https://youtu.be/Yuex2EnsGiY?si=Q7DWTQHavrXL2Ld1
https://youtu.be/nF6PqsTP0ZQ?si=npyWunnoWd6TSZOP
प्रत्येक शनिवार को प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक विशेषांक के इस स्पेशल सेगमेंट में हमारे तीन अति समर्पित साथी, आदरणीय अरुण वर्मा जी ,आदरणीय निशा भारद्वाज एवम हमारी बेटी संजना के कॉमेंट प्रस्तुत किए गए हैं। तीनों साथियों का इस सहयोग और सम्मान के लिए हृदय से धन्यवाद करते हैं।
हम सहयोग की बात बार-बार करते रहते हैं । इसका कारण यह है कि हम तो मात्र गुरुदेव के जटिल एवम कठिन साहित्य को गूगल पर उपलब्ध स्रोतों की सहायता से अपनी अल्प बुद्धि से, समझकर आपके समक्ष प्रस्तुत करते हैं लेकिन आप सब उन्हें पढ़कर, समझकर अंतरात्मा से निकली हुई भावनाओं को शब्दों में पिरोकर,कॉमेंट्स-काउंटर कॉमेंट्स की प्रक्रिया से परिवार को पुष्प मालाएं अर्पित कर रहे हैं। इन पुष्प मालाओं से अनेकों ने दिव्यता प्राप्त की है, यह कोई कम सहयोग नहीं है।
जब सम्मान की बात आती है तो अरुण जी द्वारा हमारे लिए प्रयोग किया शब्द “महात्मा” हो यां निशा जी द्वारा प्रयोग किया गया शब्द “वैद्य” हो, ऐसा नहीं है। समय- समय पर हमारे निवेदनों का निष्ठापूर्वक पालन करना ही हमारे लिए सम्मान है। हां अरुण जी,निशा जी एवम अनेकों साथियों द्वारा हमारे जैसे साधारण, down to earth व्यक्ति के लिए भांति भांति के विशेषण प्रयोग करना उनकी महानता हो सकती है, जिसके लिए सभी को नमन करते हैं ।
परम पूज्य गुरुदेव की पुस्तक “मैं क्या हूँ ?” पर आधारित लेख श्रृंखला के आरम्भ करने से पूर्व हमने करबद्ध निवेदन किया था कि आने वाले ज्ञानप्रसाद लेखों को समझकर, अंतर्मन में उतारकर विस्तृत कमेंट किये जाएँ ताकि अनुमान लगाया जा सके कि हमारा प्रयास सफल हो रहा है। अगर ऐसा नहीं होता है तो इस पुस्तक का (एवं अन्य लेखों का )अध्ययन वैसा ही होगा जैसे पहले होता आया है। सभी ने बहुत ही सहयोग किया, सम्मान दिया, तीन साथिओं के विस्तृत कमेंट इस स्टेटमेंट के साक्षी हैं।
आशा करते हैं कि अब यह स्थाई प्रथा ही बन जाएगी कि साथी अच्छी तरह से समझकर ही विस्तृत कमेंट करेंगें, न केवल “जय गुरुदेव” आदि लिखकर।
1.अरुण वर्मा -जय गुरुदेव
ॐ श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमो नमः
परम पूज्य गुरुदेव एवं विश्व वंदनीया माता जी व जगत जननी माँ गायत्री के चरणों में कोटि कोटि नमन वंदन अभिनंदन।
परम आदरणीय अरूण भैया जी के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम
औनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में आज का दिव्य लेख “आत्मज्ञानी बनने के सरल तरीके ” विषय पर बहुत ही सुंदर व ज्ञानवर्धक विश्लेषण किया गया है। आत्मज्ञानी बनने के मुख्य चार उपाय बताऐ गये हैं:-
1.ध्यान एवं मेडिटेशन,
2.स्वाध्याय
3.संयम और
4.सद्गुरु का मार्गदर्शन अति अनिवार्य है
इस लेख में एक बात बहुत ही ध्यान देने योग्य है, और वह निम्नलिखित है:
“जिसने गुरुदेव को सशरीर कभी भी देखा नहीं है वोह भी गुरुदेव के साहित्य के माध्यम से गुरुदेव से रूबरू हो सकता है। यह एकदम सटीक बात है । गुरुदेव के साहित्य को जैसे ही पढ़ना शुरू करते हैं तो एहसास होता है कि गुरुदेव की अमृतवाणी हमारे कानों में गूंज रही है । अगर किसी को शक है तो गुरुदेव की कोई भी पुस्तक उठा कर पढिए, हमारी कही बात एकदम समझ में आ जाएगी, क्योंकि हमने अनुभव किया है और इस परिवार में हम जैसे बहुत से लोग हैं जिनको ऐसा अनुभव हुआ होगा ।
आत्मज्ञानी बनने के लिए उपरोक्त बताए गए चारों सूत्र अपनाने पर यदि कोई आत्मज्ञानी न भी बने, आत्म सुधार तो हो ही सकता है।
आदरणीय भैया जी ने दो लघु कथाओं के माध्यम से यह स्पष्ट कर दिया है कि साधना, आराधना, संयम एवम गुरुदेव के सही मार्ग दर्शन से आत्मज्ञानी बना जा सकता है ।
पहली लघु कथा तो ” राजा और महात्मा “
से जुड़ी हुई है लेकिन मैं इस कथा को अपने औनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के दिव्य मंच से जोड़ कर स्वयं को आत्मज्ञानी बनाना चाहता हूं ।
” आत्मज्ञानी ” तो मैं नहीं बन सकता यह मुझे पता है क्योंकि इसके लिए जितनी पात्रता की जरूरत है वो मेरे अंदर नहीं है लेकिन एक सही इंसान जरूर बन सकता हूँ इसकी तो मुझे उम्मीद है ।
औनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार वही नदी है जिसमें राजा गोता लगाते गए और आत्म परिष्कार होता चला गया । नदी के तट पर महात्मा जी बचपन से तप साधना कर रहे थे और उनकी तप साधना का प्रभाव नदी के पानी में घुल गया। और महात्मा जी के कथनानुसार नदी के पानी में जो भी अज्ञानी गोता लगाएगा वह आत्मज्ञानी बन जायेगा, उसे राजा जैसी अनुभूति होती चली जायेगी। बिल्कुल यही बात औनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के दिव्य मंच की भी है । इस मंच पर न जाने कितने लोग आए जो आध्यात्म के बारे में ” क” ” ख ” भी नहीं जानते थे वो आज एक से एक ऊर्जामयी प्रेरणादायक ज्ञानवर्धक कमेंट्स के माध्यम से अपने प्रतिभा को विकसित कर रहे हैं ।
यह सब परम आदरणीय अरूण भैया जी के कठोर तप साधना का ही परिणाम है, जो परम पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन में चल रहा है,
मैं उस नदी के पानी के बारे में सिर्फ कल्पना कर सकता हूँ लेकिन औनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार से हमें साक्षात्कार करने का भरपूर मौका मिल रहा है । इस ज्ञान की गंगा के निर्मल जल ने हम जैसे कितने अनगढ़ों को सुगढ़ बना दिया, पता नहीं। यह कार्य अनवरत बिना रूके बिना थके लगातार चल रहा है,
अभी कल की ही बात है कि आदरणीय अरूण भैया जी के निवेदन पर कितने ही लोग अपनी प्रतिभा को बाहर निकालने में सफल हो रहे हैं ।
जो परिजन सिर्फ ” जय गुरुदेव जय माता जी ” लिख कर कॉमेंट पोस्ट करते थे वो आज अपने ऊर्जामयी विचारों से औनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के दिव्य मंच को सुशोभित कर रहे हैं ।
यह सब वही महात्मा जो इस परिवार में अरूण भैया जी हैं जिनके तप साधना के प्रभाव से जगमगा रहा है, हम सभी को गर्व करना स्वाभाविक है कि ऐसा गुरु और मार्गदर्शक मिला।
औनलाइन ज्ञान रथ गायत्री परिवार के सभी सहकर्मी भाई बहनों को कोटि कोटि प्रणाम
2.निशा भारद्वाज -आज के ज्ञानप्रसाद में आत्मज्ञान प्राप्त करने के बहुत ही सरल और महत्वपूर्ण तरीके बताए गए हैं जिनमें से यदि किसी एक को भी अपनाया जाए तो आत्म परिष्कर संभव है
आज के ज्ञान प्रसाद में सलंगन परम पूज्य गुरुदेव की वीडियो मे गुरुजी समझा रहे हैं कि उनके साहित्य में उनके प्राण बसते हैं गुरुजी के साहित्य में इतनी शक्ति है कि कोई भी इसका स्वाध्याय कर आत्म परिष्कार कर सकता है
आत्म ज्ञान प्राप्त करने के सरल तरीके
- ध्यान और मेडिटेशन
ध्यान और मेडिटेशन के माध्यम से व्यक्ति आत्मा के आंतरिक स्वरूप की तरफ केंद्रित हो सकता है
2.स्वाध्याय
आध्यात्मिक पुस्तकों का अध्ययन कर व्यक्ति आत्मा के गहरे पहलुओं को समझ सकता है
3.संयम
संयम (इंद्रिय संयम) संयमित जीवन सबसे कठिन और महत्वपूर्ण सूत्र है - योग्य गुरु का मार्गदर्शन
आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए योग्य गुरु का मार्गदर्शन बहुत ही महत्व पूर्ण है हम सभी बहुत ही सौभाग्य शाली हैं जो हमें परम पूज्य गुरुदेव का सानिध्य मिला
आज के ज्ञान प्रसाद में राजा और महात्मा और विद्याधर और काकभुशंडी के प्रसंग बहुत ही ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक है
अगर स्वाध्याय की बात की जाए तो oggp के सभी परिजन बहुत ही सौभाग्यशाली हैं क्योंकि परम पूज्य गुरुदेव के सूक्ष्म सरंक्षण में आदरणीय अरुण भैया जी के कर कमलों द्वारा लिखे ज्ञानप्रसाद का हम सभी प्रतिदिन स्वाध्याय कर चिंतन मनन कर आत्म सुधार कर रहें हैं
वेद मूर्ति पंडित श्री राम शर्मा आचार्य जी के विशाल साहित्य का स्वाध्याय मेरे लिए नियमित कर पाना बहुत ही कठिन कार्य था लेकिन परम पूज्य गुरुदेव की कृपा है कि उन्होंने आदरणीय अरुण भईया जी से मिलवाकर इस कठिन कार्य को सरल और सुगम बना दिया है
परम पूज्य गुरुदेव से मेरी यही प्रार्थना है कि आप आदरणीय अरुण भैया जी पर सदैव अपनी कृपा बनाए रखना ताकि एक कुशल वैद्य की भांति भैया जी नियमित खुराक देते रहें और हमारी आत्मा को भोजन मिलता रहे क्योंकि परम पूज्य गुरुदेव ही बताते हैं कि आत्मा का भोजन आध्यात्मिक पुस्तकों का स्वाध्याय ही है
आदरणीय अरुण भैया जी आज के दिव्य ज्ञानवर्धक और प्रेरणादायक लेख के लिए आपका बहुत बहुत आभार व्यक्त करती हूं
परम पूज्य गुरुदेव परम वंदनीय माताजी और आदि शक्ति वेद माता गायत्री की कृपा सभी पर निरंतर बनी रहे सभी स्वस्थ रहें खुश रहें जय गुरुदेव जय माता दी सादर प्रणाम
- संजना बेटी: We are the boss of ourselves और समाज के साथ सामंजस्य बैठाने का एक मात्र राजमार्ग हमें सिर्फ और सिर्फ “अध्यात्म” ही बता सकता है। इस बार रामचरितमानस में आदरणीय श्रद्धेय जी ने नवधा भक्ति में आठवीं भक्ति के बारे में बताते हुए कहा था कि भगवान कहते हैं कि जग को मुझमें और मुझमें ही जग को देखो , भूलकर भी स्वप्न में किसी का दोष मत देखो क्योंकि ईश्वर का वास तो सभी जगह कण-कण में है तो फिर कैसा बैर।
शायद इसी आत्मीयता के भाव को परम पूज्य गुरुदेव जी बार-बार अपने करुण हृदय से कहते आ रहे हैं कि
“प्रेम प्रेम केवल प्रेम”- यही हमारा मंत्र है।
i)आदरणीय पुष्पा बहिन जी गुरुकार्य में सदैव सक्रीय रहती हैं, उनकी सक्रियता दर्शाती दो फोटो शेयर कर रहे हैं जो आदित्यपुर महिला मंडल द्वारा गंगा सप्तमी के पावन अवसर पर ली गयी थीं। बहिन जी की सक्रियता दर्शाता एक पोस्टर भी शेयर कर रहे हैं जो गुरुवार 23 मई 2024, बुद्ध पूर्णिमा से सम्बंधित है। आशा करते हैं कि इस महान आध्यात्मिक प्रयोग में अधिक अधिक साथी सम्मिलित होंगें।
ii) शब्द सीमा एवं समय अभाव के कारण, 16 मई का लेख दो भागों में प्रस्तुत किया गया था, बहुत से साथिओं को कुछ परेशानी भी हुई जिसके लिए हम क्षमा प्रार्थी हैं। यह प्रयोग पहली बार किया गया था,परेशानी होना स्वाभाविक थी।
iii) आज के स्पेशल सेगमेंट का समापन निम्नलिखित “नवीन सुझाव” से कर रहे हैं :
कमेंट-काउंटर कमेंट की शक्ति से हम सब परिचित हैं, हमने बहुत सारे ज्ञानवर्धक कमेंट अपने पास save करके रखें हैं जो इस समय लगभग 6000 शब्द के करीब बन रहे हैं। आने वाले दिनों में इन्हें एक नए शीर्षक “क्या कहते हैं हमारे समर्पित साथी ?” के अंतर्गत प्रकाशित करने की योजना है। कंटेंट के मूल्यांकन के उपरान्त आने वाले स्पेशल सेगमेंट में इस अमूल्य योगदान को प्रकाशित करने का प्रयास होगा ।
इन्ही शब्दों के साथ आज के इस विशेषांक का समापन होता है।
668 आहुतियां,12 साधक आज की महायज्ञशाला को सुशोभित कर रहे हैं। आज हमारी परम आदरणीय बहिन कुमोदनी गौराहा जी ने सबसे अधिक आहुतियां प्रदान करके गोल्ड मेडलिस्ट का सम्मान प्राप्त किया है, उन्हें हमारी बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्। अरुण जी का कमेंट हमने पढ़ा था लेकिन सूची बनाने के समय शायद यूट्यूब का क्रूर प्रहार अपना रूप दिखा गया।
(1)रेणु श्रीवास्तव-24,(2)संध्या कुमार-47,(3)सुमनलता-33,(4 )सुजाता उपाध्याय -34 ,(5)नीरा त्रिखा-35 ,(6 )मीरा पाल-31,(7 )वंदना कुमार-28,(8 )चंद्रेश बहादुर-26,(9 )राधा त्रिखा-29,(10 )सरविन्द पाल-24,26,(11) मंजू मिश्रा-25,(12)कुमोदनी गौरहा-65

