वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

कल आरम्भ हुई Mental exercise का दूसरा  भाग 

https://youtu.be/nF6PqsTP0ZQ?si=MS_Uh... (हमारा साहित्य लोगों को पढ़ाइए)

6   जून 2024 का ज्ञानप्रसाद

युगऋषि पंडित श्रीराम शर्मा जी की 1940 में प्रकाशित प्रथम दिव्य रचना “मैं क्या हूँ ?” पर आधारित वर्तमान लेख श्रृंखला का केवल एक ही उद्देश्य है, “मैं क्या हूँ?” , प्रश्न  का उत्तर ढूंढना। आज इस लेख श्रृंखला का 20वां लेख प्रस्तुत किया जा रहा है। आज के ज्ञानप्रसाद लेख  में कल वाली प्रैक्टिकल Exercise का दूसरा  भाग प्रस्तुत किया गया है। हमें पूर्ण विश्वास है कि आज समापन हुई इस Exercise के बाद अपनी आत्मा का परमात्मा से सम्बन्ध जानने में ज़रा सी भी कठिनाई होगी और हम स्वयं ही जान जायेंगें कि “हम क्या हैं?” 

गुरुदेव की दिव्य पुस्तक के 30 पन्नों एवं तीन चैप्टर्स को 20 ज्ञानप्रसाद लेखों में समाहित करते हुए हमेंजो प्रसन्नता हो रही है उसका  शब्दों में वर्णन करना असंभव है। सोमवार को अंतिम सात पन्नों के चौथे चैप्टर से आगे बढ़ेंगें।    

आज हमने एक और नवीन प्रयोग किया है जिसके अंतर्गत “आज के ज्ञानप्रसाद का सन्देश” एक स्लाइड में संलग्न किया है। यह प्रयोग साथिओं को वर्तमान लेख श्रृंखला को समझने में आ रही कठिनाई को देखते हुए किया है, हो सकता है कुछ सहायता मिल सके। 

आज के लेख में दिए गए  फैक्ट्री वाले उदहारण को चरितार्थ करता एक चित्र संलग्न किया है।

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जब साधक अपनी “आत्मा का अनुभव” प्राप्त करने में सफल हो जाए तो समझ लेना चाहिए कि वोह सोता हुआ एवं भटका हुआ देवता है । वह अपने भीतर “प्रकृति की महासत्ता” धारण किए हुए है। प्रकृति की यह महासत्ता  कार्यरूप में परिणत होने के लिए हाथ बांधकर खड़ी हुई आज्ञा मांग रही है। 

गुरुदेव बता रहे हैं कि इस स्थिति तक पहुंचने में बहुत कुछ समय लगेगा परन्तु  आध्यात्मिक विकास की चेतना में प्रवेश करते ही आंखें खुल जाएगी। आगे का प्रत्येक कदम साफ होता जाएगा और प्रकाश प्रकट होता जाएगा । 

यह स्थिति बिल्कुल उस परीक्षार्थी की तरह  है जो सारा वर्ष भांति-भांति के प्रयास करके एक ही उद्देश्य को लेकर चला हुआ है कि उसे टॉप (Top) करना है। परिणाम आते ही, अपना नाम मैरिट लिस्ट में देखकर, उसके नेत्रों में  जो प्रकाश की किरण चमकती है उसे केवल अनुभव ही किया जा सकता है। यह वर्णन करने वाली  स्थिति नहीं होती, केवल अनुभव ही हो सकती है।    

आने वाले लेखों में हम यह भी जानेंगे कि मनुष्य की  “विशुद्ध आत्मा” भी स्वतंत्र नहीं बल्कि  परमात्मा का ही एक अंश है लेकिन उस ज्ञान को ग्रहण करने से पूर्व आप को अपने भीतर “अहम् की चेतना” लगानी  पड़ेगी ।

गुरुदेव कह रहे हैं : हमारी इस शिक्षा को केवल शब्द समझकर उपेक्षित मत करो । इस निर्मल व्याख्या को तुच्छ समझकर तिरस्कृत मत करो, यहाँ  एक बहुत सच्ची बात बताई जा रही है। आपकी आत्मा इन पंक्तियों को पढ़ते समय “आध्यात्मिक ज्ञान” की प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर होने की अभिलाषा कर रही है, उसका नेतृत्व ग्रहण करो और आगे को कदम उठाओ ।

अब तक बताई हुई मानसिक कसरतों का अभ्यास कर लेने के बाद आपको  “अहम्” से अलग हुए  पदार्थों का पूरा ज्ञान एवं अभ्यास हो गया होगा। इस सत्य को ग्रहण कर लेने के बाद स्वयं  को “मन एवं वृत्तियों का स्वामी” अनुभव करोगे और तब उन सब चीजों को पूरे बल और प्रभाव के साथ,एक नौकर की तरह  काम में लाने का सामर्थ्य प्राप्त कर लोगे |

इस महान तत्व की व्याख्या में हमारे यह विचार और शब्दावली हीन, शिथिल और सस्ते प्रतीत होंगे होंगे। यह विषय अनिर्वचनीय है। वाणी की गति वहाँ तक नहीं है। गुड़ का मिठास जबानी जमा-खर्च द्वारा नहीं समझाया जा सकता | हमारा प्रयत्न केवल इतना ही है कि आप ध्यान और दिलचस्पी की तरफ झुक पढ़ो और इन मानसिक कसरतों को करने के अभ्यास में लग जाओ। ऐसा करने से मन को वास्तविकता का प्रमाण मिलता  जाएगा और आत्मस्वरुप में दृढ़ता बनती जाएगी। 

जो साधक  समझते हैं कि मन ने उन्हें  ऐसी स्थिति में डाल दिया था  कि उनकी वृत्तियाँ उन्हें  बुरी तरह कांटों में घसीटें फिरती रहती थीं  और बुरी तरह से त्रास देकर दुःखी बनाती थीं,अब  इन दुःखों से छुटकारा पा जाएंगें  क्योंकि अब वोह सभी दुःखों के मूल  से परिचित हैं  एवं उनका शिकंजा कसने की योग्यता प्राप्त  कर चुके हैं। 

उपरोक्त पंक्तियों को और अच्छी तरह समझने के लिए  हम निम्नलिखित उदाहरण देना चाहेंगे :

किसी बड़ी फैक्ट्री में कई हज़ार  हॉर्स पावर (Horse power) वाला Power source  और उसके द्वारा संचालित होने वाली सैंकड़ों मशीनें एवं  उन मशीनों के असंख्य छोटे-छोटे कलपुर्जे किसी भी अनाड़ी को डरा दें। वह उस फैक्ट्री में घुसते ही हड़बड़ा जाएगा कि किसी पुर्जे में धोती फँस गई तो उसे छुटाने में घोर समस्या का सामना करना पड़ सकता है। धोती फसने के डर का कारण अनाड़ी मनुष्य का अज्ञान ही है क्योंकि उसी फैक्ट्री में काम करने वाला इंजीनियर जो मशीनों के एक-एक एवम छोटे से छोटे पुर्जे से परिचित है, उसे मशीनों के सारे सिद्धांतो का ज्ञान है और उसे तनिक भी डर न लगेगा। वह इंजीनियर गर्व के साथ उन दैत्याकार मशीनों पर ऐसे शासन करता दिखेगा जैसे कोई  महावत हाथी पर और कोई  सपेरा भयंकर विषधरों पर करता है। उसे इतने बड़े यंत्रालय का उत्तरदायित्व लेते हुए भय नहीं गर्व होता है। यह इंजीनियर हर रोज़ प्रसन्नतापूर्वक ड्यूटी समाप्त होने से पहले अपने बॉस को दिन भर की उपलब्धि बताते हुए गर्व महसूस करता है। उसकी फूली हुई छाती पर से सफलता का गर्व, साक्षात टपकता दिख रहा होता है। 

“अहम् और वृत्तियों” के  स्वरुप और संबंध को ठीक से जान लेने वाला इंजीनियर ही मनुष्य शरीर रूपी यन्त्र का कुशल संचालक है।

अधिक दिनों का अभ्यास और मन भी अद्भुत शक्ति देता है। जागृत मन ही नहीं, उस समय प्रवृत्त मन, गुप्त मन  भी शिक्षित हो गया होता है और वह जो आज्ञा प्राप्त करता है, उसे पूरा करने के लिए चुपचाप तब भी काम करता जाता है जब मनुष्य दूसरे  कामों में लगा होता हैं यां सोया होता है। सोये हुए मन में उठने वाली आज्ञा ही स्वप्न का रूप धारण करते हुए बाहिर आ जाती है। योगी की दृष्टि में यह अदृश्य सहायता है,अलौकिक करामात है। योगी जानता है कि यह मेरी अपरिचित योग्यता है। वह यह भी जानता है कि अभी उसके अंदर इससेअसंख्य गुना प्रतिभा सोई पड़ी है। वह योग साधना से इस प्रतिभा को  जागृत करने की क्षमता रखता है ,

संतोष और धैर्य धारण करो | कार्य कठिन है लेकिन इसके द्वारा जो पुरस्कार मिलता है, उसका लाभ बड़ा भारी है। यदि वर्षों के कठिन अभ्यास और मनन द्वारा भी आप शासक पद,सत्ता,महत्व,गौरव,शक्ति की चेतना प्राप्त कर सकें,तो भी यह प्रयास लाभदायक ही होगा। यदि आप हमारे विचारों  से सहमत हैं तो केवल  पढ़ कर ही संतुष्ट मत हो जाओ। अध्ययन करो, मनन करो, आशा करो, साहस करो और सावधानी तथा गंभीरता के साथ निम्नलिखित बीज मंत्र  के साथ इस साधना पथ की ओर कदम बढ़ाओ: 

मैं  सत्ता हूँ,मन मेरे प्रकट होने का उपकरण है।

मैं मन से भिन्न हूँ, उसकी सत्ता पर आश्रित नहीं हूँ ।

मैं मन का दास नहीं, शासक हूँ।

मैं बुद्धि, स्वभाव, इच्छा, और अन्य समस्त मानसिक उपकरणों को स्वयं से  अलग कर सकता हूँ। तब जो कुछ शेष रह जाता है,वह “मैं”  हूँ।

मैं अजर-अमर,अविकारी और एक रस हूँ।

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547 आहुतियां,11 समर्पित  साधक आज की  महायज्ञशाला को सुशोभित कर रहे हैं। आज आदरणीय चंद्रेश  जी ने 62, कल से भी अधिक,आहुतियां प्रदान करके को गोल्ड मेडलिस्ट का सम्मान प्राप्त किया है, उन्हें हमारी बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।       

(1)रेणु श्रीवास्तव-45,(2)वंदना कुमार-24,(3)सुमनलता-38,(4)सुजाता उपाध्याय-47, (5)नीरा त्रिखा-28,(6)चंद्रेश बहादुर-62,(7)राधा त्रिखा-31,(8)अरुण वर्मा-36,(9)मंजू मिश्रा-27,(10)संध्या कुमार-36,(11)सरविन्द पाल-29    


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