https://youtu.be/gvweW19njQo?si=1GW-gn8l2f06O7EL (साथिओं के सहयोग को समर्पित है आज का प्रज्ञा गीत
कल जब हम नीरा जी से बात कर रहे थे कि आज के ज्ञानप्रसाद लेख के साथ गुरुदेव की प्रथम पुस्तक “मैं क्या हूँ ?” पर आधारित लेख श्रृंखला का समापन हो गया है और हम चाहते हैं कि हमारे प्रतिभाशाली साथी इस लेख श्रृंखला के बारे में अपने विचार व्यक्त करें।
हमने आज यानि गुरुवार से ही अपने ह्रदय में उठ रही इस अभिलाषा को कार्यान्वित करने की बात नीरा जी से की तो उनका रिएक्शन था कि इसका मतलब है कि कल आपकी छुट्टी होगी। हमारे अंदर से अनायास ही यह शब्द निकले “यह तो समय ही बताएगा” और हुआ भी कुछ ऐसा ही।
हमारे साथिओं ने इतने कम समय में, Time-bound निमंत्रण का सम्मान करते हुए, समय निकाल कर जो कुछ हमें लिख कर भेजा है, हमें तो विश्वास ही नहीं हो रहा कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के साथिओं में इतना उत्साह हो सकता है।
गुरुदेव का “बोओ और काटो” का सूत्र 100% सार्थक होता दिख रहा है, गुरुदेव द्वारा प्रदान किये गए इस इनाम से बढ़कर अन्य कोई इनाम नहीं हो सकता। बोओ और काटो का सिद्धांत हमारे लिए तो ऐसा साबित हो रहा है कि हम गुरुकार्य में अपनी समर्था और अल्प शिक्षा से जितना थोड़ा-बहुत समयदान, ज्ञानदान, श्रमदान, विवेकदान आदि कर रहे हैं उससे लाखों-करोड़ों गुना (मानसिक शांति,शक्ति ,सुख-चैन, सम्पदा के रूप में ) हमें वापिस आ रहा है। अपने साथिओं द्वारा हमारे प्रत्येक निवेदन का सम्मान भी एक सम्पदा के रूप में हम पर बरस रही है।
हमारे निमंत्रण को Respond करते हुए, हमारे साथिओं ने इन पंक्तियों के लिखते समय तक 4300 शब्द यानि 7 पन्नों का ज्ञान हमें पोस्ट किया है।अगर शब्द सीमा का आधार माना जाए तो इन विचारों को 3 लेखों में प्रस्तुत किया जा सकता है।ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के टाईमटेबल के अनुसार कल शुक्रवार को वीडियो कक्षा होती है, शनिवार को स्पेशल कक्षा होती है और सोमवार से नई लेख श्रृंखला का शुभारम्भ होता है। लेकिन इस बार निर्धारित टाईमटेबल में थोड़ा बदलाव लाने की विवशता आन पड़ी है जिसके लिए हम अपने इस परिवार से क्षमा याचना करते हैं।
शुक्रवार को वीडियो कक्षा ही होगी,शनिवार की स्पेशल कक्षा में आज प्राप्त हुई Contributions प्रस्तुत करेंगें, सोमवार 17 जून गायत्री जयंती का पावन दिवस है,यह दिन परम पूज्य गुरुदेव के महाप्रयाण को ही समर्पित होगा और मंगलवार, बुधवार आदि दिनों में आज प्राप्त हुई बाकी की Contributions प्रस्तुत करने की योजना है। फिर से कहते हैं कि यह तो हमारी योजना है,लेकिन होगा वही जो गुरुदेव चाहेंगें।
हर वर्ष हमारा प्रयास रहता है कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से गायत्री जयंती उसी दिन मनाई जाए जिस दिन पंचांग के हिसाब से होती है और हम अपने प्रयास में सफल भी होते आ रहे हैं। कनाडा में, हमारे प्रदेश में गायत्री जयंती 22 जून शनिवार को मनाई जा रही है।
हमारे निमंत्रण पर, हमारे साथिओं ने जो योगदान किया उसके लिए जहाँ हम उनका धन्यवाद् करते हैं वहीँ हम आदरणीय सरविन्द जी से क्षमा प्रार्थी भी हैं कि हम अपनी बात ठीक से कह पाने में असफल रहे।अपने समर्पित साथियों के समक्ष कुछ भी प्रस्तुत करते समय हमें अपनी अयोग्यता का अवश्य ही संकोच रहता है और यही कारण है कि भाई साहिब ने लगभग 1225 शब्दों का ईश्वर के सच्चे भक्त के बारे में जो लिखकर भेजा है उसका,लेख श्रृंखला,लेख, पुस्तक,कॉमेंट्स आदि से संबंध न होने के कारण किसी और समय के लिए सुरक्षित रखना उचित होगा।
इन्हीं शब्दों के साथ आइए चलें आज की गुरुकक्षा की ओर एवं ध्यान से आदरणीय अरुण वर्मा जी को सुनें, देखें कि उन्होंने इस लेख श्रृंखला से क्या कुछ ग्रहण किया। अरुण जी ने हमारे नवीन प्रयास की तुलना स्कूल में होने वाले यूनिट टेस्ट के साथ की है। भाई साहिब लिखते हैं:
यह प्रयोग अति उत्तम व सराहनीय है, जिस तरह स्कूल में हर विषय के समापन के बाद टेस्ट होता है उसी तरह औनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार भी हर एक विषय के समापन के बाद टेस्ट लेने का प्रयोग कर रहा है। सभी साथियों को इस टेस्ट में भाग लेकर अपना ज्ञान प्रदर्शित करना है कि इस लेख श्रृंखला से क्या कुछ ग्रहण किया है। भैया जी आपके मन में अति उत्तम विचार आया है एवं इस प्रयोग से सभी साथियों को बहुत लाभ मिल सकता है, बहुत बहुत धन्यवाद,भैया जी
हम सबने परम पूज्य गुरुदेव की प्रथम रचना,”मैं क्या हूँ?” का लगातार 23 दिन ज्ञानप्रसाद लेख के रूप में प्रतिदिन स्वाध्याय किया। इस लेख श्रृंखला से संबंधित सभी परिजनों को अपनी-अपनी समझ के अनुसार अनुभूति लिखने का नवीन प्रयोग किया जा रहा है, तो हम सभी कमर कस के तैयार हो गए हैं। जहाँ तक हमारा अपना अनुभव है वह मैं निम्नलिखित लिखने का प्रयास कर रहा हूँ :
मैं इस लेख से अपनेआप में जो कुछ भी परिवर्तन ला पाया वह सब पूज्य गुरुदेव की असीम कृपा ही है। सबसे पहले तो हमें यह ज्ञात हुआ कि मैं “मैं” नहीं हूँ मैं “आत्मा” हूँ, जो न कभी जन्म लेता है न मरता है, वह अविनाशी है। जिस तरह हम पुराने कपड़े उतारकर फेंक देते हैं उसी तरह यह शरीर आत्मा का पोशाक है, जब यह पोशाक काम के लायक नहीं रहता तो आत्मा इसे छोड़कर दूसरी पोशाक ग्रहण कर लेता है जिससे पहले वाला पोशाक “यानि शरीर” को मृत घोषित कर दिया जाता है। इस लेख श्रृंखला से स्वयं को जानने का अति उत्तम सौभाग्य प्राप्त हुआ है। यह शरीर नाशवान है, यह माटी का शरीर आज नहीं तो कल खत्म हो जायेगा लेकिन इसके अंदर विराजमान सुंदर-अनमोल आत्मा कभी खत्म नहीं होता। यह जन्मों जन्मों तक साथ रहता है, कभी नष्ट नहीं होता।
लेकिन प्रश्न यह भी उठता है कि अगर शरीर न रहे तो आत्मा का वास कहाँ होगा, इसलिए दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। जब आत्मा के बिना शरीर एक लाश है तो वहीं शरीर के बिना आत्मा का कोई अस्तित्व नहीं है।
इस लेख श्रृंखला से स्वयं को बदलने में बहुत हद तक सफलता मिली है, और अंत में भैया जी की अनमोल रचना, “शरीर और आत्मा का वार्तालाप” वाली अभिव्यक्ति से समय का बंधन और नियमितता पर पूरा प्रभाव पड़ा है। उपासना साधना करने के लिए एक निश्चित समय तो होना ही चाहिए। वैसे तो पहले भी समय की नियमितता थी लेकिन अब और परिपक्व हो गई है।
आत्मा और शरीर से संबंधित इस लेख शृंखला में बहुत सारे अनुभव प्राप्त हुए हैं। आत्मा को जागृत करने के लिए हमेशा स्वयं को परिष्कृत करते रहना अनिवार्य है। लेख शृंखला से कितने लोग स्वयं को परिष्कृत करने में सफल हुए, कितने लोग अपनी आत्मा को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करने में सफल हुए, इस लेख का कितना सदुपयोग हुआ, हम सभी के विचारों से ही पता चल पायेगा। आत्मा को बलशाली बनाने के लिए कौन-कौन सा पौष्टिक आहार दे रहे हैं? हमारे अंदर विराजमान आत्मा हमसे कितना संतुष्ट है? इसे पता करने के लिए कभी प्रयास किया? अगर नहीं किया, तो पता करना जरूरी है। हम अपने आहार से ही पता कर सकते हैं कि जो आहार हम ले रहे हैं उस आहार को हमारी आत्मा ग्रहण कर रही है या नहीं। आत्मा को सात्विक आहार पसंद है, यह कैसे पता चलेगा, इसी को जानने के लिए ही परम पूज्य गुरुदेव की पहली रचना “मैं क्या हूँ” के अनमोल ज्ञान का अमृतपान कराया गया। अब बारी है इस परीक्षा में उतीर्ण होने की।
भैया जी, मैंने अपनी मंद बुद्धि से जो कुछ भी लिखा है वह हमारी स्वयं की दिनचर्या में शामिल है। लिखने में अगर कोई त्रुटि हो गयी हो तो क्षमा करें, हमारे मष्तिष्क में जो-जो बातें आती गयी इस मंच पर गुरुदेव के समक्ष रखते गए। अब इस कक्षा के प्रधानाध्यापक जी जैसे मार्क्स देंगे हमें सहस्र स्वीकार होंगें।
लिखने के लिए तो बहुत है लेकिन सब कुछ लिख पाना संभव नहीं है, कम शब्दों में ज्यादा समझ लेना ही अच्छा है।
औनलाइन ज्ञान रथ गायत्री परिवार के सभी सहकर्मियों को कोटि कोटि प्रणाम। सभी सुखी रहें, स्वस्थ रहें, सदैव प्रसन्न रहें,यही शुभ मंगल कामना है,परम पूज्य गुरुदेव की कृपा दृष्टि आप सभी पर सदैव बनी रहे जय गुरुदेव, जय माँ गायत्री
अरुण जी ने मार्क्स की बात की है तो ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच पर मूल्यांकन का एक ही पैमाना है, हमारे साथिओं की प्रतिक्रिया, उनके कमेंट। हमारी तरफ से तो उत्कृष्ट है ही क्योंकि Full-time जॉब करते हुए, परिवार की जिम्मेदारिओं को सँभालते हुए, Time-bound निवेदन का पालन करना, अपनेआप ही आपको ग्रेड A देता है। बहुत बहुत बधाई हो अरुण जी।
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624 कमैंट्स और 12 युगसैनिकों से आज की 24 आहुति संकल्प सूची सुशोभित हो रही है।आज का गोल्ड मैडल आदरणीय सुजाता जी,चंद्रेश जी और संध्या जी को जाता है। सभी को गोल्ड मैडल जीतने की बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।
(1),रेणु श्रीवास्तव-33 ,(2)नीरा त्रिखा-34,(3)सुमनलता-24,(4)सुजाता उपाध्याय-43 ,(5)चंद्रेश बहादुर-41,(6)मंजू मिश्रा-35,(7)सरविन्द पाल-37,(8)संध्या कुमार-41,(9 )अरुण वर्मा-29,(10 )पूजा सिंह-26,(11)पुष्पा सिंह-24,(12)अनुराधा पाल-25 सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।