27 जून 2024 का ज्ञानप्रसाद
आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी द्वारा लिखित पुस्तक “अज्ञात की अनुभूति” पर आधारित लेख शृंखला का आज चौथा लेख प्रस्तुत है। इस लेख श्रृंखला से सम्बंधित सभी लेखों के बारे में कहना उचित होगा कि गुरुदेव द्वारा रचित विशाल साहित्य की भांति यह रचना भी इतनी दिव्य है कि इसका एक एक शब्द ध्यान से पढ़ने पर ही कुछ ग्रहण किया जा सकेगा क्योंकि हमारा सबका उद्देश्य अनमोल रत्नों की प्राप्ति के उपरांत इन्हें अपने साथिओं में वितरित करने का है। हमारे साथी भलीभांति परिचित हैं कि हम एक-एक शब्द का ध्यानपूर्वक विश्लेषण करके ही इस मंच पर प्रस्तुत करना अपना कर्तव्य समझते हैं। उदाहरण के लिए “परन्तु, लेकिन, पर” तीनों शब्द एक से लगते हैं, एक ही भाव प्रस्तुत करते हैं लेकिन इस बात का ध्यान रखना बहुत ही आवश्यक समझते हैं कि किसी वाक्य में तीनों में से कौन सा शब्द फिट किया जाए ताकि वाक्य बैलेंस हो जाये।
आज के लेख से आदरणीय पुष्पा बहिन जी को महाकाल मंदिर के शिवलिंग में गुरुदेव की छवि से सम्बंधित अपने प्रश्न का उत्तर मिलने की सम्भावना हो सकती है। हमारे मस्तिष्क में भी यह जिज्ञासा अभी तक बनी हुई है, परिवार के मंच पर पोस्ट हुए कमैंट्स से मिले जुले रिस्पांस आये थे लेकिन डॉ साहिब ने विज्ञान की सहायता से निम्नलिखित वाक्य लिखकर बहुत कुछ कह दिया है:
” पहले देखने का ही कार्य होता है । आँखें वही देखती हैं जो दिमाग जानता है/चाहता है/सोचता है (Eye see whatever brain knows/ wants/thinks ) । ”
आज के लेख में गुरुदेव के प्रति विश्वास की भी बहुत ही अच्छी एवं सरल सी चर्चा की गयी है, अनेकों साथी इससे लाभान्वित हो सकते हैं। विश्वास और शंका ही तो सबसे बड़ी समस्या है जो हमें स्थिर होकर कुछ सार्थक करने में रोड़ा अटकाते रहते हैं ।
ज्ञान के विशाल सागररूपी कलश में से अमृत की कुछ बूँदें ग्रहण करने से पहले कुछ निम्नलिखित अपडेट/निवेदन करना उचित समझते हैं :
1.हमारी सर्जरी के लिए सभी साथिओं की शुभकामना के लिए ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं। बहुत ही छोटी सी सर्जरी है, हम तो इसे नार्मल ब्लड टेस्ट जैसी संज्ञा दे रहे हैं।
2.हमारी बेटी डॉ सुमति पाठक ने महीने के अंतिम शुक्रवार के लिए बहुत ही परिश्रम करके एक उत्कृष्ट वीडियो भेजी है लेकिन हम क्षमाप्रार्थी हैं कि इस शुक्रवार को यह प्रकाशित न हो पायेगी। हमारी दोनों बेटिओं (संजना और प्रेरणा) ने मार्च में एक एक ऑडियो बुक बना कर भेजी थीं, उनमें से किसी एक को प्रकाशित करने की योजना है। इन दोनों बेटिओं से भी हम देरी के लिए क्षमा प्रार्थी हैं।
3.हम लगातार अपडेट करते आ रहे हैं कि सर्जरी के कारण शनिवार को अवकाश रहेगा, अभी तक की योजना के अनुसार नीरा जी की सहायता से सोमवार को हमारे 1100 पूर्व प्रकाशित लेखों में किसी का चयन करके प्रकाशन किया जायेगा।
4.हमारे साथी देख रहे होंगें कि सुधीर चौधरी जी की गायत्री मन्त्र वाली वीडियो बुलेट ट्रेन की गति से भाग रही है। हम पिछले कई दिनों से ट्रैक कर रहे हैं, यह अपडेट लिखने के समय तक लगभग 83000 लोग इस वीडियो को देख चुके हैं जो लगभग 12000 से 15000 व्यूज प्रतिदिन पर आधारित है। यह सब हमारे समर्पित साथिओं की सक्रियता के कारण है जिसके लिए सभी का धन्यवाद् तो बनता ही है।
तो आइए चलें गुरुकक्षा में गुरुचरणों में समर्पित होकर अमृतपान करें :
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डॉ ओ पी शर्मा जी बता रहे हैं :
गुरुवर के प्रति अटूट विश्वास पैदा हुआ :
मन में उठी शंका का बिना बाहरी वार्ता के आन्तरिक समाधान:
लगभग दो दिनों के बाद मन में विचार उठा कि हम दोनों यज्ञ तो जनवरी 1970 से सूर्य का ध्यान करते हुए महर्षि दयानन्द जी की यज्ञपद्धति के अनुसार वैदिक मन्त्रों- गायत्री मन्त्र एवं महामृत्युञ्जय मन्त्र से श्रद्धा के साथ उन्हीं को समर्पित करते आ रहे हैं तो परम पूज्य पिताजी,गुरुदेव द्वारा कुछ अधिक मन्त्र, जैसे कि “सविता की प्रार्थना का मन्त्र” आदि हम करें या न करें ? हम यज्ञ भी करते थे लेकिन हर समय शंका बनी रहती थी। परम पूज्य गुरुदेव जी से शंका समाधान करना चाहते थे ।
हम दोनों दर्शन की लाइन में खड़े थे। प्रतीक्षालय का स्वरूप आज जैसा नहीं था। एक छोटा सा पेड़ था, खुले में ही सब खड़े थे । प्रतीक्षालय के ही श्री शिव कुमार अवस्थी ने कहा “अभी समय है, तब तक आप थोड़ी देर बैठिए। हमारे पेट में हलका सा दर्द होने लगा। मन उसी पर एकाग्र हो गया है, सोचने लगे कि यहाँ दवा कहाँ मिलेगी। हमारे पास कुछ भी नहीं था। तभी हमारे अंतर्मन से आवाज़ आने लगी, तुम तो शरीर के डॉक्टर हो, मन्त्र के नहीं । हमारे मन ने कहा- यह तो ठीक है । मन्त्र के नहीं, यह बातें स्वयं से हो रही थीं, फिर जवाब आया मन्त्र के इष्ट (गुरुदेव ) जानते हैं कि किस समय, व्यक्ति/समाज पर किस मन्त्र का प्रभाव अधिक उपयोगी होगा। यदि इन मन्त्रों को तुम अपने कर्मकाण्ड में बढ़ा दोगे और मन से करोगे तो लाभ अधिक होगा और नहीं करोगे तो उतना लाभ नहीं होगा लेकिन हानि भी नहीं होगी। अंतर्मन में ही उत्तर मिल गया,“बेटा हम मन्त्र के द्रष्टा हैं।” हमारे मन और बुद्धि ने कहा,”बात बिल्कुल ठीक है। हमने शरीर के बारे में पढ़ा है, मन्त्र के बारे में नहीं। हम अन्दर से सन्तुष्ट हो गये। पंक्ति में खड़े थे ,समय भी था, हमने झट अपनी अपनी आध्यात्मिक डायरी में यह सब बातें लिख डालीं ।
थोड़ी देर के बाद हम दर्शन करने ऊपर गये, आगे हम थे पीछे गायत्री जी थीं। जैसे ही हमने पूज्य गुरुदेव जी का चरण स्पर्श किया तो देखते हुए बोले, “बेटा उस प्रश्न का जवाब मिल गया ?” हमने भी तुरंत “हाँ” कह दिया । गायत्री जी ने नमन किया, परम पूज्य पिताजी ने सिर पर हाथ रखा, हम नीचे आ गए । पेट का दर्द तो भूल गये, वह समाप्त ही हो गया था, दवा की आवश्यकता नहीं पड़ी।
प्रथम दिन के वक्तव्य पर विश्वास बढ़ा, जब उन्होंने कहा था- “बेटा मैं नंगा करके देखता हूँ, मैं तुमसे अकेले कोठरी में बात करूँगा।”
आश्चर्यमय ! उनकी दृष्टि और शक्ति पर विश्वास होने लगा । हम सुल्तानपुर वापस चले आये नियमित व्यवस्थित दिनचर्या के अन्तर्गत कार्य चलता रहा ।
द्रष्टा एवं साक्षी
दिसम्बर 1980 में परम पूज्य गुरुजी की “बदली हुई मुखाकृति दिखी।” प्रथम बार दर्शन में अन्दर से अति सुन्दरता एवं अत्यधिक ऊँचाई का बोध हुआ। जब वह मन से हट गया चेहरे, पर थोड़ी झुर्रियाँ दिखीं। तीसरे दिन ऊपर वन्दनीया माताजी एवं परम पूज्य गुरुजी साथ बैठे थे। हम लोग दर्शन करने गए, नमन के बाद जब परम पूज्य गुरुजी को देखा, तो चेहरा तना हुआ, आँखें लाल, बड़ी-बड़ी, प्रथम दिन से सर्वथा भिन्न । हम सीढ़ियों से नीचे उतरते समय सोचते रहे कि हाथ-पैर की उँगलियाँ तो सब वैसी ही हैं, चेहरा इतना कैसे बदल गया ?
हमने अपने “चिकित्सकीय ज्ञान” को याद किया क्योंकि मन में शंका हुई कि ऐसा क्यों हुआ ? विज्ञान कहता है, ” पहले देखने का ही कार्य होता है । आँखें वही देखती हैं जो दिमाग जानता है/चाहता है/सोचता है (Eye see whatever brain knows/ wants/thinks ) । ” एम.बी.बी.एस. में फिजियोलॉजी में पढ़ाया गया था कि मनुष्य के शरीर में पाँच प्रकार की विद्युत् है, जिनमें से एक चेहरे व आँख की विद्युत् है (Facio-occuar electricity)। योगी अगर चाहे उस पर मन द्वारा नियन्त्रण करके हृदय- स्पन्दन (Heart vibrations) को रोक सकते हैं, परिवर्तन कर सकते हैं। इन सबके याद आते ही मन में विचार उठा की पूज्य गुरुदेव तो महान् योगी हैं, उन्होंने अपने मन को रोककर शक्ति देने के लिए चेहरे और आँखों को बदल दिया है। शंका का थोड़ा समाधान होने से मन हल्का और शान्त हो गया ।
दोपहर 12 बजे के बाद फिर परम पूज्य गुरुदेव जी के दर्शन करने गये तो गुरुदेव ने कहा,“आइए डॉक्टर साहब,” ये शब्द सुनते ही ऐसा लगा जैसे कोई चोर पकड़ लिया हो । हमने पूज्य गुरुजी के ऊपर जो चिकित्सकीय बुद्धि लगाई थी, उन्होंने हमारे मन को पढ़ा और वैसा ही व्यवहार किया। पहली बार दर्शन पर कहा था, “आओ बेटा ओमप्रकाश।” कहाँ मन में बेटा का भाव और कहाँ डाक्टर साहब का उद्बोधन, जमीन-आसमान का अन्तर हो गया।
यह भावना पक्की होने लगी कि “परम पूज्य गुरुजी निरन्तर साथ रहकर, मन को पढ़ते रहते हैं, अर्थात् द्रष्टा के रूप में रहते हैं।”। इस पर विश्वास बढ़ने लगा; लेकिन मन में कुछ शंका बनी ही रहती थी, कहीं भावना में तो नहीं बह रहे हैं, स्वयं को देखने पर लगता नहीं था ऐसा नहीं है, हम पूरी तरह से जागरूक हैं, सतर्क हैं।
लगभग दो वर्षों के बाद एटा (Etah) चिकित्सालय से डॉ. यादव जी आये थे,उन्होंने भी पहले और दूसरे दिन के प्रत्यक्ष दर्शन में वही बात कही। किसी और चिकित्सक द्वारा पुष्टि होने पर एवं स्वयं दर्शन करने से गुरुदेव के प्रति हमारा विश्वास बढ़ गया ।
सन् 1987 में All India Medical Sciences, दिल्ली से आये डॉ. गुप्ता जी, प्रोफेसर ऑफ मेडिसिन ने जब इसी बात की पुष्टि की, तब अपनी प्रथम बार की अनुभूति और भी दृढ हो गयी और विश्वास हो गया कि “जिनका अपने मन पर इतना नियंत्रण है, वह दूसरे के मन को आसानी से पढ़ सकते हैं, देख सकते हैं,उठा सकते हैं, दबा सकते हैं।”
बुद्धि में आश्चर्य एवं स्तब्धता बनी रही कि परम पूज्य गुरुदेव कौन हैं ? उनके पास हमारी कल्पना से बाहिर ज्ञान एवं शक्ति है।
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595 कमैंट्स और 11 युगसैनिकों से आज की 24 आहुति संकल्प सूची सुशोभित हो रही है।आज गोल्ड मैडल का सम्मान आदरणीय संध्या जी को जाता है, उनको बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।
(1)रेणु श्रीवास्तव-48,(2)नीरा त्रिखा-32,(3)सुमनलता-41,(4)अरुण वर्मा-34,(5)चंद्रेश बहादुर-31,(6)सरविन्द पाल-38,(7)संध्या कुमार-57,(8)सुजाता उपाध्याय-46,(9)मंजू मिश्रा-29,(10)वंदना कुमार-24
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।
