वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

सुझाव चंद्रेश जी का, प्रयास हमारा। समापन लेख 23वां नहीं बल्कि 24वां होना चाहिए। 

7 मई 2024 का ज्ञानप्रसाद

आज के लेख की भूमिका में केवल इतना ही लिख सकते हैं कि नमन है उस गुरु को जिसने आज का unplanned लेख लिखने के लिए भी “दिव्य शक्तियों का उद्भव प्राणशक्ति से” शीर्षक से अद्भुत पुस्तक थमा दी और हम आपके समक्ष प्रस्तुत हो पाए। शनिवार के स्पेशल सेगमेंट में कुछ वर्णन करने का प्रयास करेंगें। 

आदरणीय डॉक्टर चिन्मय पंड्या अपने उद्बोधनों में अनेकों बार परम पूज्य गुरुदेव के कक्ष में अनुभव होने वाले वातावरण को बता चुके हैं, भाई साहिब बता चुके हैं कि गुरुदेव  के कक्ष में इतना प्रकाश होता था कि ऑंखें चुंधिया जाएँ, तापमान इतना अधिक होता था कि पसीना आ जाए। जिस व्यक्ति को तप साधना द्वारा अर्जित की गयी गुरुदेव की शक्ति पर विश्वास नहीं है वह तो इसे कोरी प्रशंसा एवं गप समझकर नकार सकता है। यही नेत्रहीन व्यक्ति को दीपक से प्राप्त हो रहा प्रकाश नहीं दिख रहा तो इसका मतलब यह तो कतई नहीं है कि दीपक अन्धकार बरसा रहा है। प्रकाश तो चारों ओर हैं लेकिन उस प्रकाश को देखने के लिए आँखें तो चाहिए ही। कोयले की अंगीठी, रूम हीटर से केवल उसके पास वाले व्यक्ति को ही गर्मी नहीं मिलती बल्कि सारा कमरा ही गर्म हो जाता है। सेंट्रल हीटिंग से सारा घर ही गर्म हो जाता है। आग रहती तो ईंधन की सीमा में ही है लेकिन  उसकी गर्मी और रोशनी दूर-दूर तक फैलती है। सूर्यदेव लाखों करोड़ों किलोमीटर दूर होते हुए भी अपने प्रकाश एवं ताप को, सभी को, बिना किसी भेदभाव से अनवरत पहुँचा रहे हैं । परम पूज्य गुरुदेव जैसे प्राणवान् व्यक्ति एवं उनके संरक्षण में गढ़े गए आदरणीय चिन्मय भाई  साहिब जैसे व्यक्तित्व अपने प्रचण्ड ज्ञान  का प्रभाव सुदूर क्षेत्रों तक पहुंचा रहे हैं। 

यह एक ऐसा अद्भुत प्रभाव है जिससे न केवल व्यक्तित्व बल्कि परिस्थितयां भी बदली जा रही हैं। इस बदलाव के पीछे जो अदृश्य शक्ति, परम पूज्य गुरुदेव की सूक्ष्म शक्ति कार्य कर रही है, उसी को हम मानवीय बिजली कहते हैं,“प्राण शक्ति” कहते हैं। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का बच्चा-बच्चा इस तथ्य से भलीभांति परिचित है कि इस ज्ञानरथ के सारथि में कितनी शक्ति है।  हम तो यह कहने में भी झिझक नहीं करते कि आज का unplanned लेख  भी गुरुदेव ही लिखवा रहे हैं।   

“प्राणशक्ति” के विवेकपूर्ण विश्लेषण से कहा जा सकता है कि यह शक्ति  देव और दैत्य दोनों स्तर की हो सकती है। यदि इस प्राणशक्ति के  उचित प्रयोग से सत्परिणाम उत्पन्न होते हैं तो अनुचित प्रयोग से विनाश भी होते हैं। विद्युत प्रवाह वाले तार को स्पर्श करते ही सारे शरीर  में न केवल बिजली दौड़ जाती है  बल्कि एक प्रेमी की भांति  अपने आगोश में लेकर साथ ही चिपका लेती है । प्राण विद्युत,प्राण शक्ति का प्रभाव भी कुछ ऐसा ही होता है। प्राणवान् व्यक्ति (गुरु)  दुर्बल प्राणों को अपना बल ही नहीं, स्तर भी प्रदान करते हैं। हमारे साथी ऋषियों के आश्रमों में सिंह और गाय के प्रेमपूर्वक निवास करने के  तथ्य से भलीभांति परिचित होंगें। इस उदाहरण से समझा जा सकता है कि प्राणवान् व्यक्तित्व  अपनी सद्भावना से पशुओं तक को  प्रभावित कर सकते हैं । हमारे ज्ञानरथ परिवार में मानवीय मूल्यों का राग इसी उद्देश्य  से अलापा जाता है। बिजली के तार में दौड़ रहा  विद्युत प्रवाह किसी में कोई भेद नहीं करता । वह सब पर अपना प्रभाव एक समान दिखाती है लेकिन  मानव शरीर में संव्याप्त विद्युत शक्ति  की स्थिति भिन्न है। उसमें “चेतना और संवेदना” के दोनों तत्व विद्यमान हैं। वह समस्त शरीर पर शासन करती है और मस्तिष्क उसका केंद्रीय डिपार्टमेंट है, राजधानी है । मानव शरीर में पाई जाने वाली बिजली वस्तुतः चेतनात्मक है। उसे “प्राण प्रतिमा” कहा गया है वह शक्ति ही नहीं संवेदना भी है। विचारशीलता उसका विशेष गुण है। वह नैतिक और अनैतिक तथ्यों को अनुभव करती है और इस  आधार पर भौतिक बिजली की तरह सभी के लिए एक जैसी उपलब्ध नहीं होती।  

मानव शरीर में स्थित छोटी-सी खोपड़ी में इतना बड़ा कारखाना किस प्रकार संजोया- जमाया हुआ है, इसे देखकर बनाने वाले ईश्वर की  कारीगरी पर चकित रहने के सिवाय कोई विकल्प नहीं  है। अति अनुभवी एवं शिक्षित वैज्ञानिक ही बता सकते हैं कि  क्या ऐसा  “साधन सम्पन्न इलेक्ट्रानिक मस्तिष्क” बनाकर खड़ा करना संभव है,  अगर है तो कैसे ?   

वैज्ञानकों ने “मानवी ज्ञान तंतुओं” (बिजली के तारों जैसे तंतु) की  खोज की है। इनके प्रतिपादनों के अनुसार ज्ञान तन्तु एक प्रकार के तार हैं जिनमें निरन्तर बिजली दौड़ती रहती है। पूरे शरीर से इन धागों को समेटकर एक लाइन में रखा जाय तो उनकी लम्बाई एक लाख मील से भी अधिक बैठेगी। विचारणीय है कि इतने बड़े तन्त्र को विभिन्न दिशाओं में गतिशील रखने वाले यन्त्र (मस्तिष्क)  को कितनी अधिक बिजली की आवश्यकता पड़ेगी। हमने इस लेख में मानवी मस्तिष्क का चित्र संलग्न किया है जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि मस्तिष्क किसी supercomputer से कम नहीं है। 

विज्ञान ने यह भी प्रमाणित कर दिया है मानव शरीर के इर्द- गिर्द एक “विद्युतीय आभा” का वास होता है। इस आभा  के रंगों एवं उभारों में होते रहने वाले परिवर्तनों को “विचारों का  उतार चढ़ाव” माना गया है । इन आभा परिवर्तनों को मात्र विचारों का ही नहीं शारीरिक स्वास्थ्य का प्रतीक भी माना गया और उसके आधार पर शरीर के अन्तराल में छिपे हुए रोगों के कारण भी परखे गये। इस प्रभा मण्डल को “प्रत्यक्ष सूक्ष्म शरीर” की संज्ञा दी गई है। उसका वैज्ञानिक नामकरण “दी बायोलॉजिकल प्लाज्मा बॉडी,The Biological plasma body”  किया गया है। 

मनुष्य शरीर में विद्युत की तेज तरंगें होने के बात कोई नयी नहीं है। यह बात लगभग 150 वर्ष पूर्व 1869 में सर्वप्रथम फ्रांस से प्रकाशित हुए Medical journal में डाक्टरों द्वारा निरीक्षण के एक ताज़े  बयान के रूप में सामने आई। फ्रांस के लियोन्स (Lyons) नामक नगर में परिवार में एक बच्चे का जन्म  हुआ। जब बच्चे की आयु  सात महीने हुई, तभी से घर वालों को शिकायत होने लगी कि बच्चे के शरीर को स्पर्श करने से बिजली का झटका लगता है। 10वें  महीने तक स्थिति यह हो गई कि बच्चे के पास जाना भी कठिन हो गया। कई लोग साहस  करके उसके पालने  के पास गये भी लेकिन कोई भी  उसके झटके सहन न कर सका, सभी  झटका खाकर नीचे गिर गये। अन्ततः बच्चे की मृत्यु हो गई। मरने से 10 सेकंड  पूर्व उसके शरीर से एक हल्का नीला प्रकाश प्रस्फुटित हुआ, डाक्टरों ने उस प्रकाश के  फोटो भी लिए लेकिन उस समय की टेक्नोलॉजी के कारण कुछ विश्लेषण न हो सका। बच्चे  की मृत्यु के समय उसके शरीर में कोई गर्मी न थी। इससे यही तो साबित होता है  कि मनुष्य के पास  “प्राण विद्युत” जैसी ही कोई शक्ति अवश्य है। मनुष्य के शरीर में यह विद्युत् चाहे उसके द्वारा ग्रहण किये गए अन्न से उत्पन्न होती हो या किन्हीं और आकाशस्थ माध्यमों से, लेकिन यह बात निश्चित है कि “यह विद्युत ही जीवन गति और चेतना को धारण करने वाली है।  जब तक इस “प्राण विद्युत” की जानकारी नहीं होगी तब तक मनुष्य जीवन की यथार्थता नहीं जानी जा सकती विज्ञान चाहे कितनी  ही प्रगति क्यों न करले । इस सन्दर्भ में भी हमने एक चित्र संलग्न किया है जिससे  देखा जा सकता है कि यह आभामंडल, प्रभामंडल एवं  तेजोवलय सम्पूर्ण शरीर के इर्द-गिर्द कैसे  छाया रहता है। इसकी चौड़ाई शरीर से बाहर 3 से 7 फुट तक की पाई जाती है।

पिछले अनेकों लेखों में हम कहते आए  हैं कि विचारों की गति इतनी तीव्र होती है कि एक सेकंड में पृथ्वी के 3 चक्र लगा लें। राकेट को चन्द्रमा तक पहुंचने में कई दिन लग जाते हैं लेकिन  मन और विचार  तो वहां एक क्षण में पहुंच सकते हैं। विज्ञान के इस तथ्य के विरोधी अवश्य ही कह सकते हैं कि यह तो मात्र कल्पना की बात है लेकिन ऐसा नहीं है। कल्पना के साथ जब  “चेतनात्मक ऊर्जा” जुड़ जाती  है तो वह Speed of light and energy  की एक सशक्त तथ्य बन जाती है और वही कार्य करती है जो अन्तरिक्षव्यापी Magnetic  शक्तियां काम करती हैं। 

इन शक्तियों के प्रमाण तो हम अपने दैनिक जीवन में प्रतिदिन देख रहे हैं। बिजली का स्विच आन करते ही सारा कमरा रोशन हो जाता है अर्थात कितनी स्पीड से यह ऊर्जा स्विच से बल्ब तक पंहुच जाती है। इसी का एक उदाहरण हम प्रतिदिन अपने मोबाइल फ़ोन पर देखते हैं। हम एक दूसरे को  इमोजी भेज रहे हैं, फोटो-वीडियो भेज रहे हैं, मैसेज भेज रहे हैं। अगर हम इस आदान प्रदान के बेसिक  विज्ञान के बारे में छोटे बच्चे के ज्ञान की भांति ही सोचें तो अचंभित हो जायेंगें कि यह सब कैसे संभव हो रहा है। इस आदान-प्रदान की तुलना में मानवीय ऊर्जा का आदान-प्रदान तो बहुत ही तेज़ है। मोबाइल से आप जो कुछ भी प्रोसेस करते हैं सबसे पहले वोह फ़ोन में मेमोरी कार्ड, हार्ड डिस्क, मदर बोर्ड से होकर घर के मॉडेम (Modem) द्वारा रिसीव होता है, उसके बाद आपके  गाँव/नगर में फ़ोन कंपनी द्वारा इनस्टॉल किये गए फ़ोन  टावर इसे रिसीव करते हैं, इसके बाद वह फ़ोन कंपनी के सिस्टम टावर पर रिसीव होते हैं और फिर न जाने कहाँ से होते हुए www जिसे World wide web कहते हैं विश्व्यापी सेंट्रल कंप्यूटर पर रिसीव होते हैं। यहाँ रिसीव होने के बाद फिर आपके मित्र के फ़ोन पर डिलीवर होने का प्रोसेस भी इन्ही स्टेप्स को फॉलो करता है। हमने  तो यहाँ सरलता से समझने के लिए केवल कुछ एक मोटे-मोटे स्टेप्स  ही दिए हैं। इन स्टेप्स तो देखने के बाद अनुमान लगाया जा सकता है कि विद्युत् तरंगों की स्पीड क्या है। मैसेज भेजते हैं और उसी क्षण दूसरे फ़ोन पर आपका मित्र रिसीव कर लेता है, चाहे वह विश्व के किसी भी कोने में क्यों न हो। 

आशा करते हैं कि विज्ञान के इन सरल  से उदाहरणों की सहायता से हमें विचारों की, संवेदनाओं की, ज्ञान तरंगों की और मानव शरीर में दौड़ रही बिजली, उसकी स्पीड एवं तरंगों से प्राप्त होने वाले लाभ का कुछ तो ज्ञान अवश्य  ही हुआ होगा। 

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932 आहुतियां,24  साधक आज की महायज्ञशाला को सुशोभित कर रहे हैं, आदरणीय सरविन्द जी  ने इस महायज्ञ में सबसे अधिक (101) आहुतियां प्रदान करके गोल्ड मेडलिस्ट  का सम्मान प्राप्त किया है, उन्हें हमारी बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्। सरविन्द जी को 101 डॉलर का शगुन तो बनता ही है। 

सरविन्द जी के सारे परिवार को बधाई।  

(1),रेणु श्रीवास्तव-34,(2)संध्या कुमार-55  ,(3)सुमनलता-35  ,(4 )सुजाता उपाध्याय -53     ,(5)नीरा त्रिखा-34  ,(6 )चंद्रेश बहादुर-52  ,(7 )निशा भारद्वाज-30 ,(8) अरुण वर्मा-41 ,(9 ) सरविन्द पाल-25,76  (10 )वंदना कुमार-33  ,(11)पूजा सिंह-30  ,(12) अनुराधा पाल-47 , (13)राधा त्रिखा-33 ,(14)पिंकी पाल-32 ,(15)मीरा पाल-26,(16) आयुष पाल-26, (17) संजना कुमारी-27, (18)साधना सिंह-29,(19)पूनम कुमारी-26,(20) मंजू मिश्रा-27, (21 ) विदुषी बंता-29,(22)उमा साहू-27,(23) पुष्पा सिंह-28,(24 )प्रेरणा कुमारी-32                            

सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।      


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