वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

ज्ञान तब तक ज्ञान नहीं है,जब तक इसका अनुभव न किया जाए- Mental exercise का प्रथम भाग 

https://youtu.be/nF6PqsTP0ZQ?si=MS_Uh... (हमारा साहित्य लोगों को पढ़ाइए)

5  जून 2024 का ज्ञानप्रसाद-

युगऋषि पंडित श्रीराम शर्मा जी की 1940 में प्रकाशित प्रथम दिव्य रचना “मैं क्या हूँ ?” पर आधारित वर्तमान लेख श्रृंखला का केवल एक ही उद्देश्य है, “मैं क्या हूँ?” , प्रश्न  का उत्तर ढूंढना। आज इस लेख श्रृंखला का 19वां लेख प्रस्तुत किया जा रहा है। पुस्तक के छोटे से तीसरे चैप्टर में प्रस्तुत की गयी प्रैक्टिकल Exercise का प्रथम भाग आज के लेख में प्रस्तुत किया गया है। दूसरा भाग कल प्रस्तुत किया जाएगा। 

चैप्टर के आरंभिक 3 पन्नों में गुरुदेव ने तीन प्रकार के मन: 1.प्रवृत मन, 2.प्रबुद्ध मन और 3.आध्यात्मिक मन की चर्चा की है। लेख को सरल एवं Easy-to-understand बनाने की दृष्टि से हमने  केवल आध्यात्मिक मन को ही आगे जारी रखना उचित समझा  क्योंकि जो Exercise गुरुदेव हमें करवाने जा रहे हैं उसका सम्बन्ध आध्यत्मिक मन से ही है। 

एक बार फिर लिख रहे हैं कि जो कुछ हम आजकल पढ़ रहे हैं उनकी व्याख्या शब्दों से कहीं परे है,इसी कारण कमेंट लिखने में समस्या आ रही है। हम सभी बहुत ही सौभाग्यशाली हैं कि एक-दूसरे  की सहायता से इतने जटिल विषय का ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं। विद्यार्थिओं में देखा गया है जो विषय ज़रा सा भी कठिन लगे, उसे छोड़ ही देते हैं। हमारे इस परिवार में ऐसा  कुछ नहीं है, हम किसी Exam के लिए नहीं बल्कि सही ज्ञान के लिए पढ़ रहे हैं।        

कल का ज्ञानप्रसाद पोस्ट होने के कुछ देर बाद आदरणीय सुजाता बहिन जी ने कमेंट किया और हमें प्रश्न किया कि हम कहते हैं कि हम शरीर नहीं आत्मा हैं तो क्या ब्रह्म और आत्मा एक ही हैं ? हमने इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्हें लिखा कि अपने साथिओं के कमैंट्स से आपको बहुत कुछ मिल जायेगा। उस समय आदरणीय चंद्रेश जी का कमेंट भी पोस्ट हो चुका था, हमने बहिन जी को यह भी बता दिया एवं अन्य कमेंट भी ट्रैक करते रहे। हमें विश्वास है कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार योग्य/शिक्षित साथिओं का जमावड़ा है और कमेंट-काउंटर कमेंट शक्ति हमें (हमें भी) बहुत कुछ सिखा रही है। हम इस प्रक्रिया को under-estimate नहीं कर सकते।

 इन लेखों में प्रस्तुत की  जा रही  शिक्षा को शब्दों की बेड़ियों में बाँध कर उपेक्षित करना उचित नहीं होगा। इस निर्मल व्याख्या को तुच्छ समझकर तिरस्कृत करना भी कोई अच्छी बात नहीं है। इस अभ्यास में एक बहुत सच्ची बात बताई जा रही है जिसकी व्याख्या में हमारी शब्दावली हीन, शिथिल और सस्ती प्रतीत होगी । यह सारा विषय गूंगे के गुड़ जैसा है। गुड़ की मिठास  जबानी जमा-खर्च द्वारा नहीं समझाई जा सकती। हमारा प्रयत्न केवल इतना ही है कि आप ध्यान और दिलचस्पी से विषय की ओर  झुक पड़ो  और गुरुदेव द्वारा प्रस्तुत की गयी “मानसिक कसरत (Mental exercise)” को करने के अभ्यास में लग जाओ। ऐसा करने से मन को वास्तविकता का प्रमाण मिलता जाएगा और “आत्मस्वरुप में दृढ़ता” बढ़ती जाएगी। यहाँ पर ऐसा कहना भी उचित ही होगा कि जब तक स्वयं अनुभव न हो जाए, तब तक ज्ञान, ज्ञान नहीं है। एक बार जब आप को सत्य के दर्शन हो जाएंगे, तो वह फिर दृष्टि से ओझल नहीं हो सकेगा और कोई भी तर्क, वाद-विवाद उस पर विश्वास नहीं कर सकेगा। 

इसी प्रस्तावना के साथ,आइए  गुरुचरणों में अपना स्थान सुरक्षित करके गुरुशिक्षा का आनंद उठाएं।

************  

सुख और शांतिपूर्वक स्थित होकर आदर के साथ उस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए बैठो जो उच्च मन की उच्च कक्षा द्वारा आपको प्राप्त होने को है ।

पिछलें पाठ में आपने समझा था कि जिसे हम “मैं” कह रहे हैं वोह शरीर से परे कोई “मानसिक वस्तु” है, एक ऐसी वस्तु जिसे केवल मानसिक पटल पर ही अनुभव किया जा सकता है, इसी मानसिक वस्तु में विचार, भावना, वृत्तियाँ भरी हुई है। 

विचार और भावना से तो हमारे लगभग सभी साथी परिचित होंगें ही लेकिन वृतियाँ क्या होती हैं, आइए आगे जाने से पहले इसे भी समझ लिया जाए। वृत्ति शब्द वृत्त से बना है जिसे इंग्लिश में Circle कहते हैं। मनुष्य अपनी इच्छाओं, आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए, जीवनभर एक चक्रवात में चक्र खाता  रहता है, पता नहीं कब जीवन का अंत हो जाता है।    

गुरुदेव बता रहे हैं कि आपको अनुभव करना होगा कि यह सभी  वस्तुएँ आत्मा से भिन्न है | विचार करो कि द्वेष, क्रोध, ममता, ईर्ष्या, घृणा, उन्नति आदि की असंख्य भावनायें “मस्तिष्क” में आती रहती हैं। आप  एक-एक करके इन्हें अलग कर सकते हो, इनकी जाँच कर सकते हो, विचार कर सकते हो, खंडित कर सकते हो, उनके उदय, वेग और अंत को भी जान सकते हो। कुछ दिन के अभ्यास के बाद, आप अपने विचारों की परीक्षा करने का ऐसा अभ्यास प्राप्त कर लोगे, मानो अपने किसी दूसरे मित्र की भावनाओं के उदय, वेग और अंत का परीक्षण कर रहे हो। यह सब भावनाएं आपके चिंतन केंद्र में मिलेगी। आप उनके स्वरुप का अनुभव कर सकते हो और उन्हें टटोल तथा हिला-डुलाकर देख सकते हो| अनुभव करो कि यह भावनाएं आप नहीं हूँ। यह केवल ऐसी वस्तुएँ हैं जिन्हें आप मन के थैले में लादे फिरते हो। अब उन्हें त्यागकर “आत्मस्वरुप की कल्पना” करने का समय है । इन पंक्तिओं को पढ़ते समय आप उन मानसिक वस्तुओं को,जिनकी ज़ंजीरों ने आपको जकड़े रखा है,अलग करने का विचार कर रहे हो, इसी से सिद्ध होता है कि यह वस्तुएँ आप से पृथक है। पृथकत्व की भावना अभ्यास द्वारा थोड़े समय बाद लगातार बढ़ती जाएगी और शीघ्र ही एक “महान आकार” में प्रकट होगी।

यह मत सोचिए कि हम इस शिक्षा द्वारा यह बता रहे हैं कि भावनाएं कैसे त्याग करें ? यदि आप इस शिक्षा की सहायता से बुरी आदतों को त्याग करने की क्षमता प्राप्त कर सको तो बहुत बड़ी बात है। हमारा यह मंतव्य नहीं है, हम इस समय तो यही सलाह देना चाहते हैं कि अपनी बुरी भलीं दुर्वृतियों को जहाँ की तहाँ रहने दो और ऐसा अनुभव करो कि “अहम्” इन सब से परे एवं स्वतंत्र है।  जब आप “अहम्’ के महान स्वरूप” का अनुभव कर लो, तब लौट आओ और उन वृत्तियों को जो अब तक आपको अपना दास बनाए हुए थीं, एक मालिक की भांति सकारात्मक  उपयोग में लाओ। अपनी वृत्तियों को “अहम्” से परे के अनुभव में पटकते समय डरो मत, अभ्यास समाप्त करने के बाद फिर लौट आओगे और उनमें से सकारात्मक  वृत्तियों को इच्छानुसार काम में ला सकोगे। आप अनुभव करोगे कि  अमुक वृत्ति ने मुझे बहुत अधिक बांध रखा है,उससे कैसे छूटकारा हो  सकता है।  इस प्रकार की चिंता मत करो, ये चीजें  बाहर की है। इनके बंधन में बंधने से पहले भी  “अहम्” था और बाद में भी बना रहेगा।  जब आप स्वयं  को अलग  करके उनका परीक्षण कर सकते हो, तो कोई  कारण नहीं  है कि एक ही झटके में उठा कर अलग फेंक नहीं  सकोगे।  ध्यान देने योग्य बात यह है कि आप इस बात का अनुभव और विश्वास कर रहे हो कि मैं बुद्धि और शक्तियों का उपभोग कर रहा हूँ। यही “मैं” जो शक्तियों का उपकरण मानता है, मन का स्वामी “अहम्” है।

उच्च आध्यात्मिक मन, साधारण मन के मुकाबले में ईश्वरीय भूमिका के समान है। जिन तत्वदर्शीयों ने अहम्-ज्योति का साक्षात्कार किया है और जो विकास की उच्च सीमा तक पहुंच गए हैं, वे योगी बतलाते हैं कि “अहम्” आध्यात्मिक मन से भी ऊपर रहता है और उसको अपनी ज्योति से प्रकाशित करता है। आध्यात्मिक मन के प्रकाश की तुलना पानी पर पड़ते  हुआ सूर्य से की जा सकती है। पानी के ऊपर सूर्य का प्रतिबिम्ब सूर्य जैसा ही मालूम पड़ता है सिद्ध पुरुषों  का अनुभव है कि वह केवल धुँधली तस्वीर होती  है | चमकता हुआ “आध्यात्मिक मन” यदि प्रकाश बिंब है तो “अहम्” अखंड ज्योति है। “अहम्”  उच्च आध्यात्मिक  मन में होता हुआ आत्मिक प्रकाश पाता है, इसी से वह इतना प्रकाशमय प्रतीत होता है। अहम् उस प्रकाशमणि के समान है, जो स्वयं सदैव समान रुप से प्रकाशित रहती है, किन्तु कपड़ों से ढकी रहने के कारण अपना प्रकाश बाहर लाने में असमर्थ होती है। जैसे-जैसे आवरण  हटते जाते हैं, वैसे,वैसे प्रकाश अधिक स्पष्ट होता जाता है। 

इस चेतना में ले जाने के पीछे गुरुदेव का केवल  इतना ही अभिप्राय है कि हम  एक समुन्नत आत्मा बन जाएँ  और अपने उपकरणों का ठीक उपयोग करने लगे। जो पुराने,अनावश्यक, रद्दी और हानिकर श्रृंगार की वस्तुएं हैं, उन्हें उतार कर फेंक सकें  और नवीन एवं अद्भुत क्रियाशील उपकरणों  द्वारा अपने वर्तमान के कार्यों को सुंदरता और सुगमता के साथ पूरा कर सकें। 

इस स्टेज पर गुरुदेव हमें स्वयं को सफल एवं विजयी घोषित करने को कह रहे हैं। गुरुदेव कहते हैं कि  इतना अभ्यास और अनुभव कर लेने के बाद आप पूछोगे कि अब क्या बचा है  जिसे “अहम्” से भिन्न न गिनें ? इसके उत्तर में कहते हैं, “विशुद्ध आत्मा।” इसका प्रमाण यह है कि अपने “अहम” को शरीर, मन आदि सब वस्तुओं से पृथक करने का प्रयत्न करो | छोटी चीजों से लेकर उससे सूक्ष्म से सूक्ष्म, उससे परे से परे वस्तुओं को छोड़ते-छोड़ते विशुद्ध आत्मा तक पहुँच जाओगे | क्या अब इस से भी परे कुछ हो सकता है ? कुछ नहीं । विचार करने वाला, परीक्षा करने वाला और परीक्षा की वस्तु दोनों एक वस्तु नहीं हो सकते। सूर्य अपनी किरणों द्वारा अपने ऊपर नहीं चमक सकता। आप विचार और जाँच की वस्तु फिर भी आपकी चेतना कहती है कि “मैं हूँ”, यही आत्मा के अस्तित्व का प्रमाण है।

अपनी कल्पना शक्ति, स्वतंत्रता शक्ति लेकर इसे अहम्’ को पृथक करने का प्रयत्न कर लीजिए, परंतु फिर भी हार जाओगे और उससे आगे नहीं बढ़ सकोगे। अपने को मरा हुआ नहीं मान सकते क्योंकि मरा तो शरीर है, आत्मा तो अविनाशी है। 

*****************

465  आहुतियां,9 साधक आज की  महायज्ञशाला को सुशोभित कर रहे हैं। आज आदरणीय चंद्रेश  जी ने  52  आहुतियां प्रदान करके को  गोल्ड मेडलिस्ट का सम्मान प्राप्त किया है, उन्हें हमारी बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।       

(1)रेणु श्रीवास्तव-45,(2) वंदना कुमार-24,(3)सुमनलता-25,(4)सुजाता उपाध्याय-32, (5)नीरा त्रिखा-29  ,(6)चंद्रेश बहादुर-52,(7)राधा त्रिखा-29,(8)अरुण वर्मा-35,(9)मंजू मिश्रा-25,  


Leave a comment