वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

बच्चों को माता-पिता की नज़र नहीं लगती  

आज के प्रज्ञागीत के लिए कवि प्रदीप को शत शत नमन है 
https://youtu.be/Fc0IrT8nQwQ?si=mpv1SiWDisTS0xet
1 मई  2024 का ज्ञानप्रसाद
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से हम परम पूज्य गुरुदेव की अद्भुत रचना “मानवीय विद्युत के चमत्कार” को आधार मानकर,अपनी परमप्रिय बेटी संजना के सुझाव पर  जिस  लेख श्रृंखला का  अमृतपान कर रहे हैं आज उस शृंखला का 21वां  लेख   प्रस्तुत है। 
2011 में प्रकाशित हुई 66 पन्नों की इस दिव्य पुस्तक के दूसरे  एडिशन  में परम पूज्य गुरुदेव हम जैसे नौसिखिओं,अनुभवहीन शिष्यों को मनुष्य शरीर की बिजली  से परिचित करा रहे  है। यह एक ऐसा जटिल विषय है जिसे साधारण मनुष्य (Layman) के अंतर्मन में उतार पाना कोई आसान कार्य नहीं है। 
आज के लेख में  मानवीय विद्युत् से पैदा होने वाली “आकर्षण शक्ति” का वर्णन है। विश्वास नहीं होता कि आकर्षण शक्ति से बच्चों को नज़र लग जाती है, पति-पत्नी का बिछुड़ना दूभर हो जाता है, राजाओं-महाराजाओं का युद्धभूमि में जाना कठिन हो जाता है। आज के लेख के द्वारा, समाज में प्रचलित अनेकों प्रथाओं का वर्णन है जिन्हें हम आज भी  (इतना विकास होने के बावजूद) आँख मूँद कर स्वीकार किये जा रहे हैं। पता नहीं क्यों हमारी  हर बात को Ignorance  में मानने की प्रथा ही बन चुकी है। कोई भी प्रश्न  क्यों नहीं करता ? तर्क नही करता?  इसके अनेकों कारण हो सकते हैं लेकिन दो तो पक्के  हैं। पहला, किसी के पास इतना समय ही नहीं है कि वास्तविकताओं को समझने का प्रयास करे  क्योंकि वास्तविकताओं को समझने के लिए नियमित तौर से अध्ययन करना पड़ता है, उसके लिए समय चाहिए, समय किसी के पास है नहीं, यहाँ तक कि उसके पास भी जो सारा दिन  मटरगश्ती करता है( अरुण जी ने रिटायर्ड वरिष्ठों का उदाहरण भी  दिया था), टीवी एन्जॉय करता है, फ़ोन के साथ चिपका रहता है। ज्ञान न होने के कारण हर किसी तो तर्क करने से डर  लगता है कि कहीं लड़ाई न हो जाए।  दूसरा कारण है कि हमने जान कर क्या करना है ,Who cares, Take it easy, Chill man chill की प्रवृति बन चुकी है।   
हमें यह कहने में बिल्कुल झिझक नहीं है कि जिन प्रथाओं को हम आज तक आँख मूँद कर स्वीकार करते आ रहे हैं उन सभी का ठोस वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक आधार है।
ऋग्वेद का अंतिम मन्त्र है ,”सँगच्छध्वम समवद्धम सम वो मनांसि” इसका मतलब है साथ चलें  ,एक स्वर में बोलें, हमें एक साथ रहना है, एक सूत्र में बंधना है, संगठन में रहना है । रंग बिरंगे अनेक धागे “अनेकता में एकता” के प्रतीक हैं  । एक साथ रहेंगें, सामूहिकता में रहेंगें तो शक्ति कई गुना बढ़ जाएगी,अकेले टूट जाएंगें। ब्राह्मण सूत्र( रक्षा सूत्र)  बांध कर कहता था मैं तुम्हारी रक्षा करूँगा। बाद में हो गया,  “प्रभु तुम्हारी रक्षा करें। ब्राह्मणों की शक्ति कम हो गई तो यह बात हो गई यजमान मेरी रक्षा करना । सार यह है कि रक्षा सूत्र  संगठन का अटूट प्रतीक है । समय के साथ-साथ हर कोई  मूल अर्थ भूलता गया और केवल  बाहरी अर्थ ले लिया। कहानियां बना दी गयीं  क्योंकि मनुष्य कहानियां बनाने में तो माहिर है।  हर बात की नई  कहानी, जितने मुंह, उतनी ही कहानियां। कौन सी ठीक है, कौन सी गलत कोई प्रमाण नहीं। प्रमाण तो हैं लेकिन ढूंढे कौन, क्योंकि समय नहीं है। 
ज्ञानप्रसाद का  कोई  भी लेख बिना समझे, बिना तर्क के, अनेकों उदाहरणों की सहायता लेने के बिना  प्रकाशित नहीं किया जाता  क्योंकि हमारा उद्देश्य यह नहीं है कि कितनी पुस्तकें पढ़ लीं, हमारा उद्देश्य है कितनी समझ लीं।  यही कारण है कि वर्तमान  लेख श्रृंखला में अब तक के  15000 शब्दों के ओरिजिनल कंटेंट को लगभग 40000 शब्दों तक expand कर दिया है।
तो आइए चलें गुरुकक्षा में और समर्पित हो जाएं गुरुचरणों में, विश्वशांति की कामना के साथ। 
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः ।सर्वे सन्तु निरामयाः ।सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ।मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ॥ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
अर्थात सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी का जीवन मंगलमय बनें और कोई भी दुःख का भागी न बने। हे भगवन हमें ऐसा वर दो!  
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किसी व्यक्ति में स्वभावतः एक बेधक दृष्टि होती है। यदि वे साधारणतः भी किसी बच्चे की ओर विशेष ध्यानपूर्वक देखें, तो असर हो जाता है। ऐसे लोग जिनके बाल-बच्चे नहीं होते और बच्चों के लिए तरसते रहते हैं, वे जब दूसरों के बच्चे को हसरत भरी निगाह से देखते हैं तो यह असर अधिक होता है, क्योंकि लालायित होकर देखने से दूसरी चीजों का अपनी ओर आकर्षण होता है। पति जब परदेस  को जाते हैं और स्त्री उसकी ओर लालायित होकर देखती है तो रास्ते भर पति का चित्त बेचैन बना रहता है। कभी-कभी तो ऐसा भी होता है कि आकर्षणवश वापस ही  लौटना पड़ता है। प्राचीन काल में क्षत्राणियाँ पतियों को युद्ध में भेजते हुए प्रोत्साहन देकर, तिलक लगाकर भेजती थीं। इसके पीछे पत्नियों की छिपी भावना यह होती थी कि यदि हम अपने पतियों की ओर “आकर्षण विद्युत्” फेंकेगी तो वे हमारी  ओर ही खिंचे रहेंगे, युद्ध से लौट आवेंगे यां परास्त होकर आएंगें । इसी प्रकार जब कोई  लालायित होकर बच्चों की ओर देखते हैं तो उन बच्चों की आकर्षण शक्ति देखने वाले की  ओर खिंचती है और वे उसके झटके को सहन न करने के कारण  बीमार हो जाते हैं। अक्सर देखा गया है कि बच्चे को कोई भी बीमारी नहीं है लेकिन  जब अचानक बीमार पड़ जाता है तो समझा जाता है कि उसे नज़र  लग गई है ।
हमारे साथी इस तथ्य से भलीभांति परिचित होंगें कि अनेकों परिवारों में बच्चों को नज़र लगना  बहुत ही कॉमन सी बात थी/है  और हमारी  स्त्रियों को इसकी जानकारी बहुत पहले से है। नज़र  से बचाने और लग जाने पर बचाव की क्रिया से भी वे परिचित हैं। ताँबे का ताबीज़ धारण करना ,काले धागे का रक्षा सूत्र पहनना, तकिए के नीचे कैंची आदि रख कर बच्चे को सुलाना, नज़र से बचाने के कुछ ऐसे उपाय हैं जो शायद आज भी प्रयोग में हैं। यह ऐसी चीजें हैं जो  बाहरी बिजली को अपने में ग्रहण करके या उसके प्रभाव को रोककर बच्चों पर असर नहीं होने देतीं। 
कहते हैं कि आकाश की बिजली अक्सर काले साँप, काले जानवर, काले आदमी या अन्य काली वस्तुओं पर पड़ती  है । काले कपड़े जाड़े के दिनों में इसलिए पहने जाते हैं कि गर्मी  की बिजली को अपने अंदर इकट्ठा करके रख लें और अधिक गर्म रहें। इसी नियम के आधार पर काला टीका लगाया जाता है। काली भस्म चटाई जाती है।  बड़े-बड़े मकानों में गुंबजों की चोटी पर एक नुकीली काली छड़ सी लगाई जाती थी। यह छड़  इसलिए लगायी जाती थी  कि  बिजली कड़कने की सूरत में उसका प्रभाव मकान न  ग्रहण करे, बिजली को  पृथ्वी में भेज दे ओर मकान को नुकसान से बचाया जा सके। उसी प्रकार  काला टीका, डोरा आदि नज़र के प्रभाव  को अपने में ग्रहण कर लेता है और बच्चों को नुकसान नहीं पहुँचने देता।
यहाँ कहना बहुत ही उचित है कि  हँसते-खेलते बच्चों को नज़र  लगने के भय से घरों में छिपा कर तो रखा नहीं जा सकता क्योंकि बच्चे जीते जागते अमूल्य खिलोने होते हैं, उन्हें लोगों के सामने रोककर रखना, तरह-तरह के प्रतिबंध लगाना,लोगों के सामने उनकी  अमृतमयी वाणी बोलने से रोकने का अर्थ उनके प्राकृतिक विकास को रोकना तो है ही,  साथ ही साथ स्वर्गीय मधुर मिलन  में खाई पैदा करना भी है।  ऐसा करना किसी भी तरह से ठीक नहीं है।  
बच्चों को नज़र से बचाने के विषय ने गलत धारणाओं एवं प्रथाओं की जानकारी के आभाव में, भेड़चाल में सुनी सुनाई बातों पर विश्वास करने के कारण अनेकों तांत्रिकों को जन्म दे दिया है। इन तथाकथित तांत्रिकों के कुकर्म के समाचार आए दिन मीडिया में मिलते रहते हैं। समझ नहीं आता कि ऐसे अशिक्षित तांत्रिकों के हाथों बच्चों की बलि कैसे दी जा रही है। हमारा तो यही कहना है कि कड़वी  सच्चाई से आँख बंद कर लेना कभी भी समाज के हित  में नहीं रहा है। खतरा बुराई को  प्रकट करने में नहीं बल्कि  छिपाये रखने  में है। यदि सर्वसाधारण के समक्ष वास्तविक बात  प्रकट की  जाय और उससे होने वाली हानि को लोगों को समझाया जाए तो खतरा बहुत ही कम हो सकता है ।
साधारण रीति से बच्चों के साथ हँसते-खेलते रहने से कुछ भी हर्ज नहीं होता। बच्चों को  नज़र तब लगती है, जब कोई  हसरत भरी दृष्टि से देखता है । इस प्रकार की दृष्टि के अंतर्गत तरह तरह की भावनाएँ पनप रही  होती हैं जैसे कि  “काश, यह बच्चा हमें मिला होता,मुझे यह बच्चा मिल जाए तो मैं कितना खुश होऊँगा, इस बच्चे की  सुंदरता कितनी मनोमुग्धकारी है, हे  भगवान किसी प्रकार यह बच्चा मुझे दिला दो आदि आदि ।” बच्चे को देखने वाला यह बातें जुबान  से तो  नहीं कहता और न ही जानबूझकर ऐसा  सोचता भी है  लेकिन उसके मन के भीतर ही भीतर ऐसी गुप्त इच्छा उठती है। कभी-कभी तो यह इच्छा इतनी सूक्ष्म होती है कि सोचने वाला यह समझ भी नहीं सकता कि मैने ऐसी भावना की थी ।  
साधु-संन्यासी या जिन्हें बच्चों की कोई चाह नहीं होती, उनकी नजर नहीं लगती। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनके अपने तो  कई-कई बच्चे होते हैं लेकिन फिर भी संतुष्ट नहीं होते। ऐसे लोगों के मन में  दूसरों  के सुंदर बच्चों को देखकर लालच आ जाता है। ऐसी प्रवृति वाले लोगों की नज़र  लग सकती है। 
इस लेख का यहीं पर मध्यांतर होता है,कल यहीं से आगे चलेंगें। 


512 कमैंट्स  के साथ 10  युगसैनिकों द्वारा  24 आहुति संकल्प पूर्ण करना गर्व एवं बधाई का विषय है । अति सम्मानीय सरविन्द  जी को तीन यज्ञ कुंडों पर संकल्प पूरा करने के लिए  गोल्ड मैडल प्रदान किया गया है, बहुत बहुत बधाई एवं सपरिवार  योगदान के लिए पूरे OGGP  परिवार का  धन्यवाद्।  
(1),रेणु श्रीवास्तव-24,(2)संध्या कुमार-24  ,(3)सुमनलता-24  ,(4 )सुजाता उपाध्याय-49   ,(5)नीरा त्रिखा-26 ,(6 )चंद्रेश बहादुर-24  ,(7) राधा त्रिखा-34  ,(8) अनुराधा पाल-24  ,(9) सरविन्द पाल-24,26,25= 75,(10)साधना सिंह-24                       

सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई। 


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