वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

डॉ ओ पी शर्मा जी  द्वारा लिखित पुस्तक पर आधारित लेख श्रृंखला का तीसरा लेख लेकिन लेख को बीच में ही रोकना पड़ा। 

25 जून 2024 का ज्ञानप्रसाद

आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी द्वारा लिखित पुस्तक “अज्ञात की अनुभूति” पर आधारित लेख शृंखला के तीसरे लेख को लिखते समय कुछ ऐसा संयोग बना कि हमने उसी स्थान पर लेख को रोक दिया। साथिओं को अवश्य ही उत्सुकता  हो सकती है कि लेख को रोकने वाली ऐसी क्या बात हो गयी , तो निम्नलिखित देखिए : 

परम पूज्य गुरुदेव ने डॉ साहिब से कहा “बेटा, जल्दी-जल्दी शान्तिकुञ्ज आना।जब तक किसी से मिलोगे नहीं, उनको पढोगे, देखोगे नहीं तो  कैसे समझ सकोगे”?

इन पंक्तियों को लिखते समय हमें एकदम अपना  फेवरेट स्लोगन स्मरण हो आया, “जहाँ संपर्क नहीं होता, वहां सम्बन्ध टूटकर बिखर जाते हैं “ हमने यह शब्द लिखे और 10 सेकंड की ब्रेक ली, इस ब्रेक में हमने आदरणीय अरुण जी का कमेंट देखा, पूरे ध्यान से पढ़ा जो अन्य  बातों के इलावा, कमैंट्स की शक्ति को बयान कर रहा था। हम बार-बार कहते आ रहे हैं कि कमैंट्स अर्थात संपर्क और संपर्क अर्थात सबंध। इस प्रक्रिया से हमारे साथिओं का कैसे कायाकल्प हुआ है, उसका जीवंत उदाहरण अरुण भाई जी स्वयं हैं जो आगे लिखे कमेंट में वर्णन कर रहे हैं। 

तो हुई न हमारे कथन की पुष्टि कि हमारे लेखन के पीछे हमारे गुरुदेव का ही हाथ है, कैसे संयोग बना दिया कि जिस बात को वर्षों पहले गुरुदेव डॉ साहिब से  कह रहे थे, आज वही बात हमारे छोटे परिवार में चरितार्थ हो रही है। 

हमारे चैनल पर आने वाला कोई भी अनजान विजिटर,अरुण जी का विस्तृत कमेंट पढ़कर पूछ सकता है कि बातें तो हम ज्ञान की रटते रहते हैं लेकिन यहाँ तो बेटी की आर्थिक स्थिति की बात हो रही  है, बिलकुल नहीं।  ऐसा बिल्कुल नहीं है क्योंकि इसके पीछे  छिपे  ज्ञान/अपनत्व  से वोह  अनजान विजिटर अपरिचित है। 

उचित होगा कि जिन साथिओं ने अरुण जी का कमेंट मिस कर दिया हो, आज इसे अवश्य पढ़ें और देखें कि हमारे सबके परिवार की क्या प्रतिष्ठा है। 

हमारे साथी जानते हैं कि माह का अंतिम शनिवार हमारे विचारों के लिए सुरक्षित रखा हुआ है लेकिन इस शुक्रवार को हमारी सर्जरी के कारण शनिवार को अवकाश रहेगा। इसलिए हमने भी सोचा कि अपनी बात कहने का अवसर तो अब 27 जुलाई (शनिवार ) को ही मिलेगा, तो जितना उगल सकें उगल ही दें, नहीं तो तब तक पेट में गुड़ गुड़ होती रहेगी।  

तो अगला विषय हमारी बेटी स्नेहा से सम्बंधित है जिन्होंनें हमारे निवेदन (जिसे हम बार-बार कहते आये हैं ) का पालन करने हमें सम्मान प्रदान किया है। निर्झर बेटे के जन्म दिवस पर पोस्ट हुए हर कमेंट का उत्तर देना कोई सरल कार्य नहीं है लेकिन  उन्होंने यह कर दिखाया। हम बेटी का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं और आशा करते हैं कि अन्य साथिओं को भी प्रेरणा मिलेगी।                  

अरुण वर्मा जी का कमेंट: 

परम आदरणीय हमारे सही मार्गदर्शक अरूण भैया जी के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम। भैया जी आपने अति उत्तम प्रेरणा से भरी अत्यंत ऊर्जामयी ज्ञानवर्धक अभिव्यक्ति से हमारा मार्ग प्रशस्त किया है, आपकी  प्रशंसनीय व प्रभावशाली अभिव्यक्ति को पढ़कर खुशी के आँसू  आ निकले  हैं।  आपने सही कहा है कि इस दिव्य मंच से हमें जो कुछ भी प्राप्त हुआ है वह अविश्वसनीय है।  सच में पूज्य गुरुदेव की कृपा का 100 % आभास  होता है, नहीं तो एक साधारण सा व्यक्ति जिसकी  पूरे महीने की कमाई मात्र 17 से 18 हज़ार रुपए हो, दो-दो बेटीयों  को उच्च शिक्षा कैसे दिला सकता है। हमें तो समझ ही नहीं आता  कि यह सब  कैसे संभव हो रहा है, कौन कर है। इसी संदर्भ में निम्नलिखित लिखना चाहेंगें ताकि सभी साथिओं को गुरुदेव की शक्ति का, आज की टेक्नोलॉजी (कमेंटस) की शक्ति का आभास  हो सके:

जब हमारी  बड़ी बेटी को हॉस्टल  खाली कर अपने  घर में शिफ्ट  करना था तो बहुत कोशिश करने के बाद भी ढंग का घर नहीं मिल रहा था, लेकिन हमें गुरु सत्ता पर हद से ज्यादा भरोसा था। अंत में जो घर  मिला वह एक अपार्टमेंट बिल्डिंग में था जहाँ बिटिया सुरक्षित रह सकती है। मालिक के साथ 40000 रुपए  पगड़ी,11000 रुपए किराया और 1800 रुपए  मेंटेनेंस चार्ज सेटल हुए। 

अब देखतें है कि गुरुदेव  कैसे मालिक  का हृदय परिवर्तन करते हैं। 

पगड़ी के जो  40000 रुपए  सेटल हुए थे ,मालिक बोलै कि  दो किस्तों  में दे सकती हो।  जब हमारी बेटी 20000 रुपए  पगड़ी और 20 दिन का किराया (7000) टोटल  27000 देने के लिए गयी तो  मालिक ने कहा कि तुम 20000 ही दो बाकी धीरे-धीरे दे देना। 

यह सब गुरुदेव का चमत्कार  नहीं तो और क्या है?  आज के युग  में ऐसा व्यक्ति कहाँ मिलेगा  जो कहेगा कि हमें इतना पैसा नहीं दो इतना ही दो।  पूज्य गुरुदेव को पता था कि बेटी को  स्कूटी की बहुत जरूरत है, क्योंकि जहाँ रहती है वहाँ से आटो की  कोई सुविधा नहीं है, अपनी  गाड़ी ही एकमात्र विकल्प है। प्राइवेट टैक्सी में  80 रुपए प्रतिदिन  का खर्च था, और वो भी किसी  पर आश्रित रहना। 

गुरुदेव की ऐसी कृपा बनी कि स्कूटी भी खरीदी गयी।  बेटी के मामा ने 45000 रुपए  दिये थे, उसमें से 25000 रुपए  बच गए  और 5500 रुपए  लगाकर टोटल 30500 डाउन पेमेंट कर स्कूटी खरीदी गयी। 

यह सब चमत्कार अचानक कैसे हो जाता है ? क्या हमारे अंदर इतनी क्षमता है? 

नहीं बिलकुल नहीं, यह सब उन्हीं  की कृपा से संभव हो रहा है। हमें तो गुरुदेव पर इतना भरोसा है कि अगर हमारे अंदर हनुमान जी जैसी क्षमता हो तो छाती चीरकर दिखा दें। 

यह केवल ऑनलाइन  ज्ञानरथ गायत्री परिवार के दिव्य मंच पर अपनी नियमितता बनाये रखने और कमेंट्स  के माध्यम से गुरुदेव के विचारों को लोगों के ह्रदय में स्थापित करने का ही  परिणाम है।

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डॉ  साहिब के लेख का आज का ज्ञान : 

 डॉ साहिब को गुरुदेव की अद्भुत छवि दिखना कोई ऐसी वैसी बात नहीं है, यही है श्रद्धा एवं भावना की पराकाष्ठा (Climax)  

दिव्य दर्शन दिवस : 

लगभग 11 वर्ष की उपासना के बाद हम दोनों के द्वारा सम्पादित नित्य प्रातः गायत्री यज्ञ एवं उत्कट जिज्ञासा के फलस्वरूप, चिर प्रतीक्षा के बाद वह घड़ी आयी, जब हम और डॉ. गायत्री शर्मा सुल्तानपुर जिला अस्पताल से 12 दिसम्बर 1980 को प्रातः गायत्री तीर्थ, शान्तिकुञ्ज पहुँच गये। उस समय त्रिपदा भवन व प्रवचन सभागार का निर्माण कार्य चल रहा था। त्रिपदा भवन के नीचे के कमरे में रुकने की व्यवस्था हुई। स्नान आदि के बाद गुरुदेव का बुलावा आया । दर्शन के लिए हम लोग प्रतीक्षालय में आये। सर्व प्रथम वन्दनीया माताजी का चरण-वन्दन किया, उन्होंने आशीर्वाद देकर ऊपर परम पूज्य गुरुदेव जी के पास भेज दिया। 

गुरुदेव की अद्भुत छवि:

परम पूज्य गुरुदेव जी खादी का कुर्ता एवं खादी की सफेद धोती पहने हुए टहल रहे थे। खड़े हो गये, कहा,”आओ, बेटा आ गये”। ऐसा लग रहा था कि वाणी से  मधु टपक रहा हो। हम लोगों ने चरणों पर सिर रखकर वन्दन किया (पुस्तक के  टाइटल पेज पर यही फोटो है), पूज्य गुरुदेव जी चारपाई  पर बैठ गये । कुछ क्षण के लिए परम पूज्य गुरुदेव जी अति सुन्दर एवं अंदर से बहुत ऊँचे दिखाई दिये, हम दोनों को ऐसा प्रतीत हुआ  जैसे स्वप्न देख रहे हों । यह एक ऐसा दृश्य था जो क्षण भर के लिए आया और चला गया, एक ऐसा दृश्य  जो आज भी मानसपटल पर अपनी गहरी  छाप बनाये हुए है। इतना सुन्दर व्यक्ति हमने अपने जीवन में कभी नहीं देखा । 

मात्र 9 वर्ष की आयु से ही, हमारा मन कुछ अज्ञात को प्राप्त करने के लिए भारी रहता था। जैसे ही परम पूज्य गुरुदेव जी ने कहा ,”तुम्हारा मन हल्का  हो जाये” , हमको अच्छा भी लगा और आश्चर्यजनक भी। हमारी वार्ता समाप्त हुई । अपने जीवन में किसी व्यक्ति में “इतनी सुन्दरता का आभास प्रथम और अन्तिम” रहा है। फिर गुरुदेव हमारी धर्मपत्नी डॉ. गायत्री शर्मा जी से वार्ता करने लगे। साथ में रामचन्द्र शुक्ला ( शायद सही नाम रमेश चंद्र शुक्ला है ?) जी बैठे थे। पूज्यवर ने कहा, बेटा! तुमने अच्छा किया जो अपनी धर्मपत्नी साथ लेकर आये।

दीक्षा संस्कार:

दूसरे दिन प्रात:काल हमारा और डॉ. गायत्री जी का दीक्षा संस्कार सम्पन्न हुआ। यह संस्कार,परम पूज्य गुरुदेव द्वारा, गायत्री मंदिर के पास जहाँ आजकल ऋषियों की मूर्तियाँ स्थापित की गयी हैं वहीँ हुआ था। उस समय मॉरीशस के लगभग सौ लोग आये हुए थे,अनुदान शिविर चल रहे थे। बाद में समयदान,अंशदान आदि के संकल्प का फॉर्म भरा गया। हमारे फार्म में आदरणीय शुक्ला जी ने 60 रुपए प्रतिमाह लिखा । एक दिन की तनख्वाह प्रेषित करने की बात कही गयी। गायत्री जी ने कहा कि हम 100 रुपए  प्रतिमाह गुरुदेव जी के चरणों में समर्पित करेंगे। प्रारम्भ से ही हमारे मन में  धन का  सदुपयोग करने की इच्छा तो थी ही लेकिन  मन में प्रश्नचिह्न लग गया था। मन में एक बात उठी, कि धन तो सत्कर्म में ही लगाना है, लेकिन लगाना वहीँ है जहाँ उसका सदुपयोग हो सके । दीक्षा के बाद शान्तिकुञ्ज में भोजन आदि  करने के पश्चात् जब हम  विश्राम कर रहे थे तो  ऐसा लग रहा था कि परम पूज्य गुरुदेव एवं वन्दनीया माताजी मन में विराजमान हैं, मन और विचारों को देख रहे हैं।

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617  कमैंट्स और 11  युगसैनिकों से आज की 24 आहुति संकल्प सूची सुशोभित हो रही  है।आज गोल्ड मैडल का सम्मान आदरणीय नीरा  जी और सुजाता जी को जाता है, उनको बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्। 

जाग गयी भाई जाग गयी नारी शक्ति जाग गयी। 

(1)रेणु श्रीवास्तव-31 ,(2)नीरा त्रिखा-43,(3)सुमनलता-33,(4)अरुण वर्मा-38,(5)चंद्रेश बहादुर-24 ,(6)सरविन्द पाल-36,(7)संध्या कुमार-38,(8)वंदना कुमार-26

(9)राधा त्रिखा-25,(10)पुष्पा सिंह-26, (11)सुजाता उपाध्याय-44  

सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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