वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

सातवें-आठवें माह में जन्म लेने वाले बच्चे   

सुप्रसिद्ध गायक एवं गीतकार कवि प्रदीप को समर्पित आज का प्रज्ञागीत 
2  मई  2024 का ज्ञानप्रसाद
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से हम परम पूज्य गुरुदेव की अद्भुत रचना “मानवीय विद्युत के चमत्कार” को आधार मानकर,अपनी परमप्रिय बेटी संजना के सुझाव पर  जिस  लेख श्रृंखला का  अमृतपान कर रहे हैं आज उस श्रृंखला का 22वां  लेख   प्रस्तुत है।  
2011 में प्रकाशित हुई 66 पन्नों की इस दिव्य पुस्तक के दूसरे  एडिशन  में परम पूज्य गुरुदेव हम जैसे नौसिखिओं,अनुभवहीन शिष्यों को मनुष्य शरीर की बिजली  से परिचित करा रहे  है। यह एक ऐसा जटिल विषय है जिसे साधारण मनुष्य (Layman) के अंतर्मन में उतार पाना कोई आसान कार्य नहीं है।
कल वाले लेख की भांति आज का लेख भी बहुत कुछ जानकारी लिए है इसलिए उचित रहेगा हम सीधा गुरुकक्षा की और रुख करें। 
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हम तो सदा से ही बच्चे के सम्बन्ध में माताओं को नमन करते रहे हैं। जब माँ की बात आती है को तब सब कुछ Unimportant हो जाता है क्योंकि “माँ केवल माँ” होती है, संतान के विषय में माँ अपना अस्तित्व तक भूल जाती है। माँ के सम्बन्ध में तो यहाँ तक देखा गया है कि माँ को चाहे अपना नाम  लिखना आता हो या नहीं लेकिन जब संतान की सुरक्षा की बात है तो वोह किसी शिक्षित महिला से कम नहीं है। नज़र से बचाने की बात तो एक तरफ, माताओं को सुरक्षा के अनेकों नियमों का ज्ञान होता है । 
जब आकाश में ज़ोरों से बिजली कड़कती है तो शरीर की बिजली का भी नाश होता है। उस समय माताएँ बच्चों को घरों के अंदर  ले जाती हैं। नज़र से बचाने के लिए ही मुंडन संस्कार से पूर्व बच्चे को भीड़भाड़ वाली जगह नहीं ले जातीं हैं।  एक-दो महीने की आयु का होने तक बच्चों  को सब लोगों के सामने नहीं लाया जाता। हाथ-पाँव में चाँदी आदि धातु के कड़े पहनाये जाते हैं, यह सब बाहरी  विद्युत् से रक्षा करने के उपाय हैं। 
भगवान् ने Full-grown बच्चे के लिए नार्मल गर्भकाल लगभग नौ मास निर्धारित किया है। अधिकतर बच्चों का जन्म नौ माह  पूरे होने पर ही होता है लेकिन कई बार इससे पूर्व भी जन्म हो जाता है। जिन बच्चो का जन्म सातवें और आठवें माह में  हो जाता है  उनकी और भी अधिक सुरक्षा करनी पड़ती है, क्योंकि गर्भ के सातवें-आठवें मास में बच्चे के अंग तो पूरे बन जाते हैं, लेकिन उसमें अभी  उचित मात्रा में विद्युत् का समावेश नहीं हो पाता। सातवें माह  में मानवीय बिजली इतनी कम  होती है कि उस पर कोई अधिक आघात नहीं पहुँचता । अक्सर देखा गया है कि  सातवें मास में पैदा हुए बच्चे अक्सर जीवित रहते हैं। बिजली की कमी के कारण ऐसे बच्चे माता की बिजली से काम चलाते हैं । आठवें  मास में पैदा होने वाले बच्चे में अपनी बिजली का विकास हो जाता है, उसे बाहरी विद्युत् के धक्के झँकोर डालते हैं और ऐसे बच्चे संसार से कूच कर जाते हैं। 
ऐसे बच्चों के जीवित न रहने में मानवीय विद्युत् के इलावा और भी अनेकों कारण हैं जिनमें  माँ के अंदर के  टेम्परेचर और बाहिर के  टेम्परेचर का अंतर् भी महत्वपूर्ण है। अक्सर इन बच्चों की मृत्यु का कारण Hypothermia (Low temperature) होता है। ईश्वर के तो सभी रंग अद्भुत हैं। Amniotic sac (बच्चेदानी) जिसमें बच्चा स्वतंत्र होकर घूमता, खेलता अठखेलिआं मारता है, का टेम्परेचर माँ के बॉडी टेम्परेचर (98.6 F) से लगभग एक डिग्री ऊपर (99.7 F) होता है। ईश्वर कैसे सहन कर लें कि उस नन्हीं सी जान को कोई भी कष्ट हो, उसे जन्म से पहले से ही सुरक्षा प्रदान किए हैं, बाद की बात तो  ही छोड़ दें। आइए चलते-चलते इस बात को  भी बता दें कि जन्म लेते ही डॉक्टर  बच्चे को रुलाने के लिए प्रयास क्यों करते  हैं। ऐसा करके डॉक्टर सुनिश्चित करते हैं कि बच्चा ठीक से सांस ले रहा है और उसके फेफड़े ठीक काम कर रहे हैं। हमारे पाठक हमें प्रश्न कर सकते हैं कि जब रेगुलर चेकअप सब कुछ बता रहे  हैं  तो जन्म लेते ही बच्चे की पिटाई क्यों की जाती है, रुलाया क्यों जाता है । इस प्रश्न का उत्तर यही है कि  कई बार मशीनों से अधिक भौतिक स्पर्श पर विश्वास किया जाता है         
माताएँ इन अधूरे बच्चों को बाहर के लोगों की नज़र  से बचाती हैं । यहाँ यह ध्यान रखने की बात है कि माता-पिता की नज़र  नहीं लगती क्योंकि उन्हीं की शक्ति से तो उत्पन्न हुआ है, वह एक प्रकार से उन्हीं का तो शरीर है। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चा जब तक एक वर्ष का न हो जाय तब तक उसे अयोग्य व्यक्तियों के हाथ में नहीं देना चाहिए और न उसे किसी को चूमने देना चाहिए।
वैसे तो जन्म के बाद हर किसी नवजात शिशु की देखभाल करनी  चाहिए लेकिन कई बार “विशेष बच्चों” के लिए माता पिता दोनों को अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता होती है। आज के युग में जैसे-जैसे विकास की गति तेज़ होती जा रही है बच्चों की बीमारियां भी अनेकों तरह की देखने में आ रही हैं। बच्चों की बीमारियां की यहाँ चर्चा करना तो उचित नहीं होगा लेकिन सावधानी बरतनी बहुत ही आवश्यक है। Special needs वाले बच्चों को नार्मल बच्चों की भांति गोद में अवश्य लेना चाहिए  लेना चाहिए लेकिन सारा दिन उस पर तरस खाना, दिन भर गोदी में लादे रखना उचित नहीं होगा। ऐसा करने से उसके विकास में खलल पड़ता है । बच्चों को गोदी में लेकर उन्हें अपने शरीर की विद्युत देना बहुत ज़रूरी है लेकिन यदि दिन भर गोद में रखा जायगा तो वोह अजीर्ण हो जाएंगें  और वैसे ही कुम्हला जाएँगे जैसे अधिक गर्मी से पौधे मुरझा जाते हैं ।
यहाँ एक और बात समझने वाली है कि विपरीत योनि वाले मानवों के पास विपरीत विद्युत होती है,वह भी बच्चों पर अपना प्रभाव डालती है। वैसे तो बच्चा अपनी छोटी सी शक्ति से माँ  के अलावा अन्य किसी शरीर से बिजली नहीं खींच सकता लेकिन फिर भी संयुक्त परिवारों में बच्चों पर निगरानी रखना बहुत ही आवश्यक है। अगर ईश्वर ने यह नियम न बनाया होता कि शिशु केवल माँ से  ही बिजली  प्राप्त कर सकता है तो न जाने क्या कुछ हुआ होता। इसलिए आवश्यक है कि इस दिशा में माताएं स्पेशल attention देने का प्रयास करें क्योंकि बच्चा तो  कदम-कदम पर सीखता ही जायेगा, उसे उचित/अनुचित का ज्ञान कहाँ है ,इसीलिए तो कहा गया है “Parenting is an unending process” बच्चा जिस भी आयु का हो, दुविधा के समय “हे माँ” शब्द ही निकलते  हैं।      
आधुनिक युग में जहाँ सब कुछ Open हुआ जा रहा है,कामवासना का विषय बहुत ही सीरियस विषय है। हमारे साथिओं में से कोई ही ऐसा होगा जो समाज की इस समस्या से परिचित नहीं होगा। लेख के सन्दर्भ में इतना ही कहना उचित होगा कामवासना भी एक प्रकार की इलेक्ट्रिक करंट ही है, इसके दुष्परिणामों से शिक्षित होकर ईश्वर का प्रसाद समझकर सदुपयोग करने में ही समझदारी है       
छोटे बच्चों के ह्रदय बहुत ही कोमल होते हैं, उन पर किसी भी प्रकार की घटना से सीरियस आघात लगता है। कई बार बचपन में लगे आघात इतने प्रबल होते हैं कि भावी जीवन में उन्हें किसी मानसिक अपूर्णता का सामना करना पड़ सकता है। यहाँ एक उदाहरण देना बहुत ही उचित लग रहा है। अक्सर  माता-पिता बच्चे को साथ रखते हुए शैया पर सो जाते हैं और काम चेष्टायें करने लगते हैं। वे समझते हैं कि बच्चा बहुत छोटा है, इसे तो कुछ पता ही नहीं है यां  यह तो सोया हुआ है। माता पिता के  इस अज्ञान का बड़ा बुरा प्रभाव बच्चे पर पड़ता है। बच्चा है तो गीली  मिट्टी का टुकड़ा, उसे जैसा चाहें ढाला जा सकता है लेकिन वह बिल्कुल गीली मिट्टी नहीं है, वह प्रबुद्ध मस्तिष्क धारण किए  हुए है। डॉक्टर फ्राइड के मतानुसार बच्चा अपने जीवन के आरंभिक दिनों में इतनी तेजी से ज्ञान प्राप्त करता है  जितना अन्य किसी आयु में नहीं करता । बच्चा चाहे कितना ही छोटा हो और वह जाग रहा हो या सो रहा हो, उस पर माता-पिता की काम चेष्टाओं का असर पड़ता ही है और वह उन बातों को बहुत छोटी उम्र में ही सीख लेता है।  
ऐसी इलेक्ट्रिक करंट का ही परिणाम है कि देखा गया है कि बहुत ही छोटी आयु के बच्चे आपस में काम चेष्टाएँ करते हैं। दस -ग्यारह वर्ष की लड़कियों में विकार जागृत होने लगता है। छोटी आयु  के बच्चे अनेक लज्जाजनक आदतों में फँस जाते हैं। वैसे तो आज के युग में इतना छोटा बच्चा इस तरह की  काम शिक्षा कहीं से भी प्राप्त कर सकता है लेकिन माता-पिता भी  अज्ञानवश उनमें असाधारण उत्तेजना का बीज बो देते हैं।  परिणामस्वरूप जरा सा होश सँभालते ही बच्चों में यह कृत्य  क्रिया रूप में प्रकट होने लगते हैं । 
परम पूज्य गुरुदेव हम सब बच्चों को एक प्रकार की डाँट लगाते  हुए कह रहे हैं कि कुछ समय पूर्व 18  वर्ष की आयु  के बच्चे  धोती बाँधना भी नहीं जानते थे, लेकिन आज के  18 वर्षीय बच्चे  बहुत कुछ जानते हैं और इसी ज्ञान का परिणाम है कि  अब इस उम्र के बच्चे  तो माता पिता भी बन जाते हैं। 
एक बार फिर से, लेख के अंत में यही कहेंगें कि सद्ज्ञान की प्राप्ति से ही जीवन सुखमय होता है और उसी दिशा में अग्रसर होने का प्रयास होना चाहिए। 
आज के लेख की यही गुरुशिक्षा है। जय गुरुदेव 
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680  कमैंट्स  के साथ 18   युगसैनिकों द्वारा  24 आहुति संकल्प पूर्ण करना गर्व एवं बधाई का विषय है । अति सम्मानीय सरविन्द  जी को सबसे अधिक 52, आहुतियां प्रदान करने के लिए गोल्ड मैडल प्रदान किया गया है, बहुत बहुत बधाई एवं सपरिवार  योगदान के लिए पूरे OGGP  परिवार का  धन्यवाद्।  
 (1),रेणु श्रीवास्तव-26 ,(2)संध्या कुमार-29  ,(3)सुमनलता-31,(4 )सुजाता उपाध्याय-29,(5)नीरा त्रिखा-33 ,(6 )वंदना कुमार-36  ,(7)मीरा पाल-25,(8) अरुण वर्मा-26  ,(9)साधना सिंह-26,(10) चंद्रेश बहादुर-41  ,(11) राधा त्रिखा-36 ,(12) अनुराधा पाल-30  ,(13) सरविन्द पाल-52,(14)  आयुष पाल-28 ,(15)विदुषी बंता-28  ,(16) निशा भारद्वाज-25 ,(17)पिंकी पाल-31 ,(18)प्रशांत सिंह-28,                        
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।          


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