25 अप्रैल, 2024
हमारी सर्वप्रिय बेटी संजना ने परम पूज्य गुरुदेव की अद्भुत रचना “मानवीय विद्युत के चमत्कार” पुस्तक का रेफरेन्स दिया और गुरुदेव ने हमारी अज्ञानता के बावजूद हमसे आज तक 17 लेख लिखवा लिए ,आज इसी दिव्य कड़ी का 18 वां लेख प्रस्तुत है। गुरु चरणों में शत शत नमन करते है।
आज का लेख में अहम् की बात की गयी है जिसे गला देने के बाद ही कुछ ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है। कबीर जी का बहुचर्चित दोहा “बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर” बहुत कुछ कह रहा हैं।
आज हमारी आदरणीय बहिन साधना सिंह एवं पांडे जी की वैवाहिक वर्षगांठ है,परिवार की ओर से दोनों को हमारी शुभकामना। बहिन जी ने हमें मैसेज करके सूचना देते हुए लिखा कि पांडे जी तो मेरे साथ नहीं हैं लेकिन यह दिन ख़ुशी से मनेगा। वैवाहिक बंधन एक ऐसा सूक्ष्म बंधन है जिसे तिथियों की सीमा में नहीं बंधा जा सकता। यह तो तो दिलों का बंधन है। अब तक तो सूक्ष्म की इलेक्ट्रिक तरंगों का ज्ञान हो ही गया होगा।
कल हमारी बेटी डॉक्टर सुमति पाठक की 8 मिंट की वीडियो अपलोड करने की योजना है जिसके कुछ अंश हमारे साथी 4 छोटी वीडियोस में देख चुके हैं।
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गुरुदेव बताते हैं कि मनुष्य को अपना जीवन जिस ढाँचे में डालना हो उसे चाहिए कि वह उसी प्रकार के प्रतिभाशाली लोगों के साथ सत्संग करे। जाने से पहले यह संकल्प अवश्य ले कि मैं वहाँ प्रतिभावान साथिओं से कुछ सीखने जा रहा हूँ। जब भी कुछ सीखने की बात आती है तो सबसे बड़ा गुरुमंत्र है “अपने अहम् को गला देना।” जिस सन्दर्भ में यहाँ बात चल रही है उसके लिए यह कहना बहुत ही महत्वपूर्ण है कि अपनी डिग्रियां, अपना रुतबा आदि सब घर छोड़कर ही जाया जाए, अगर ऐसा कहा जाए कि वहां बिल्कुल निर्वस्त्र होकर जाया जाए तो शायद ग़लत न हो। ऐसा इसलिए कहना उचित लग रहा है कि सत्संग में तो धुलाई और रंगाई होनी है, पुराने रंग को उतारने के बाद ही तो नया रंग चढ़ पाता है। सत्संग में सम्पूर्ण श्रद्धा के साथ,आदरपूर्वक, विनम्र होकर जाना चाहिए।
भगवद गीता के अध्याय 4, श्लोक 34, “तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया ,उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिन:” के अनुसार मनुष्य के लिए आवश्यक है कि वह आध्यात्मिक गुरु के पास जाकर सच्चाई को जानने का प्रयास करे, श्रद्धा से पूछताछ करे और आध्यात्मिक गुरु को सेवा प्रदान करे क्योंकि ऐसा प्रबुद्ध संत ही मनुष्य को ज्ञान प्रदान कर सकता है जिसने सत्य को देखा है।
अहम् के सन्दर्भ में भगवान राम के निम्नलिखित दृष्टान्त से कौन परिचित नहीं है :
राम-रावण युद्ध के बाद जब युद्धभूमि में रावण मरणासन्न अवस्था में पड़ा था, उस समय भगवान श्रीराम ने लक्ष्मण से कहा कि रावण नीति, राजनीति और शक्ति का महान पंडित है। वह संसार से विदा ले रहा है, यदि वह किसी भी विषय पर अपने विचार प्रस्तुत करता है, तो वह बड़े ही महत्वपूर्ण होंगें । तुम उसके पास जाकर जीवन की शिक्षा ग्रहण करो। लक्ष्मण रावण के सिर के नजदीक जाकर खड़े हो गए। रावण ने कुछ नहीं बताया।तब भगवान् ने लक्ष्मण से कहा कि यदि किसी से ज्ञान प्राप्त करना हो, तो उसके चरणों के पास खड़े होना चाहिए न कि सिर की ओर। जब लक्ष्मण ने ऐसा किया,तो महापंडित रावण ने उन्हें तीन बातें बताई :
1.जितनी जल्दी हो अच्छे कार्यों को पूरा कर लें। बुरे कार्य को यथासंभव टालते रहें।
2.मैं राम को पहचान नहीं सका और उनकी शरण में आने में देरी कर दी, इसी से मेरी यह हालत हुई। अपने प्रतिद्वंद्वी को कभी कमतर नहीं समझना चाहिए। मैंने जिन्हें साधारण वानर और भालू समझने की भूल की, उन्होंने मेरी पूरी सेना को नष्ट कर दिया।
3.अपना भेद कभी भी किसी के साथ साझा नहीं करना चाहिए । मैंने अपनी मृत्यु का राज विभीषण को बताया, जो जीवन की सबसे बड़ी गलती साबित हुई।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के प्रत्येक साथी (हमारे समेत) के लिए यह दृढ़ संकल्प को धारण करने की आवश्यकता है कि “अहंकार को उतार फेंकना है” और मानवीय मूल्यों का पालन करते हुए सदैव Down to earth व्यक्तित्व को दृश्यमान करना है। ऐसे ही व्यक्तित्व, अपनी आकर्षण शक्ति से,चुंबकत्व से, Magnetism से, श्रद्धावान साथिओं को इस परिवार में खींच कर लाते रहेंगें। बहिन निशा भारद्वाज जी ने शांतिकुंज प्रवास के दौरान एक बहिन में अहम् का अनुभव किया, इतना अहम् कि बहिन जी की आकर्षण शक्ति भी निरस्त हो गयी। बहिन जी ने उसे ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार से परिचित कराने का प्रयास किया था।
अहंकारी स्वभाव के मनुष्य के साथ सत्संग करने का अर्थ अपने अंदर निरोधक शक्ति को भर लेना है। इससे कुछ भी लाभ न मिलेगा। जिससे कुछ प्राप्त करना हो उस पर श्रद्धा करते हुए नम्रता पूर्वक संपर्क से “आकर्षण शक्ति” में बढ़ावा होता है।
Force of attraction से मनुष्य, गुरुदेव जैसे व्यक्तित्वों के आसपास उड़ते हुए दिव्यता के परमाणुओं को अपने अंदर खींच सकता है । पवित्र लोगों के निवास स्थानों पर बैठने से ही अपने अंदर बड़ी शांति प्राप्त होती है और बुद्धि का विकास होते हुए दृष्टिकोण बदलता जाता है। हमारे साथिओं द्वारा शेयर हो रहे कमैंट्स इस तथ्य के साक्षी हैं कि इस समर्पित परिवार में केवल भागीदारी से ही उनकी दिशा और दशा बदल रही है।
ऐसा क्यों हो रहा है ?
ऐसा इसलिए हो रहा है कि इस परिवार में परम पूज्य गुरुदेव की सूक्ष्म उपस्थिति में नियमितता से, निर्मल भाव से सत्संग हो रहा है। यह कोई ऐसा वैसा सत्संग नहीं है, एक ऐसा सत्संग है जिसमें पुरातन गुरुकुल प्रथा का पालन हो रहा है। सभी शिष्य भूमि पर बैठ कर गुरुचरणों में समर्पित होकर ऐसे गुरु से शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं जो स्वयं ही सादगी एवं फकीर की प्रतिमूर्त है, हवाई चप्पल- धोती कुरता ही उस गुरु की पहचान है। कौन होगा जो ऐसे गुरु के शक्तिशाली चुम्बक से आकर्षित हुए बिना रह सकेगा।
विज्ञान का बहुचर्चित सिद्धांत है, Like attracts like अर्थात समान प्रवृति वाले मनुष्य ही एक दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं। पानी में दूध घुल जाता है लेकिन पानी में तेल की बूदें न घुलने के कारण ऊपर सतह पर तैरती रहती हैं। परम पूज्य गुरुदेव के गुरुकुल की जिस गुरुकक्षा की बात यहाँ पर हो रही है उसमें सभी शिष्य एक ही लेवल पर, भूमि पर बैठकर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं जो “आधुनिक सत्संग” से बिल्कुल अलग है जिसमें कितने ही प्रकार के स्तर हैं। VIP सत्संगियों के लिए अग्रिम पंक्ति में गद्देदार सोफे हैं, उससे कम VIP के लिए और तरह की व्यवस्था है। साधारण मनुष्य तो बेचारा किसी भी स्तर का नहीं है। जब इतने स्तर हैं तो कहाँ है संपर्क एवं आकर्षण। आकर्षण के लिए संपर्क सबसे प्रथम स्टेप है। यही कारण है कि हम स्वयं को कोसते रहते हैं कि आज सभी से संपर्क नहीं हो पाया।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में सब एकाग्र होकर सत्संग करते हैं तो उसका फल बहुत ही चमत्कारिक हो रहा है। ऐसे ही चमत्कारिक परिणामों का फल है कि हर कोई व्यक्ति एक दुसरे के साथ एक अटूट बंधन स्थापित किये जा रहा है,अपने ज्ञान के प्रसार से अन्यों को लाभान्वित किये जा रहा है। जो कोई भी इस चुम्बकत्व भरे ज्ञान को पकड़ रहा है, उसके अंतःकरण में गहराई तक उतरता ही जा रहा है।
भौतिक जगत में किसी प्रकार का लेन-देन मामूली काम काज, लोक व्यवहार तक ही सीमित होता है। यह लेन-देन तब तक ही चलता है जब तक लेने वाले और देने वाले का लाभ होता रहता है,स्वार्थपूर्ति होती रहती है,इसीलिए यह सम्बन्ध इतने प्रभावशाली और आनंदमयी नहीं होते, Short-lived होते हैं।
आध्यात्मिक सम्बन्ध एक बार स्थापित हो गए तो चिरस्थाई ही होते हैं क्योंकि इसमें निष्काम भावना से शिक्षा प्राप्त की जाती है। गुरु और शिष्य के बीच के सम्बन्ध, शिष्यों के आपसी सम्बन्ध में केवल एक ही भावना होती है और वोह है लोक-कल्याण की भावना,स्वयं की चिंता किये बिना विश्व की चिंता करना ही ऐसी शिक्षा एवं सत्संग का उद्देश्य होता है। ऐसे सत्संग में शिक्षा के साथ केवल “वाचक ज्ञान” ही नहीं होता बल्कि हजारों गुना अधिक प्रतिभा का भी मूल्यांकन होता है, प्रतिभा को देखते ही, उसे न केवल विकसित करने के प्रयास ही किये जाते हैं बल्कि प्रचार-प्रसार के लिए भी अथक प्रयत्न किये जाते हैं।
यही सब कुछ तो हो रहा है ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में , एक Researcher की भांति न केवल हम बल्कि हर कोई ऐसी ही प्रतिभाओं को ढूंढ कर यहाँ ला रहे हैं।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के इस “सत्संग मॉडल” में इतनी प्रजनन शक्ति होती है कि यदि इसके परमाणुओं को भी कोई व्यक्ति अपनी अंतरात्मा में ग्रहण कर ले तो वह बीज स्वयं ही अपना विस्तार कर सकता है, गुरुदेव अपनी शक्ति का स्थानांतरण भी करते हैं। गुरुदेव के प्राण प्रत्यावर्तन से हम सब भलीभांति परिचित हैं।
आध्यात्मिक सत्संग में दीक्षा का बहुत महत्त्व है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें समर्थ गुरु अत्यंत मनोयोग पूर्वक शिष्य को गहरी आध्यात्मिक भूमिका तक ले जाकर,अपने कुछ बीजाणुओं को इंजेक्शन की भाँति शिष्य के अंतःकरण में पनपने के लिए छोड़ देता है। यह बीज अमर होकर शिष्य के अंतराल में पड़े रहते हैं और यदि खाद पानी के साथ उचित सिंचन हुआ तो बहुत जल्द यह बीज फलित हो उठते हैं । अन्यथा किसी भी दशा में मरते नहीं और जब भी अवसर पाते हैं, हरे हो जाते हैं।
आधुनिक समय में दीक्षा देने और लेने वाले, दोनों ने ही विज्ञापन का एक नाटक सा रचाया हुआ है। अक्सर देखने में आता है कि बड़े गर्व से कहा जाता है कि मैंने दीक्षा ली है, मैंने अपने बच्चों को भी दीक्षा दिलाई है, लेकिन न तो दीक्षा देने वाले योग्य हैं और न ही लेने वाले दीक्षित हैं। अनेकों दीक्षित लोगों को तो दीक्षा के अर्थ तक का ज्ञान नहीं है।
सत्संग की प्रक्रिया से बेसिक ज्ञान प्राप्त करना ही प्रत्येक शिष्य का परम कर्तव्य होना चाहिए। इस प्रक्रिया के साथ अगर नियमितता और निष्ठा जोड़ दी जाए तो सोने पे सुहागा हो सकता है। नियमितता का राग हम सदैव इसलिए अलापते रहते हैं कि गुरुकक्षा में प्रसारित हो रहा सत्संग एक कडीबद्ध तरीके से चलता है,जहाँ कहीं भी कड़ी टूटी तो उसे जोड़ना असम्भव ही होगा। हाँ वोह दूसरी बात है कि दिखावे के लिए ज्ञानप्रसाद का अमृतपान कभी चलते-चलाते कर लिया, फिर उसका लाभ भी चलते-चलाते ही मिलेगा, यह इलेक्ट्रिक करंट की बात है ,आप नहीं तो कोई और इसे अवश्य ही ग्रहण कर लेगा।
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आज 13 युगसैनिकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है। दो यज्ञ कुंडों के संकल्प के कारण आज सरविन्द जी गोल्ड मैडल विजेता हैं , बहुत बहुत बधाई ।सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद् ।
(1)संध्या कुमार-37,(2)सुमनलता-26 ,(3)वंदना कुमार-27,(4 )चंद्रेश बहादुर-38 ,(5 ) निशा भारद्वाज-31,(6)रेणु श्रीवास्तव-26,(7) सुजाता उपाध्याय-24 ,(8 )नीरा त्रिखा-32,(9) अरुण वर्मा-36,(10 )सरविन्द पाल-25,26,(11)अरुण त्रिखा-24,(12) आयुष पाल-29,(13) पुष्पा सिंह-24
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।