वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

सामूहिक शक्ति का Nuclear explosion.   

https://youtu.be/FTTN57Q_X0g?si=8SYOs3gqKxs7j56u
30  अप्रैल, 2024 का ज्ञानप्रसाद
हमारी सर्वप्रिय बेटी  संजना ने  परम पूज्य गुरुदेव की अद्भुत रचना “मानवीय विद्युत के चमत्कार” पुस्तक  का रेफरेन्स दिया और गुरुदेव ने हमारी अज्ञानता के बावजूद हमसे अब  तक 19 लेख लिखवा लिए ,आज इसी दिव्य कड़ी का 20वां लेख अमृतपान के लिए प्रस्तुत है। 
आज के लेख में मानवीय विद्युत की सामूहिक शक्ति का वर्णन है जिसे आदरणीय कृष्ण मुरारी जी की सच्ची घटना प्रमाणित कर रही है। आज का प्रज्ञागीत भी सामूहिक शक्ति को ही प्रकट कर रहा है।    


हम सब जानते हैं कि विचारों का गंभीर मनन और खोज संबंधी बारीक काम तो एकांत और शांत वातावरण में होता है, लेकिन  “दबी हुई आत्म-शक्ति” को उभारने के लिए “सामूहिक सत्संग” से बड़ा बल मिलता है। जब बहुत से लोगों के मन एक ही बात पर, एक ही विषय पर  एकत्रित होते हैं तो उनकी सामूहिक  शक्ति बहुत ही प्रभावशाली  हो जाती है, और जब यह सम्मिलित शक्ति सत्संग में बैठे समर्पित साधकों में ट्रांसमिट होती  है तो लगभग सभी में उत्साह और स्फूर्ति का अद्भुत प्रवाह उजागर हो जाता  है। यही कारण है कि सभा, जुलूस, कमेटी, दरबार, पंचायत आदि  में शामिल होने पर विषय सम्बन्धी विचारों का अधिक प्रभाव होता है। 
सामूहिक शक्ति में कोई ज़रूरी नहीं कि 100-200 लोगों में ही प्रभाव दृष्टिगोचर हो। यदि केवल दो व्यक्ति ही  एकाग्रचित्त होकर बैठें और अपने विचार एक दूसरे को भेजने का प्रयत्न करें, तो थोड़े दिनों के अभ्यास से ही दोनों को आशातीत सफलता मिल सकती है। प्रारंभिक दशा में भी जो संदेश प्राप्त होंगे, उनमें बहुत से तत्त्व प्राप्त होंगे। आत्मा निर्मल होगी और एकाग्रता बढ़ जायेगी, तो उसी अनुपात से वे संदेश अधिक स्पष्ट और ठीक सुनाई देने लगेंगे। आध्यात्मिक बिजली द्वारा वायरलेस मैसेज बड़ी ही सफलतापूर्वक भेजे जा सकते हैं। हमारे अनेकों साथिओं ने अनुभव किया होगा कि जब उन्होंने ज्ञानरथ के किसी सदस्य के बारे में सोचा तो उस सदस्य का चित्र उसके सामने दृष्टिगोचर हो गया। है तो यह आध्यात्मिक बिजली की बात, जिसे स्थूल में देखना असंभव है लेकिन हमने कई बार स्थूल में भी देखा है। इसका प्रतक्ष्य प्रमाण भी साथिओं के कमैंट्स में ही सम्माहित है, एक बार नहीं बल्कि अनेकों बार हो चुका  है कि  जिस साथी के बारे में हम सोच रहे होते हैं, उसी समय फ़ोन पर आये उसके मैसेज को देख कर अचम्भा  सा होता। वैज्ञानिक तो इसे Coincidence ही कहेंगें लेकिन हमारे लिए यह एक आध्यात्मिक करंट के वशीभूत ही हुआ है। शायद ऋषि मुनियों की दिव्य दृष्टि का आधार भी यह आध्यात्मिक बिजली ही हो, हम इस के  बारे में कुछ भी कहने में अयोग्य हैं।    
हमारा ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार क्या है ?, यह भी तो सामूहिक शक्ति  का ही प्रतीक है। सभी साथी चाहे अलग-अलग समय पर, अपनी सुविधा अनुसार गुरुदेव के पारसरुपी  दिव्य साहित्य के इलेक्ट्रिक स्पर्श से न केवल ऊर्जा प्राप्त कर रहे हैं बल्कि अनेकों को अपने कमैंट्स से प्रेरणा देते हुए शिक्षित भी  कर रहे हैं। इस मंच पर प्रकाशित हो रहे कंटेंट को विशाल विश्व में कौन किस समय, कहाँ पर पढ़ रहा है इसका अनुमान तो तभी होगा जब वोह कमेंट करेगा, संपर्क करेगा (संपर्क साधना), लेकिन एक बात तो सत्य है कि यह एक Nuclear explosion है। 
सामूहिक प्रयास की  शक्ति से शायद ही  कोई अपरिचित होगा लेकिन विषय को रोचक बनाते हुए आइए गुरुदेव के शिष्य कृष्णमुरारी जी की घटना का अमृतपान करें जो बहुचर्चित पुस्तक  “अद्भुत, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य”  में प्रकाशित हुई है  : 
यद्यपि मैंने कभी गुरुदेव के साक्षात् दर्शन नहीं किए और न ही दीक्षा ली लेकिन  उनके साहित्य को पढ़कर क्रमशः उनके करीब आता चला गया। इन पुस्तकों के सहारे ही मैं वैज्ञानिक अध्यात्मवाद की गहराई में उतर सका और इस आध्यात्मिक यात्रा के क्रम में मैंने आचार्यश्री का वरण गुरु के रूप में कर लिया। उन्हें गुरु मान लेने के बाद से मुझे सूक्ष्म जगत से कई तरह के संकेत मिलने लगे। इन्हीं संकेतों के आधार पर आचार्यश्री की पुस्तकों को लेकर मैंने एक पुस्तकालय की स्थापना की, जिसमें आज अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की पुस्तकें भी उपलब्ध हैं। 
पूज्य गुरुदेव ने स्वप्न में आकर मुझे लेखनकार्य के लिए प्रेरित किया। यह गुरुसत्ता की असीम अनुकम्पा का ही परिणाम है कि आज भी कृषि विज्ञान पर लिखी गयी मेरी पुस्तकों पर कृषि वैज्ञानिकों द्वारा शोध-कार्य किए जा रहे हैं। मेरे जीवन में पूज्य गुरुदेव के अनुदान की वर्षा इस प्रकार होती रही कि गाँव का एक साधारण-सा युवक होकर भी मैंने सरकारी आमंत्रण पर  कई देशों की यात्रा की।
जीवन की छोटी- बड़ी अनेक विपत्तियों में मुझे पूज्य गुरुदेव का सहारा मिलता रहा। इन विपत्तियों के दौर में समाधान की ओर ले जाने वाले घटनाक्रम को देखकर यह बात साफ तौर से समझ में आ जाती थी कि यह समाधान किसी मानवीय प्रयासों से नहीं, अपितु सूक्ष्म चेतना के संरक्षण से मिला है।
इस तथ्य को मैंने पहली बार तब समझा, जब मेरे यहाँ डाका पड़ा। छोटी- मोटी चोरियाँ तो हमारे गाँव में हो जाया करती थीं लेकिन डकैती जैसे बड़ी वारदात से गाँव वाले उस वक्त तक परिचित नहीं हुए थे। जमींदार का परिवार होने के कारण डकैतों ने सबसे पहले मेरे ही घर पर हमला बोला। हट्टे- कट्टे शरीर वाले लगभग 40  डकैत और वोह  भी हथियारों से लैस। उन्हें देखते ही सभी के प्राण सूख गए। शिकार आदि के लिए शौकिया तौर पर पिताजी के पास एक बन्दूक थी, मगर अचानक हुए इस हमले के कारण पिताजी को बन्दूक तक पहुँचने का अवसर ही नहीं मिला। आते ही डकैतों ने उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लिया। घर के सभी लोग बुरी तरह घबरा गए।
डकैतों ने हम सभी को पूरी तरह से आतंकित करने के लिए घर के लोगों को बेरहमी से पीटना शुरू कर दिया। मेरे अन्दर बार- बार इनका विरोध करने की प्रेरणा जाग रही थी, लेकिन मैं समझ नहीं पा रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए। उन्हें छुड़ाने के लिए आगे बढ़ने का तो प्रश्र ही नहीं था। उनकी बन्दूक कभी भी आग उगल सकती थी। डकैतों के इतने बड़े गिरोह से अकेला मैं मुकाबला करूँ तो कैसे करूँ। मैंने गुरुदेव का स्मरण किया और उनसे प्रार्थना की और कहा: “हे प्रभु बताएँ, इस विपत्ति में मैं अपने परिवार की रक्षा कैसे करूँ।” मुझे लगा कि पूज्य गुरुदेव एक ही वाक्य बार- बार दोहरा रहे हैं: छत पर जा, छत पर जा….। पहले तो तनी हुई बन्दूक के सामने से भागने की हिम्मत नहीं पड़ी, लेकिन  तीसरी बार यह निर्देश मिलने के बाद मैं दौड़कर छत पर पहुँच गया। मन ही मन गुरु- गुरु, गायत्री-गायत्री जपता जा रहा था। एक छत से दूसरी छत पर कूदता हुआ मैं कई मकान आगे तक जा पहुँचा और जोर- जोर से शोर मचाने लगा। एक-एक कर लोग इकट्ठे होने लगे। सबके हाथों में लाठी- भाले आदि विभिन्न प्रकार के हथियार थे। सभी शोर मचाते हुए मेरे घर की ओर दौड़ पड़े। गाँव वालों की भारी भीड़ को पास आता देखकर डकैतों के हौसले पस्त हो गए। उस समय तक वे जो धन- संपत्ति समेट सके थे, उसे लेकर भाग खड़े हुए। 
गाँव वालों की सामूहिक शक्ति को मिली इस भारी जीत से सभी खुश थे। धन सम्पत्ति की तो काफी क्षति हुई थी, कई लोग घायल भी हो गए थे, लेकिन जान किसी की नहीं गई। खतरों से खेलकर मैंने जिस प्रकार पूरे गाँव को इकट्ठा किया, सभी बड़े- बूढ़े लोग उसकी सराहना कर रहे थे, मेरी उपस्थित बुद्धि को सराह रहे थे। एक ने पूछा- तुम्हें डर नहीं लगा? मैंने सच- सच बता दिया कि पहले तो डर लग  रहा था, मगर गुरु- गुरु जपते ही सारा डर गायब हो गया। पिताजी ने कहा- तुमने तो अभी तक दीक्षा भी नहीं ली है, फिर गुरु-गुरु क्यों कर रहा था।  मैंने उन्हें बताया कि पं. श्रीराम शर्मा आचार्य की किताबों से मुझे वैज्ञानिक अध्यात्मवाद का जो गहरा ज्ञान मिला है उसी के कारण मैंने मानसिक रूप से गुरु के रूप में आचार्यश्री का वरण कर लिया है।
इस घटना के दौरान मुझे जिस प्रकार की आन्तरिक अनुभूति हुई थी उसे देखते हुए मेरे मन में यह विश्वास पूरी तरह से जम चुका था कि उन्होंने भी मुझे अपना शिष्य स्वीकार कर लिया है। इसके बाद भी कई बार अलग-अलग रूपों में उनके दर्शन होते रहे, कभी स्वप्न में, कभी प्रत्यक्ष।
इस घटना से सामूहिक शक्ति का तो प्रतक्ष्य प्रमाण मिल ही रहा है, साथ ही इस विश्वास  पर भी मोहर लग रही है कि भले ही किसी ने गुरुदेव को देखा भी न हो, गुरुदेव का साहित्य इतना शक्तिशाली है कि मात्र इसके नियमित अध्ययन से ही गुरुदेव के निकट स्थान प्राप्त किया जा सकता है। इसी घटना की एक वीडियो भी प्रकाशित हो चुकी है जिसे हमारी आदरणीय बहिन सुमनलता जी न केवल देख चुकी हैं बल्कि कमेंट भी कर चुकी हैं।          
यदि अनेकों व्यक्ति एक साथ किसी निश्चित उद्देश्य के लिए प्रयास एवं अभ्यास करें, एक ग्रुप बनाकर सत्संग किया करें, तो उन्हें एकांत की अपेक्षा अधिक लाभ होगा । यहाँ यह बात  स्मरण रखने योग्य है कि सामूहिक एवं साधना एवं सत्संग का फल केवल शक्ति का उदय होने तक ही सीमित  है।अगर किसी विषय को समझना है, उसके प्रति जानकारी प्राप्त करनी है एवं कोई प्रयोग/अन्वेषण करना है तो उसके लिए एकांत अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऐसी ही साधना को एकांत साधना का नाम दिया गया है। हमारे गुरुदेव द्वारा की गयीं अनेकों कठिन साधनाएं भला किस से  छिपी हैं।


एक बार फिर से संकल्प सूची अति प्रभावशाली है। 759  कमैंट्स  के साथ 18 युगसैनिकों द्वारा  24 आहुति संकल्प पूर्ण करना गर्व एवं बधाई का विषय है । अति सम्मानीय सरविन्द  जी को तीन यज्ञ कुंडों पर संकल्प पूरा करने के लिए  गोल्ड मैडल प्रदान किया गया है, बहुत बहुत बधाई एवं सपरिवार  योगदान के लिए पूरे सरविन्द परिवार का  धन्यवाद्।  
(1),रेणु श्रीवास्तव-24,(2)संध्या कुमार-48 ,(3)सुमनलता-24  ,(4 )सुजाता उपाध्याय-50  ,
(5)नीरा त्रिखा-41,(6 )वंदना कुमार-39 ,(7)मीरा पाल-29,(8) अरुण वर्मा-30 ,(9) पुष्पा सिंह-26 ,(10) चंद्रेश बहादुर-28 ,(11) राधा त्रिखा-30 ,(12) अनुराधा पाल-35 ,(13) सरविन्द पाल-25,43,56=124,(14)  आयुष पाल-29,(15)विदुषी बंता-31 ,(16) निशा भारद्वाज-30,(17)पिंकी पाल-32,(18)प्रशांत सिंह-25                      
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई। 


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