण कर हमने इतना बड़ा पाण्डाल बनाया। हम अपना कार्य करने के साथ-साथ गुरुदेव के वचनों को याद करते रहे, कहते रहे गुरुदेव पाण्डाल भरने की कृपा आप ही करिएगा। डॉक्टर साहब, बस ऐसे ही सब कुछ हो गया।
इसी विश्वास का नाम है अर्जुन और महामानव के वचनों में अविश्वास का नाम है दुर्योधन |
इस घटना ने वन्दनीया माताजी की शक्ति को उजागर किया है।
इस घटना ने प्रस्तुतकर्ता को पूज्यवर के कथन की याद दिला दी, जो आज भी वैसी ही बनी है। अक्टूबर 1983 की बात है, हम परम पूज्य गुरुदेव के समक्ष किसी चर्चा में बैठे थे, गुरुदेव जी ने कहा, “तुम बैठे रहना, परिस्थितियाँ हम ठीक कर देंगे।”
इसकी प्रथम अनुभूति जनवरी- फरवरी 1985 में जूनागढ़ के कार्यक्रमों की श्रृंखला के दौरान हुई थी। शांतिकुंज टोली के हम पाँचों गुरुभाई जूनागढ़ शक्तिपीठ पहुँच गये। दूसरे दिन दोपहर को कार्यकर्त्ताओं की गोष्ठी में अनुभव एवं ज्ञात हुआ कि एक कार्यकर्त्ता का मुख्य ट्रस्टी श्री गुणवन्त पथिक जी से मन नहीं मिलता था। यह वही कार्यकर्ता थे जिन्होंने “हंसवाहिनी जगदम्बे” का संगीत लिखा था। एक दिन ध्यान के समय, परम पूज्य गुरुदेव जी के शब्द याद आ गये,
“तुम बैठे रहना हम ठीक कर देंगे।”
बस हमने मन ही मन प्रार्थना की, “पिताजी आपने कहा था,हम ठीक कर देंगे, इन लोगों का मन मिला दीजिए परिस्थितियाँ अच्छी हो जाएँ, खूब मिल-जुलकर काम करें।”
गुरुदेव ने अपने कहे अनुसार सब ठीक कर दिया। हमें आश्चर्य तब हुआ, जब समापन और शान्तिपाठ के बाद दोनों भाई उठे और रोने लगे।दोनों ने एक दूसरे को गले लगाया तथा आपस में मिल-जुल कर काम करने का आश्वासन दिया।
इस घटना ने परम पूज्य गुरुदेव के वचनों के प्रति श्रद्धा और विश्वास को बढ़ाया, निष्ठा में और अधिक बढ़ोत्तरी हुई।
अहंकार चकनाचूर हुआ:
जुलाई 1983 से पूज्य गुरुदेव जी की लेखनी एवं वचनों पर शंका न करने का संकल्प लिया।
जनवरी 1982 की एक घटना शंका से सम्बन्धित थी, जो समाप्त हुई ।
शंका से श्रद्धा में कमी आ जाती है क्योंकि जब श्रेष्ठ बातों के प्रति लगाव ही नहीं होगा, तो कोई कर्म क्यों करेगा ? जब कर्म नहीं करेगा, तो उसका फल कैसे मिलेगा ? जब उस कर्म का फल नहीं होगा, तब विश्वास कैसे पैदा होगा ? श्रद्धा-विश्वास ही वह भावना (feeling) है, जो विचारों को पचाने, समझने अर्थात् ज्ञान द्वारा मनुष्य को बदलने का कार्य करती है।
गुरुदेव ने अपनी 1973 में प्रकाशित रचना के प्रथम संस्करण “गायत्री का सूर्योपस्थान” के पृष्ठ 42 पर लिखा है:
मनुष्य के “जठराग्नि” में इतनी अग्नि है कि वह लोहे को भी पचा सकता है, काँच पचा सकता है ।
आगे बढ़ने से पहले “जठराग्नि” की जानकारी होना उचित रहेगा।
मनुष्य के जीवन में भूख और प्रजनन की अग्नि पहली अग्नि होती है जिसे “जठराग्नि” का नाम दिया गया है। जठर का अर्थ होता है पेट या पाचन प्रक्रिया। मनुष्य के पेट में अगर अग्नि नहीं होगी तो जो वोह खाना खाता है उसे पचा नहीं पाएगा। भोजन उस ईंधन के तौर पर काम करता है, जिसके जलने या कहें पाचन से आपको ऊर्जा मिलती है, जिसकी मनुष्य को जरूरत होती है। विज्ञान में Digestion को Combustion भी तो कहा गया है जिससे एनर्जी मिलती है और मनुष्य दैनिक कार्य करता है।
हमको विश्वास नहीं हो रहा था; क्योंकि कई मरीजों द्वारा चना या अन्यान्य चीजें न पचा पाने से होने वाली बीमारियों को अक्सर हमने देखा है, तो लोहा और काँच कैसे पचेगा। मन को पढ़ने वाले परम पूज्य गुरुजी हमारी शंका को पढ़ रहे थे। शंका से विश्वास की कमी होती है, जो आन्तरिक आध्यात्मिक प्रगति व अनुदान प्राप्त करने में बाधक है।
उस समय हम लखनऊ के ठाकुरगंज स्थित TB and Chest Diseases and Rehabilitation Hospital में वरिष्ठ एक्सरे विशेषज्ञ के पद पर तैनात थे । किसी कार्य के लिए हम एवं धर्मपत्नी डॉ. गायत्री शर्मा, चौक, लखनऊ में गये। एक सुडौल बदन का लड़का जो विद्यार्थी दिखता था एक दूकान पर बैठा था। हमने पूछा- क्या नाम है तो उसने कोई….. गुप्ता बताया। हमने कहा गायत्री मन्त्र का जप किया करो। उसने कहा 3 माला करते हैं। फिर हमने पूछा, क्या करते हो तो उसने कहा, कुछ नहीं। पढ़ाई कितनी की है तो उसने कहा क्रिश्चियन कॉलेज से BSc की है। हमने कहा, कुछ तो करते होगे, तब हमारे पूछने पर उसने कहा चाचा जी, हम बैठे रहते हैं और हमें 3000 रुपए तनख्वाह मिलती है । हमने कहा कि बेटा वह कैसे ? तब उसने बताया कि बीयर की कंपनी Mohan Meakin के यहाँ सुरक्षा में बैठते हैं। तब उसने बताया कि वह काँच, लोहा आदि खाकर पचा जाता है । उसने कहा, अकंल जी, आपको अभी खा कर दिखाएँ ? हमने कहा,नहीं।
हमारे अल्प चिकित्सा का ज्ञान जिसका हमें अहंकार था और जो अविश्वास पैदा कर रहा था, वह चकनाचूर हो गया। मन ही मन हम स्वयं पर लज्जित भी हुए की ऐसे महान् ज्ञानी की लेखनी में, वचनों पर हमें अविश्वास क्यों हुआ।
10-15 दिन के बाद जब शान्तिकुञ्ज कार्यक्रमों की प्रगति रिपोर्ट एवं दर्शन करने आये, नमन किया। परम पूज्य गुरुदेव जी ने कहा- “बेटा, सब ठीक है । हमने भी प्रसन्न मुद्रा में कहा आपकी बड़ी कृपा है। विचार सम्प्रेषण के माध्यम से प्रेरणा देकर, कार्य करवाकर परम पूज्य गुरुदेव अपने बच्चों को बढ़ा रहे हैं। आवश्यकता केवल उनके विचारों के प्रति, तपस्या के प्रति, चिन्तन और लगाव की है; बस उसका कल्याण ही कल्याण है। तब से जब मन में शंका आती है, उसको विश्वास के माध्यम से समाप्त करने का मानसिक प्रयास करते हैं और सफलता मिलती है।
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560 कमैंट्स और 10 युगसैनिकों से आज की 24 आहुति संकल्प सूची सुशोभित हो रही है।आज गोल्ड मैडल का सम्मान आदरणीय संध्या बहिन जी को जाता है, उनको बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।
(1)रेणु श्रीवास्तव-48,(2)नीरा त्रिखा-28 ,(3)सुमनलता-32,(4)अरुण वर्मा-46,(5)चंद्रेश बहादुर-45 ,(6)संध्या कुमार-50 ,(7)सुजाता उपाध्याय-35,(8)राधा त्रिखा-34,(9) सरविन्द पाल-44,(10)वंदना कुमार-25
