वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

जड़ और चेतन को समझने का एक और सरल प्रयास। 


8 मई 2024 का ज्ञानप्रसाद-
मनुष्य जीवन ईश्वर द्वारा प्रदान किया हुआ वरदान है जिसे अनेकों बार परिष्कृत करने के बाद ही अपना श्रेष्ठतम राजकुमार बनाकर इस धरती पर उतारा है। ईश्वर द्वारा  प्रदान किया  गया यह  दुर्लभ जीवन सार्थक तो तभी होगा जब मनुष्य इसका उद्देश्य  समझ पाएगा। उद्देश्य समझने के लिए उसे स्वयं का समझना होगा। उसे समझना होगा “मैं क्या हूँ”, मेरा अस्तित्व क्या है, मेरी जड़ें कहाँ है,मेरा उस  परमसत्ता से क्या सम्बन्ध है। आने वाले लेखों में परम पूज्य गुरुदेव की पुस्तक ‘मैं क्या हूँ” की सहायता से इन्हीं सरल से दिखने वाले जटिल प्रश्नों का उत्तर ढूंढने  का प्रयास होगा, यह प्रयास कल से आरम्भ हो रहा है लेकिन उससे पहले बहुत ही बेसिक सा प्रश्न जड़ और चेतन का अंतर् समझना होगा जिसे आज के लेख में अति संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया गया है।हम अपने प्रयास में कितने सफल हो पाए  हैं इसका मूल्यांकन  साथिओं के कमैंट्स से हो ही जायेगा। 
आज के लेख का शुभारम्भ करने से पहले हमारी सबकी बेटी कात्यानी वर्मा, अरुण वर्मा जी की बेटी को उसके जन्म दिवस पर हम सबके आशीर्वाद की आशा है। जब जब इस बेटी का नाम आएगा, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का नाम स्वयं ही उजागर होता जायेगा क्योंकि हमारे साथी भलीभांति परिचित हैं कि इस बेटी का हमारे साथ क्या सम्बन्ध है। बेटी बैंगलोर में BTech final कम्पलीट कर रही है और वहीँ किसी कंपनी में सिलेक्शन हो चुका  है।
इन्ही शब्दों के साथ, विश्वशांति की कामना करते गुरुकक्षा की ओर प्रस्थान करते हैं। 
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः ।सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ।मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥ अर्थात सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने। हे भगवन हमें ऐसा वर दो! 
जड़ और चेतन क्या है :
पौधे के उस  भाग जो जड़ कहते हैं जो बीजांकुर से विकसित होकर भूमि के भीतर प्रवेश करता है। जड़ का काम पौधे को भूमि पर स्थिर रखना एवं  उसके पोषण के लिए भूमि से खनिज,जल,लवण आदि  प्राप्त करना होता है। अगर जड़ का पोषण ठीक न हो तो पौधा  हरा-भरा नहीं रह सकता एवं नष्ट हो जाता है। पौधे का अस्तित्व उसके जड़ के साथ जुड़ा होता है। गहन अर्थों देखा जाए तो  में पूरे  का पूरा  वृक्ष ही जड़ है। ऐसा इसलिए कहा जाता है कि केवल जड़ को ही सब कुछ नहीं एवं सबसे महत्वपूर्ण समझा जाना चाहिए, तने का डालियों का, पत्तों का, फूलों का, फल का सभी का अपना-अपना योगदान है। सभी अंग-अवयवों के सामूहिक प्रयास से ही एक प्राकृतिक प्रक्रिया जिसे विज्ञान की भाषा में  Photosynthesis का नाम दिया है, सम्पन्न हो पाती है। जड़ें, धरती से जल और खनिज लेकर तने और टहनियों से होते हुए पत्तों तक पहुंचाती है जहाँ सूर्यदेव की ऊर्जा से, वायुमंडल की कार्बन डाइऑक्साइड से भोजन का उत्पादन होता है और बदले में वायुमंडल में ऑक्सीजन छोड़ी जाती है, यही वोह ऑक्सीजन है जिससे पर्यावरण की शुद्धि होती है। 
तो इस प्रक्रिया से देखा जा सकता है कि वृक्ष में केवल जड़ को ही सारा श्रेय देना उचित नहीं होगा क्योंकि वृक्ष का प्रत्येक भाग निष्ठापूर्वक अपना-अपना कर्तव्य निभा रहा है। इन सभी प्रक्रियाओं को पालन करने के बाद ही वृक्ष पर सुन्दर मीठे-मीठे फल लगते हैं। प्रकृति ने  पेड़ पौधों को यही कार्य निर्धारित किए हैं, यही उनका कर्तव्य है जिसे वोह अनवरत निष्ठापूर्वक निभाए जा रहे हैं ठीक उसी तरह जिस प्रकार ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का प्रत्येक सदस्य अपने कर्तव्य निभा रहा है  
Photosynthesis दो शब्दों के मेल से बना है, Photo- जिसे सरल विज्ञान की भाषा में प्रकाश से जोड़ा जाता है और Synthesis का अर्थ है किसी पदार्थ का उत्पादन करना ।
चेतन तत्व क्या है ?    
संसार में उपस्थित सभी वस्तुएं जड़ पदार्थ हैं और किसी न किसी रूप में सभी में उस अपरिमित ऊर्जा का अंश विद्यमान है, जो इस विशाल  संसार को संचालित कर रहा है। सुर्य का उद्देश्य संसार को प्रकाशित करना  है, पर्वत, नदियां, वनस्पति, जीवजंतु सभी का  इस संसार में होने का कोई न कोई मूल कारण है। हर कोई  विधि के विधान से बंधा हुआ है उसी से संचालित है। हम मनुष्य भी किसी विशेष  उद्देश्य से ही इस संसार में भेजे गए हैं।  
मानव शरीर जड़ त्तत्वों से बना है एवं इसके भीतर भी  एक ऊर्जा है। यही ऊर्जा शरीर का संचालन करती है जिसे “चेतन त्तत्व” कहा गया  है, इसे ही  “आत्मा” की संज्ञा दी गई है। शरीर जड़ है, नश्वर है और आत्मा चेतन है, अविनाशी है। शरीर में व्याप्त आत्मा ही  उस विशाल  परम ऊर्जा का अंश है जो संसार में हर जगह व्याप्त है । इस ऊर्जा के बिना शरीर का कोई अस्तित्व ही नहीं है। ऊर्जा, आत्मा, प्राण के निकलते ही यह शरीर मिट्टी हो जाता है। प्राण निकलते ही हँसता-खेलता शरीर शव की संज्ञा प्राप्त कर लेता है।  कुछ पल पूर्व जिसका वियोग असहनीय था अब उससे  शीघ्र अति शीघ्र छुटकारा पाने का प्रयास है। यह स्थिति यहीं नहीं रुक जाती, कुछ समय घर में रखने से इसे भूत की संज्ञा भी देकर डराया जाने लगता है -यही है अज्ञान और ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का इसी अन्धकार से बाहिर निकाल कर प्रकाशमई जीवनयापन का प्रयास है।
जिस प्रकार जड़ के रुग्न हो जाने पर वृक्ष की पत्तियां भी सुख जाती हैं, समूचा वृक्ष सूखने लगता है, ठीक उसी प्रकार मानव शरीर के किसी भी अंग के रोगग्रस्त होते ही  समस्त शरीर रोगग्रस्त होने लगता है। जिस प्रकार एक अस्वस्थ वृक्ष हरा-भरा नहीं रह सकता, उसमें फल-फूल नहीं लगते, वह अपने कार्यों में असफल हो जाता है, ठीक उसी प्रकार एक अस्वस्थ शरीर अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में असमर्थ हो जाता है।
मनिषिओं ने मानव शरीररुपी काया  को  एक सराय एक होटल कहा है। यह एक ऐसी सराय हैं जिसमें आत्मा “कुछ समय” के लिए आती है Check in करती है ,वास करती है और फिर check out कर जाती है। यही “कुछ समय” ही मनुष्य का जीवन काल है।जब यह ऊर्जा तन से बाहर चली जाती है, तो यह नष्ट हो जाता है। यही मृत्यु है। जन्म और मृत्यु के बीच का समय-अंतराल ही जीवन है जो  दो दिन का भी हो सकता है और 100 वर्ष का भी। यह छोटा सा जीवनकाल ही है जिसमें ईश्वर को (उसका राजकुमार होने के नाते) हमसे बहुत बड़ी आशाएं हैं   
चेतन को जानने के लिए जड़ का पोषण और संरक्षण आवश्यक है, और इसके लिए भी कार्य करने होते हैं। शरीर को स्वच्छ रखने, स्वस्थ रखने हेतू परिश्रम करना पड़ता है। एक स्वच्छ और स्वस्थ शरीर से चेतना को जगाने के लिए पुरषार्थ  करना संभव हो पाता है। मनुष्य के भौतिक क्रिया-कलापों में संलग्न रहने का यही अर्थ है। चुंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, अतः विस्तृत दायरे में पारिवारिक, सामाजिक दायित्वों का निर्वहन भी उसका कर्तव्य है लेकिन इन क्रियाओं में उलझकर रह जाना सर्वथा अनुचित है। 
जब ईश्वर ने मनुष्य को सब साधन उपलब्ध करा दिए तो उन साधनों का सदुपयोग करना मनुष्य का ही कर्तव्य एवं उद्देश्य होना चाहिए। जड़ से चेतन नहीं है बल्कि चेतन से जड़ का अस्तित्व है। चेतन के बिना तो जड़ एक शव की भांति ही है। शरीर की सार्थकता तब तक ही है जब तक शरीर में प्राण हैं।  
सुख और आनंद में अंतर्: 
जिस प्रकार नियमितता से सराय की  साफ़ सफाई होना आवश्यक है ठीक उसी तरह चेतना/ प्राण के वास के लिए शरीर की सफाई एवं स्वस्थ होना बहुत ही अनिवार्य है। मनुष्य इस भ्रान्ति में लिप्त रहता है कि सांसारिक दायित्वों का निर्वहन करना शरीर एवं आत्मा की सफाई है लेकिन इन समस्त कार्यों  को तुच्छ माना गया है। ऐसा इसलिए कहा गया है कि इन तुच्छ  कर्मों से प्राप्त होने वाला “सुख” क्षणिक होता है। सुख का संबंध जड़ त्तत्वों से है, बाह्य जगत से है, जबकि “आनंद” का संबंध चेतन तत्त्व से है, आंतरिक जगत से है।  सामान्य मनुष्य की कमज़ोरी है कि वह  क्षणिक सुख को ही जीवन का आनंद समझ लेता है, और भौतिक क्रिया-कलापों में ही सारा  जीवन लगा देता है। इसी भागदौड़ में  मनुष्य के जीवन का अंत हो जाता है।
मनुष्य के भीतर व्याप्त  चेतना के  विकास में  सबसे बड़ा शत्रु (बाधक) उसका “मन” है। मन ही वोह रुकावट है जो  शरीर और आत्मा के बीच खड़ा है। मनुष्य जीवन के तीन स्तर हैं शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक। मनुष्य का मन भौतिकता की ओर भागता है। जो मनुष्य अपने मन को नियंत्रित कर अपने मानसिक स्तर को स्वच्छ कर पाता है, मन को काबू करते हुए, बार-बार डाँट कर सही दिशा में,अर्थात् आध्यात्मिकता की ओर ले जाने का  प्रयत्न करता है, वही  मनुष्य  पुरुषार्थी होता है।
सब जानते हैं कि मनुष्य जीवन बहुत ही  छोटा है लेकिन ईश्वर द्वारा सौंपा गया कार्य बहुत ही  बड़ा है। प्राण शक्ति यानि परम ऊर्जा का थोड़ा ही अंश जड़ शरीर के भीतर मौजूद है। शरीर के नष्ट होने तक, यानि इसे जीते जी समस्त बंधनों से मुक्त कर देने में ही जीवन की सार्थकता है। जीवन में भटकाव बहुत हैं, अतः इन भटकावों में भटकने के बजाय तन-मन को श्रेष्ठ कार्यों में लगाने के लिए पुरुषार्थ करने की आवश्यकता है।
पुरुषार्थी मनुष्य मानसिक जगत में अपने लक्ष्य को निर्धारित कर आगे बढ़ता है। भौतिकता में संलग्न रहते हुए  भी वह इसमें लिप्त नहीं होता। वास्तव में भौतिकता में आगे बढ़ना  उन्नति नहीं है। आध्यात्मिक साधना के बल पर ही मनुष्य आनंद का अनुभव कर सकता है उन्नति की ओर अग्रसर हो सकता है। 
उपनिषद में  कहा गया है कि अनंत आनंद का अनुभव ही ब्रह्म  का अनुभव है। यही जड़ से चेतन तक की यात्रा है,  यही जीवन का मूल उद्देश्य है।


579  आहुतियां,14   साधक आज की महायज्ञशाला को सुशोभित कर रहे हैं, आदरणीय सरविन्द जी  ने इस महायज्ञ में सबसे अधिक (57 ) आहुतियां प्रदान करके गोल्ड मेडलिस्ट  का सम्मान प्राप्त किया है, उन्हें हमारी बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।  
(1)प्रेरणा कुमारी-24,(2)संध्या कुमार-32  ,(3)सुमनलता-25   ,(4 )सुजाता उपाध्याय -37 ,(5)नीरा त्रिखा-29   ,(6 )चंद्रेश बहादुर-36   ,(7 ) अरुण वर्मा-30  ,(8) राधा त्रिखा-26,(9 ) सरविन्द पाल-26,31   (10 )वंदना कुमार-33   ,(11)पूजा सिंह-24   ,(12)पिंकी पाल-24  ,(13 )आयुष पाल-24 , (14 )पुष्पा सिंह-24    


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