वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

कल वाले प्रैक्टिकल को करने के लिए ज्ञान की आवश्यकता।

https://youtu.be/nF6PqsTP0ZQ?si=MS_Uh… (हमारा साहित्य लोगों को पढ़ाइए)

4 जून 2024 का ज्ञानप्रसाद

युगऋषि पंडित श्रीराम शर्मा जी की 1940 में प्रकाशित प्रथम दिव्य रचना “मैं क्या हूँ ?” पर आधारित वर्तमान लेख श्रृंखला का केवल एक ही उद्देश्य है, “मैं क्या हूँ?” , प्रश्न का उत्तर ढूंढना। आज इस लेख श्रृंखला का 18वां लेख प्रस्तुत किया जा रहा है लेकिन अभी तक हम केवल 2 चैप्टर ही पूरे कर पाए हैं। तीसरे चैप्टर में प्रस्तुत की गयी प्रैक्टिकल exercise को करने से पहले जिस ज्ञान को प्राप्त करना आवश्यक है उसी को आज के लेख में प्रस्तुत किया गया है।

परम पूज्य गुरुदेव की दिव्य वाणी में शार्ट वीडियो जिसे हम हर ज्ञानप्रसाद के साथ संलग्न करते आ रहे हैं, उस पर आधारित हमारा निवेदन है कि ज्ञानप्रसाद लेखों को पढ़कर ही, उसके कंटेंट पर आधारित ही कमेंट करें, यही उस दरवेश गुरु के प्रति सच्ची श्रद्धा-भक्ति होगी। आजकल चल रही लेख श्रृंखला को समझना अवश्य ही कठिन है लेकिन बिलकुल ही न जानने से बेहतर है कि कुछ तो जान ही लें। इसलिए निवेदन है कि जितना भी समझ आ सके अवश्य ग्रहण करने का प्रयास किया जाए ताकि अगली बार फिर से इस पुस्तक को पढ़ें तो समझने में आसानी हो जाए। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि ज्ञानप्राप्ति का अटल सिद्धांत है कि यह कभी भी गायब नहीं होता, हमारे मस्तिष्क की हार्ड डिस्क में save रहता है और उस परम पिता ने मस्तिष्क की हार्ड डिस्क में इतनी Memory भर दी है कि मनुष्य ख़तम हो जायेगा लेकिन Memory ख़तम नहीं होगी। इन्हीं शब्दों के साथ हमारे पग उस गुरु की ओर आकर्षित हुए जा रहे हैं जहाँ दिव्य गुरुकक्षा चल रही है।

जय गुरुदेव

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परम पूज्य गुरुदेव ने इस पुस्तक में समाहित ज्ञान के बारे में उठ रही शंकाओं के सन्दर्भ में लिखा है कि

अहं ब्रह्मास्मि” का अर्थ क्या है ? ब्रह्म के बारे में ज्ञान इतना विस्तृत है, विशाल है कि इसे समझ पाना साधारण ज्ञान से संभव ही नहीं है।अवश्य ही इसे समझ पाने के लिए किसी उच्चस्तरीय गुरु की आवश्यकता है। हमारे गुरुदेव तो उच्चस्तरीय तो हैं हीं लेकिन हमारा ज्ञान तो बहुत ही निम्न स्तर का है।

आइए “अहं ब्रह्मास्मि” को निम्नलिखित उदाहरण से समझने का प्रयास करते हैं: मान लीजिये इस पृथ्वी पर दो व्यक्ति हैं जो एक दुसरे से अधिकतम दूरी पर निवास कर रहे हैं। दोनों में परिवार, संस्कृति,सभ्यता, भाषा आदि के नाम पर कुछ भी समानता नहीं है। अब इन दोनों ने अपनी-अपनी जगह भूमि पर एक गड्ढा खोदना शुरू किया। दोनों जानते हैं कि बहुत समस्या आयेंगी। शायद कुछ समय बाद उनको अनुभव होगा कि हम पृथ्वी के गर्भ में पँहुच गए हैं, अब और क्या खोदना लेकिन वोह फिर भी खोदना जारी रखते हैं।

इस स्थिति को समझने के लिए हमें अपनी तार्किक बुद्धि और वैज्ञानिक प्रवृति को एक तरफ रखना पड़ेगा। सिद्धांत रूप से दोनों व्यक्ति, पृथ्वी के गर्भ में किसी एक बिंदु पर पँहुच कर के मिल जायेंगे। भौतिक जगत में ऐसी स्थिति को सिंग्युलैरिटी (Singularity) कहते हैं। Singularity ऐसे बिंदु को कहते हैं जहाँ अलग-अलग व्यक्ति एक ही दिशा में यात्रा करने पर अंत में एक ही बिंदु पर आ जाते हैं, जिसके आगे अकेले यात्रा सम्भव नहीं हो पाता है।

अध्यात्म के क्षेत्र में जब विचार मंथन से व्यक्ति अपने स्थापित विचारों की समस्या से लड़ता हुआ गहराई में उतरता जाता है तो विचारों की भी एक सिंग्युलैरिटी आती है। “अहम् ब्रह्मास्मि” यानि मैं ही वोह सिंग्युलैरिटी है, जहाँ “व्यक्ति और जगत” एक बिन्दु पर आ जाते हैं ।

अहम् ब्रह्मास्मि केवल इतना ही समझ लेने वाली बात नहीं है कि “मैं ब्रह्म हूँ।” यह स्वयं को ब्रह्म मानने वाली बात नहीं है दूसरे को भी ब्रह्म की तरह समझ लेने की बात है। “अहम् ब्रह्मास्मि” का उपयोग तत्वमसि (तू भी वही है) को समझ लेने में है। सोहम शब्द का अर्थ समझने के लिए उलट कर देखें तो “हम सा” भी हो सकता है, हालाँकि “हम सा” और उल्ट “हम सो” में बहुत ही थोड़ा सा अंतर् है।

अहम का अर्थ अहंकार भी होता है तो इस बात का अहंकार क्यों न करें कि मैं ब्रह्म जैसा हूँ , मुझ में ही वही सब शक्तियां समाई हैं जो परमात्मा में हैं।

हमने यह तो लिख दिया कि मैं ब्रह्म हूँ लेकिन ब्रह्म को जानने से पहले यह जानना आवश्यक है कि “ब्रह्म क्या नही है ?”

यहां यह देखने वाली बात है कि बजाए इस प्रश्न के कि “ब्रह्म क्या नहीं है?” यह प्रश्न क्यों नहीं किया गया कि “ब्रह्म क्या है?”

उपनिषदों में गुरु और शिष्य के मध्य वार्तालाप के माध्यम से ज्ञान की खोज की गयी है वहाँ शिष्य गुरु से प्रश्न करता है लेकिन गुरु शुरू से ही “न” में उत्तर देते हैं । उदाहरण के लिए शिष्य गुरु से पूछता है कि ईश्वर क्या है ? तो गुरु स्वयं उत्तर न देकर शिष्य से उत्तर मांगते हैं। शिष्य कुछ बताना आरम्भ करेगा जैसे कि शिष्य ने बोला कि ईश्वर वह है जिसने इस संसार की रचना की है, तब गुरु केवल इतना ही बोलेंगें, ”नहीं , यह सही नहीं है।” इस तरह गुरु शिष्य को तब तक बताते जाएंगें जब तक शिष्य अपने मस्तिष्क के सारे विचारों को बोलकर हार न मान ले।

यह प्रक्रिया जिसमें ज्ञान की चर्चा “हाँ” के स्थान पर “न” से आरम्भ की जाती है इसे “नेति-नेति” प्रक्रिया कहते हैं।

शिष्य के उत्तर के अनुसार ईश्वर इस संसार के रचयिता नहीं हैं तो और क्या हैं ? वह कर्मो का हिसाब रखने वाले भी नही हैं तो और क्या हैं? गुरु जब देख लेते हैं कि शिष्य ने सीमित ज्ञान और बुद्धि के आधार पर जो धारणा बनाई हुई है वोह गलत है। ईश्वर का अस्तित्व, संसार में पाए जाने वाले गुणों से, अच्छाई-बुराई से परे हैं। परे को इंग्लिश में beyond कहते हैं।

ब्रह्म को परिभाषित करना तो असंभव ही है क्योंकि गुरुदेव इस पुस्तक में कई बार समझा चुके हैं कि जब आत्मा की बात हो रही हो तो आत्मिक स्तर से ही सोचना चाहिए। तर्क और शब्द इस चर्चा के लिए लंगड़े और अपाहिज हैं। हमारे जैसे बेसिक स्तर के शिष्यों के लिए तो इतना कहना ही काफी होगा कि “ब्रह्म जैसा इस ब्रह्मांड में कुछ भी नही है लेकिन वह “ब्रह्म” इस ब्रह्मांड के हर कार्य का कारण है ।” अगर हम ब्रह्माण्ड को ब्रह्म का ही एक खंड कहें तो शायद कुछ सरल हो जाए। अब एक और प्रश्न उठता है की जान ब्रह्माण्ड ही असीमित है तो ब्रह्म की सीमा कहाँ होगी। आइए निम्नलिखित उदाहरण से समझने का प्रयास करें:

बहते हुए पानी को देखकर आप के मन में क्या विचार आता है ? गतिज ऊर्जा (Kinetic energy). उबलते पानी से पानी की भाप में क्या है? तापीय ऊर्जा (Thermal energy). सूरज की रोशनी में क्या है? सौर ऊर्जा(Solar energy). भोजन से आप को क्या मिलती है ? रासायनिक ऊर्जा (Chemical energy). रसायनिक ऊर्जा से शरीर के सारी हरकतें चलती है, इसे यांत्रिक ऊर्जा (Mechanical energy) कहते हैं।कल ही हमनें पढ़ा था कि हमारा शरीर एक यंत्र है।

ऊर्जा के अनेक रूप हैं यानि ऊर्जा अनेक रूपों में विद्यमान है , यह सभी रूप एक दूसरे से अलग नही हैं। थर्मल ऊर्जा से बनी बिजली या झरने से गिरते पानी से टर्बाइन से बनी बिजली में कोई फर्क है क्या ? यूरेनियम से बनने वाली ऊर्जा को परमाणु ऊर्जा( Nuclear energy) कहते हैं। कचड़े से बनी बिजली भी कोई अलग नही है। अभी कुछ दिन पहले ही आदरणीय डॉ सुमति पाठक बता रही थीं कि Energy can never be created nor destroyed, it only changes. अब आप इस बिजली यानि ऊर्जा को “ब्रह्म” मानिए, जो सभी जगह व्याप्त है लेकिन भौतिक अवस्था मे देखा जाय तो दो ऊर्जाओं में अंतर दिखता है जैसे बहते पानी की गतिज ऊर्जा (Kinetic energy) और कोयले की ऊर्जा में फर्क दिखता है।इसको ऐसे भी बोला गया है “सत्य ज्ञान अंनत ब्रह्म ” अर्थात सच्चा ज्ञान ही ब्रह्म है।

एक बार ऊर्जा के नजरिए से देखिए तो आप को धरती में जल,भोजन,तेल, सूरज से लेकर ब्रह्मांड में डार्क एनर्जी जैसे अनन्त रूप दिखेंगे सभी मे फर्क दिखता है लेकिन क्या यह फर्क यथार्थ में, असल में है ? आदि शंकराचार्य इसी अलग दिखने की बात को “माया,भ्रम” बोलते हैं। माया अर्थात जो है भी और नहीं भी। जो सच्चाई है उसको ब्रह्म बोलते है यानि वही ऊर्जा आप के लिए “अहम ब्राह्मास्मि” है। दरअसल यह मनुष्य को बोध कराता है कि दो मनुष्यों में भेद नही हो सकता है ।

इसको आप भारत की व्यवस्था से जोड़कर देखिए। भारतीय संस्कृति ऊंच-नीच के विरुद्ध है लेकिन हम देखते हैं कि किस तरह छुआछूत करके अपनी ही संस्कृति के विरूद्ध आचरण होता है। मनुष्यों में ऊंच-नीच का भाव नही होना चाहिए लेकिन फिर भी सभी करते हैं।

हमने यह माना ही नही है कि अंतिम सत् जिसे हम ब्रह्म जानते हैं, किसी एक व्यक्ति को ज्ञान देने से नहीं आएगा। हमें यह मानना पड़ेगा कि जिस प्रकार अनेकों प्रकार की ऊर्जा एक ही हैं, सभी व्यक्ति अंतिम सत से जुड़ जाएँ। जुड़ने का यह बंधन यानि माया जो उदहारण में अलग-अलग दिख रहा था उससे मुक्त हो जाय। ऐसे में यह मुक्ति ज्ञान व कर्म के माध्यम से ही संभव है न कि किसी चमत्कार से। ऐसे में सभी लोग उस ज्ञान को जान सकते है क्योंकि आप में और उस ब्रह्म में क़ोई अंतर नहीं है I

एक निराश व्यक्ति जब जिंदगी में हार कर थक जाए और दूसरों को सफल होते देखकर दुःखी हो तो उसे एक बार विचार करना चाहिए कि क्या मुझ में भी उतनी ही क्षमता है जितनी दूसरों में है । बस जरूरत सिर्फ इतनी ही है कि स्वयं को जानें,सदैव इस प्रश्न का उत्तर ढूंढने का प्रयास करें कि “मैं क्या हूं ?” स्वयं को जानने का ज्ञान प्राप्त करूं,प्राप्त ज्ञान को सत्कर्मों में लगाऊं क्योंकि “अहम ब्रह्मास्मि” यानि मैं ही ब्रह्म हूँ, मैं उस ब्रह्म से अलग नही हूं, एकदम बराबर हूं।

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437 आहुतियां,9 साधक आज की महायज्ञशाला को सुशोभित कर रहे हैं। आज आदरणीय अरुण वर्मा जी ने दो यज्ञ कुंडों पर आहुतियां प्रदान करके को गोल्ड मेडलिस्ट का सम्मान प्राप्त किया है, उन्हें हमारी बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्। (1)रेणु श्रीवास्तव-26,(2)संध्या कुमार-32 ,(3)सुमनलता-28 ,(4)सुजाता उपाध्याय-24, (5)नीरा त्रिखा-24 ,(6)चंद्रेश बहादुर-37 ,(7 )राधा त्रिखा-30 ,(8 )अरुण वर्मा-24+30=54, (9 )अनुराधा पाल-26


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