वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

डॉ ओ पी शर्मा जी  द्वारा लिखित पुस्तक पर आधारित लेख श्रृंखला का पांचवा  लेख  

1 जुलाई  2024 का ज्ञानप्रसाद

आज के ज्ञानप्रसाद लेख का शुभारम्भ अपने साथिओं के धन्यवाद् से किया जा रहा है जिनकी शुभकामना से हमारी बाईं आँख की सर्जरी बहुत ही सहजता से सम्पन हो पायी। परम पूज्य गुरुदेव का आशीर्वाद ऐसा बरसा कि तीन घंटे के बाद जब हम घर आये तो ऐसा लग रहा था जैसे कुछ हुआ ही नहीं है। 27 फरवरी को जब दाईं आँख की सर्जरी हुई थी तो हमने ज्ञानप्रसाद परिवार से 5 दिन की छुट्टी ली थी लेकिन इस बार तो कुछ अद्भुत सा ही हुआ है। लेखन एवं स्वाध्याय ले इलावा हमारी कोई और हॉबी तो है नहीं, तो मन का बैचैन होना स्वाभाविक है। इसलिए साथिओं के सुझावों के बावजूद हमने और अधिक छुट्टी लेना उचित नहीं समझा, इसके लिए हम सभी से क्षमाप्रार्थी हैं। 

नीरा जी का धन्यवाद् करते हैं जिन्होंने हमारे स्वास्थ्य के अपडेट करके मानवीय मूल्यों का न केवल पालन ही किया बल्कि सभी को काउंटर कमेंट भी किये क्योंकि सम्पर्क से ही सम्बन्ध बनते हैं और उनको कायम रखने के लिए updates की बड़ी आवश्यकता होती  है।

आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी द्वारा लिखित पुस्तक “अज्ञात की अनुभूति” पर आधारित लेख शृंखला का आज पांचवां  लेख प्रस्तुत है। इस लेख श्रृंखला से सम्बंधित सभी लेखों के बारे में कहना उचित होगा कि गुरुदेव द्वारा रचित विशाल साहित्य की भांति यह रचना भी इतनी दिव्य है कि इसका एक एक शब्द ध्यान से पढ़ने पर ही कुछ ग्रहण किया जा सकेगा क्योंकि हमारा सबका उद्देश्य अनमोल रत्नों की प्राप्ति के उपरांत इन्हें अपने साथिओं में वितरित करने का है। हमारे साथी भलीभांति परिचित हैं कि हम एक-एक शब्द का ध्यानपूर्वक विश्लेषण करके ही इस मंच पर प्रस्तुत  करना अपना कर्तव्य समझते हैं। 

आज के लेख में कुछ एक छोटे-छोटे विवरण Compile करने का प्रयास किया गया है। प्रत्येक विवरण से प्राप्त हो रही शिक्षा को हाईलाइट करके (commas में ) Stand out करने का प्रयास किया गया है। आज के लेख का समापन इसी तरह की एक शिक्षा ““मन्त्र मूलं गुरोर्वाक्यम्” से हो रहा है।  इस मन्त्र को ठीक से समझने के लिए  परम पूज्य गुरुदेव की अद्भुत रचना “गुरुगीता” का सहारा लेना पड़ेगा।  कल वाले लेख का शुभारम्भ इसी मन्त्र से होगा। आज तो संक्षेप में इतना ही कहना उचित होगा कि “मन्त्र मूलं गुरोर्वाक्यम्” का अर्थ है गुरु वाक्य ही मूलमंत्र है, इसकी साधना से ही सब कुछ स्वयं ही  हो जाता है। 

इन्ही शब्दों के साथ आइए आज की गुरुकक्षा की ओर प्रस्थान करें। सोमवार के पावन दिन पर शंकर साहनी जी की आवाज़ में महामृत्युंजय मन्त्र का दिव्य अमृतपान बहुत ही ऊर्जावान है।    

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7 जनवरी 1981 अयोध्या, गायत्री शक्तिपीठ के भूमि पूजन हेतु परम पूज्य गुरुदेव जी का देहरादून-हावड़ा एक्सप्रेस ट्रेन से फैजाबाद स्टेशन पर आगमन हुआ। स्टेशन पर स्वागत की जिम्मेदारी कार्यकर्त्ताओं द्वारा मुझे सौंपी गयी । हम सब सुल्तानपुर से आकर रेलवे स्टेशन पर खड़े थे। साथ में फैजाबाद और अयोध्या के भी सैकड़ों कार्यकर्त्ता थे। लगभग 9:00 बजे  ही स्टेशन पर पहुँच गये । आश्चर्य तब हुआ, जब ट्रेन की बोगी वहीं रुकी, जहाँ हम लोग स्वागत के लिए खड़े थे। ट्रेन का दरवाजा खुलते ही भूरे रंग के कुर्ता व सफेद धोती में परम पूज्य गुरुदेव जी के दिव्य दर्शन हुए, वह अनुभूति के क्षण वर्णनातीत हैं। चरण स्पर्श कर वन्दन हुआ ।

फैजाबाद रेलवे स्टेशन प्लेटफार्म नं.-1 पर पूज्यवर के दर्शन हेतु इतनी अपार भीड़ थी, जो कभी देखी नहीं गयी। बड़े आराम से परम पूज्य गुरुदेव जी बाहर आये और डॉ. मेजर ऐ. के. होता की कार में बैठ गये । होता जी अपने घर ले गये, जहाँ दर्शन एवं मिलन का कार्यक्रम रखा गया। हम भी घर  के बाहर खड़े थे। लगभग 1 बजे हमें भूख लगी। हम नई/अनजान  जगह  पर थे, भारी जन समुदाय के बीच किससे बात करें, मन में संकोच भी था। हमारे मन में यह विचार  चल ही रही थे कि श्री  केसरी कपिल  वर्मा जी भाईसाहब अन्दर से एक सेब  और एक केला लेकर आये और कहने लगे,गुरुदेव  ने कहा है,”ओमप्रकाश को भूख लगी है, यह सेब  केले दे आओ।” 

बाद में अयोध्या शक्तिपीठ के लिए काफिला चला। परम पूज्य के स्वागत के लिए ऋषियों/महामानवों के नाम से 108  गेट बनाये गये थे । इतना भव्य एवं स्नेहपूर्ण स्वागत कभी किसी को देखने के लिए नहीं मिला था । महर्षि वसिष्ठ, विश्वामित्र, याज्ञवल्क्य द्वार आदि नाम पर रखे गये थे । निर्धारित समय पर कनक भवन के पास  पूजन हेतु गुरुदेव पधारे, साथ में लखनऊ के पुराने कार्यकर्त्ता पोस्टल विभाग के श्री आनन्द सक्सेना, श्री केसरी कपिल जी, हम (डॉ.ओ.पी.शर्मा), प्रो. विश्वप्रकाश एवं सिंह साहब, डॉ. हरिवंश शुक्ला, पाण्डेय जी, सब-रजिस्ट्रार फैजाबाद ट्रेजरी आदि उपस्थित थे। परिसर के गेट पर प्रवेश करते ही जमीन की मालकिन रानी साहिबा गोण्डा ने हाथ जोड़कर परम पूज्य गुरुदेव को नमन करते हुए कहा,“आपके चरणों में समर्पित है, स्वीकार करें”। बहुत सस्ती मात्र 5000  रुपए  प्रति बीघा ज़मीन थी । परम पूज्य गुरुदेव ने स्वयं फावड़ा चलाकर भूमि पूजन किया। हजारों की उपस्थिति में भव्य एवं अभूतपूर्व ऐतिहासिक कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। 

लगभग 5 बजे हमारी अपनी एम्बेसडर कार USQ 5027 में परम पूज्य गुरुदेव जी कृपा कर बैठे। साथ में श्री कपिल जी, आदरणीय लीलापत शर्मा जी थे। सुल्तानपुर के लिए वाया गुफ्तारगंज प्रस्थान किया। रास्ते में इतनी पुष्प वर्षा हुई कि सामने का शीशा पूरी तरह से ढक गया । शाम को  गुफ्तारगंज गायत्री शक्तिपीठ का भूमि पूजन कार्यक्रम सम्पन्न हुआ, जिसकी सम्पूर्ण व्यवस्था शुक्ला बाबा  एवं उनके सहयोगियों द्वारा की गयी थी। 

लगभग 7 बजे शाम हम सब  सुल्तानपुर पहुँच गये। बाबू लखपतराय के आवास पर परम पूज्य गुरुदेव के विश्राम की व्यवस्था हुई थी। 

8 जनवरी 1981 को प्रात: प्रांगण में परम पूज्य पिताजी ने स्वयं हजारों व्यक्तियों को ध्यान कराया और गायत्री शक्तिपीठ सुल्तानपुर की प्राण प्रतिष्ठा की। 9 जनवरी 1981 को गायत्री प्रज्ञापीठ की प्राण-प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई । 10 जनवरी को जी. आयी. सी. ग्राउण्ड में लगभग 50000  लोगों की उपस्थिति में अन्तिम कार्यक्रम प्रवचन सपन्न हुआ।

जहाँ गायत्री प्रज्ञापीठ की प्राण प्रतिष्ठा होनी थी, वहाँ कार्यक्रम की कुछ अव्यवस्था के किसी प्रसंग पर परम पूज्य गुरुदेव जी ने प्रस्तुतकर्त्ता को कहा, “बेटा बच्चे तो पिता के ऊपर पखाना-पेशाब तक कर देते हैं, थोड़ी अस्तव्यस्तता हो गयी तो क्या हो गया ?” जैसे बच्चे को समझाते  हुए अक्सर कहा जाता है, बच्चा है, इसे सब माफ़ है, इसी प्रकार गुरुदेव ने बहुत ही Lightly लिया।हमारी आँखों में दृष्टिपात करते हुए कहा- ” जाओ,उनसे कह दो,कोई बात नहीं है ” । 

आज भी वह मानसिक दृश्य हमारे मानस पटल पर स्थित है। हमने हाथ जोड़कर कहा “पिताजी आपकी कृपा से सब ठीक हो जायेगा।” कार्यक्रम बहुत भव्य वातावरण में सम्पन्न हुआ। 

सुल्तानपुर से लखनऊ होते हुए  हरिद्वार हेतु प्रस्थान:

11 जनवरी 1981 प्रात: लगभग 8 बजे गायत्री शक्तिपीठ सुल्तानपुर से परम पूज्य गुरुदेव जी को लखनऊ होते हुए हरिद्वार के लिए प्रस्थान करना था। लखनऊ से कई नयी एम्बेसडर कारें स्वागत हेतु सजी-सजाई सुल्तानपुर आयी थीं। हम और गायत्री जी भी अपनी कार लेकर थोड़ी दूर पर खड़े थे। डॉ. गायत्री जी के मन में इच्छा हुई कि परम पूज्य गुरुदेव हमारी कार में बैठ जाते, तो कितना अच्छा होता। थोड़ी ही देर में परम पूज्य गुरुदेव हमारी कार में आकर बैठ गये, पीछे साथ में कपिल जी एवं प्रज्ञानन्द जी भी थे । हम स्वयं कार चला रहे थे । कारों का काफिला लखनऊ के लिए चल पड़ा। 

प्रेम का आश्चर्यजनक दृश्य उस समय देखने को मिला जिस समय हमारे अन्दर विचारों-भावनाओं का मन्थन चल रहा था, मन बड़ा शान्त एवं स्तब्धता की अनुभूति कर रहा था । जगदीशपुर रेलवे क्रॉसिंग पार करने के बाद परम पूज्य गुरुदेव जी ने कहा,”गाड़ी रोक दो” हमने रोक दिया । 5-7 मिनट के बाद लगभग 50 लोग एकत्रित हो गये। परम पूज्य गुरुदेव जी कार से बाहर आकर खड़े हो गये। लोग कहने लगे आपके चरण-वन्दन की बड़ी इच्छा थी, जो सुल्तानपुर में पूरी नहीं हो सकी थी । प्रभो ! आपने परमकृपा कर पूरी की। एक-एक करके लोग नम आँखों से गुरुदेव के चरणों में सिर रखकर अपनी श्रद्धा-भावना अर्पित कर रहे थे, वहीं परम पूज्य गुरुदेव जी बड़ी प्रसन्न मुद्रा में समाचार लेते हुए आशीर्वाद दे रहे थे। लोग सड़क पर नहीं थे, रेलवे लाइन के साथ पैदल जा रहे थे, जो चालक की दृष्टि से ओझल थे। स्वयं परम पूज्य गुरुदेव ने कार रुकवाकर दर्शन और आशीर्वाद दिया और उनकी अतृप्त इच्छा को तृप्त किया।

यात्रा के दौरान सभी लोग मौन थे । लोकेश जी (प्रज्ञानन्द जी) ने कहा- गुरुदेव जी “जब हम अमेरिका जायेंगे, तो वहाँ से लोगों के लिए दूध एवं कपड़े, गरीबों में वितरण के लिए लाएँगे ।” इन शब्दों को सुनते ही परम पूज्य गुरुदेव जी ने नम आँखों से कहा – “नहीं, नहीं, हमारे देश में जो मिलेगा, उसी का उपयोग किया जायेगा, पाउडर का विदेशी दूध नहीं, सोयाबीन का दूध इस्तेमाल में लाएँगे।” उस दृश्य को देखते ही राष्ट्रप्रेम की अद्भुत उमड़ती भावना को नम आँखों में देखकर स्तब्ध हो गये और लोकेश भी अवाक् रह गये ।

लखनऊ महानगर आगमन के पूर्व अर्जुनगंज रेलवे फाटक बन्द था। थोड़ी देर के लिए परम पूज्य गुरुदेव जी बाहर आ गये। प्रज्ञानन्द जी ने कहा- डॉ. साहब बड़े आराम से आपकी कार पहुँच गयी, कोई परेशानी नहीं हुई। कुछ पीछे की गाड़ियों में तकनीकी परेशानी हो गयी थी। तब हमने कहा- “चलने के पहले हम स्वयं कार के आवश्यक नट-बोल्ट से लेकर इञ्जन को चेक करने के उपरांत ही यात्रा आरम्भ करते हैं।” इसको सुनकर परम पूज्य गुरुदेव ने हमारी तरफ कृपादृष्टि करके कहा,

यह मन्त्र हमारे हृदय में बैठ गया जिसे हम आज तक ह्रदय में धारण किये हुए हैं। 

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496   कमैंट्स और 7 युगसैनिकों से आज की  24 आहुति संकल्प सूची सुशोभित हो रही  है।आज का गोल्ड मैडल आदरणीय संध्या जी  को जाता है। सभी  को  गोल्ड मैडल जीतने की बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्। 

(1)सुमनलता-29,(2)सुजाता उपाध्याय-29,(3)चंद्रेश बहादुर-31,(4)संध्या कुमार-37,(5) राधा त्रिखा-31,(6) वंदना कुमार-24,(7 )नीरा  त्रिखा-24        

सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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