25 जून 2024 का ज्ञानप्रसाद
आज मंगलवार है, सप्ताह का दूसरा दिन; हमारे साथी जानने को उत्सुक होंगें कि गुरुदेव के अमृत कलश की कौन सी अमृत बूँदें आज हमारा कायाकल्प करने वाली हैं।
कल आदरणीय डॉ ओ पी शर्मा जी द्वारा लिखित पुस्तक “अज्ञात की अनुभूति” पर आधारित लेख शृंखला का शुभारम्भ हुआ था। 202 पन्नों की इस दिव्य पुस्तक में से हम क्या कुछ प्राप्त कर पायेंगें, यह तो समय ही बताएगा लेकिन इतना अवश्य ही विश्वास से कह सकते हैं कि गुरुदेव की प्रत्येक पुस्तक की तरह उनके इस जीवनदानी शिष्य की पुस्तक का भी एक-एक पन्ना अद्भुत ज्ञान से भरा हुआ है। हमारे लिए इस पुस्तक में से कुछ अमूल्य रत्न ढूंढ कर लाना बहुत ही चुनौती भरा कार्य है क्योंकि सारी पुस्तक का अमृतपान करना कोई सरल कार्य नहीं है। हम पूर्ण श्रद्धा और समर्पण से, अपने विवेक के अनुसार उत्तम से उत्तम ज्ञानप्रसाद लाने का प्रयास करेंगें।
हमारा विश्वास है कि आने वाले लेखों में साथिओं को उनके अनेकों प्रश्नों के सरल समाधान मिलने वाले हैं, कई प्रश्न तो ऐसे हैं जिन्हें हमारे साथी अक्सर हमसे लगातार पूछते आ रहे हैं, हमारे पास इन प्रश्नों के उत्तर न होने के कारण हम परिवार के मंच पर ले आते हैं यां शांतिकुंज को फॉरवर्ड कर देते हैं। अनेकों को अपनी योग्यता पर आधारित सफलता/असफलता भी मिलती रही है।
आज के ज्ञानप्रसाद लेख में इस पुस्तक को लिखने के पीछे छिपे उद्देश्य को जानने का अवसर मिल रहा है।
लेख के आरम्भ में ही “किसी खोये हुए को प्राप्त करने की प्रबल जिज्ञासा” ही प्रस्तुतीकरण का उद्देश्य है। इस पुस्तक के पन्नों को खंगालने पर देखा गया कि “त्वमेव माता च पिता त्वमेव । त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या च द्रविणम् त्वमेव । त्वमेव सर्वम् मम देव देव ॥” अर्थात तुम ही माता हो, तुम ही पिता हो, तुम ही बन्धु हो, तुम ही सखा हो, तुम ही विद्या हो, तुम ही धन हो। हे देवताओं के देव! तुम ही मेरा सब कुछ हो, का वर्णन अनेकों बार आया है।
एक स्थान पर तो ऐसी जिज्ञासा भी व्यक्त की गयी है कि कहाँ है ईश्वर ? मैं क्या हूँ ?
ऐसे ही प्रश्न (मैं कौन हूँ?) का उत्तर पाने के लिए हमने कल शुभरात्रि सन्देश में नेत्रहीन संत विरजानन्द जी और स्वामी दयानन्द जी के बीच संवाद को पोस्ट किया था। आज फिर उसी सन्देश को शेयर कर रहे हैं ताकि हमें स्मरण रहे कि हम कौन हैं, हम क्या हैं ?
नेत्रहीन विरजानन्द जी की दिव्य दृष्टि और दयानन्द जी की प्रखर प्रतिभा ने जो कुछ कर डाला उससे हम सभी भलीभांति परिचित हैं। आदरणीय डॉक्टर शर्मा जी की प्रस्तुतिकरण का यही उद्देश्य है।
हमारे साथी हमारे साथ पूर्णतया सहमत होंगें कि अगर हमें इस प्र्शन का उत्तर मिल जाए तो अनेकों समस्याओं के समाधान मिल सकते हैं।
तो आइए चलें गुरुकक्षा की ओर, गुरुचरणों में समर्पित होने के संकल्प के साथ लेकिन उससे पहले बेटे निर्झर के 16 वें जन्मदिवस की शुभकामना।
हमारी प्रतिभाशाली बेटी ने निम्नलिखित शब्दों में अति सुंदर वर्णन लिखा है जो सबके लिए अनुकरणीय है ,बहुत बहुत धन्यवाद् बेटी स्नेहा, परिवार एवं परम पूज्य गुरुदेव का आशीर्वाद, शुभकामना मिलती रहे।
हमारी सबकी बेटी स्नेहा जी के बेटे निर्झर का आज 16वां जन्म दिवस है।परम पिता परमात्मा की कृपा और गुरु सत्ता के सानिध्य में वह अपने आश्रम में वन तुलसी की भांति इस प्रकृति से पोषण प्राप्त कर दिनोदिन उन्नति कर रहा है। भविष्य तो परम सत्ता के हाथों में है लेकिन आज का सत्य यह है कि मां गायत्री की कृपा से गायत्री महामंत्र के साथ ही उसकी आध्यात्मिक यात्रा प्रारंभ हो गई है जिसके प्रभाव से उसमें अपने देश धर्म संस्कृति के प्रति असीम प्रेम करुणा की तीव्र भावनाएं हिलोरे मार रही हैं , सत प्रवृतियां अपने उज्ज्वल स्वरूप में आकार ले रही हैं।
बांसुरी वादन में तो वह निपुण हो ही रहा है परमात्मा की दिव्य कृपा से श्रेष्ठ काव्य प्रतिभा का विकास भी हो रहा है।
साहित्य की विद्यार्थी होने के नाते मुझे यह अद्भुत लगता है। भविष्य में जब गुरुदेव की कृपा से संजोग होगा तो उसकी लिखित पंक्तियां परिजनों के समक्ष प्रकट होंगी ।
परमात्मा की कृपा से उसकी गायत्री महामंत्र के साथ आध्यात्मिक यात्रा पूर्णता की ओर प्राप्त हो और अपने राष्ट्र सनातन संस्कृति के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ करने की उसकी कामना पूर्ण हों ऐसा आशीर्वाद मेरे परिजन दें, ऐसी प्रार्थना है।सादर प्रणाम जय गुरुदेव।
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प्रस्तुतीकरण का उद्देश्य :
किसी खोये हुए को प्राप्त करने की लगभग 24 वर्षों की प्रबल जिज्ञासा ।
स्वभावतः प्रातः व सायं का नियमित जप, प्रतिदिन प्रातः 4:00 बजे उठते ही ” त्वमेव माता च पिता त्वमेव…” के रूप में व अन्य उपनिषद् के मन्त्रों द्वारा परमपिता परमात्मा का आवाहन व रात में सोते समय यजुर्वेद के मन्त्र ” याज्जाग्रतो दूर मुदैति देव…” को पढ़कर शयन करना। पढ़ाई का कार्य तो ठीक चल रहा था; लेकिन मन भारी ही बना रहता था।
मई 1980 में गायत्री महाविज्ञान भाग-1 (लेखक वेदमूर्ति तपोनिष्ट पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य) को पढ़ने के बाद उदीयमान सूर्य की किरणों के ध्यान के साथ, गायत्री मन्त्र जप के समय, कुछ क्षणों के लिए परम पूज्य गुरुदेव जी की तत्कालीन फोटो का चित्र सजीव रूप में 2 मुद्राओं में- सूर्य में बैठकर ध्यान करते हुए व लिखते हुए दिखाई पड़ने लगा।
हम लोग न तो कभी हरिद्वार आये थे, न ही कभी पूज्य गुरुदेव का साक्षात् दर्शन किया था। हमारे मन में यह विश्वास बैठा था कि परमात्मा सविता के रूप में कण-कण में व्याप्त है एवं गायत्री का देवता सविता है।
हमने जब गुरुदेव को सूर्य में बैठे देखा तो बहुत ही आश्चर्य हुआ । कुछ माह जागरूक होकर चिकित्सक की दृष्टि से स्वयं के मन को पढ़ा और स्वयं से ही प्रश्न किया कि यह कहीं मतिभ्रम, माया (Hallucination) तो नहीं हो रहा है। कई दिनों तक जब अपनी जाँच करने पर उत्तर आया:
“नहीं, यह कोई माया नहीं है,कोई भ्रम नहीं है” तो प्रस्तुतकर्त्ता ने अपनी जीवनचर्या के बारे में शांतिकुंज को एक विस्तृत पत्र लिखा। हमारे पत्र का उत्तर वंदनीय माता जी के हस्ताक्षर में 11 नवंबर 1980 को प्राप्त हुआ। यह पत्र माता जी ने 4 नवंबर को लिखा था और हमें जिला चिकित्सालय सुल्तानपुर में प्राप्त हुआ था। हम अपनी धर्मपत्नी,डॉक्टर गायत्री शर्मा जी के साथ 13 दिसम्बर 1980 को शान्तिकुंज, हरिद्वार पहुँच गए।
14 दिसंबर को वन्दनीय माताजी के दिव्य दर्शन व आशीर्वाद के पश्चात् हम दोनों ऊपर परम पूज्य गुरुदेव,वेदमूर्ति तपोनिष्ठ पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य जी का दिव्य दर्शन करने पंहुचे। चरणों पर सिर रखकर नमन किया। उनकी सुन्दरता व महानता का कुछ क्षणों के लिए आभास हुआ, जिसकी अमिट छाप 40 वर्षों बाद भी उसी रूप में बनी है। पूज्यवर ने पूछा,“शरीर व मन से ठीक हो ? कुछ चाहते हो ?” हमने उत्तर दिया, “नहीं।” पुनः पूज्य गुरुदेव ने कहा,
“बेटा,मैं नंगा करके देखता हूँ,कौन क्या है? क्या करेगा ? अभी हम तुमसे इसलिए बात कर रहे हैं कि तुम्हारा मन हल्का हो जाए । तुमसे हम अकेले कोठरी में बात करेंगे।”
इसके बाद पूज्यवर हमारी धर्मपत्नी गायत्री जी से बात करने लगे ।
15 दिसम्बर को गायत्रीतीर्थ शांतिकुंज में ही परम पूज्य गुरुदेव जी ने प्राणदीक्षा का अनुदान प्रदान किया। उसी के बाद से मन में उठी शंकाओं का अन्दर ही अन्दर, परा-पश्यन्ती वाणी (टेलीपैथिक कम्युनिकेशन) द्वारा उत्तर मिल जाना आरम्भ हो गया। परम पूज्य गुरुदेव के प्रत्यक्ष दर्शन के बाद, उन्हीं के द्वारा पुष्टीकरण करते हुए पूछना कि बेटा प्रश्न का जवाब मिल गया तो हमारा उत्तर “हाँ” ही था। गुरुदेव के प्रति हमारी श्रद्धा, उनके वचनों में दृढ़ विश्वास एवं समर्पण बढ़ने लगा। उसके पश्चात् जब भी हम दोनों, अन्तःकरण से कोई प्रार्थना प्रत्यक्ष बोलकर, लिखकर या संकल्प पत्र के रूप में चरणों पर रखकर उन्हें समर्पित करते थे, हम बच्चों का मनोबल व आत्मबल बढ़ाने वाला दिशा-निर्देश, अमृत वचनों के द्वारा कानों को सुनने को मिलता था। हर समय अन्दर से उठे प्रश्नों एवं शंकाओं का समाधान,प्रेरणा, मार्गदर्शन, स्पष्ट दिव्य अनुभूति के रूप में ध्यान व जप के समय होता था। कभी-कभी शान्त मन से पूज्य गुरुदेव व माताजी का ध्यान करते समय, अन्दर से परा-पश्यन्ती वाणी से आवाज आने लगती थी, जिसे याद रखने व अभ्यास के उद्देश्य से, उसी समय डॉयरी में तारीख डालकर लिख लेते थे। यह आत्मानुशासन आज भी चल रहा है। वर्ष 1982 की वसन्त पंचमी पर हमें समझा दिया गया कि भौतिकता, सांसारिक प्रतिष्ठा, मान–सम्मान आदि सब परिवर्तनशील व क्षणिक हैं। आत्मकल्याण व लोककल्याण का परिणाम अत्यधिक एवं स्थायी है।
गुरुदेव ने हम दोनों को दिव्य अनुदान देकर “आत्मबोध” करा दिया। फलस्वरूप समय, प्रतिभा, प्रभाव, भावना व साधनों का समर्पण अपने व समाज कल्याण की भावना से बढ़ता गया।
फिर धीरे-धीरे ऐसी धारणा बन गई कि गुरुदेव माताजी की इच्छा ही हमारी इच्छा है । बाद में श्रद्धेय डॉ. प्रणव जी एवं परम श्रद्धेया शैल बहिन जी की इच्छा उसी रूप में कार्य करने लगी। इस भाव को स्वत: बिना किसी अवरोध के मन ने स्वीकार कर लिया, जिसका प्रत्यक्ष क्रियान्वयन अभी भी हो रहा है। इतने लम्बे परोक्ष व प्रत्यक्ष मार्गदर्शन में, अनुशासित होकर आगे बढ़ने के साथ-साथ सविता रूपी इष्ट की कृपा से हम दोनों को अधिकांश समय में सविता रूपी परम पूज्य गुरुदेव जी व परम वन्दनीय माताजी के आन्तरिक मार्गदर्शन व बाहरी समर्थ सहयोग मिलने का आभास होता रहता है । फलस्वरूप मनः संस्थान में अज्ञात विश्वचेतना की अनुभूति होने से सन्तोष, पूर्णता, दिव्यशान्ति,उल्लास, उत्साह व निश्चिन्तता की मन:स्थिति एक सफल “अध्यात्मिक विद्यार्थी” के रूप में आभास होने लगी है ।
प्रस्तुतकर्त्ता को दिव्य सत्ता से प्राप्त हुई दिव्य अनुभूतियाँ अनेकों अन्य साधकों को भी मिली होंगी।
इस प्रस्तुतीकरण का उद्देश्य यही है कि परम पूज्य गुरुदेव जी व परम वन्दनीय माताजी की दैवी योजना में अनुशासित-समर्पित होकर, अन्य देव आत्माओं की भांति हम भी गुरुदेव की योजना में योगदान दे सकें।
गायत्री तीर्थ शान्तिकुंज के स्वर्ण जयन्ती वर्ष 2021 की वसन्त पंचमी (16 फ़रवरी ) वाले दिन जब हमारा 38वाँ आध्यात्मिक जन्मदिवस व शरीर का 78वाँ वर्ष प्रारम्भ हुआ उस दिन यह प्रस्तुति रिलीज़ हुई थी।
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463 कमैंट्स और 8 युगसैनिकों से आज की 24 आहुति संकल्प सूची सुशोभित हो रही है।आज गोल्ड मैडल का सम्मान आदरणीय चंद्रेश जी को जाता है, उनको बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।
(1)रेणु श्रीवास्तव-24,(2)नीरा त्रिखा-29,(3)सुमनलता-24,(4)अरुण वर्मा-24,(5)चंद्रेश बहादुर-37,(6)सरविन्द पाल-31,(7)संध्या कुमार-24,(8)पूजा सिंह-24
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।



