वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

“अनवरत चलते रहना” ही प्रकृति का नियम है।

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11 जून 2024 का ज्ञानप्रसाद

युगऋषि पंडित श्रीराम शर्मा जी की 1940 में प्रकाशित प्रथम दिव्य रचना “मैं क्या हूँ ?” पर आधारित वर्तमान लेख श्रृंखला का केवल एक ही उद्देश्य है, “मैं क्या हूँ?”, प्रश्न  का उत्तर ढूंढना। आज इस लेख श्रृंखला का 22वां लेख प्रस्तुत किया जा रहा है। 

इस पुस्तक के चौथे अध्याय के आरम्भ में लिखे गए निम्नलिखित संस्कृत श्लोक का अर्थ बता रहा है कि इस ब्रह्मांड में सब कुछ भगवान के परम व्यक्तित्व का मुख है:   

ईशावास्यमिदं सर्वं यत्किञ्च जगत्यां जगत

आज का लेख इसी विषय पर चर्चा कर रहा है और बता रहा है कि हमारे चारों तरफ सब कुछ गति शील है, कैसे ? लेख को ध्यान से पढ़ने से सब ज्ञात हो जाएगा, ऐसा हमारा विश्वास है। 

इसी भूमिका के साथ आज के  गुरुज्ञान का शुभारम्भ होता है। 

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संसार में जितना कुछ भी है, वह सब ईश्वर से ओत-प्रोत है।

आत्मा और परमात्मा के बारे में इतना कुछ जान लेने के बाद आइए आत्मा और परमात्मा के संबंध को समझने का प्रयत्न करें। 

अभी तक हम “अहम्” का जो रुप समझ सके हैं, वास्तव में वह उससे कहीं अधिक है। विश्वव्यापी आत्मा, परमात्मा, महतत्व, परमेश्वर का ही अंश है, सभी में कोई भिन्नता नहीं है।

गुरुदेव बता रहे हैं कि अब आपको इस तरह अनुभव करना चाहिए कि “मैं” अब तक अपने को जितना समझता हूँ, उससे कई गुना बड़ा हूँ। “अहम्” की सीमा समस्त ब्रम्हाण्डों के छोर तक पंहुचती है। वह परमात्मा की सत्ता में समाया हुआ है और उसी से इस प्रकार का पोषण ले रहा है जैसे गर्भस्थ बालक अपनी माता के शरीर से लेता है। आपको आत्मा और परमात्मा की एकता का अनुभव करना होगा और क्रमशः अपनी अखंडता को बड़ा कर अत्यंत महान कर देने को अभ्यास में लाना होगा,तभी  उस चेतना में जा सकोगे, जहाँ पहुंचकर योग के आचार्य कहते हैं- “सोsहम” अर्थात मैं आप जैसा ही हूँ ।

आइए, अब इसी अभ्यास की यात्रा आरंभ करें। अपने चारों ओर  दूर तक नज़र फैलाओ, अंतर नेत्रों से जितनी दूर तक के पदार्थों को देख सकते हो, देखो। प्रतीत होगा कि एक महान विश्व चारों ओर, बहुत दूर, बहुत दूर तक फैला हुआ है। यह विश्व केवल ऐसा ही नहीं जैसा मोटे तौर पर समझा जाता है बल्कि यह एक “चेतना का समुद्र” है। प्रत्येक परमाणु आकाश एवं ईथर तत्व में लगातार गति करता हुआ आगे को बह रहा है। शरीर के तत्व हर पल बदल रहे हैं। आज जो रासायनिक पदार्थ एक वनस्पति में है,कल वोह तत्व भोजन के रूप में आपके शरीर में पहुंचेगा और परसों मल रूप में निकलकर अन्य जीवों के शरीर का अंग बन जायेगा। 

डॉक्टर बताते हैं कि शरीर के प्रत्येक कोश (Cell) हर घड़ी बदल रहे हैं। पुराने नष्ट हो जाते हैं और उनके स्थान पर नए आ जाते हैं। यही कारण है कि शरीर हर क्षण  बदलता रहता है। वायु, जल और भोजन द्वारा नवीन पदार्थ शरीर में प्रवेश करते हैं और श्वास क्रिया तथा मल त्याग के रुप में बाहर निकल जाते हैं। भौतिक पदार्थ बराबर अपनी धारा में बह रहे हैं। नदी-तल पर पड़े हुए कछुए के ऊपर होकर नवीन जल धारा बहती रहती है, फिर भी वह केवल इतना ही अनुभव करता है कि जल  मुझे घेरे हुए हैं और मैं जल  में पड़ा हुआ हूँ। 

हम लोग भी उस निरंतर बहने वाली “प्रकृति की धारा” से भलीभांति परिचित नहीं होते, फिर भी वह एक पल भी बिना ठहरे बराबर चलती ही रहती है । ऐसा इसलिए है कि “अनवरत चलते रहना” ही प्रकृति का नियम है। जीवन चलने का ही तो नाम है।

“प्रकृति की धारा” का निरंतर बहते रहना, मनुष्य शरीर तक ही सीमित नहीं,यह अन्य जीवधारियों, वनस्पतियों और यहां तक कि जिन्हें हम जड़ मानते हैं उन में भी गतिशील होने की विशेषता आगे ही आगे बढ़ती रहती है। हर चीज़, हर घड़ी बदल रही है। चाहे कितना ही प्रयत्न क्यों न किया जाए, गति के प्रवाह को एक क्षण के लिए भी रोका नहीं जा सकता। हम अपने साथिओं को इस सन्दर्भ में सुप्रसिद्ध Newton’s laws of motion बता कर कंफ्यूज नहीं करना चाहते लेकिन इतना अवश्य ही कह दें कि सैंकड़ों वर्ष पूर्व दिए गए यह नियम इस बात की पुष्टि करते हैं कि प्रकृति में हर कोई वस्तु गतिशील है, जो स्थिर भी दिख रहे हैं (वृक्ष, पर्वत आदि) वोह भी गतिशील हैं, कैसे ? उसे समझने के लिए विज्ञान की जानकारी बहुत ही आवश्यक है, इसलिए यहीं छोड़ना उचित होगा। 

गतिशील होना एक  भौतिक एवम आध्यात्मिक सत्य है। इस तथ्य को प्रमाणित करने के लिए जहाँ वैज्ञानिकों ने कड़े परिश्रम करके अनुसन्धान किए, योगिओं ने दिव्य ग्रंथ लिखे,वहीँ गीतकारों ने भी अपनी प्रतिभा का जादू बिखेरने में कोई कसर नहीं छोड़ी, इसलिए कहते हैं :  

1.यह दुनिया आनी जानी है 

2.जीवन चलने का नाम

3.दुनिया चलो चली का मेला

4.हर घड़ी बदल रही है

आज का प्रज्ञा गीत  इसी भावना को चरितार्थ कर रहा है। 1972 की सुप्रसिद्ध बॉलीवुड मूवी “ शोर” का “जीवन चलने का नाम” गीत बहुत कुछ कह जाता  है, आशा करते हैं हमारे साथी गूगल सर्च करके इस गीत के लिरिक्स अवश्य देखने का प्रयास करेंगें, एक एक शब्द में ज्ञान भरा हुआ है -राजकवि इंद्रजीत तुलसी जी को इस गीत के लिए लिरिक्स के लिए धन्यवाद् करते हैं। 

अभी तक की सारी चर्चा भौतिक पदार्थों के अविरल प्रवाह की ओर ही केंद्रित थी लेकिन गतिशील होने का वैज्ञानिक सिद्धांत  मानसिक चेतनाओं में भी उतना ही सक्रिय है। 

विचारधाराएँ, शब्दावलियाँ, संकल्प आदि का प्रभाव भी ठीक इसी प्रकार अनवरत चल रहा है,बदल रहा है। जो बातें एक व्यक्ति सोचता है, वही दूसरों के मन में उठने लगती है। दुराचार के अड्डों का वातावरण ऐसा घ्रणित होता है कि वहाँ जाते ही साधारण मनुष्यों का दम घुटने लगता है। शब्दधारा अब वैज्ञानिक यंत्रों के वश में आ गई है। Radio waves, wireless आदि सब लहरों के प्रत्यक्ष प्रमाण ही तो हैं। मस्तिष्क में उठने वाले विचारों के  फोटो लिए जाने लगे हैं, जिनसे यह पता चल जाता है कि किसी मनुष्य के मस्तिष्क में इस समय कौन से विचार चल रहे हैं। जिस प्रकार हम आकाश में बादलों को इधर-उधर आते जाते देखते हैं, ठीक उसी  तरह विचारों का प्रवाह भी आकाश में मंडराता रहता है और लोगों की “आकर्षण शक्ति” द्वारा अपनी ओर खींचा जा सकता है एवं हमारे विचारों का प्रवाह आकाश में फेंका जा सकता है। 

विज्ञान के इस जटिल पक्ष को समझना बहुत ही महत्वपूर्ण है लेकिन इन छोटे-छोटे लेखों द्वारा समझ पाना इतना सरल नहीं है। विज्ञान के इस महत्वपूर्ण विषय  को अगर मनोविज्ञान कहें तो शायद अनुचित न हो क्योंकि आधुनिक प्रगति ने मनोविज्ञान को Practical experiments द्वारा इतना उपयोगी बना दिया है मानव शरीर के अंदर चल रही क्रियाओं को समझ पाना इतना कठिन भी नहीं रहा है।     

मानव शरीर के संपूर्ण शारीरिक और मानसिक परमाणु गतिशील हैं यानी वोह लगातार चलते ही जा रहे हैं यां ऐसे कहें कि यह परमाणु हर समय Vibrate कर रहे हैं । यह सब वस्तुएँ एक स्थान से दूसरे स्थान को चलती रहती है। जिस प्रकार शरीर के पुराने तत्व नष्ट होते जाते हैं और नए आते रहते हैं, हमें ठीक उसी प्रकार “मानसिक पदार्थों (यानि हमारे विचार)” के बारे में भी समझना चाहिए। 

हम मनःस्थिति की बात कर रहे हैं। कुछ दिन पहले आपने संकल्प लिया  था कि मैं आजीवन ब्रह्मचार्य का पालन करूंगा, ब्रह्मचारी रहूँगा लेकिन आज स्थिति है कि विषय भोग आपको छोड़ ही नहीं रहे। एक दिन आपने निश्चय किया था कि अमुक व्यक्ति की जान लेकर ही अपना बदला चुकाऊंगा लेकिन आज उसके मित्र बने हुए हैं। उस दिन रो रहे थे कि किसी भी प्रकार धन कमाना चाहिए लेकिन आज सब कुछ कमाकर संतुष्ट हो गए  हैं, संन्यासी हो गए  हैं। 

विचारों के आने-जाने के, गतिमान होने के, यह कुछ एक उदाहरण दिए हैं, ऐसे अनेकों उदाहरण दिए जा सकते हैं एवं इनका कोई अंत नहीं है। 

यहाँ महत्वपूर्ण प्रश्न यह है कि विचारों का आदान प्रदान क्यों होता रहता है? इस प्रश्न का बहुत ही सरल उत्तर, सरल  शब्दों में, बेसिक विज्ञान की सहायता से निम्नलिखित प्राप्त किया जा सकता है : 

हमारी  बेटी सुमति पाठक ने अपनी वीडियो में एनर्जी के रूपांतरण एवं एनर्जी संरक्षण की बात की थी। इस बात के पीछे साइंस का बहुत ही प्रसिद्ध नियम काम करता है जिसे “Law of Conservation of energy” के नाम से जाना जाता है। इस नियम के अनुसार एनर्जी ( ऊर्जा) कभी भी समाप्त नहीं होती, यह केवल रूप बदल सकती है। हम भोजन (केमिकल एनर्जी) के द्वारा एनर्जी प्राप्त करते है इसी एनर्जी से हम कार्य (मैकेनिकल एनर्जी) कर पाते हैं।

अब बात आती है विचारों की। विचार भी तो एक किस्म की एनर्जी ही हैं, इनका रूपांतरण भी उसी नियम के अनुसार होता रहता है। मनुष्य की तो यहाँ तक की प्रवृति है  कि वोह पुराने वस्त्र बदलने एवं नए प्राप्त करने में विश्वास करता है तो वोह पुराने विचारों के साथ कैसे चिपका रहे। समय के साथ पुराने विचार बदलना ही समझदारी है नहीं तो समय बदलवा लेता है। यह सृष्टि का नियम है ,यह नियम हर जगह व्याप्त है।

हमारे गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी दिखने में तो दरवेश, फकीर लगते हैं,बार-बार दोहराते आये हैं कि हम तो गाँव के स्कूल में  मात्र पांचवीं कक्षा तक ही पढ़े हैं लेकिन “विचार क्रांति” जैसा नारा, और वोह भी विश्व स्तर पर,कैसे दे गए। यह कोई हल्के में लेने वाला संकल्प नहीं है, इसके पीछे भी एनर्जी रूपांतरण का, विचार रूपांतरण का बहुत बड़ा और प्रबल सिद्धांत छिपा हुआ है। 

विचार क्रांति को विश्व स्तर पर लाने के पीछे छिपे विज्ञान को समझने के लिए निम्नलिखित पंक्तियों को ध्यान से पढ़ने के लिए निवेदन है :     

विचारों को ऊर्जा कहना एवं उनके रूपांतरण को समझने के बाद अब यह समझना बिल्कुल भी कठिन नहीं है कि विचारों की सूक्षम शक्ति कहीं भी जा सकती है, एक देश से दूसरे देश जाने के लिए उन्हें वीज़ा तो नहीं लेना पड़ता, विश्व के किसी भी कोने में बेझिझक, अनवरत, इतनी तेज़ गति के यात्रा कर सकते हैं कि अनुमान लगाना असंभव है। यही कारण है कि आतंकवाद कश्मीर में हो, इजराइल में हो यां सीरिया में, नकारात्मक ऊर्जा विश्व के किसी भी भाग में, न केवल एकदम यात्रा ही  कर जाती है बल्कि भावनाशील मानवों के हृदयों को भी हिला कर रख देती हैं, और आज के युग की इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी क्षेत्र में हुई प्रगति,विचारों का विश्वीकरण करने में कितना सहयोग दे रही है ,हम सब जानते हैं।

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640 कमैंट्स और 14 युगसैनिकों से आज की  24 आहुति संकल्प सूची सुशोभित हो रही  है।आज का गोल्ड मैडल आदरणीय रेणु  जी और चंद्रेश जी  को जाता है।दोनों को  गोल्ड मैडल जीतने की बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।     

(1),रेणु श्रीवास्तव-59,(2)नीरा त्रिखा-28 ,(3)सुमनलता-32,(4)सुजाता उपाध्याय-50 ,(5)चंद्रेश बहादुर-56,(6)मंजू मिश्रा-31,(7)सरविन्द पाल-30,(8)वंदना कुमार-24,(9) संध्या कुमार-44,(10)अरुण वर्मा-31,(11)अरुण त्रिखा-26,(12)पुष्पा सिंह-24,(13)राधा त्रिखा-31,(14) निशा भारद्वाज-24              

सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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