वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

सत्संग के पारस का अद्भुत स्पर्श 

https://youtu.be/SAj-crxJtw8?si=qfLYpNwQ3P6bw1ex
29 अप्रैल 2024 का ज्ञानप्रसाद
आज का लेख आरम्भ करने से पहले हमारा उत्तरदायित्व बनता है कि हम अपने सभी साथिओं की धन्यवाद् करें जिन्होंने हम जैसे साधारण से व्यक्ति के प्रति इतनी श्रद्धा एवं सम्मान की भावना व्यक्त करके हमारा उत्साहवर्धन किया। धन्यवाद्, धन्यवाद् एवं धन्यवाद्। हम सब जानते हैं कि Law of attraction के अनुसार हम जैसा करते हैं वैसा ही कई गुना होकर वापिस आता है, इसलिए हमारी  “स्वार्थ से भरी भावना” स्वयं ही सब कुछ बता रही है। “अपनों से अपनी बात” का अगला एपिसोड मई माह के अंतिम शनिवार 25 मई 2024 को प्रसारित किया जायेगा।
शब्दों का प्रहरी (थानेदार) 24 घंटे हमारे ह्रदय की खिड़कियों के बाहिर सीटी मारकर,डंडा मारकर दिनरात स्टॉप साइन लिए गश्त लगाता रहता है, हमें  सतर्क करता रहता है लेकिन हम हैं कि उसकी अवहेलना करने से बाज़ नहीं आते क्योंकि हमारा और हमारे साथिओं के बीच अंतरात्मा का सम्बन्ध है, जहाँ आत्मा का सम्बन्ध होता हैं वहाँ तो ईश्वर भी स्वयं  समर्थन देते हैं। अनेकों बार रात को उठ कर, गाडी रोक कर, खाना  छोड़कर, अंतरात्मा में उठ रहे विचारों को सेव किया है क्योंकि विचारों की स्पीड इतनी तेज़ होती है  कि अगर उन्हें सही समय पर न रोका जाए तो  न जाने धरती के अंतःकरण के  किस भाग में पँहुच जाएँ। 
सत्संग की महिमा के बारे में अगर इसकी तुलना  पारस के साथ की जाए तो शायद अनुचित न हो। हम में से अनेकों ने  पारस के बारे में इतना तो सुना ही होगा कि यह एक ऐसा अद्भुत पत्थर होता है जिसके स्पर्श से लोहा सोना बन जाता है । क्या ऐसे पत्थर का सच में कोई अस्तित्व है यां ऐसा कहना  पूर्णतया काल्पनिक है, इस पर अपनी राय देना हमारी योग्यता से बाहर है लेकिन सत्संग के बारे में दृढ़ विश्वास से कह सकते हैं कि “सत्संग के पारस का स्पर्श साधारण से मनुष्य को परमात्मा बनाने में पूरी तरह समर्थ है।”
पारस की बात चल रही है तो आइए इसकी थोड़ी सी जानकारी प्राप्त कर ही लें । इस अद्भुत पत्थर की काल्पनिक कथाओं से इंटरनेट भरा पड़ा है। 
इस  पत्थर को अंग्रेजी में Philosopher’s stone कहते हैं। क्या ऐसे किसी पत्थर का कोई भौतिक अस्तित्व है यां कोरी कल्पना है। इस संदर्भ में निम्नलिखित दो विवरण सहायक हो सकते हैं:
विज्ञान के अनुसार पारस पत्थर का अस्तित्व अवश्य है, जो किसी भी धातु को सोने में बदल सकता है। देखा जाए तो यह  रसायन विज्ञान का विषय  है जिसके स्पर्श से लोहे को सोने में बदला जा सकता है। इस पत्थर में अनेकों  वैज्ञानिक Processes  शामिल हैं जिनसे सामान्य पत्थर को पारस पत्थर में बदलने में कई वर्ष  लग जाते हैं। भारतीय पौराणिक कथाओं के अनुसार भारतीय ऋषियों को ऐसे पत्थर  का ज्ञान था जो एक विशेष प्रक्रिया के बाद लोहे को सोने में बदल सकता है।
इंटरनेट पर ही एक उदाहरण दिया गया है जिसका वर्णन कुछ ऐसा है:
मेरे दादा जी के एक गुरु थे और जिनके पास एक पुस्तक थी। एक दिन मुंबई में मेरे दादा जी के 3-4 दोस्तों और उनके गुरु ने गोवंडी में कहीं इस पुस्तक को पढ़ाने एवम समझाने का अभ्यास कराया लेकिन सफल नहीं हुए। इस असफलता के कारण उन्होंने कलश में रखे पानी को बाहर आंगन में फेंक दिया। अगली सुबह उस पानी में सोने की परत थी और लोग डर गए कि सड़क पर सोना कैसे फेंक दिया गया।
दूसरा विवरण  मध्य प्रदेश के राजा से सम्बंधित है।  भोपाल नगर से 50  किलोमीटर दूर स्थित रायसेन के किले में पारस पत्थर मिलने के बारे में कई विवरण मिलते हैं। कहते हैं इस पत्थर को पाने के लिए कई युद्ध हुए लेकिन जब राजा को पता चला कि यह पत्थर किसी  के लिए लाभदायक नहीं है तो उसने इसे तालाब में फेंक दिया।
पारस  पत्थर से सम्बंधित यूट्यूब पर अनेकों वीडियोस भी उपलब्ध हैं,अगर  कोई साथी इसमें रूचि रखता हो तो सर्च कर सकता है क्योंकि अगर हम यहाँ और विस्तृत विवरण दें तो विषय से भटकने की सम्भावना हो सकती है। इसलिए हम पारस पत्थर के विषय को यहीं छोड़ कर सत्संग की ओर बढ़ते हैं।  
गुरुदेव बता रहे हैं कि “शरीर के निकट” बैठकर सत्संग करना सबसे उत्तम है क्योंकि जब तक शरीर और आत्मा का मिलन नहीं  होगा, शरीर को आत्मा का सानिध्य प्राप्त नहीं होगा तब तक बात अधूरी ही रहेगी। 
मनुष्य को चाहिए कि जिस प्रकार हम रोज़मर्रा के जीवन में एक दूसरे  के साथ सम्बन्ध स्थापित करते हैं उसी प्रकार शरीर और आत्मा का सम्बन्ध स्थापित करना चाहिए ।
अभी कुछ वर्ष पूर्व की ही तो बात है कि  संबंधों को कायम रखने के लिए, विचारों को पुष्ट करने के लिए “पत्र व्यवहार की प्रथा” बहुत ही प्रचलित थी। एक दूसरे को बड़े ही सुन्दर शब्दों में, फूलों से प्रिंटेड कागज़ों पर पत्र  लिखे जाते थे, खूबसूरत पेन, तरह-तरह के रंगों की सियाही,चुन-चुन कर ह्रदय से निकले शब्दों से पत्रों को संजोया जाता था। इन भावनात्मक विचारों के उत्तर पाने में 15-20 दिन लग जाते थे और जब इतनी प्रतीक्षा के बाद पत्र मिलता था तो प्रियतम की भावनाओं से ह्रदय से आंसू निकलना स्वाभाविक था। शनिवार को प्रकाशित हुए “अपनों से अपनी बात” में इन भावनाओं का संक्षिप्त में चित्रण किया था लेकिन आज थोड़ा और लिख दें तो शायद अनुचित न हो।  
मानवीय व्यक्तियों से पत्र व्यवहार करना एवं उनके कर कमलों से  लिखे पत्र “दिव्य औषधि”  की भांति अनंत प्रेरणा/संवेदना  से ओतप्रोत होते हैं। अगर इस बात में थोड़ी सी भी शंका की गुंजाइश होती तो परम पूज्य गुरुदेव और पंडित लीलापत शर्मा जी के बीच पत्र व्यवहार पर आधारित पुस्तक “पत्र पाथेय” इतनी लोकप्रिय न होती। हमारे साथी जानते हैं कि 1998 में प्रकाशित 183 पन्नों की अति लोकप्रिय पुस्तक,जिसमें  गुरुदेव एवं पंडित जी के बीच हुए संवाद के 89 पत्रों को ओरिजिनल फॉर्म में प्रकाशित करके, पंडित जी ने हम सब बच्चों पर कितना उपकार किया है। इस विषय पर हम कितने ही लेख लिख चुके हैं। एक-एक पत्र को पढ़कर कर ऐसा अनुभव होता था कि आदरणीय लीलापत जी, एवं गुरुदेव से साक्षात् मिलन हो रहा हो।        
विचारों के विज्ञान को हम कई दिनों से लिखते आ रहे हैं, यह एक कभी भी समाप्त न होने वाला विषय है।  पत्र का कागज हाथ में आते  ही लिखने वाले के विचारों से लद जाता है, चाहे  वोह दोनों एक दूसरे से कितनी भी दूर क्यों न हों, लिखने वाला साक्षात् सामने खड़ा  दिखाई देता है। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की कमेंट-काउंटर कमेंट वाली प्रणाली में भी कुछ ऐसा ही आभास व्यक्त किया गया है। हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि यह छोटा सा समर्पित परिवार भावनाशील व्यक्तित्वों से भरा पड़ा है। 
पत्र लिखने/कमेंट-काउंटर करने का विज्ञान 
पानी में बिजली को पकड़ने की बड़ी ताकत है । स्याही के साथ वे विचार कागज़  से चिपक जाते हैं। यह आधे मिलन का काम देता है। प्राचीन महापुरुषों की हस्तलिपियों को बहुत अधिक मूल्य में लोग खरीदते हैं।  हमारे साथी इस तथ्य से भलीभांति परिचित होंगें कि इन हस्तलिपियों की बड़े-बड़े आयोजन करके नीलामी (Auction) की जाती है और सबसे बड़ी बोली देने वाले को विजेता घोषित किया जाता है। ऐसे पत्रों, पुस्तकों, चित्रों, पेंटिंग्स  आदि की इतनी लोकप्रियता इसलिए होती है कि इनमें उन महानुभावों के जीवित विचार चिपके होते  हैं। जब किसी को अपने किसी मित्र का पत्र मिलता है तो निश्चय ही उससे  मिलन का अनुभव होता है । 
हमारे साथिओं के ह्रदय में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि पत्र-लेखन की तुलना   कमेंट-काउंटर कमेंट के साथ कैसे हो सकती है ? 
हमारा विश्वास है कि अगर स्याही में भावनाएं यात्रा कर सकती है तो लेखक के हाथ की उँगलियों के सिरों से भी भावना की इलेक्ट्रिक करंट पढ़ने वाले के पास यात्रा कर ही सकती हैं। हमें विचारों की गति, भावना की शक्ति और लेखक की लेखन शक्ति पर कोई भी शंका नहीं होनी चाहिए, यही कारण है कि हमारे साथिओं के कमेंट हमारे लिए/हम सबके लिए एक संजीवनी बूटी का कार्य कर रहे हैं।   
यह एक सर्वविदित सत्य है कि  छपी हुई पुस्तकें लेखक की भावनाओं को धारण किये रहतीं है । यद्यपि छापेखाने की स्याही के साथ उन व्यक्तियों को पढ़ते ही ठीक उसी प्रकार के विचार अपने मन में उत्पन्न होते हैं, जैसे कि उस पुस्तक को लिखते समय लेखक के मन में उत्पन्न उत्पन्न हुए थे । ऐसा भी सर्व विदित है कि विचारों का कभी नाश नहीं होता । जो विचार मस्तिष्क से निकलते हैं, वे अनंतकाल तक ईश्वर तत्त्व में मँडराते रहते हैं और कोई जब उनके समान विचार करता है, दौड़कर वहीं पहुँच जाते हैं। यदि किसी प्रबल मनस्वी व्यक्ति के विचार हैं तो वे सशक्त होंगे और अधिक असर करेंगे। पुस्तक के अक्षर पढ़ते ही जो विचार हमारे मन में उत्पन्न होते हैं, वे ही लेखक के विचार वायुमंडल में घूम रहे होते हैं, उसी अवसर पर वे अविलम्ब दौड़ पड़ते हैं और पढ़ने वाले के साथ सम्मिलित हो जाते हैं और लेखक सत्संग का आनंद अनुभव करने लगता है। 
पहले भी लिख चुके हैं आज फिर दोहरा रहे हैं कि विचारों के परमाणुओं की गति इतनी तीव्र है कि एक सैकण्ड में तीन बार पृथ्वी की परिक्रमा कर सकते हैं । इसलिए चाहे कोई  कितनी ही दूर बैठा  हो,लेखक के  विचारों को तुम्हारे पास तक पहुँचने में तनिक भी विलंब न होगा। लेखक ने जितने मनोयोग के साथ उन विचारों को लिखा होगा, उसी अनुपात में  उसका असर भी होगा। 
अपने साथिओं की आज्ञा लेकर हम यहाँ यह भी कहना उचित समझते हैं कि ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच पर प्रत्येक कमेंट का अपना महत्व है। अनमने मन से लिखे गए कमेंट और पूरे मन से लिखे गए कमेंट की लोकप्रियता से हम भलीभांति परिचित हैं। जिस प्रकार उत्तम पुस्तकों के सत्संग से हम पर्याप्त लाभ उठा सकते हैं, ठीक उसी प्रकार उत्तम कमेंट भी हमारी अंतरात्मा में उतरते जाते हैं। पुस्तकों में लेखक का चित्र उसे और अधिक लोकप्रिय बना देता है। कमैंट्स में  हमारे साथिओं के  चित्र न होने के बावजूद, पढ़ते समय ऐसा अनुभव होता है जैसे कि आमने सामने बैठ कर बात हो रही हो। 
यही है भावनाओं की अपार, असीमित शक्ति- बार-बार नमन करते हैं उस गुरु को जिसने ऐसा दिव्य साहित्य हमारे हाथ में थमा दिया। 
जय गुरुदेव 


आज की प्रभावशाली संकल्प सूची में लगभग 800 कमैंट्स  के साथ 16  युगसैनिकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है। अति सम्मानीय सुजाता जी को गोल्ड मैडल जीतने की बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।  
(1),रेणु श्रीवास्तव-58 ,(2)संध्या कुमार-46 ,(3)सुमनलता-27 ,(4 )सुजाता उपाध्याय-75  ,(5)नीरा त्रिखा-28 ,(6 )वंदना कुमार-35,(7)मंजू मिश्रा-33,(8) अरुण वर्मा-38,(9) पुष्पा सिंह-25,(10) चंद्रेश बहादुर-69,(11) राधा त्रिखा-28,(12) अनुराधा पाल-29,(13) सरविन्द पाल-39,27,(14)  आयुष पाल-29,(15)विदुषी बंता-24,(16) निशा भारद्वाज-37                    
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई। 


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