https://youtube.com/shorts/zOBlqNBHwvw?si=SEuhq-J27CpBniNa
https://youtu.be/nF6PqsTP0ZQ?si=RQ0EQ… (हमारा साहित्य पढ़ाइए)
1940 में प्रकाशित हुई परम पूज्य गुरुदेव की प्रथम पुस्तक “मैं क्या हूँ ?” पर आधारित लेख शृंखला का आज 10 वां लेख प्रस्तुत किया जा रहा है। प्रत्येक लेख के पीछे एक ही धारणा है, एक ही उद्देश्य है “मैं क्या हूँ ?” प्रश्न का उत्तर ढूंढना, स्वयं को जानना, पहचानना। ऐसा केवल सद्ज्ञान के निरंतर अमृतपान से ही संभव है। समय समय पर हम अपने साथिओं “नियमितता वाला पोस्टर” शेयर करते रहते हैं ताकि सभी को ज्ञान होता रहे कि यह “ज्ञानप्रसाद लेख” एक शृंखला की भांति किसी नियत विषय पर प्रस्तुत किये जाते हैं। अगर कोई पाठक इनका “जब जी चाहा अमृतपान करता है” तो उसे वोह लाभ नहीं मिलेगा जी प्रत्येक लेख ( एक के बाद एक) पढ़ने से मिलेगा।
आज के लेख को समझने के लिए हमने रोज़मर्रा जीवन से कुछ सरल से उदाहरण शामिल किये हैं क्योंकि आत्मा देखने वाली नहीं बल्कि समझने, अनुभव एवं आभास करने वाली धारणा है। तो आइए इन्ही शब्दों के साथ आज के ज्ञानप्रसाद लेख का शुभारम्भ करते हैं।
आज के प्रज्ञागीत में हमारी बेटी संजना की भेजी हुई यूट्यूब वीडियो प्रस्तुत है, बेटी का धन्यवाद्
“प्रत्येक मनुष्य की आत्मा अपने मूल स्वरूप में निर्गुण, निराकार,नाम,रूप रहित होने के बावजूद भी शुद्ध अंतःकरण में “प्रकाश रूप” में दर्शन करा सकती है। ऐसा दर्शन होते ही मनुष्य को सत्यनिष्ठ, सत्य-संकल्पित होकर अखण्ड सुख और परम शान्ति प्राप्त होती है, उसे इस भौतिक संसार से कोई भी वस्तु प्राप्त करने की इच्छा नहीं रहती। वह जो इच्छा या संकल्प करता है,वह बिना किसी प्रयत्न के तत्काल सिद्ध हो जाता है। ईश्वर द्वारा प्रदान किया गया यह अमूल्य और दुर्लभ जीवन सफल हो जाता है। यहाँ पर “बिना किसी प्रयत्न” का अर्थ यह कदापि नहीं है कि हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें और कुछ न करें, बल्कि यह है कि “कर्म किये जा फल की इच्छा मत कर ऐ इंसान, जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान्, यह है गीता का ज्ञान, यह है गीता का ज्ञान।
“मनुष्य को अपनी प्रकाश स्वरूप आत्मा का प्रत्यक्ष दर्शन करने के लिये प्रयत्नशील होना चाहिये, जिससे उसका यह जीवन सफल हो। आत्मा प्रकाश रूप है यह उपनिषदीय ग्रंथों में अनेक जगह प्रतिपादित किया हुआ है।”
आत्मा की पहचान क्या है, उसका स्वरूप क्या है ?
आत्मा को पहचानने के लिए उसके स्वरूप को जानना आवश्यक है | जब प्र्शन उठता है कि आत्मा कैसी दिखती है? इसका कोई आकार या रंग है यां नहीं तो उत्तर मिलता है आत्मा का कोई रंग,रूप आदि नहीं है। आत्मा एक प्रकाश है जो साधारण प्रकाश से बिल्कुल अलग है।
आत्मा ज्ञान स्वरूप प्रकाश है:
आत्मा ज्ञान स्वरूप है और ज्ञान ही प्रकाश है। यह एक ऐसा प्रकाश है जिसका किसी अन्य रूप में अस्तित्व नहीं है। आत्मा एक प्रकाश है, जिसको किसी प्रकार की उत्पति या आधार की ज़रूरत नहीं है
आइए देखें यह किस प्रकार का प्रकाश है और हम इस प्रकाश को, अपने दैनिक जीवन के उपयोग में कैसे ला सकते हैं। प्रत्येक जीवों के शरीर में आत्मा प्रकाशस्वरूप के अलावा और कुछ नहीं है। इस कथन को सुनकर, कि आत्मा प्रकाश की तरह दिखती होगी, कोई भी कल्पना कर सकता है कि, आत्मा एक बल्ब या ट्यूबलाइट की तरह होगी । नहीं, यह ऐसा नहीं है। जैसे बल्ब या ट्यूबलाइट की मदद से हम, कमरे में सब कुछ देख और जान सकते हैं; उसी प्रकार,आत्मा की सहायता से हम स्वयं के बारे में, अपने आसपास के बारे में,सब कुछ देख और जान सकते हैं। यह बस एक उपमा दी है; वास्तव में, आत्मा इस साधारण प्रकाश से कहीं अधिक है। आत्मा के प्रकाश का आलोक उजागर होते ही “मैं क्या हूँ ?” का उत्तर मिलना आरम्भ हो जाता है।
आइए आत्मा के प्रकाशरुपी स्वरूप को कुछ उदाहरणों द्वारा समझने का प्रयास करें :
मान लीजिए,आप एकदम अंधेरे कमरे में बैठे हैं, जिसकी एक दीवार में एक छोटा सा छेद है। इस छेद में से सूर्य की किरणें कमरे में प्रवेश कर रही हैं। ध्यान से देखने पर आपको सूर्य की किरणों से बनी बीम(Beam) के मार्ग में धूल के अनेकों कण तैरते हुए दिखाई देंगे। इसका क्या मतलब है? इसका मतलब है कि कमरे में अनेकों धूल के कण हैं, लेकिन ऐसा क्यों है कि यह कण केवल सूर्य की बीम में दिखाई देते हैं और कहीं नहीं। ऐसा इसलिए है कि बाकी सारे कमरे में अंधेरा है। इसलिए, जहाँ प्रकाश नहीं है वहां देखना संभव नहीं है। प्रकाश की उपस्थिति में चीजों को उनके स्पष्ट रूप से वैसे ही देखा जा सकता है जैसे वोह हैं। प्रकाश की किरण को देखते ही हम समझ जाते हैं कि सूर्योदय हो गया है।
आइए एक और उदाहरण लेते हैं :
मान लीजिए जिस कमरे में आप बैठे हैं, उस कमरे में प्रकाश है और उसकी दीवार पर एक बड़ी तस्वीर टंगी है। प्रकाश की उपस्थिति में आप तस्वीर को देख रहे हैं, एकदम पावर ऑफ हो जाती है, कम्पलीट अँधेरा हो जाता है। क्या आप अभी भी उस तस्वीर को देख सकते हैं? नहीं न। इस उदाहरण से निष्कर्ष यही निकलता है कि प्रकाश (केवल प्रकाश) की सहायता से ही आप तस्वीर को स्पष्टरूप से देख सकते हैं।
इस उदाहरण में तीन चीजें अपना अपना रोल अदा कर रही हैं : 1) प्रकाश 2) स्वयं आप और 3) चित्र।
“जैसे बल्ब के प्रकाश में, चित्र को देखा व पहचाना जा सकता है; उसी प्रकार आत्मा के प्रकाश से मन में उठने वाले विचारों को देखा और पढ़ा जा सकता है। आत्मा वह प्रकाश है, जो स्वयं के साथ-साथ ब्रह्मांड में विद्यमान प्रत्येक वस्तु को भी प्रकाशित करता है।। आत्मा के प्रकाश में अनंत सुख है, यह अनंत सुख दीपक के प्रकाश में नहीं है। दीपक का प्रकाश अस्थाई है जबकि आत्मा का प्रकाश स्थाई है, permanent है, एक बार आत्मा प्रकाशवान हो गयी तो वह अनेकों को तो क्या ,पूरे ब्रह्माण्ड को भी प्रकाशित कर सकती है।
आत्मा के प्रकाश का महत्व :
मान लीजिए आपके कमरे में अंधेरा है,आपको कैसा लगेगा ? आप कुर्सी/मेज़ आदि से टकराते जाएंगें, अँधेरे में आपको रास्ता ही नहीं दिखेगा, आप भटकते ही जाएंगें, ठोकर खाकर गिर भी सकते हैं,हाथ-पैर ज़ख़्मी भी हो सकते हैं इसके अलावा, आपको चिंता होने लगेगी कि अब आगे क्या होगा और कैसे आगे जाए ताकि किसी से, टकराव न हो। यह चिंताजनक हो सकता है, है न? अज्ञानता के वशीभूत मनुष्य की बिल्कुल ऐसी ही दशा होती है।
यदि, पूरे कमरे में प्रकाश हो, तब क्या होगा? यदि आपके पास पूर्ण प्रकाश है, तो कोई टकराव, कष्ट, चिंता, संदेह या तनाव नहीं होगा। पूर्ण प्रकाश से आप प्रसन्नता का अनुभव करेंगे और आपके आसपास के लोगों को भी प्रसन्नता का आभास होगा। सबसे बड़ा अंतर यह है कि बल्ब का प्रकाश टेम्परेरी सुख देगा, जबकि आत्मा का प्रकाश परमानेन्ट सुख देगा। आत्मा के स्वरूप को समझने के लिए ज्ञान ग्रहण करना बहुत महत्वपूर्ण है।
आत्मा का प्रकाश सर्वव्यापी है :
जिस कमरे में बैठे आप इस ज्ञानप्रसाद लेख का अमृतपान का रहे हैं, उसमें प्रकाश करने वाला बल्ब केवल एक ही स्थान पर लगा हुआ है लेकिन उसका प्रकाश पूरे कमरे में फैल कर कमरे को रोशन कर रहा है। ठीक इसी तरह एक आत्मा में पूरे ब्रह्मांड को प्रकाशित करने की शक्ति होती है।
इस तथ्य को समझने के लिए यहाँ एक और प्रयोग दिया जा रहा हैं। एक घड़े में एक बल्ब जला कर रखा हुआ है। अगर हम घड़े को ढक्कन से बंद कर दें, तो प्रकाश बाहर नहीं आएगा। अगर घड़े को पत्थर मार कर फोड़ दें, तो बल्ब का प्रकाश कहाँ तक जाएगा ? स्वाभाविक है कि जिस कमरे में घड़ा रखा हुआ है वह प्रकाश से भर जाएगा उसी प्रकार यदि आत्मा से अज्ञानता का आवरण उतार दिया जाए, उसे निर्वस्त्र कर दिया जाए तो उसका आलोक सारे विश्व में फैल सकता है। आत्मा का वास शरीर में है। यह अनंत ज्ञान और अनंत दर्शन कराने वाला है, लेकिन जब तक अज्ञान में घिरा हुआ है,अन्धकार ही अन्धकार है। अपने वास्तविक स्वरूप के प्रति जागृत न होना ही अज्ञानता है । इसलिए, अज्ञानता के कारण, हम भूल से मान लेते हैं कि शरीर या शरीर को दिया गया नाम ही हमारी आत्मा है। यही कारण है कि हमारा सबसे पहला विषय आत्मज्ञान को प्राप्त करना ही था । एक बार जब हमें आत्मा की जानकारी हो जाती है तो इसका अर्थ है कि अज्ञान दूर हो गया है।
हमारा सौभाग्य है कि ज्ञानप्रसाद लेखों के माध्यम से हमें परम पूज्य गुरुदेव जैसी अवतारी सत्ता का दिव्य सानिध्य प्राप्त हो रहा है क्योंकि इसी साहित्य से अज्ञानता का आवरण हट जाएगा। इस अज्ञानता के हटते ही “मैं” और “मेरा” का कांसेप्ट समाप्त होकर सर्वस्व के कांसेप्ट का शुभारम्भ होगा। जिस किसी भी पाठक/सहयोगी को इस तरह का आभास हो रहा है तो समझ लेना चाहिए कि आत्मा का प्रत्यक्ष प्रकाश आना शुरू हो गया है। यही वह प्रत्यक्ष प्रकाश है जिससे हम आत्मा का अनुभव कर पाएंगें। आत्मज्ञान के प्राप्त होते ही, आत्मस्वरूप को पहचानते ही,आपकी आत्मदृष्टि ऐसी हो जाएगी कि आप स्वयं ही गुरुदेव की आज्ञा का पालन करना शुरू कर देंगें। गुरुदेव ने इस दिशा में बहुत ही सरल प्रक्रिया बताई हैं। गुरुदेव द्वारा रचित दिव्य साहित्य पर आधारित दैनिक ज्ञानप्रसाद लेखों का नियमितता से अमृतपान करके,समझकर, अंतःकरण में उतारकर, अमल करते हुए औरों को प्रेरित करना ही सही मायनों में ज्ञान का आलोक है। जैसे जैसे लेख समझ आते जाएंगें, अज्ञानता के बहुत सारे आवरण टूटते जाएंगें, ज्ञान के प्रकश का उदय होगा । जब आत्मा के ऊपर से सभी आवरण समाप्त हो जाते है तो पूर्ण आत्मा का प्रकाश सम्पूर्ण ब्रह्मांड को प्रकाशित करता है। ऐसा है आत्मा का प्रकाश !
आज के लेख का समापन यह कहकर करते हैं कि आत्मा का प्रकाश, बल्ब और ट्यूबलाइट के प्रकाश की तरह प्रतक्ष्य दिखाई नहीं देता क्योंकि यह प्रकाश केवल अनुभव करने वाला है। आत्मा कैसी दिखती है, यह जानने के लिए आत्म-साक्षात्कार विधि के दौरान किसी प्रकार के प्रकाश को देखने की आवश्यकता एवं जिज्ञासा नहीं होनी चाहिए। आत्मा का प्रकाश ही सारी जिज्ञासाओं का निवारण कर देगा।
757 आहुतियां,16 साधक आज की महायज्ञशाला को सुशोभित कर रहे हैं। आज सरविन्द जी एवं अरुण जी, दोनों भाइयों ने सबसे अधिक आहुतियां प्रदान करके गोल्ड मेडलिस्ट का सम्मान प्राप्त किया है, उन्हें हमारी बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।
(1)रेणु श्रीवास्तव-37,(2)संध्या कुमार-44 ,(3)सुमनलता-35 ,(4 )सुजाता उपाध्याय-48 ,(5)नीरा त्रिखा-25 ,(6 )वंदना कुमार-28,(7)चंद्रेश बहादुर-37,(8)राधा त्रिखा-25,(9 )सरविन्द पाल-26,30, (10)अरुण वर्मा-55,(11)अनुराधा पाल-25,(12 ) आयुष पाल-25, (13) कुमोदनी गौराहा-42,(14)निशा भारद्वाज-33, (15) मीरा पाल-27,(16)मंजू मिश्रा-28