आज के इस प्रथम एपिसोड का शुभारम्भ करने से पहले साथिओं से करबद्ध क्षमाप्रार्थी हैं कि इस लेखन में केवल हमारे विचारों की अविरल धारा का ही बहाव है, जैसे-जैसे विचार आते गए हम अनवरत लिखते ही गए, देखा ही नहीं कि कोई कनेक्शन भी है कि नहीं।
आज 27 अप्रैल,2024, शनिवार का दिन है।ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के इतिहास में यह दिन एक मील का पत्थर साबित होने वाला है। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं कि आज तक महीने के प्रत्येक शनिवार का दिन अपने साथिओं/ सहकर्मियों के लिए सुरक्षित रखा गया था जिसे एक उत्सव की भांति मनाया जाता रहा है। यह एक ऐसा Open forum दिन होता है जब अध्ययन को एक तरफ रख दिया जाता है और बात की जाती है सप्ताह के पांच दिन की शिक्षा की, जिसका आधार साथिओं के कमैंट्स और काउंटर कमैंट्स होते हैं, बात की जाती है साथिओं की गतिविधियों की, बात की जाती है इस छोटे से किन्तु समर्पित परिवार के सदस्यों के दुःख-सुख की, बात की जाती है आने वाले दिनों की रूपरेखा यां फिर गायत्री परिवार से सम्बंधित कोई भी विषय जिसे परिवारजन उचित समझें, इसीलिए इस विशेषांक को Open forum की संज्ञा दी गयी है। इस Open forum में वर्णित की जाने वाली बात चाहे इस परिवार की सबसे छोटी एवं नन्हीं सी बेटी काव्या त्रिपाठी (जो हमें रोज़ सोने से पहले गुड नाईट का ऑडियो मैसेज पोस्ट करती है )की हो यां 88 वर्षीय आदरणीय ईश्वर शरण पांडे जी से सम्बंधित हो। काव्या बेटी से छोटे सहकर्मी भी इस परिवार में अपनी किलकारिओं से, गुरु शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। ऐसे नन्हें मुन्हों को हमारा अटूट स्नेह प्यार मिले , ऐसी हमारी कामना है। जो माताएं इन शिशुओं को इस परिवार के साथ जोड़ रही हैं, उनका ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं।
आज का शनिवार मील का पत्थर साबित होने के पीछे हमारी सबकी अति सम्मानीय वरिष्ठ बहिन सुमनलता जी का सुझाव है जिसके अंतर्गत कुछ ऐसी सहमति बनी कि माह का अंतिम शनिवार हमारे (अरुण त्रिखा) लिए सुरक्षित रख दिया जाए। इस शनिवार को हम अपने “मन की बात, अपनों से अपनी बात” शीर्षक ( यां कोई अन्य शीर्षक) के अंतर्गत अपने विचार रखें।
बहिन जी ने तो यह सुझाव यूट्यूब पर पोस्ट कर दिया, सभी ने समर्थन भी दे दिया लेकिन हमने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि यह शनिवार हमारे लिए ही क्यों,सभी साथिओं के लिए बारी-बारी क्यों न सुक्षित रखा जाए। इस प्रतिक्रिया के रिस्पांस में लगभग सभी साथिओं ने यही कमेंट किए कि “हमें तो सारा सप्ताह ही समय मिलता रहता है, हम तो व्हाट्सप्प पर भी कमेंट कर देते हैं लेकिन 30-31 दिन में केवल एक शनिवार अरुण जी अपने “मन की बात” परिवार के समक्ष ला दें तो कुछ भी अनुचित नहीं होगा।
बहिन जी के सुझाव एवं साथिओं के सहयोग/सहमति का ही प्रतिफल है कि आज का यह “अपनों से अपनी बात” सेगमेंट प्रस्तुत किया जा रहा है।
आज के दिन को “मील का पत्थर” संज्ञा देने का अर्थ स्वयं ही वर्णित है। हम में से शायद ही कोई होगा जिसने सड़क के किनारों पर लगे हुए मील के पत्थर न देखें हों। इन signs से एक पड़ाव से दूसरे पड़ाव तक एवं गंतव्य (Destination) स्थान की दूरी की जानकारी मिलती है। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की यात्रा के भी अनेकों पड़ाव हैं ; गुरु-सानिध्य, गुरु-समर्पण, गुरु-श्रद्धा। गुरु-प्राप्ति तो Ultimate destination (अंतिम पड़ाव) है। बहिन जी का सुझाव, साथिओं का समर्थन हमारे लिए शिरोधार्य है लेकिन हमारा विश्वास है कि आने वाले समय में “अपनों से अपनी बात” केवल हम तक ही सीमित न रहकर, परिवार के अन्य विद्वानों को भी प्रेरित करेगी, विदुषी शब्द का तो अर्थ ही अपनेआप में बता रहा है कि यह परिवार विद्वानों से भरा है।
“अपनों से अपनी बात” शीर्षक से लगभग 100 वर्षों से “अखंड ज्योति पत्रिका” में कॉलम प्रकाशित होते आ रहे हैं, इस शीर्षक में ही “गुरुदेव के विश्व्यापी विशाल गायत्री परिवार” के प्रति अपनत्व चरितार्थ हो रहा है। गुरुदेव की आज्ञा से इस शीर्षक को आज के सेगमेंट के लिए उधार लेना भी अपनत्व ही व्यक्त कर रहा है। हमारे यूट्यूब चैनल पर अपलोड हुई तपोभूमि से विदाई वाली वीडियो में वर्णन है कि परम पूज्य गुरुदेव रोज़ सुबह भूतों वाली बिल्डिंग (अखंड ज्योति संस्थान) से तपोभूमि आते, एक अभिभावक की भांति ,परिवार के मुखिया की भांति, सभी बच्चों को अपने इर्द गिर्द बिठाकर हंसी-मज़ाक की बातें करते, जिससे परिवार की भावना स्पष्ट दिखाई देती थी। परिवार की इसी भावना को इन पंक्तियों में व्यक्त करने का प्रयास किया जा रहा है। बिना किसी रोकटोक के जो मन में आए जा रहा है, लिखे जा रहे हैं।
“इसी अपनत्व ने तो हम सबको जोड़े रखा है”
बहिन सुमनलता जी के नाम से ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का एक-एक सदस्य भलीभांति परिचित है। इस परिचय का कारण केवल यही नहीं है कि वोह इस छोटे से, समर्पित परिवार के एक वरिष्ठ सदस्य होकर हम सबका मार्गदर्शन कर रहे हैं और हमें उनकी हर बात से सहमति होती है, बल्कि इसलिए कि बहिन जी अपनेआप में एक ऐसा व्यक्तित्व हैं जिनका नाम सुनते ही सम्मान से शीश झुकना स्वाभाविक है और आँखों के समक्ष उनकी दिव्य छवि घूमना शुरू हो जाती है। अपनत्व का एक उदाहरण 30 मार्च, 2024 की 52 मिंट लम्बी फ़ोन कॉल है। 5 फ़रवरी 2024 को भी बहिन जी का फ़ोन आया, हमने कनेक्ट किया तो बहिन जी ने क्षमाप्रार्थी होकर बंद कर दिया कि गलती से लग गया था। 30 मार्च वाले फ़ोन में बहिन जी ने पहली बात ही यह कही थी कि आज गलती से नहीं लगा है, आज बात करने की इच्छा है। यह है परिवार की परिभाषा। बहिन सुमनलता जी केवल हमें ही नहीं अन्य परिवारजनों के साथ भी संपर्क बनाए रखती हैं, हमारे व्यक्तिगत व्हाट्सप्प मैसेज एवं यूट्यूब कमैंट्स इस बात के साक्षी हैं।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के प्रति बहिन जी का सहयोग एवं हमारे लिए इतनी आदर-सम्मान भरी शब्दावली का प्रयोग करना सच में ऐसा कोई समर्पित परिवारजन ही कर सकता है। बहिन जी के इलावा जब कोई अन्य साथी भी हमारी प्रशंसा में लिखता है तो हमें मालूम है कि वोह यह शब्द अपने हृदय से लिख रहा है, जिसमें रत्तीमात्र भी बनावट नहीं है लेकिन फिर भी हम ही बोलते हैं (जैसे गुरुदेव ही कह रहे हों) “बेटे गर्व से सदैव दूर रहना, गर्व की आंधी ने सुनामी की बाढ़ की भांति बहुमंज़िली इमारतों को भी गिरा दिया, रावण जैसों को चूर चूर कर दिया।
अपने साथिओं के कमैंट्स से/लेखों से सदैव यही Reflect होता है कि सभी पूरी तरह से Down to earth हैं और गुरु चरणों में एक ही स्तर पर, भूमि पर बैठ कर, नतमस्तक होकर एक आज्ञाकारी शिष्य की भांति गुरुदेव की शिक्षा का अमृतपान करता है और सभी मानवीय मूल्यों का पालन करते हैं। गुरुकक्षा में कोई छोटा बड़ा नहीं है, सभी के ह्रदय में एक ही भावना है कि कुछ सीख कर, समझकर जाना है क्योंकि पहले स्वयं को समझ आएगी तभी तो किसी और को समझा पायेंगें -यह सुविचारों विचारों की क्रांति, यही युग परिवर्तन ला रही है।
हमारे साथी अब तक तो कमेंट-काउंटर कमेंट की शक्ति को भलीभांति समझ चुके होंगें। आदरणीय सरविन्द पाल जी, जिन्हें हमें कमेंट-काउंटर कमेंट की प्रक्रिया के अविष्कारक कहने में ज़रा सी भी झिझक नहीं है, जितना भी धन्यवाद् करें कम ही रहेगा। इस प्रक्रिया की भूख-प्यास ही प्रातःकाल में हमारी आँख खोलती है और अगले दिन की सुबह तक अनवरत 24 घण्टे यह प्रक्रिया चलती रहती है, अलग-अलग देशों में फैले इस छोटे से परिवार के साथिओं को जैसे-जैसे समय मिलता जाता है, कमेंट आते जाते हैं।
लिखने की प्रक्रिया तो बहुत ही पुरातन है, इसमें जिन भावनाओं का समावेश होता है उसे तो गूंगे की गुड़ की तरह केवल लिखने वाला और पढ़ने वाला ही समझ सकता है।हमारे साथी हमसे सहमत होंगें कि हाथ से लिखे गए पत्र “औषधि” की तरह बड़ी प्रेरणा लिए होते हैं। हमारा व्यक्तिगत मत है “प्रेम-पत्र” का कागज हाथ में आते ही पढ़ने वाला लिखने वाले के विचारों से लद जाता है। हम सब बेसिक साइंस तो जानते ही हैं जिसके अनुसार पानी में बिजली को पकड़ने की बड़ी ताकत है (Water is a good conductor of electricity) स्याही के साथ वे विचार कागज से चिपक जाते हैं और यह लेखन आधे मिलन का काम देता है। यही कुछ तो हो रहा है, हमारे साथिओं के कमैंट्स के माध्यम से। हमारी अनुराधा बेटी केवल जय गुरुदेव ही लिख दे तो भी उसकी पिक्चर सभी के आँखों के समक्ष घूम जाती है। पुस्तकों के शुरू में लेख की पिक्चर संलग्न करने की बहुचर्चित प्रथा है। ऐसा माना जाता है कि लेखक का चित्र ध्यान में रखते हुए यह समझा जाता है कि लेखक पाठक के सामने ही बैठकर ही अपनी बातों को समझा रहा है। इसी भावना का सम्मान करते हुए हम साथिओं के चित्र भी संलग्न करते रहते हैं। पत्रों के सन्दर्भ में तो अनेकों रोमांटिक गीत भी बन चुके है लेकिन आज का प्रज्ञागीत सद्गुरु वंदना कर रहा है
अक्सर सुना जाता है कि महान व्यक्तिओं द्वारा लिखे Golden words (अमृत वचन) बहुत अधिक मूल्य में ख़रीदे जाते हैं क्योंकि उनमें महापुरुषों के जीवित विचार चिपके हुए हैं । जैसे छपी हुई पुस्तकें लेखक की भावनाओं को प्रकट करती है, ठीक उसी प्रकार साथिओं द्वारा प्रकट की गयी भावनाएं हमारी तरह अनेकों के अंतःकरण में उतरती जाती हैं और जीवन की दिशा और दशा बदलती जाती है।
तो क्या अभी भी शंका है कि युग निर्माण नहीं हो रहा है , विचार क्रांति अपना प्रभाव नहीं दिखा रही है।
इस सारी प्रक्रिया को ही सत्संग का विशेषण दे दें तो शायद अनुचित न हो क्योंकि प्रज्ञागीत से ही कक्षा का शुभारम्भ होता है, गुरुचरणों में सभी गुरु शिक्षा का अमृतपान करते है, कमैंट्स के माध्यम से चर्चा करते हैं,कोई छोटा बड़ा नहीं है,कोई शिक्षित-अशिक्षित नहीं है सभी को अपनी बात रखने की स्वतंत्रता है, सभी की बात का सम्मान किया जाता है।
धन्यवाद्, जय गुरुदेव
आज 7 युगसैनिकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है। अति सम्मानीय सुजाता जी को गोल्ड मैडल जीतने की बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।
(1),रेणु श्रीवास्तव-31,(2)संध्या कुमार-35,(3)सुमनलता-30,(4 )सुजाता उपाध्याय -43 ,(5)नीरा त्रिखा-24 ,(6 )वंदना कुमार-35,(7)मंजू मिश्रा-32
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।