3 जुलाई 2024 का ज्ञानप्रसाद
आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी द्वारा लिखित पुस्तक “अज्ञात की अनुभूति” पर आधारित लेख
शृंखला का आज छठा लेख प्रस्तुत है। हमारा विश्वास है कि 202 पन्नों की इस दिव्य पुस्तक के कुछ अंश प्राप्त करते हुए हमारे समेत, हमारे साथी भी बहुत प्रेरणादायक अमृतपान कर रहे होंगें। गुरुदेव की प्रत्येक पुस्तक की तरह उनके इस जीवनदानी शिष्य की पुस्तक का भी एक-एक पन्ना अद्भुत ज्ञान से भरा हुआ है। हमारे लिए इस पुस्तक में से कुछ अमूल्य रत्न ढूंढ कर लाना बहुत ही चुनौती भरा कार्य है क्योंकि सारी पुस्तक का अमृतपान करना कोई सरल कार्य नहीं है। हम पूर्ण श्रद्धा और समर्पण से, अपने विवेक के अनुसार उत्तम से उत्तम ज्ञानप्रसाद लाने का प्रयास कर रहे हैं।
हमारा विश्वास है कि आने वाले लेखों में साथिओं को उनके अनेकों प्रश्नों के सरल समाधान मिलने वाले हैं, कई प्रश्न तो ऐसे हैं जिन्हें हमारे साथी अक्सर हमसे लगातार पूछते आ रहे हैं, हमारे पास इन प्रश्नों के उत्तर न होने के कारण हम परिवार के मंच पर ले आते हैं यां शांतिकुंज को फॉरवर्ड कर देते हैं। अनेकों को अपनी योग्यता पर आधारित सफलता/असफलता भी मिलती रही है।
कल आदरणीय डॉ साहिब के व्हाट्सप्प मैसेज ने हमारा बहुत ही उत्साहवर्धन किया जिसमें उन्होंने हमारे कार्य की सराहना की थी। इस सराहना का श्रेय हमारे समर्पित साथिओं को जाता है क्योंकि साथिओं के बिना तो हमारा कोई अस्तित्व ही नहीं है।
शब्द सीमा आज सीधा गुरुकक्षा की ओर जाने का संकेत दे रही है।
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हम भगवान् से कह देते हैं:
26 अप्रैल 1981 बस्ती गायत्री शक्तिपीठ पर प्रात:काल पूज्यवर का दर्शन प्रारम्भ हुआ। दर्शन के पूर्व परम पूज्य गुरुदेव जी ने हमसे कहा:
“बेटा, तुम हमारे पास खड़े रहना । किसी-किसी को दवा लिख देना।” हम संकोच एवं असमंजस में पड़ गये, खड़े होने का सौभाग्य अनुभव कर रहे थे। दर्शन करते हुए पैर छूकर आशीर्वाद लेते हुए लोग आगे बढ़ते चले जा रहे थे। किसी ने कुछ माँगा, किसी ने कुछ। कुछ लोग बड़ी शारीरिक बीमारी के साथ आये। गुरुदेव कह देते थे,
“भगवान् से प्रार्थना करेंगे, ठीक हो जाओगे।”
एक व्यवसायी व कर्मठ भावनाशील कार्यकर्त्ता हृदय रोग से ग्रसित थे। उन्होंने स्वास्थ्य लाभ की प्रार्थना की, परम पूज्य गुरुदेव जी ने कहा:
“बेटा! आज से हमारा दिल तुम्हारा और तुम्हारा दिल हमारा”
वैसा ही हुआ। भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान से उनका इलाज चल रहा था। प्रकारांतर में उनकी दवाएँ कम हो गयीं, स्वस्थ होते चले गये।
गुरुदेव के प्रति हमारा श्रद्धा-विश्वास बढ़ता गया,हमें प्राण सञ्चार व प्रेम की पराकाष्ठा की अनुभूति हुई ।
जब दर्शन का क्रम समाप्त हो गया, सब चले गये, अन्त में हम एक घण्टे के बाद पूज्यवर के समक्ष गये, हाथ जोड़कर विनम्र भाव से नमन किया। चिकित्सक होने के नाते मन में एक भ्रम बना रहता था कि बिना दवा के कैसे ठीक हो जायेगा। हमने विनम्र भाव से हाथ जोड़कर कहा,” ये सब कैसे होगा?” परम पूज्य गुरुदेव ने हमारी बालबुद्धि को समझते हुए प्रसन्न मुद्रा में कहा:
“बेटा, करता सब भगवान् है, हम भगवान् से कह देते हैं और वे कर देते हैं, हम उनसे लेना जानते हैं, लोग लेना नहीं जानते।”
गुरुदेव के यह शब्द सुनकर हमारा हृदय स्तब्ध,अवाक् रह गया। लगभग 20 वर्ष से मन में बैठी शंका का समाधान हुआ।
लखनऊ तक परम पूज्य गुरुदेव जी ने हमारी ही कार में बैठने की कृपा की। चिनहट डाक बँगले पर, थोड़ी देर लोगों को मार्गदर्शन एवं आशीर्वाद देकर हरिद्वार के लिए प्रस्थान किया। हमने भी नमन किया, परम पूज्य पिताजी ने हमारी पीठ थपथपाई, आशीर्वाद दिया। हम भरे हुए मन से सुल्तानपुर वापस आ गये।
जो घर बेचो आपनो चले हमारे साथ:
जनवरी 1982 में 15 दिन के लिए छुट्टी लेकर जिला अस्पताल सुल्तानपुर प्रज्ञा पुराण का प्रशिक्षण लेने हेतु शान्तिकुंज आ गये। दो दिनों के बाद परम पूज्य गुरुदेव जी का प्रवचन था। काफी लोग सभागार में बैठे थे, मैं भी बैठा था। प्रवचन के दौरान परम पूज्य गुरुदेव जी ने कहा,
“कोई है जो हमारे विचारों को दे सके।” फिर कहने लगे,”कबिरा खड़ा बाजार में लिए लुकाटा हाथ, जो घर बेचो आपनो चले हमारे साथ।”
रसभरी चुनौती भरे शब्द को सुनकर, हमारे अन्तःकरण में भारी उथल-पुथल प्रारम्भ हो गयी। अन्दर से आवाज आयी, हम आपके विचारों को जन-जन तक पहुँचाएँगे। सब कुछ भगवान् ने दिया है। ज्ञान, प्रतिभा,साधन आपके विचारों को फैलाने में लगा देंगे। हमारी आँखें नम होती चली गयीं। परम पूज्य गुरुदेव की उस टीस को सुनकर अश्रुपात भी होने लगा। लक्ष्मी भवन में आवास मिला हुआ था। दूसरे दिन 4:00 बजे ब्रह्ममुहूर्त्त में परम पूज्य गुरुदेव के लिए पत्र लिखा।अन्तःकरण की पुकार मन में आयी, किसी तरह परम पूज्य गुरुदेव जी के समक्ष पहुँच जाते,तो कितना अच्छा होता। पत्र लिखने के बाद केवल आकांक्षा उठी थी,किसी से हमने कुछ कहा नहीं था। लगभग 6:00 बजे कमरे में बैठकर चिन्तन कर रहे थे, अचानक एक व्यक्ति आया, उसने कहा, “परम पूज्य गुरुदेव जी याद कर रहे हैं, आप प्रतीक्षालय पहुँचें।” ऊपर पत्र लेकर गये परम पूज्य गुरुदेव जी उपासना के छोटे कमरे में एक खत के ऊपर दाहिने करवट लेटे थे। पहुँचकर हमने नमन किया, पूज्यवर बैठ गये । पत्र लिया, कुछ सेकेण्ड तक उन्होंने देखा; फिर जो हमने लिखा था, वही बताने लगे। पूज्यवर का दर्शन करते ही हमें अश्रुपात होने लगा,अश्रु रुक ही नहीं रहे थे, कारण भी नहीं समझ आ रहा था । परम पूज्य गुरुदेव जी ने कहा:
“बेटा, तुमको ज्ञानरथ नहीं चलाना है,उसे लोग चलाएँगे। तुमको जो कार्य हम कहेंगे वह करना है। हम तुमको बताते रहेंगें,मार्गदर्शन करते रहेंगे।”
विश्वास बढ़ता ही गया:
सुल्तानपुर जिला चिकित्सालय शासकीय आवास में हम दोनों बच्चों सहित निवास कर रहे थे। नित्य की तरह प्रात: लगभग 3.30 बजे ब्रह्ममुहूर्त्त में परम पूज्य गुरुदेव जी का ध्यान करते हुए गायत्री मन्त्र का जप कर रहे थे।अन्दर से स्पष्ट आवाज आयी, “आज10-11 बजे अयोध्या में निमार्णाधीन गायत्री शक्तिपीठ पर पहुँच जाना। “लगभग 12:00 बजे हम अयोध्या शक्तिपीठ पहुँच गये। आश्चर्य लगा, वहाँ पर शक्तिपीठ के जमीन की रजिस्ट्री व निर्माण हेतु धन इकट्ठा करने के लिए रसीदों के वितरण का कार्य चल रहा था। श्री चन्द्रशेखर पाण्डेय जी डिप्टी रजिस्ट्रार, डॉ. हरिवंश शुक्ला,शुक्ला बाबा , मेजर डॉ. ए. के. होता एवं अन्य वरिष्ठ कार्यकर्त्ता गोष्ठी में भाग ले रहे थे। योजनानुसार हमें भी रसीद दी गयी, वापसी हेतु एक माह का समय दिया गया था। सभी ने रसीदों को धन सहित वापस किया । जमीन की रजिस्ट्री में सारे अधिकारियों ने सहयोग किया व रजिस्ट्री हो गयी। प्रथम दर्शन में ही पूज्यवर ने कहा था, “बेटा,तुमसे अकेले कोठरी में बात करेंगे।” अधिकतर अप्रत्यक्ष निर्देश प्राप्त होना, क्रियान्वित करते हुए सफलता का प्राप्त होना, फिर साक्षात् दर्शन करने के बाद पुष्टीकरण आन्तरिक विश्वास को दृढ़ करता चला गया ।
मन हारा-सेवा भाव जीता
अगस्त 1982 अखण्ड ज्योति संस्थान में 8 माह के समयदान का आवाहन था एवं वर्ष के अन्त तक प्रस्तुतकर्त्ता का प्रथम श्रेणी में प्रमोशन भी होने वाली थी। गायत्री जी महिला चिकित्सालय की अधीक्षिका पद पर कार्य कर रही थीं। हम उपासना के अलावा हर क्षण परम पूज्य गुरुदेव जी एवं परम वन्दनीया माता जी की मानसिक छाया के अलावा, दादागुरु के चित्र की छाया का मानस पटल पर बने रहने का अनुभव करते रहते थे। 8 माह समयदान का आवाहन, दादा गुरुदेव जी के दर्शन से एक विशेष आन्तरिक खिंचाव बना हुआ था,फलस्वरूप आँखों का समय-समय पर नम हो जाना आदि ने छुट्टी लेने के लिए बाध्य कर दिया। हमने शासन को 40 दिन की छुट्टी का प्रार्थना पत्र इस आशय से भेजा कि स्वास्थ्य महानिर्देशक से ही स्वीकृति हो जाये। बाद में परम पूज्य गुरुदेव जी के आदेशानुसार मेडिकल लीव बढ़ाते रहेंगे। 30 सितम्बर को 8 माह के समयदान हेतु हम शान्तिकुंज पहुँच गये। साथ में गायत्री जी बच्चों सहित परम पूज्य गुरुदेव जी, परम वन्दनीया माताजी के दर्शन एवं अनुष्ठान करने आयी थीं। हम सबने परम पूज्य गुरुदेव एवं परम वन्दनीया माताजी का दर्शन किया। बाद में परम पूज्य गुरुदेव जी ने आशीर्वाद दिया और कहा, “बेटा,जाओ अब विश्राम करो।”
30 सितम्बर को प्रातः परम पूज्य गुरुदेव जी, वन्दनीया माताजी को नमन करने गये । कुछ अनुभूतियाँ हुई थीं उनको लिखकर हमने परम पूज्य गुरुदेव जी को समर्पित कर दिया, 1 अक्टूबर को परम पूज्य गुरुदेव ने अकेले में ऊपर बुलाया,पहुँचने के पश्चात् हमने चरणों पर सिर रख कर नमन किया, चरणों में बैठ गये। परम पूज्य गुरुदेव जी ने कहा:
“बेटा, मैंने समय निकालकर पढ़ लिया है, हमारे गुरु ने तुमको भेजा है।”
इस बात को सुनकर हम आश्चर्य में पड़ गये। पूज्यवर ने कहा:
“बेटा, अभी तुम प्रवचन नहीं करोगे, 40 दिन का अनुष्ठान करोगे, हमारे गुरुदेव ने हमसे करवाया था और हम तुमसे करवा रहे हैं।एक बर्तन मिलेगा”
वशिष्ठ भवन में 43 नम्बर कमरे में रहने के लिए हमें आदेश मिल गया ।
फिर पूज्यवर कहने लगे:
“बेटा,जब हम जेल में थे, तब मुझे कैदी नम्बर से पुकारते थे। तुम्हारा भी नम्बर है, बहुत प्रसन्न मुद्रा में कह रहे थे, हम तो अन्दर से स्तब्ध थे, देखते ही रहते थे, भावों का वर्णन शब्दों से परे है। नमन-वन्दन के पश्चात् 1 अक्टूबर से वसिष्ठ 43 में रहने लगे। चलते समय पूज्यवर ने कहा- “बेटा, अब तुम सुल्तानपुर भूल जाना।”
आशीर्वाद लिए, हम इस भाव को लेकर कमरे में गये कि मन को यहीं पर रखना है, यही परम पूज्य गुरुदेव की इच्छा है।
गायत्री जी बच्चों सहित सुल्तानपुर वापस चली गयीं।कल्प साधना के साथ 40 दिन का सवा लाख का अनुष्ठान प्रारम्भ हो गया। दूसरे दिन स्वयं ही दलिया-दाल या चावल- दाल का निर्णय करना था, कि क्या खाएँ और कितना खाएँ। बिना नमक, बिना शक्कर के अस्वाद भोजन हमने चावल और दाल एक-एक मुठ्ठी लेने का निर्णय किया। दूसरे दिन उसमें थोड़ी लौकी डाल दी, फिर उसमें पानी डाला, कुकर में तैयार होने पर पानी अधिक हो गया । अधिक पानी एवं अस्वाद होने की वजह से अब उसको पूरा कैसे खाएँ, एक समस्या बन गयी। उपयोग करें तो कहाँ करें, बाद में थोड़ा खाने के बाद मन में आया कि पेड़ की जड़ पर डाल दें, खाद बन जायेगी। दूसरे दिन यही किया। लगभग 9.30/10.00 बजे बुलावा आया कि परम पूज्य गुरुदेव जी से मिलने के लिए पहुँच जाएँ ।
इससे आगे कल जारी रखेंगें।
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392 कमैंट्स और 8 युगसैनिकों से आज की 24 आहुति संकल्प सूची सुशोभित हो रही है।आज गोल्ड मैडल का सम्मान आदरणीय रेणु जी को जाता है, उनको बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।
(1)रेणु श्रीवास्तव-44,(2)नीरा त्रिखा-40,(3)सुमनलता-24,(4)अरुण वर्मा-25,(5)चंद्रेश बहादुर-32,(6)संध्या कुमार-26,(7)राधा त्रिखा-27,(8)सुजाता उपाध्याय-25
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।
