वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

शनिवार का एक और विशेषांक -“मैं क्या हूँ ?” पुस्तक पर आधारित लेख शृंखला पर  साथिओं की फीडबैक 

शनिवार का दिन पूर्णतया हमारे साथिओं का होता है। इस बार हमने एक और नवीन प्रयास किया जिसके अंतर्गत साथिओं को “मैं क्या हूँ ?” लेख शृंखला पर प्रकाशित किये गए 23 लेखों पर विचार लिखने के लिए आमंत्रित किया गया। फिर क्या था, हालाँकि समय  सीमित था, फिर भी परिणाम देखकर हमारा बहुत ही उत्साहवर्धन हुआ। सोशल मीडिया  साइट्स पर  Retention time घट कर 10 सेकण्ड्स पहुँच गया है लेकिन हमारे साथिओं ने हमारे  निवेदन को भरपूर सम्मान देकर बहुत कृपा की जिसके लिए हम सदैव आभारी रहेंगें। अनेकों साथिओं की फीडबैक प्राप्त हुई।    

ग्रेड A के साथ अरुण जी की फीडबैक गुरुवार को प्रकाशित की थी,आज तीन और साथिओं की फीडबैक प्रस्तुत की गयी है। हमारी भावना यही कह रही है कि आज के तीनों साथी भी ग्रेड A से सम्मानित हुए हैं।   

अरुण जी ने इस  प्रयोग की सराहना करते हुए स्कूल के यूनिट टेस्ट से तुलना की है। जिस प्रकार हर एक विषय के समापन के बाद टेस्ट लिया जाता है, यह भी कुछ इसी तरह का प्रयोग है। इस प्रयोग में  भाग लेकर साथिओं को अपना, स्वयं का आत्मनिरीक्षण करने का एक सुनहरी अवसर मिलेगा कि हमने  इस यूनिट की शिक्षा से क्या कुछ ग्रहण किया। भैया जी, आपके मन में  अति उत्तम विचार आया है। भैया जी, इस  प्रयोग से सभी साथियों को बहुत  लाभ मिल सकता है। 

बहिन सुमनलता जी ने लिखा था कि हमने तो प्रश्न पत्र हल ही नहीं किया लेकिन हमारे पास तो उनका मार्गदर्शन उपलब्ध है।

आइए देखें आज क्या फीडबैक है। 

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1.सुजाता जी की फीडबैक 1: 

हम आपनी अनुभूति लिखते हैं लेकिन ये थोड़ा बहुत पुस्तक “मैं क्या हूँ ?”, जिसका अमृतपान  हमने अभी-अभी  23 लेखों के माध्यम से किया, से संबंधित है l हम पहले भी कहते थे आज  भी कह रहे हैं :

आदरणीय अरूण भैया जी हमारे लिए गुरु रूप है

हमारी बेटी की एनएमआईएमएस (NMIMS ) मुंबई में MBA करने के लिए सिलेक्शन हो गया है और हम लोग मुंबई आए हुए हैं l 

एक दिन की बात है, मेरी बेटी ने अपने पापा से पूछा कि मैं तो यहाँ  अकेली रहूंगी तो मुझे कुछ बताएं कि मैं कैसे रहूँ, क्या करूँ अर्थात कुछ टिप्स दीजिए तो मेरे पतिदेव ने जो बातें बताई मैं  सुनकर स्तब्ध रह गई l 

एक बार आदरणीय अरुण भैया जी ने बताया था कि एकान्त स्थान में ध्यान करें कि हम सूर्य हैं और सारे ग्रह, उपग्रह हमारे चारों तरफ परिक्रमा कर रहे हैं । बिलकुल ये सारी बातें हमारे पतिदेव ने बिटिया को समझा रहे थे l ये कैसे संभव हुआ? क्योंकि न तो उन्होंने दीक्षा ली है और  न ही गायत्री परिवार में  उन्होंने यह सब  पढा है l इसीलिए हमें बहुत आश्चर्य हुआ कि  भैया जी की बताई सारी बातें वह  बिटिया को समझा रहे थे l 

सच में परमपूज्य गुरुदेव की  महिमा अपरम्पार है l हमने तो गुरुदेव के दर्शन तक भी नहीं  किए हैं लेकिन अरुण भैया  जी के माध्यम से प्रतिदिन ही गुरुदेव के दर्शन भी हो जाते हैं और मार्गदर्शन भी मिल जाता है l 

यही कारण है कि आदरणीय भैया जी हमारे लिए गुरु रूप हैं  l बहुत बहुत धन्यवाद भैया जी, सादर प्रणाम जय गुरुदेव।  

2. सुजाता उपाध्याय जी की  फीडबैक2  : 

आज के दिव्य ज्ञानप्रसाद में  “मेरी अपनी  वस्तु कुछ नहीं है, यह संपूर्ण वस्तुऐं मेरी हैं” में भैया जी ने विस्तार पूर्वक वर्णन किया है l दो तीन बार पढ़ी, कठिन  तो लग रहा था लेकिन लेख के साथ में दी गयी स्लाइड   “ज्ञानप्रसाद लेख का संदेश” पढ़ने से कुछ-कुछ समझ आ गया l परमपूज्य गुरुदेव की  पुस्तक “में क्या हूँ” पर आधारित इस लेख में आदरणीय भैया जी द्वारा बहुत ही सुन्दर/सरल भाषा में सब कुछ समझाया गया है। हमें समझ में आया कि 

“हम परमात्मा परब्रह्म  का अंश आत्मा हैं  जिसका न कोई जन्म है, न मृत्यु। आत्मा अजर, अमर, अविनाशी हैl” 

जिस दिन मनुष्य को यह  ज्ञान प्राप्त हो जाएगा, वह  किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं होगा । हमें तो और भी अनेकों अनुभव हो रहे हैं  लेकिन लिख नहीं पा रहे हैं , इसके लिए क्षमापार्थी है l 

आदरणीय भैया जी हर लेख में लिखकर हमारा उत्साहवर्धन करते रहे  कि इस पुस्तक  में गुरुदेव, शब्दों में व्यक्त करने के बजाए  अनुभव करने पर बल दे रहे हैं क्योंकि यह आत्मा के स्तर की बात है।     

अधिकतर साथिओं की धारणा है कि ऐसा जटिल ज्ञान प्राप्त करना इतना सरल तो नहीं है लेकिन  फिर भी कोशिश करने से एवं आदरणीय भैया जी द्वारा बताए गए उदाहरणों  के माध्यम से प्रयास करने पर बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है l  

बहुत ही सुन्दर सरल भाषा में विस्तार पूर्वक समझाने के लिए आदरणीय भैया जी को बहुत बहुत धन्यवाद, सादर प्रणाम भैया जी, जय गुरुदेव    

3. नीरा त्रिखा जी की फीडबैक: 

परम पूज्य गुरुदेव की प्रथम पुस्तक “मैं क्या हूं?” पर आधारित लेख श्रृंखला का आज शुभ समापन हुआ है। 23 फुल length लेख पढ़ कर जिस ज्ञान का अर्जन हुआ है, सच में ऐसा अकेले में पुस्तक पढ़कर नहीं हुआ था। कॉमेंट्स-काउंटर कॉमेंट्स की प्रक्रिया ने इस पुस्तक को समझने ने बहुत सहयोग दिया। जो बात पुस्तक पढ़ते समय,लेख पढ़ने के बाद समझने में कठिनाई आ रही थी, अपने प्रतिभाशाली साथियों के कॉमेंट्स ने समझा दी। 

इसी उद्देश्य से बार-बार आग्रह किया जाता रहा है  कि  “ज्ञानप्रसाद लेख से संबंधित ही  कॉमेंट” किए जाएँ। समर्पित साथी बधाई के पात्र हैं कि  इस आग्रह का प्रभाव भी दिखना शुरू हो गया था।

लेख के साथ संलग्न  “आज के ज्ञानप्रसाद लेख का सन्देश” वाली स्लाइड से भी बहुत सहायता मिली है, इस नए प्रयास को भी जारी रखना उचित ही होगा। 

लेख से संबंधित कॉमेंट अगर लंबा भी हो जाता है तो कोई समस्या नहीं होनी चाहिए ,कई बार बात समझाने में शब्दों की गिनती कम/अधिक हो ही जाती  है। 

इस फीडबैक में कमैंट्स की चर्चा करना इसलिए महत्वपूर्ण हो रहा है कि आजकल लोगों में बढ़ रहे उतावलेपन के कारण Retention time  बिल्कुल ही कम होता जा रहा है। Tiktok में तो अब  15 सेकंड से भी कम (10 सेकंड) समय की वीडियोस अधिक लोकप्रिय हो रही हैं। कोई बड़ी बात नहीं है कि उतावलेपन के कारण लोग बड़ा कमेंट देखते ही, बिना पढ़े भाग जाएँ। 

23 भागों में प्रस्तुत लेखों में न जाने कितनी बार लिखा होगा “मैं क्या हूँ ?”, बार-बार शीर्षक को दोहराने का एक ही उद्देश्य था कि हम स्वयं को जान जाएँ क्योंकि स्वयं को जानना ही सबसे कठिन कार्य है। मनुष्य को “औरों की,पड़ोसियों की, देश विदेश की,और न जाने किसी किसकी” जानकारी तो है, केवल अपनी ही जानकारी नहीं है। अगर होती तो आज इस 37 पन्नों की दिव्य पुस्तिका को  समझने के लिए 23 लेखों की आवश्यकता न पड़ती।      

इस लेख शृंखला  के सम्बन्ध में यहाँ की जा रही चर्चा और भी महत्वपूर्ण हो जाती है कि हमारा उद्देश्य “मात्र पढ़ना ही नहीं है”, पढ़कर-समझकर औरों को समझाना है, तभी केवल तभी, गुरुदेव द्वारा दी गयी ड्यूटी पूरी की जा सकेगी।

निम्नलिखित पंक्तियाँ कमैंट्स के सम्बन्ध में दी गयी चर्चा का रिपीट लग सकती हैं लेकिन ऐसा  है नहीं:     

जहाँ  तक इन लेखों से ज्ञान प्राप्त करने की बात है, तो स्वयं को जानने, पहचानने का स्वर्ण अवसर था। स्वयं को जान लेना ही सबसे बड़ा ज्ञान है क्योंकि अगर मनुष्य स्वयं को जान ले तो न जाने कितने ही अवगुण दिख जाएं, दूसरों के अवगुणों पर थोड़ी देर के लिए पर्दा डाला जा सकता है, जीवन सुखमय हो सकता है,जीवन जीने की कला आ जाती है। सबसे बड़ी बात तो यह सीखने को मिली कि मनुष्य ईश्वररूपी  परमसत्ता का ही अंश है, लेख पढ़ते समय बार-बार शांतिकुंज स्थित “भटका हुआ देवता का” मंदिर आंखों के सामने घूमता रहा। वही तो जीवन का सार है, गुरुदेव का धन्यवाद है, जिन्होंने यह अद्भुत मंदिर बना कर हम सबके ऊपर इतना उपकार किया है। इस लेख श्रृंखला के ज्ञानप्रसाद का अमृतपान करने के बाद भी यदि हम “भटका हुआ देवता मंदिर” के दर्पणों में बाल संवार कर, सेल्फी लेकर घर लौट आते हैं तो इसे दुर्भाग्य के सिवाय और कुछ नहीं कहा जा सकता।   

4. सुमनलता जी की फीडबैक : 

पूज्यवर की दिव्य रचना “मैं क्या हूँ?” की लेख शृंखला के लेखों का अमृतपान करते समय हमने अपने अंदर स्थित परमपिता परमात्मा के अविनाशी अंश आत्मा को जानने का प्रयास किया है।

कल वाले ज्ञानप्रसाद में हमने पाया कि यह संसार परिवर्तनशील है। आज हम जानेंगे कि इस परिवर्तनशील सृष्टि में “हमारा कुछ भी नहीं है, सब कुछ हमारा है।” हम इसके उतने ही अंश को जान पाते हैं, जितनी  हमारी सीमा है। हम यहीं से प्राप्त करते हैं और यहीं छोड़ते जाते हैं। पानी की धारा की तरह आगे बढ़ते हुए चले जाते हैं। जो आज हमारे लिए सुख देने वाला है, कल उसे भी छोड़ देना होता है। जो आज दुःखद  है कल वोह  भी छूट जाएगा । 

जो मनुष्य  संसार के इस नियम को जान लेता है वोह  इन सबमें समभाव होकर जीवन मुक्त की दशा में रहता है, प्रकृति का आनंद उठाता है, लेकिन उस में लिप्त नहीं होता। प्रकृति भी चेतन है जड़ नहीं। हम सब एक  विशाल महासागर के  छोटे-छोटे तालाब की मछलियां हैं। विश्वव्यापी शक्ति और चेतना परमात्मा से है। हमारे चेतन का आधार उस परमात्मा का अंश आत्मा है। मैं क्या हूं ? मैं परमात्मा का ही अंश हूँ,  “अहम् ब्रम्हास्मि।” मैं ब्रह्म हूँ , भटका हुआ देवता नहीं। “अयमात्मा ब्रह्म” यह आत्मा ब्रह्म है। “सोऽहमस्मि”, मैं वही हूँ। 

जिस मनुष्य ने यह  सच्चा ज्ञान प्राप्त कर लिया है,उसका  जीवन प्रेम,सहानुभूति, दया एवं  उदारता से परिपूर्ण हो जाता है। सच्चा ज्ञान वही है जो जीवन में उतार लिया जाए ,अन्यथा मात्र पढ़ने से प्रयोजन सिद्ध नहीं होता।

अपने विवेक के अनुसार जो ग्रहण किया जा सका , वही व्यक्त कर दिया, किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थी है।

पुस्तक का विषय ही इतना गहन गंभीर है कि  समझने के लिए पूरा ध्यान लगाना पड़ता है। पढ़ते समय  ऐसा  लगा कि गूढ़ है, क्योंकि पढ़ने के साथ आत्मावलोकन करने से ही समझ में आया और स्वयं को जानने का अवसर भी प्राप्त हुआ।

ऐसे ज्ञानवर्धक लेखों के लिए आ. भाई साहब का हृदय से आभार करते हैं।

सोमवार से गुरुदेव के भंडार का कौन सा मोती प्राप्त होने वाला है उसकी प्रतीक्षा रहेगी।

बहिन जी सोमवार को भी इसी को आगे बढ़ाना है।

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520  कमैंट्स और 6 युगसैनिकों से आज की  24 आहुति संकल्प सूची सुशोभित हो रही  है।आज का गोल्ड मैडल आदरणीय संध्या जी  को जाता है। सभी  को  गोल्ड मैडल जीतने की बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।     

(1)नीरा त्रिखा-26,(2 )सुमनलता-31,(3)सुजाता उपाध्याय-33,(4) वंदना कुमार-24, (5) संध्या कुमार-43,(6)मंजू मिश्रा-25       

सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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