https://youtu.be/ZrsM5vSUbjA?si=FxNuOBVm38pMYhth( पावन बना दो हे देव सविता)
https://youtu.be/nF6PqsTP0ZQ?si=VFRPACi5qxs7li7-(हमारा साहित्य लोगों को पढ़ाइए)
28 मई 2024 का ज्ञानप्रसाद
परम पूज्य गुरुदेव की 1940 की प्रथम दिव्य रचना “मैं क्या हूँ ?” पर आधारित वर्तमान लेख श्रृंखला का 14वां लेख आज प्रस्तुत किया गया है, सभी लेखों के पीछे केवल एक ही उद्देश्य है, “मैं क्या हूँ?” प्रश्न का उत्तर ढूंढना।
आज के लेख में गुरुदेव एक प्रैक्टिकल करा रहे हैं, सही अर्थों में प्रैक्टिकल का शुभारम्भ तो तो कल ही हो पाएगा लेकिन आज का लेख बता रहा है कि उसके लिए कौन-कौन सी तैयारी करनी है।
आदरणीय सुमनलता बहिन जी ने आज के कमेंट लिखा था कि गुरुदेव द्वारा रचित पुस्तक भले ही 40 पन्नों की है लेकिन इसमें संचित ज्ञान असीमित है, जिसे समझने में जीवन भी काम पद जाएगा। इसी संदर्भ में अरुण वर्मा जी ने लिखा था कि एक-एक शब्द, एक एक लाइन को पढ़ते हुए उनके ऊपर चर्चा करना बहुत ही दुर्लभ/कठिन सा कार्य है।
दोनों कमैंट्स के बारे में हम इतना ही कह सकते हैं कि हमें स्वयं समझ पाना कठिन हो रहा है कि हम कौन से लोक की यात्रा कर रहे हैं, इतने विस्तृत और रोचक विषय पर चर्चा कर पाना केवल गुरुकृपा से ही संभव हो सकता है।
आज के लेख का शुभारम्भ करने से पूर्व दो बातें करना आवश्यक समझ रहे हैं।
पहला विषय हमारा Research Quiz है जिसके बारे में निम्नलिखित विचार व्यक्त कर रहे हैं :
साथियों को Quiz देकर उत्तर ढूंढने का प्रयास करने के पीछे हमारा क्या उद्देश्य था ?
हम यह जानने का प्रयास कर रहे थे कि
1.गुरुदेव के साहित्य को समझकर, उसका सरलीकरण करके,उदाहरणों संग, साथियों के समक्ष प्रस्तुत करने में हमें कितनी सफलता मिल रही है ?
2.जिस भावना से गुरुदेव ने साहित्य की रचना की है, क्या वही भावना साथियों के ह्रदय में उतर रही है ? यां गुरुदेव कुछ कह रहे हैं और हम कुछ और ही समझ रहे हैं?
3.क्या गुरुदेव के हृदय के तार हमारे हृदय के तारों से कनेक्ट होकर स्पार्क पैदा कर रहे हैं?
4.क्या हम उसी श्रद्धा और भावना के साथ गुरुदेव का ज्ञान अर्जित कर रहे हैं जैसे वोह चाहते हैं ?
5.कहीं ऐसा तो नहीं कि हम गुरुदेव के विचारों का गलत अर्थ निकाल कर गलत शिक्षा का प्रचार/प्रसार कर रहे है।
शनिवार और सोमवार, दो दिन की रिसर्च से इन प्रश्नों का उत्तर निम्नलिखित मिला:
सभी साथियों ने इस Quiz में भाग नहीं लिया लेकिन जितनों ने भी लिया, सभी के प्रयास गुरुदेव की आशा पर पूर्ण उतरे जिसके लिए सभी “गुरुदेव की बधाई” के पात्र हैं । गुरुदेव जैसे Hard task master से बधाई मिलना, कोई साधारण achievement नहीं है, हमारी तरफ से भी Quiz के सभी participants को बधाई।
दूसरा विषय हमारे समर्पित सहयोगी आदरणीय अरुण वर्मा जी एवं आदरणीय नील कमल जी की वैवाहिक वर्षगांठ से सम्बंधित है। परिवार की तरफ से आज 28 मई 2024 को उनकी 28वीं वर्षगांठ की हार्दिक शुभकामना एवं बधाई।
तो आइए अब चलते है गुरुकक्षा की और।
आत्मा के पास तक पहुंचने के जो साधन हमारे पास मौजूद हैं, वह अंतःकरण,मन,बुद्धि आदि ही हैं। आत्मदर्शन की साधना इन्हीं के द्वारा हो सकती है। आत्मा का वास शरीर में सर्वत्र है। कोई विशेष स्थान के लिए नियुक्त नहीं है, जिस पर किसी साधन विशेष का उपयोग किया जाए। जिस प्रकार आत्मा की आराधना करने में मन, बुद्धि आदि ही समर्थ हो सकते हैं, उसी प्रकार उनके स्थान और स्वरुप का दर्शन मानसलोक में प्रवेश करने से ही हो सकता है। मानसलोक भी स्थूल लोकों की ही तरह है एवं उसमें इसी बाहरी दुनिया की अधिकांश छाया है। अभी हम कोलकाता का विचार कर रहे हैं, अभी हिमालय पहाड़ की सैर करने लगे। अभी जिसका विचार किया था, वह स्थूल कोलकाता और हिमालय नहीं थे, बल्कि मानसलोक में (मन में) स्थित उनकी छाया थी क्योंकि हम न तो कोलकाता गए और न ही हिमालय पर्वत पर, यह छाया असत्य नहीं हो सकती (हमारी छाया हमसे अलग तो नहीं हो सकती है न)। पदार्थों का सच्चा अस्तित्व हुए बिना कोई कल्पना नहीं हो सकती। कोलकाता का अस्तित्व होने के कारण ही हम मन में उसकी कल्पना कर पाते हैं।
इसलिए यह कहना उचित है कि मानसलोक को भ्रम नहीं समझना चाहिए। यही वह “सूक्ष्म चेतना” हैं, जिसकी सहायता से दुनिया के सारे काम चल रहे हैं।
एक दुकानदार को जिस प्रदेश से माल खरीदने जाना है, वह पहले उस प्रदेश की यात्रा मानसलोक में करता है और मार्ग में कठिनाइयों को देख लेता है, तदनुसार उन कठिनाइयों को दूर करने के प्रबंध करता है।
इसी सन्दर्भ में कहा जा सकता है कि “उच्च आध्यात्मिक चेतनाएँ” मानसलोक से ही आती है, हमारे मन में ही तो निम्नलिखित से विचार उठते हैं :
1)किसी के मन में क्या भाव उठ रहे हैं ?
2)कौन हमारे प्रति क्या सोचता है ?
3)कौनसा संबंधी कैसी दशा में है ?
मानसलोक ने उठने वाली प्रक्रिया इतनी शक्तिशाली है कि मनुष्य अधिकतर बातों को मानसलोक में प्रवेश कराकर 80% बातों को ठीक-ठीक जान लेता है।
यह तो साधारण लोगों के कामकाज की मोटी-मोटी बातें हुई। लोग भविष्य को जान लेते हैं, भूतकाल का हाल बताते हैं, परोक्षज्ञान रखते हैं, सब ईश्वरीय चेतनाएँ मानसलोक से आती है। उन्हें ग्रहण करके जीभ द्वारा प्रकट कर दिया जाता है। यदि मानसिक इन्द्रियाँ न हुई होती, तो मनुष्य,विज्ञान की सहायता से बनाया गया एक चलता-फिरता पुतला होता जिसे आज की भाषा में Robot कहा जाता है।
Artificial intelligence (AI) आज के प्रगतिशील युग का ऐसा आविष्कार है जिसके द्वारा Robots को बिल्कुल मानव की भांति कार्य करते हुए दिखाया जा रहा है। Robots का अविष्कार 6-7 दशक पुराना होने के बावजूद, अभी तक इस प्रश्न का उत्तर नहीं मिल सका है कि Robots में मनुष्यों की भांति भावनाएं भी होती हैं, उन्हें भी दर्द वगैरह होता है कि नहीं।अभी तक उनके बारे इतना ही कहा जा रहा है कि Robots मानव की भांति कार्य तो कर सकते हैं लेकिन मानव नहीं हैं।
गुरुदेव मनुष्य के बारे में सीधे शब्दों में कहते हैं कि दस सेर मिट्टी और बीस सेर पानी के बने हुए “पुतले की आत्मा” और सूक्ष्म जगत से संबंध जोड़ने वाली “चेतना” यह मानसलोक ही है और इसे ही समझने का प्रयास करना चाहिए।
आइए मानसलोक में प्रवेश करें- A Practical Exercise (बैकग्राउंड)
अब हमारा प्रयत्न यह होगा कि आप मानसलोक में प्रवेश करें और वहाँ “बुद्धि के दिव्य चक्षुओं” द्वारा “आत्मा का दर्शन” एवं अनुभव करें। विश्व के सम्पूर्ण साधकों ने आत्मा के दर्शन का यही एकमात्र मार्ग बताया है।
मानसलोक में प्रवेश करके ही बुद्धि सहायता से तत्त्व दर्शन (Philosophy of principles)
होता है। इसके अतिरिक्त आज तक कोई भी अन्य कोई मार्ग नहीं खोज पाया है। प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि ही योग की उच्च सीढ़ियाँ हैं। आध्यात्मिक साधक एवं योगी अनेकों प्रकार की क्रियाएं (यम, नियम, आसन, प्राणायाम आदि) करते हैं। हठयोगी नेति, धोति, वस्ति, वज्रोली आदि करते हैं। अन्य साधकों की साधनाएँ किसी अन्य प्रकार की हैं। यह सभी प्रक्रियाएं शारीरिक कठिनाइयों को दूर करने के लिए हैं। शरीर को स्वस्थ रखना इसलिए जरूरी समझा जाता है कि मानसिक अभ्यासों में गड़बड़ न आने पाए । गुरुदेव हमें बार-बार स्वस्थ शरीर रखने का उपदेश देते हैं।
आज के समय में उग्र शारीरिक व्यायामों ने इन “दिव्य प्रक्रियाओं” की जगह ले ली है। गुरुदेव बताते हैं कि शरीर को टेढ़ा-मेढ़ा तोड़-मरोड़ कर करतब दिखाने से कोई विशेष लाभ प्रतीत नहीं होता।आदरणीय चिन्मय जी हमें इन तथाकथित योग और व्यायाम प्रक्रियाओं एवं प्रचलित व्यापार के बारे में अनेकों बार बता चुके हैं। यह बहुत ही गंभीर विषय है, इसलिए इसे किसी अन्य ज्ञानप्रसाद लेख शृंखला के लिए रिज़र्व करना होगा।
परम पूज्य गुरुदेव हमें सतर्क करते हुए कहते हैं कि प्रदूषण से भरे शहरी वायुमण्डल में रहने वाले व्यक्ति को “उग्र प्राणायाम” करने की शिक्षा देना उसके साथ अन्याय और घोर पाप ही करना है। फल और मेवे खाकर पर्वतीय प्रदेश में नदियों का अमृत जल पीने वाले स्वस्थ साधक इन्द्रिय भोग विलास से दूर रह कर हठयोग के कठोर व्यायामों एवं नियमों का पालन करते हैं। आज के युग में अनेकों तथाकथित साधकों को,आकर्षक Deals आदि देकर, आकर्षक विशेषण प्रयोग करके, महंगे पांच सितारा होटलों में, भारी रकम देकर इन प्रक्रियों की नकल करवाई जा रही है। गुरुदेव बता रहे हैं कि बिना वास्तविकता जाने साधकों को “शारीरिक तपों” में उलझाना,एक प्रकार का पाप ही है, लेकिन उन व्यापारिओं को इस बात से क्या लेना है, उनकी दुकान तो चल रही है, मुर्ख ग्राहक भी उनके झांसे में फंसे जा रहे हैं।
गुरुदेव इस सन्दर्भ में मेंढकी का उदाहरण देते हैं जो घोड़ों को नाल ठुकवाते देखकर आपे से बाहर हो गई थी और अपने पैरों में भी वैसी ही कील ठुकवाने को आतुर हो गयी और मर गई थी। हमें डर है कि इन अमीरों का भी मेंढकी जैसा अंत न हो जाए
स्वस्थ रहने के साधारण नियमों को सब लोग जानते हैं। उन्हें ही कठोरतापूर्वक पालन करना चाहिए। यदि कोई रोग हो तो किसी कुशल चिकित्सक से इलाज कराना चाहिए। इस सम्बन्ध में भी हम एक स्वतंत्र पुस्तक प्रकाशित करेंगे लेकिन इस साधन के लिए किसी ऐसी शारीरिक योग्यता की आवश्यकता नहीं है, जिसका साधन चिरकाल में पूरा हो सकता हो। स्वस्थ रहो, प्रसन्न रहो, बस इतना ही काफी है।
637 आहुतियां,13 साधक आज की महायज्ञशाला को सुशोभित कर रहे हैं। आज अरुण जी ने दो यज्ञ कुंडों पर 67 आहुतियां प्रदान करके गोल्ड मेडलिस्ट का सम्मान प्राप्त किया है, उन्हें हमारी बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।
(1)रेणु श्रीवास्तव-44 ,(2)संध्या कुमार-57,(3)सुमनलता-47,(4)सुजाता उपाध्याय-47, (5)नीरा त्रिखा-24 ,(6) वंदना कुमार-26,(7)चंद्रेश बहादुर-33,(8)राधा त्रिखा-38,(9 ) सरविन्द पाल-29,(10)अरुण वर्मा-34,33,(11)कुमोदनी गौराहा-25 ,(12 )निशा भरद्वाज-43 ,(13) अनुराधा पाल-26
