वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

10 जून 2024 का ज्ञानप्रसाद -मनुष्य कहीं चलती-फिरती लाश तो नहीं है ?

https://youtu.be/fVp8OoTg_9E?si=deaDUmSbRnuLh3Wh (तू कर प्रभु से प्रीत)

https://youtu.be/nF6PqsTP0ZQ?si=MS_Uh... (हमारा साहित्य लोगों को पढ़ाइए)

युगऋषि पंडित श्रीराम शर्मा जी की 1940 में प्रकाशित प्रथम दिव्य रचना “मैं क्या हूँ ?” पर आधारित वर्तमान लेख श्रृंखला का केवल एक ही उद्देश्य है, “मैं क्या हूँ?”, प्रश्न  का उत्तर ढूंढना। आज इस लेख श्रृंखला का 21वां लेख प्रस्तुत किया जा रहा है। 

गुरुवार के लेख में हमने कहा था कि सोमवार को अंतिम सात पन्नों के चौथे चैप्टर से आगे बढ़ेंगें लेकिन इसी बीच हमारी रिसर्च ने एक बहुत ही रोचक लेख लिखने को प्रेरित किया जिसे हम अपने साथिओं के समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं। 

आज प्रस्तुत किए  गए लेख में “नियमित साधना” को आत्मा का भोजन दर्शाया गया है और शरीर और आत्मा में हो रहे परस्पर युद्ध को चरितार्थ किया गया है। आत्मा, शरीर को उचित मार्गदर्शन दे रही है लेकिन शरीर एक अड़ियल घोड़े की भांति, मैं न मानूं वाली स्थिति, अपनाए बैठा है। ईश्वर ने मूर्ख मानव को,वर्षों के कड़े परिश्रम के बाद पशु से मानव बनाया, अपना राजकुमार बनाया लेकिन वोह कोल्हू का बैल ही बना रहा। इस सनातन तथ्य को समझने के लिए आज के लेख का “आत्मा-शरीर वार्तालाप” बहुत ही रोचक है। हमारा विश्वास है कि यह वार्तालाप अनेकों साथिओं को Self-introspection,आत्म-निरीक्षण करने में सहायक होगा। 

इसी भूमिका के साथ आइए गुरुकक्षा में, गुरुचरणों में समर्पित हो जाएँ।  

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जब हम स्वयं  को असीम ऊर्जावान परमात्मा से जोड़ते हैं तो  हमें अपने अंदर छिपी अनंत ऊर्जा का आभास होता है। यदि हम अपनी चेतना और ऊर्जा को मानव कल्याण के लिए रचनात्मक कार्यो में लगाएं तो हमारा मूल्यांकन देवत्व की श्रेणी में होगा। हमारे ऋषियों ने हमें अपनी आत्मचेतना को पहचानने के तमाम उपाय बताए हैं। यदि हम स्वयं  को परमात्मा का अंश मानकर लोक व्यवहार में सदाचार का पालन करें तो हम उन अनर्थो से बचेंगे जो हमसे अनजाने में होते हैं। 

हमारा शरीर “परमात्मा का मंदिर” है, यदि हमसे कोई गलत काम होता है तो हमारे अंदर  विराजमान परमात्मा प्रभावित होंगे। हमारी चेतना,हमारे अंतःकरण में उठ रही भावना  हमें सतर्क करती  है कि हम अपने आचरण में मलिनता न आने दें। मनुष्य स्वार्थी होने के कारण अन्तःकरण में उठने वाले सभी संकेतों  को नजरअंदाज करते हुए अपनी बुद्धि के वशीभूत जो उसे अच्छा( केवल अच्छा, उचित नहीं) लगता है, वही करता जाता है। परमात्मा के संकेतों को नज़रअंदाज़ करके मनुष्य को जो भारी कीमत चुकानी पड़ती है उसका तो उसे कोई अनुमान ही नहीं है। 

मनुष्य को इस बात का पूरी तरह ज्ञान है कि उसका हित किसको करने में है और क्या करना उसके लिए  अहितकारी होगा लेकिन अहंकारवश वह सब कुछ जानते हुए भी  गलत रास्ते पर जाता रहता  है। 

मानव शरीर में चेतना के रूप में विद्यमान दूसरा तत्व “आत्मा” है जो परमात्मा का अंश है। शरीर और आत्मा दोनों  मिलकर “मानव का अस्तित्व” कायम रखते हैं, दोनों एक दूसरे के पूरक हैं यानि आत्मा के बिना शरीर एक लाश है और शरीर के बिना आत्मा का कोई अस्तित्व नहीं है। ऐसा इसलिए कहा जाता है कि शरीर आत्मा का vehicle है। यही कारण है कि जिनकी आत्मा मर चुकी है, उन्हें अक्सर चलती-फिरती लाश की संज्ञा दी जाती है। कैसी विडंबना है कि मुर्ख मनुष्य सारा जीवन उस शरीर को ही सजाता,संवारता रहता है जो नाशवान है, जो अगले ही पल में मिट्टी का ढेर बन जाएगा और सभी सगे सम्बन्धी उसे छूने से भी डरने लगेंगें। इसीलिए इसे  क्षणभंगुर कहा जाता  है। उत्तम खानपान, व्यायाम, सजना, संवरना, श्रृंगार आदि सब शरीर की आवश्यकताएं है जिन्हें कभी भी नकारा नहीं जा सकता लेकिन आत्मा की भी कुछ आवश्कताएँ है, आत्मा का भी अलग पौष्टिक भोजन है जिसे किसी भी कीमत पर नकारना उचित नहीं होगा। साधनयुक्त, संयमित दिनचर्या,उत्कृष्ट विचार ही आत्मा का भोजन हैं, यही मनुष्य की आत्मा को निर्मल बनाने में सहायक होते हैं। जिस प्रकार स्वस्थ शरीर ही मनुष्य जीवन की क्रियाओं को करने में सक्षम होता है, ठीक उसी तरह स्वस्थ आत्मा उसके जीवन में आने वाली परिस्थितियों का सामना करने में सहायक होती है। अस्वस्थ एवं कमज़ोर आत्मा छोटी सी ख़ुशी मिलने पर एक दम उत्तेजित हो जाती है और असफलता मिलते ही टूट सी जाती है, उसे  सहन ही नहीं कर पाती है। 

यही कारण है कि मनुष्य जीवन को सफल एवं सार्थक बनाने का एकमात्र सूत्र आत्मा का परिष्कार ही है, जिसके लिए केवल साधना ही सबसे बड़ा साधन है। साधना ही आत्मा का भोजन है।  

इसलिए यह बहुत ही आवशयक है कि मनुष्य कभी भी स्वयं को कमजोर एवं तुच्छ न समझे क्योंकि तुच्छ समझना आत्महत्या से कम नहीं है। ऐसा इसलिए कहा गया है कि स्वयं को तुच्छ समझने का अर्थ है, परमात्मा को तुच्छ समझना क्योंकि मनुष्य उसी का तो अंश है। साधनारत मनुष्य कभी भी स्वयं को कमज़ोर नहीं मानता  क्योंकि परमात्मा स्वयं उसके साथ होते हैं। मनुष्य शरीर से तो रोगी और कमज़ोर  हो सकता है, किंतु आत्मा से बलवान रहना ही उसकी सबसे बड़ी संपदा है। 

अत: मनुष्य को चाहिए कि वोह  इस संपदा को, आत्मिक शक्ति को भलीभांति जान ले । यही असीम शक्ति, समस्त भौतिक विकास एवं गौरवशाली अतीत परिष्कृत चेतना का परिणाम है। मनुष्य का  आध्यात्मिक चिंतन जितना प्रखर होगा उतना ही वह  चेतना को पहचानेगा  और आचरण में उत्कृष्टता अपनाएगा । मनुष्य का अस्तित्व चेतना की नींव पर खड़ा है। शरीर को प्रयोग करके मनुष्य  जो काम लेता है, उसके पीछे उसकी चेतना का ही हाथ है। पंचतत्वों से निर्मित मनुष्य का  यह शरीर चेतना से ही तो Vibrate करता  है। अगर चेतना की मर्ज़ी न हो तो Heart vibrations, Brain functions सब धरे के धरे ही रह जाएंगें। 

यहाँ  एक बहुत ही साधारण सा उदाहरण देना उचित समझते हैं  कि अगर हमारी आत्मा, अंतःकरण, मन, चेतना ( चाहे जो भी नाम दे लें ) किसी  भोजन को ग्रहण करने को राज़ी न हो तो शरीर कभी भी उसे ग्रहण नहीं करेगा यानि चेतना is the driving force for Human body.

आत्मा और शरीर का निम्नलिखित रोचक वार्तालाप, उपरोक्त चर्चा को समझने में सहायक हो सकता है :   

सुबह के 4:00 बजे हैं आत्मा शरीर से कहती है, चलो उठो, साधना का समय हो गया है ।

शरीर: सोने दो न यार,क्यों तंग कर रही हो ? रात को बहुत देर से सोया था। व्हाट्सप्प के मैसेज देखते-देखते 3:00 बज गए थे, थोड़ी देर में उठता हूँ।  

आत्मा: ठीक है,शरीर भाई साहिब लेकिन मन ही मन सोचती है, मुझे भूख लगी है और ये है क़ि समझता ही नहीं।

6:00 बज गए शरीर तब भी उठा नहीं तो आत्मा फिर से शरीर  को जगाने का प्रयास करती है। 

आत्मा: अरे शरीर भाई,अब तो उठ जाओ, सूर्य देवता भी अपनी  किरणें  फैलाते हुए उठा रहे हैं, उठो न प्लीज।

शरीर: कितना परेशान करती हो। ठीक है उठ रहा हूँ, बस 5 मिनट और सोने दो ।

आत्मा छटपटा रही थी कि शरीर कब उठेगा और कब उसकी भूख को शांत करेगा।

5 मिंट बाद शरीर उठा, थोड़ी देर बाद, साधना में बैठने के लिए शरीर ने वक्त निकाला । 20-25 मिनट साधना में बैठा, आत्मा कुछ तृप्त ही हुई ही थी कि शरीर उठ कर चला गया।

आत्मा बोली:अरे-अरे, क्या हुआ, कहाँ  जा रहे हों, अभी तो मैं तृप्त हुई भी नहीं हूँ कि तुम उठ कर जा रहे हो। क्या हुआ भाई ? कहाँ जा रहे हो ?

शरीर:मुझे ऑफिस का काम है, घर का काम है, तुम्हारी समझ में तो आता ही नहीं ।

आत्मा:ठीक है, तो शाम को साधना करोगे न ?

शरीर ने झुंझलाते  होते हुए कहा: हाँ भई हाँ ।

आत्मा सारा दिन भूख से तड़पती रही । शाम हुई, आत्मा खुश हुई, चलो अब तो मेरी भूख का निवारण हो ही जायेगा। शरीर ऑफिस और घर के काम से कुछ फ्री हुआ ही था कि आत्मा आवाज देती है : अरे फ्री हो गए क्या? अब तो साधना के लिए चल ही सकते हो।

शरीर: क्यों सारा दिन तंग करती रहती हो ? देखती नहीं हो, मैं अभी ऑफिस और घर के कामों से फ्री हुआ हूँ, थक गया हूँ ।

आत्मा: अरे,मैं जानती हूँ  तुम थके हुए हो लेकिन जैसे ही साधना में  बैठोगे, तुम्हारी थकान चुटकी में दूर हो जाएगी।

शरीर: नहीं, नहीं, अभी नहीं, रात को पक्का बैठूँगा ।

शरीर की स्थिति बहुत ही खराब थी,आँखें नींद में भरी हुई, थकान से बुरा हाल, जैसे-तैसे आत्मा की ख़ुशी के लिए शरीर साधना में बैठा।

आत्मा की कुछ भूख शांत हुई ही थी कि शरीर की आँखे नींद से भर गईं। शरीर उठा और सोने के लिए जाने ही लगा था क़ि आत्मा बोल उठी: अरे अरे, क्या हुआ, क्यों उठ गए ? अभी ही तो  बैठे थे।

शरीर: मैं थक गया हूँ यार, कल सुबह को पक्का 4:00 बजे उठ कर साधना करूँगा ।

आत्मा ने कहा:तुम फिर से बहाना बना रहे हो, मुझे पता है,तुम नहीं उठोगे।

आत्मा दुःखी होकर चुप हो गई, तभी शरीर ने मोबाइल पर मैसेज देखा।

शरीर:अरे यह  मैसेज तो मेरे बेस्ट फ्रेंड का है, थोड़ी देर चैटिंग करके सोता हूँ ।

आत्मा मन ही मन सोचती है कि साधना के समय  तो इसे नींद आ रही थी और अब नींद कैसे गायब हो गई। इस मुर्ख को यह नहीं मालूम कि जिसके कारण इसका (शरीर का) अस्तित्व है, इसे उसकी ही परवाह नहीं।

आत्मा: खैर चलो कल देखते हैं।

कल  सुबह  4:00 बजे फिर आत्मा ने द्वार खटखटाया लेकिन शरीर फिर काम, काम और काम के बहाने बनाता रहा। सुबह से रात तक वही कोल्हू के बैल जैसी दिनचर्या,काम,काम और केवल काम। 

आत्मा इसी तरह सारा जीवन भूखी की भूखी रह जाती है। शरीर और आत्मा के इस अद्भुत वार्तालाप ने हमें निम्नलिखित पंक्तियाँ लिखने को प्रेरित किया है : 

अरे मूर्ख मानव, ईश्वर ने तुम्हें वर्षों के कड़े परिश्रम के बाद पशु से मानव बनाया, अपना राजकुमार बनाया लेकिन तू कोल्हू का बैल ही बना रहा।

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656   कमैंट्स और 13  युगसैनिकों से आज की  24 आहुति संकल्प सूची सुशोभित हो रही  है।आज का गोल्ड मैडल आदरणीय संध्या जी को जाता है।बहिन जी  को  गोल्ड मैडल जीतने की बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।     

(1),रेणु श्रीवास्तव-35,25=60,(2)नीरा त्रिखा-30,(3)सुमनलता-42,(4)सुजाता उपाध्याय-29,(5)चंद्रेश बहादुर-51,(6)मंजू मिश्रा-28,(7)सरविन्द पाल-32 ,(8)वंदना कुमार-25,(9) संध्या कुमार-68 ,(10)पूजा सिंह-24,(11) साधना सिंह-25,(12) अनुराधा पाल-24,(13) अरुण वर्मा-27          

सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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