https://youtu.be/hLaWnRarB6I?si=hV8AhFQy9-9t013N (प्रेरणा बिटिया का योगदान)
https://youtu.be/nF6PqsTP0ZQ?si=MYQsz3unJ8KANzb5 (हमारा साहित्य पढायें)
23 मई 2024 का ज्ञानप्रसाद
1940 में प्रकाशित हुई परम पूज्य गुरुदेव की प्रथम पुस्तक “मैं क्या हूँ ?” पर आधारित लेख शृंखला का आज 12वां लेख प्रस्तुत किया जा रहा है। प्रत्येक लेख के पीछे एक ही धारणा है, एक ही उद्देश्य है “मैं क्या हूँ ?” प्रश्न का उत्तर ढूंढना, स्वयं को जानना,पहचानना।
“मैं क्या हूँ?” और “मैं कौन हूँ?” में बहुत बड़ा अंतर् है, इतने विस्तार से गुरुदेव की दिव्य रचना का अमृतपान करने पर आशा की जा सकती है कि साथिओं को इस “अंतर्” को समझने में कोई कठिनाई नहीं हो रही होगी।
हमारा दृढ विश्वास है कि “मैं क्या हूँ ?” का उत्तर ऐसा केवल सद्ज्ञान के निरंतर अमृतपान से ही संभव है। समय-समय पर हम अपने साथिओं के साथ “नियमितता वाला पोस्टर” शेयर करते रहते हैं ताकि सभी को ज्ञान होता रहे कि यह “ज्ञानप्रसाद लेख” एक शृंखला की भांति किसी नियत विषय पर प्रस्तुत किये जाते हैं। अगर कोई पाठक इनका “जब जी चाहा अमृतपान करता है” तो उसे वोह लाभ नहीं मिलेगा जो प्रत्येक लेख ( एक के बाद एक) पढ़ने से मिलेगा।
आज जब अपने नियत समय पर लेखनकार्य शुभारम्भ करने लगे तो गुरुदेव की दिव्य रचना के दूसरे चैप्टर के टॉप पर कठोपनिषद का निम्नलिखित श्लोक पर दृष्टि पड़ी :
“नायमात्मा प्रवचनेन लभ्यो न मेधया न बहु ना श्रुतेन अर्थात “आत्मा न उपदेश से प्राप्त होती है, न बुद्धि से, न अधिक पढ़ने से, न सुनने से। एक दम अंतःकरण ने प्रश्न पूछा, “अगर यह सब कुछ करने से भी आत्मा का ज्ञान प्राप्त नहीं हो सकता तो फिर कैसे होगा?” बहुत ही सरल उत्तर है अंतःकरण में उतार कर, आत्मा से साक्षात्कार करके, यही एक विकल्प है।
हमारे प्रयासों पर हमारे साथी लगातार अपने कमैंट्स के माध्यम से स्टैम्प लगाए जा रहे हैं, हम उनका धन्यवाद् करते हुए यहाँ शेयर भी किये जा रहे हैं,साथिओं के प्रयास से प्राप्त हो रही ऊर्जा हमें और भी अधिक परिश्रम करने को प्रेरित करती है। आज हमारी संजना बेटी का निम्नलिखित कमेंट अवश्य ही प्रेरणा दे सकता है :
ऐसा लग रहा कि आज की आत्मा के भोजन में इतना सारे dishes हैं कि क्या क्या पहले खाऊं समझ नहीं आ रहा है ️,सचमुच आज इतना कुछ है जैसे हमारे परम पूज्य गुरुदेव जी कि प्रेम पूर्ण संघर्ष सिर्फ और सिर्फ हम बच्चों के लिए
️
।सचमुच परमात्मा को समझने आभास करने के लिए नियमितता और समर्पण बेहद ही आवश्यक है,,, इसके लिए हम आदरणीय डॉ सर का जितना भी धन्यवाद करें वो कम ही होगा
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️ ।हम माचिस की तिल्ली हैं और सद्ज्ञान के घर्षण से एवं मानस की शुन्यता व प्राण वायु के मिलन से आत्म ज्योति प्रकट होकर रहेगा।
अरुण जी ने पिछले किसी कमेंट में हमारे लिए लिखा था कि एक-एक लाइन, एक-एक शब्द ध्यान से पढ़ना, उसे समझने/समझाने का प्रयास करना सरल कार्य नहीं है, समय तो लगेगा।
आज जब आत्मा के उत्थान (ऊपर उठने की) की बात आयी तो मन में जिज्ञासा उठी कि आगे की बात बाद में की जाए, पहले इसका अर्थ तो समझ लिया जाए।
तो हमारा सारा फोकस इसी बात पर केंद्रित हो गया कि आत्मा के उत्थान का क्या अर्थ है।
कल प्रकाशित होने वाली लगभग 5 मिंट की वीडियो कनाडा/अमेरिका के 1000 मंदिरों में जा रही राम लल्ला की रथ यात्रा का हमारे नगर में आगमन से सम्बंधित है। 18 मई को अपने संक्षिप्त प्रवास में हमें भी राम लल्ला के दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
आज हमारी आदरणीय बहिन वंदना जी का जन्म दिवस है, हमारी व्यक्तिगत एवं परिवार की शुभकामना।
इन्ही शब्दों के साथ आज का दिव्य ज्ञानप्रसाद प्रस्तुत है।
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ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के समर्पित साथिओं को आत्मा के दर्शन करने की इच्छा हुई और हमारा मत है कि आत्मा के दर्शन कर लेने के बाद सब कुछ तुच्छ ही दिखता है, आत्मा को देख लेने के बाद और कुछ देखना बाकी नहीं रह जाता।
शरीर और आत्मा का गठबंधन कुछ ऐसा ही है, जिसमें जरा अधिक ध्यान से देखने पर “वास्तविक झलक” (Real glimpse) मिल जाती है।
शरीर भौतिक एवं स्थूल नश्वर पदार्थों से बना हुआ है, लेकिन आत्मा “सूक्ष्म” है। पानी में तेल डालने पर तेल की बूँदें पानी की सतह के ऊपर अलग सी layer बना लेती हैं। वैज्ञानिक व्याख्या के अनुसार तेल के परमाणु पानी की अपेक्षा अधिक सूक्ष्म हैं होने के कारण ऊपर उठ जाते हैं। जो सूक्ष्म है वोह हल्का भी होता है और जो हल्का होता है वोह ऊपर की ओर ही उठता है। हल्का होने के कारण इन पर धरती की चुंबकीय शक्ति भी काम नहीं करती, उन्हें अपनी ओर नहीं खींच सकती। चिन्मय जी अपने उद्बोधनों में अग्नि की लपटों को ऊपर को ओर उठने वाले विषय की चर्चा कर चुके हैं। धुआँ भी ऊपर को ही जाता है। गैसों के परमाणु हल्के होने के कारण ऊपर को ही जाते हैं।
यह बेसिक विज्ञान का विषय है, इसे आगे बढ़ाने से बेहतर होगा कि जितना जान लिया है उतना ही पर्याप्त है।
आत्मा शरीर की अपेक्षा सूक्ष्म है,शरीर के साथ बंधे होने के बावजूद,शरीर के साथ पूरी तरह मिल जाने की अपेक्षा ऊपर उठने की कोशिश करती रहती है।
आगे चलने से पहले यह तथ्य समझना उचित होगा कि आत्मा के ऊपर उठने का अर्थ क्या है। अगर इसे ठीक से न समझा गया तो इस प्रकार की धारणा भी बन सकती है कि ऊपर उठना यानि मृत्यु के बाद ऊपर ब्रह्माण्ड में मिल जाना,ऐसा नहीं है।
ऊंचाई विकास का प्रतीक है, प्रगति का प्रतीक है। जब भी किसी की प्रमोशन होती है तो कहा जाता है कि वह उच्च पद पर आसीन है। जब विद्यार्थी परीक्षा के बाद अगली कक्षा में जाता है तो शिक्षक महोदय कहते हैं अब तुम ऊँची/उच्च कक्षा में आ गए हो।
आज के ज्ञानप्रसाद लेख में ऊपर उठने का अर्थ है “दृष्टि बदल जाना।” नीचे रहने पर जो चीजें हमें लुभाती हैं, अपनी ओर आकर्षित करती हैं, हमारे लिए वही बहुत बड़ी होती हैं, जैसे-जैसे ऊपर उठते जाएं, वही चीज़ें हमें तुच्छ और अन-आकर्षक (Un-attractive) होती जाती हैं।
हम में से अनेकों को हवाई जहाज़ की Window seat में यात्रा करने में बड़ा ही आकर्षण लगा होगा क्योंकि उस सीट में से नीचे का दृश्य देखना अति मनमोहक होता है। बड़ी बड़ी गगनचुम्बी इमारतें, माचिस की डिब्बी जैसी लगती हैं, आलीशान/बड़ी-बड़ी कारें चीटियों-सी रेंगती नजर आती हैं। नीचे चल रहे लोग छोटे-छोटे बिंदु जैसे दिखते हैं। ऊंचे उठने पर हमें यह भी अहसास होता है कि हमारे पैरों तले कोई आधार ही नहीं है और जीवन का कोई भरोसा ही नहीं है । अधिक ऊपर चले जाएं तो नीचे एक “शून्य” के दर्शन होते हैं और तीव्र विरक्ति,अरुचि (Dis-interest) पैदा होती है।
यह “शून्य ही वास्तविकता” है,लेकिन हम इसे मानने को तैयार नहीं हैं। ऊपर उठने के बाद हमें ऊपर की विशालता और सुंदरता का भी ज्ञान होता है। उत्थान (ऊपर उठना ) से पूर्व मनुष्य अपनी ही दुनिया (भौतिकता, सबंधी आदि) में मस्त रहता था,भौतिकवाद ही उसकी दुनिया था लेकिन शायद उसे ज्ञान नहीं कि वोह स्वयं इस विशाल रचना का एक बिंदु मात्र ही था। उत्थान से पूर्व मनुष्य जिसे देखकर, प्राप्त करके, मोहित हो रहा था, वह तो केवल आभास था, भ्र्म था, माया थी।
व्यापक और वास्तविक सुंदरता तो तब नज़र आती है, जब मनुष्य उसी बराबर की दृष्टि से पूरे ब्रह्मांड को देखता है। नीचे रह कर मनुष्य की देखने की क्षमता बहुत ही सीमित होती है और जो कुछ उसे दिख रहा होता है, उसे ही सच और सुंदर मान लेने के अतिरिक्त उसके पास और कोई विकल्प नहीं होता। ऐसा तो कहा नहीं जा सकता कि मनुष्य जितना देख पा रहा है, संसार उतना ही है और उसके आगे कुछ भी नहीं है। मनुष्य की दृष्टि सीमित होने के कारण, उसके देखने, सुनने और समझने की भी अपनी ही सीमाएं हैं। परम पूज्य गुरुदेव की भांति, साधारण मनुष्य, युगदृष्टा, दूरदर्शी तो है नहीं जिनकी दृष्टि की कोई सीमा नहीं है, वोह कहाँ तक देख सकते हैं वोह ही जानते हैं।
वर्तमान चर्चा के सन्दर्भ में यह भी तय है कि “सत्य ही अपार और अनंत” है। यदि ऐसा न होता, तो सत्य को ढूढ़ने के लिए नित नई खोजें, नई जानकारियां मनुष्य को विस्मित न करती रहतीं। ऋषियों, मुनियों, धर्मात्माओं ने ऊंचे उठकर नए अनुभव हासिल किए, जिनमें से कुछ उन्होंने संसार के साथ बांटे भी। इसके बावजूद “मनुष्य का ज्ञान अति अल्प (Limited)” है। मनुष्य तो अभी तक जन्म और मृत्यु का रहस्य को ही समझ नहीं पाया है। अभी तक तो यह भी निश्चित नहीं हैं कि कब जन्म होना है और कब मृत्यु तो फिर निश्चितता क्या है।
तथकथित विज्ञान के तर्कशील साथी हमारी बात को एकदम काट सकते हैं, नकार सकते हैं कि जन्म का समय (9 महीने) तो निश्चित है। अगर इतनी निश्चितता है तो फिर माता पिता इतना घबराएं क्यों फिरते हैं ? कहीं कुछ ऐसा वैसा न हो जाए ? खैर यह उनकी धारणा है।
हम तो यही कहेंगें कि यदि निश्चित और अंतिम कुछ भी नहीं है तो मनुष्य स्वयं को ज्ञानी कैसे कह सकता है? हमारी समस्या है कि हमने निकटता वहां पैदा कर ली है, जहां दूरी होनी चाहिए। यही कारण है कि हम उससे दूर हो गए हैं,जिसके सानिध्य में हमें होना था। था। हम अपनी समझ के बनाए गए बुलबुले( Our own Fool’s paradise, Our own Ivory tower) में कैद हो कर रह गए हैं। इस Ivory tower,बनावटी किले से बाहर आना ही ऊपर उठना है, तभी हम अपना उत्थान कर सकते हैं। सच तो यह है कि जो व्यक्ति अपना उत्थान या आत्म-कल्याण नहीं कर सकता, वह परिवार का कल्याण, समाज का कल्याण और राष्ट्र का कल्याण कदापि नहीं कर सकता।
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737 आहुतियां,17 साधक आज की कीर्तिमान महायज्ञशाला को सुशोभित कर रहे हैं। आज कुमोदनी गौराहा जी ने 66 आहुतियां प्रदान करके गोल्ड मेडलिस्ट का सम्मान प्राप्त किया है, उन्हें हमारी बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।
(1)रेणु श्रीवास्तव-40 ,(2)संध्या कुमार-41 ,(3)सुमनलता-33 ,(4 )सुजाता उपाध्याय-55 , (5)नीरा त्रिखा-28 ,(6) वंदना कुमार-26 ,(7)चंद्रेश बहादुर-33 ,(8)राधा त्रिखा-25,(9 ) सरविन्द पाल-30 , (10)अरुण वर्मा-61 , (11)आयुष पाल-24 , (12 ) मंजू मिश्रा-28,(13 ) पुष्पा सिंह-25,(14)मीरा पाल-26,( 15)कुमोदनी गौराहा-66,(16)निशा भरद्वाज-25,(17 ) अनुराधा पाल-32
