वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

OGGP के मंच से “अपने सहकर्मियों की कलम से” 11 मई ,2024 का साप्ताहिक विशेषांक

https://youtu.be/LasoyYi19Bc?si=HhEpuAOCM0LdcWlp
परम पूज्य गुरुदेव के सूक्ष्म संरक्षण एवं मार्गदर्शन में रचे गए ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से शनिवार को एक ऐसा विशेषांक प्रस्तुत किया जाता है जिसमें सारी की सारी भागीदारी अपने सहकर्मियों की ही होती है। माह के अंतिम शनिवार को आदरणीय बहिन सुमनलता जी के प्रस्ताव का पालन करते हुए, हमारे(अरुण त्रिखा) लिए सुरक्षित रखा गया है। 25 मई को इसका अगला एपिसोड प्रस्तुत किया जायेगा। बहिन जी के ही प्रस्ताव पर अंतिम शुक्रवार को युवासाथिओं की वीडियो के लिए रिज़र्व किया हुआ है। हमारी बेटी सुमति ने एक और वीडियो बनाकर भेजी है। तो आइए आज के शनिवार भी अपने साथिओं के साथ सूक्ष्म में रूबरू होवें। इस एपिसोड में साथिओं से एक संकल्प की याचना के साथ, आदरणीय चंद्रेश जी,सुमनलता जी एवं निशा जी का योगदान है। सभी का धन्यवाद करते हैं।


1.एक संकल्प का निवेदन :
परम पूज्य गुरुदेव द्वारा रचित उनकी प्रथम पुस्तिका “मैं क्या हूँ” पर आधारित लेख शृंखला का शुभारम्भ हुआ। कमैंट्स से ऐसा अनुभव हुआ कि बहुत बार पहले इस कठिन, जटिल पुस्तक को पढ़ा गया है लेकिन हमारी (अरुण जी) लेखनी के बाद बहुत सारी बातें आसानी से समझ आ रही हैं। इस स्टेटमेंट के विषय पर हमारा कुछ भी कहना उचित न होगा लेकिन “केवल पढ़ने ” और “समझकर पढ़ने में” का प्रभाव अवश्य ही अनुभव किया जा सकता है। ऐसा हमने इसलिए लिखा था कि महत्व इस बात का नहीं है कि हमने कितनी पुस्तकें पढ़ी हैं, अगर महत्व है तो केवल इस बात का कि हमने कितनों को अपने अंतःकरण में उतारा है, अपनी दिनचर्या का अंश बनाया है। अगर यह प्रैक्टिकल हमारे जीवन में सफल हो पाता है, तभी हम दूसरों को प्रेरित कर पाएंगे।
हम तो सरलीकरण की प्रक्रिया से, लेखों को प्रैक्टिकल बनाकर, कहानिओं-कथाओं से , वीडियोस,ऑडिओस की सहायता लेकर विषय को समझने का प्रयास करते हुए आपके समक्ष प्रस्तुत करेंगें ही लेकिन यदि यह प्रयास अगर सामूहिक हो तो अधिक लाभदायक होगा । सभी से निवेदन है कि जहाँ तक हो संभव हो सके लेख को पढ़कर ही कमेंट करें ताकि जो साथी केवल “जय गुरुदेव” लिखकर/इमोजी लगाकर उपस्थिति दर्ज़ करा रहे हैं, उन्हें भी इस जटिल विषय को समझने में सहायता मिले एवं उनका जीवन भी परम आनंद की दिशा में अग्रसर हो।
यह निवेदन कमैंट्स- कॉउंटरकमेंटस की प्रक्रिया में एक पायदान ऊपर चढ़ने का संकल्प है। हम पूरे विश्वास से कह सकते हैं कि हमारे साथी इस निवेदन का भी उसी प्रकार सम्मान करेंगें जैसा आज तक करते आए हैं। यह निवेदन इसलिए महत्वपूर्ण लग रहा है कि सभी ज्ञानज्योति के प्रकाश से अपने जीवन में सुखसमृद्धि ला सकें। “मैं क्या हूँ ?” देखने में कितना सरल है लेकिन केवल इसी एक प्रश्न के उत्तर में जीवन का उत्कर्ष छिपा हुआ है, ज़रा करके तो देखें।
हमारा सौभाग्य है कि परिवार में अनेकों साथी हैं जिनके कमैंट्स से सहायता मिल सकती है। अगर लेख न भी समझ आए, कमैंट्स अवश्य ही सहायक हो सकते हैं।
अंतःकरण, आत्मज्ञान, आत्मिक शक्ति,अंतर्वेदना,आत्मपरिष्कार, आत्मविश्वास, आत्मा, परमात्मा, आत्मसमर्पण आदि सब ऐसे शब्द हैं जिन्हें केवल आत्मा के स्तर (जो हमारे अंदर विद्यमान है) से ही समझा जा सकता है, जो कठिन तो है लेकिन असंभव नहीं है।
हमारी बेटी संजना का कमेंट बता रहा है कि हम परमात्मा के अंश हैं, हम भी शक्ति के केंद्र हैं लेकिन ये बातें पढ़ने में जितनी सरल लगती हैं, अमल करने में उतनी ही कठिन है। लेकिन क्या किया जाए इसके अलावा मनुष्य को आशा की किरण दिखाने वाला एवं ढांढ़स बंधाने वाला कोई है भी तो नहीं, इसलिए उज्जवल भविष्य के लिए हमें स्वयं ही कदम उठाने होंगे।
2.ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सभी साथिओं को स्मरण होगा कि “मानवीय विद्युत के चमत्कार” पुस्तक पर आधारित हमने अभी-अभी लेख श्रृंखला का समापन किया है। इस लेख श्रृंखला का समापन हमने 23वें अंक के साथ कर दिया था लेकिन आदरणीय चंद्रेश बहादुर जी ने 23वें अंक के बजाए 24वें अंक को “समापन अंक” लिखने का सुझाव दिया। जैसा कि हम सदैव कहते आये हैं हमारे साथिओं के सभी उचित सुझावों को मानना हमारा परम कर्तव्य एवं धर्म है क्योंकि हमारे साथिओं के सहयोग से ही तो यह ज्ञानरथ सरपट दौड़े जा रहा है।
चंद्रेश जी का सुझाव हमने 6 मई 2024 को आँख खुलते ही देखा और एकदम इस सुझाव को बिना किसी प्लानिंग के संपन्न करना कठिन सा लग रहा था। मन में यही सहारा मिल रहा था कि “जिसके ऊपर तू स्वामी वोह दुःख कैसा पावे।” इन्ही शब्दों से गुरुशक्ति प्राप्त करके, हम गुरु का नाम लेकर जुट गए गुरु र्म निभाने में। मन में इतना मार्गदर्शन तो ज़रूर था कि मानवीय विद्युत् पर ही कुछ और लिखना है क्योंकि 23 लेख तो इसी विषय पर लिखे थे। वर्षों पुरानी अपनी प्रवृति की अवहेलना तो कर नहीं सकते थे कि जो भी हो, कोई भी इधर उधर से पकड़ कर लेख प्रकाशित करके काम चला दिया जाए।
इसी उधेड़-बुन में हमारी गूगल सर्च आरम्भ हो गयी लेकिन हम क्या देखते हैं कि सर्च में पहली ही एंट्री ऐसी आयी कि हम गुरुदेव की शक्ति को नमन किया बिना न रह पाए और ऐसे मार्गदर्शन ने हमें गुरु के प्रति और भी समर्पित कर दिया। यह एंट्री थी, गुरुदेव द्वारा ही रचित “दिव्य शक्तियों का उद्भव प्राणशक्ति से” शीर्षक वाली पुस्तक। इस एंट्री के प्रकट होते ही हमें पूर्वप्रकाशित लेख का स्मरण हो आया जिसका शीर्षक था “मैंने कुछ लिखने वाली उँगलियाँ तैयार कर दी हैं”, अब कैसे न कहा जाए कि हमारी लेखनी को मिल रही सराहना के पीछे हमारे गुरु की दिव्य सत्ता है, वही लिख रहे हैं, उन्हीं का साहित्य है उन्हीं के विचार हैं।
इस दिव्य पुस्तक के एक एक चैप्टर को स्क्रोल करके देखना शुरू कर दिया, कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या लिखें, क्योंकि यह चंद्रेश जी का सुझाव Unplanned होने के कारण एक बड़ी चुनौती की भांति आया था। नार्मल सिचुएशन में तो कई-कई दिन बल्कि कई महीनों पहले योजना बन जाती है और क्रमबद्ध आगे चलते रहते हैं। समय सीमा भी दिख रही थी। अपने सभी दैनिक क्रियाकलापों को एक तरफ रख कर इसी चुनौती को पूर्ण करने में जुटे रहे। भाई साहिब के कमेंट एवं सुझाव को भी respond न कर पाए। तभी सोने से पहले भाई साहिब ने व्हाट्सप्प पर सुझाव के बारे में पूछा तो छोटा सा रिप्लाई करके कार्य संपन्न करने में लगे रहे। आज God helps those who help themselves वाली बात पूर्ण होती दिखी। 5 घण्टे सर्च/स्क्रॉल करते-करते गुरुदेव ने ठीक उसी चैप्टर पर लेकर खड़ा कर दिया जो पूर्व प्रकाशित 23 लेखों के साथ मेल खा रहा था। देखकर इतनी हैरानगी हुई कि सारी पुस्तक किसी अन्य विषय पर थी,मात्र एक ही चैप्टर मानवीय विद्युत् पर था, हैं न गुरु शक्ति का कमाल, सच में गुरुदेव का कहा साबित हो गया,” तू मेरा काम कर मैं तेरा करूंगा। पूरी निष्ठा और समर्पण से लेख तैयार किया और ठीक समयानुसार गुरु ने न केवल प्रकाशित ही करा दिया बल्कि सराहनाओं से हमारी झोली भी भर दी।
चंद्रेश जी कमेंट ने करके लिखा : विभिन्न उदाहरण के माध्यम से यह अंक अपने में अद्वितीय बन गया है। यह परम पूज्य गुरुदेव जी द्वारा चुने गए सर्वोत्तम संचालक के शारीरिक बिजली का प्रभाव है। इसके लिए संचालक महोदय की कलम को कोटि-कोटि नमन करते हुए परम पूज्य गुरुदेव जी से प्रार्थना करते हैं कि वे संचालक जी के अन्दर ऐसे ही बिजली को प्रवाहित करते रहें ।
जब मेरे द्वारा यह विनम्र सुझाव प्रस्तुत किया गया, तो काफी समय तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई तो मैं डर गया था कि लगता है आज मुझसे कोई बहुत गलत कार्य ही गया, यहां तक कि इसके लिए हमने डा. साहेब से क्षमा याचना भी कर ली थी, लेकिन जब डा. साहेब द्वारा यह बताया गया कि मेरे सुझाव पर गंभीरता से कार्य हो रहा है, तब मन को सुकून मिला।
3.निशा जी एवं सुमनलता जी के कमेंट :
शब्द सीमा के कारण स्पेशल सेगमेंट के पिछले अंक में आदरणीय निशा भारद्वाज जी का कमेंट शेयर नहीं हो पाया था इसके लिए ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की प्रथा का पालन करते हुए बहिन जी का कमेंट निम्नलिखित प्रस्तुत है :
बहिन निशा जी लिखती हैं कि शांतिकुंज प्रवास के दौरान अपने कमरे की बहनों को मैंने oggp के बारे में बताया लेकिन सफ़ल नही हो पाई। एक लड़की जो गुरुदेव और मिशन के लिए बहुत ही समर्पित थी उसे भी इसमें मंच में कोई रुचि नहीं लगी बल्कि उसने तो इतना कह दिया कि मेरा फोन गुरुदेव की विडियोज से भरा पड़ा है,मैं तो टोलियों में भी जाती हूँ और मेरे पास इतना समय ही नहीं है। बहिन जी लिखती हैं कि मेरा यह मानना है कि गुरुदेव उससे उसी फील्ड में काम करवाना चाहते हैं।
परम पूज्य गुरुदेव की कृपा के बिना इस दिव्य परिवार में आना नामुमकिन है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस परिवार के सभी परिजन मानवीय मूल्यों का पालन करते हैं, उस लड़की की बात में मुझे “अहम” अनुभव हुआ था। पता नहीं क्यों, सच्चाई तो गुरुदेव ही जानते हैं।
इस लड़की की इच्छा शांतिकुंज में रहकर समयदान देने की है। मेरी परम पूज्य गुरुदेव से प्रार्थना है कि उसकी इच्छा को पूरा करें । कुंवारी होने की वजह से उसे अनुमति नहीं मिल रही है लेकिन अपने परिवार में वह अकेली ही है और उसके माता पिता भी नहीं है । वह तो गुरुदेव को ही सब कुछ मान बैठी है
बहिन निशा जी के कमेंट पर बहिन सुमनलता जी ने कॉउंटर कमेंट करके निम्नलिखित लिखा :
आप सही कह रही है बहिन जी। गुरु की “सेवा के अहंकार” से ग्रसित व्यक्ति को समझाना कठिन है। गुरुदेव स्वयं कह गए हैं कि सद्ज्ञान जहां से भी मिले ग्रहण करो। हमारे संज्ञान के अनुसार उसके इसी भाव के कारण गुरुदेव उसे अनुमति नहीं दे रहे। गुरु की शरण में आने के लिए तो अपने “अहं” को गलाना ही पड़ता है। हमारे परम आदरणीय त्रिखा भाई साहब को देखिए ,जो हम सब से गुरुदेव की भांति कितना स्नेह करते हैं। अपने ज्ञान का कभी अहंकार नहीं किया।आप की इस बात से हम भी सहमत हैं कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सभी परिजन गुरुदेव की अनुकंपा से एक मंच पर एक समर्थ मार्गदर्शक के संरक्षण में एकत्रित हैं। यहां वहीं भाग्यशाली आ पाते हैं जिनका चयन स्वयं गुरुदेव कर रहे हैं।


ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के समर्पित साधकों ने आदरणीय डॉ भटनागर जी की वीडियो पर कमैंट्स रुपी विचारों की आहुतियां प्रदान करके पुण्य प्राप्त किया। इस दैनिक ज्ञानयज्ञ में 16 साधकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया,टोटल 788 आहुतियां प्रदान की गयी एवं सर्व आदरणीय चंद्रेश जी ने सबसे अधिक 102 आहुतियां प्रदान करे हुए ceremonial गोल्ड मैडल जीत लिया । चंद्रेश जी को गोल्ड मैडल के लिए, 16 सम्मानीय साधकों को 24 आहुति संकल्प पूरा करने के लिए एवं अन्य सभी साथिओं को ज्ञानयज्ञ के दिव्य हवनकुंड में सहकारिता के लिए बधाई एवं धन्यवाद्।
(1)रेणु श्रीवास्तव-49,(2)संध्या कुमार-35,(3)सुमनलता-37 ,(4 )सुजाता उपाध्याय-51, (5)नीरा त्रिखा-37 ,(6 )चंद्रेश बहादुर-25,30,47 ,(7 )पुष्पा सिंह-28,(8) राधा त्रिखा-32 ,(9 ) सरविन्द पाल-29 ,(10 )वंदना कुमार-28 ,(11)पूजा सिंह-27 ,(12)मंजू मिश्रा-36 ,(13 )निशा भारद्वाज-31 ,(14 ) आयुष पाल-37 ,(15 )पिंकी पाल-27 ,(16 )मीरा पाल-40


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