वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

मनुष्य दूसरों की विद्युत् को भी अपने ओर खींच सकता है।   

https://youtu.be/7F040FGcDBE?si=biK5e0gOgVbQf4P7
24  अप्रैल, 2024 का ज्ञानप्रसाद
हमारी सर्वप्रिय बेटी  संजना ने  परम पूज्य गुरुदेव की अद्भुत रचना “मानवीय विद्युत के चमत्कार” पुस्तक  का रेफरेन्स दिया और गुरुदेव ने हमारी अज्ञानता के बावजूद हमसे आज तक 16   लेख लिखवा लिए ,आज इसी दिव्य कड़ी  का 17वां लेख प्रस्तुत है। गुरु चरणों में शत शत नमन करते है।
आज का लेख बहुत ही रोचक और प्रैक्टिकल बनाने का प्रयास किया है, आशा है हम सबको ज्ञान की प्राप्ति होगी। 
आज का सत्संग आदरणीय चंद्रेश जी के भतीजे प्रतीक सिंह, बहु पूजा सिंह की वैवाहिक वर्षगांठ और नाती स्वास्तिक सिंह के जन्म दिवस की शुभकामना से आरम्भ हो रहा है।  यह दोनों शुभअवसर कल वाले दिन दे लेकिन  समय पर न प्राप्त होने के कारण आज शेयर किये गए हैं 
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हम में शायद ही कोई ही  ऐसा मनुष्य हो जिसने “सुसंगत तरिओं कुसंगत डुब मरियो” वाली कहावत न सुनी हो। सत्संग के विस्तृत ज्ञान एवं विश्लेषण के लिए हमने पूरा एक लेख कल वाले ज्ञानप्रसाद में प्रस्तुत किया। ज्ञान से भरपूर अनेकों कमैंट्स आए जिनमें से  अधिकतर अपनेआप को भाग्यशाली मान रहे थे कि वोह विश्व्यापी ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का हिस्सा हैं। विश्व के अनेकों देशों में फैले बहुत ही छोटे से  किन्तु समर्पित परिवार का एक एक सदस्य परम पूज्य गुरुदेव की कठिन चयन प्रणाली से उत्तीर्ण होकर आया है। हमें तो यह कहने में भी कोई झिझक नहीं है कि गुरुदेव का कथन: “हमने बाढ़ के दिनों में मथुरा नगर की नालिओं के कचरे में से बड़ी देखभाल से, एक जौहरी की भांति जांच परख कर हीरे अपनी झोली में डाले हैं” 100 % इसी परिवार के लिए सत्य चरितार्थ हो रहा है। जिस कचरे में से गुरुदेव ने अपने हाथ डाल कर, हीरे ढूढ़ कर इस परिवार को भेंट किए,कहीं ऐसा न हो कि परिवार का एक भी हीरा वापिस उस कचरे में जा मिले। कल अनेकों हीरों के कमेंट देखे, सत्संग के प्रति सभी की अंतर्वेदना भी आत्मसात की,शब्द  सीमा,पाठकों की रूचि,विषय से भटकने के भय से केवल अपनी  आदरणीय बहिन सुमनलता जी का कमेंट ही पढ़ लें तो बहुत कुछ प्राप्त हो सकता है। बहिन जी का निम्नलिखित कमेंट ( परम पूज्य गुरुदेव की भांति) उनकी अंतर्वेदना व्यक्त कर रहा है, लिखते समय शायद बहिन जी भी कह रहे होंगें “यह हो क्या रहा ?, क्या इसे सत्संग कहते हैं ?”:
आज का विषय  “सत्संग” यथार्थ में एक महत्वपूर्ण विषय है। आजकल बहुत से लोग यह कहते सुने जाते हैं कि हमारे यहां सत्संग हो रहा है,हम सत्संग में जा रहे हैं लेकिन वो लोग सत्संग के वास्तविक आनंद से कोसों दूर होते हैं।उनको सत्संग का अर्थ तक पता नहीं होता है। सत्य से कोसों दूर होते हैं ऐसे सत्संगी। उनके लिए सत्संग उसी को मान लिया जाता है, जहां दस बीस लोग इकट्ठा हो गए,फिल्मी धुनों पर जोर-जोर से भजन गा लिए फिर चाय नाश्ता हो गया बस यही है सत्संग। जहां सत्य का संग नहीं हुआ, जहां आत्मा का परिष्कार नहीं हुआ, जहां कर्म सुधारे नहीं गए ,वो कैसा सत्संग। वहां बाहर निकले,वही हंसी ठठ्ठा,वो ही अनर्गल प्रलाप,तो ऐसे सत्संग से तो दूरी ही भली। गुरुदेव के विचारों को पढ़ यदि अंतर्मन जागृत नहीं हुआ तो कैसा सत्संग। हमारी दृष्टि से “ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सत्संग जैसा कोई सत्संग नहीं। जहां गुरुदेव के विचारों को  मात्र पढ़ा ही नहीं जाता बल्कि अंतर्मन में उतार कर आत्म परिष्कार करने का पूरा प्रयास भी किया जाता है। ऐसे सत्संग के आयोजन के लिए आ.भाई साहब का हार्दिक अभिनंदन। इस सत्संग का करंट सभी में दौड़ रहा है। बहुत बहुत आभार।”
कल वाले लेख में निम्नलिखित Sequence का वर्णन किया था: 
विचार→ वाणी→ कर्म→ आदतें→ व्यक्तित्व→ भविष्य
विचार और भविष्य का सम्बन्ध इतना प्रबल है कि प्रत्येक स्टेप बहुत ही महत्वपूर्ण है। अगर इस केमिकल equation की प्रथम पायदान “विचार” का ही चिंतन करें तो समझ आ सकता है कि विचारों में कितनी शक्ति है। इसी लेख श्रृंखला के किसी  लेख में लिखा था कि मनुष्य के विचार भी एक प्रकार की Electric current हैं और उनमें भी मैग्नेटिक शक्ति होती है, वोह भी परमाणुओं का भांति हज़ारों-करोड़ों किलोमीटर की यात्रा कुछ ही सेकंड में करने की क्षमता रखते हैं। 
यहाँ यह बताना अनुचित नहीं है कि विचारों के परमाणुओं की गति इतनी तीव्र है कि एक सेकंड में तीन बार पृथ्वी की परिक्रमा कर  सकते हैं। कोई एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से  चाहे कितनी भी दूर क्यों न हो, विचारों का आदान-प्रदान होने में तनिक भी विलम्ब नहीं होगा। इस तथ्य का प्रमाण एक बहुत ही सरल प्रयोग से किया जा सकता है। 
हमारे  मन में विचार उठा कि मुझे शांतिकुंज जाना है, अभी केवल मस्तिष्क में विचार ही उठा है और शांतिकुंज का साक्षात् दर्शन चरितार्थ हो जाता है। हम अपनी नन्हीं-मुन्हीं पोती की नटखट भरी वीडियो देख रहे है, एक दम अंतःकरण 4000 किलोमीटर दूर उनके घर का दृश्य साक्षात् प्रकट हो जाता है। बहन सुमनलता जी ने बहिन निशा भारद्वाज जी  के शांतिकुंज  सम्बंधित सूक्ष्म विचार अपने ट्रांसमीटर से ब्रॉडकास्ट  किए, जिन्हें गुरुदेव के रिसीवर ने एकदम रिसीव कर लिया।  यह सारी  प्रक्रिया 100 % वैज्ञानिक है और  ठीक उसी तरह कार्य करती जैसे रेडियो/टीवी यां कोई और रिसीवर सिगनल रिसीव करते हैं। 
विचारों के ब्रॉडकास्ट का एक और उदाहरण हम रोज़मर्रा के  रसोईघर से देना चाहते हैं। मम्मी किचन में बहुत ही स्वादिष्ट मसालेदार खाना बना रही है,बेटा  भागता हुआ आता है, देखता है Exhaust fan तो फुल स्पीड पर चल रहा है लेकिन फिर भी सारे घर में ऐसा वातावरण है जैसे किसी मसालों की दूकान में बैठे हों। घर की तो बात ही क्या करें, 10 घर छोड़ कर भी पड़ोसी पूछते हैं, “कल शाम आपकी किचन में से बड़ी ही स्वादिष्ट तड़कों का smell आ रही थी।”
विज्ञान में इस प्रक्रिया को Diffusion का नाम दिया गया है। खुशबु/बदबू /सुगंध आदि के परमाणु इतनी तेज़ी से वातावरण में फैलकर उसे दूषित कर रहे हैं कि Pollution का जन्म होता है। Pollution के प्रभाव हमारी आँखें, गला  नाक आदि तो देख लेते हैं,विचारों की pollution को कैसे देखें और उनका निवारण कैसे करें ?
एक ही विकल्प  है और वोह है सत्संग, “सत्य विचारों का संग” क्योंकि कुविचारों के विष के लिए केवल एक ही Antidote है और वोह है सत्संग। विष-निवारक (Antidote) यानि विष का असर समाप्त करने  के लिए गुरुदेव ने जगह- जगह  दुकानें  खोली हुई हैं जिनमें से एक दूकान का एड्रेस है “ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार”, जो 24/7/365 खुली है। इस दूकान की निशुल्क सेवाएं प्राप्त करने के लिए आपको केवल गूगल सर्च करके इस एड्रेस पर संपर्क करना होगा। इस परिवार का प्रत्येक कर्मचारी सत्संग में और कुसंस्कार के विष-निवारण के लिए पूरी तरह से शिक्षित है।  
जिस प्रकार गंध के परमाणु हर घड़ी वायु में व्यापत हैं उसी प्रकार मनुष्य भी अपने शरीर की बिजली के परमाणु हर घड़ी इधर-उधर फेंकता रहता है। जिस प्रकार बगीचे का वायुमंडल सुगंध से भर जाता है, उसी प्रकार मनुष्य की शारीरिक विद्युत के परमाणु अपने आस-पास वैसा ही घेरा बना लेते हैं जैसे उसके विचार या शारीरिक स्थिति होती है। डॉक्टर लोग कहते हैं कि बीमार के पास उसकी बीमारी के कीड़े उड़ते रहते हैं (इन्फेक्शन), इसलिए स्वस्थ मनुष्यों को मरीज़ से  दूर रहना चाहिए।  डाक्टर स्वयं तो  बहुत सावधान रहते हैं, रोगी को छूकर वे फौरन हाथ धो लेते हैं, जो उपकरण  रोगी के शरीर को स्पर्श करते हैं, उन्हें Sterilize  करते हैं।  हम नित्य देखते हैं कि एक मनुष्य की छूत (Infection) दूसरे व्यक्तियों को लगती ही रहती  है और कई बार तो वह भी उसी बीमारी में ग्रसित हो जाते हैं। जब हम कीड़ों/ जर्म्स की बात कर रहे हैं तो कहीं यह न समझ लिया जाए  कि यह घुन, चींटी या दीमक जैसे कीड़े होते हैं। 
यह दोनों प्रकार के (सुविचार एवं कुविचार), “विचारों के कीड़े” होते हैं जो ब्रह्माण्ड में सदैव व्याप्त रहते हैं, विचरते रहते हैं। मनुष्य द्वारा किया गया कोई भी कृत्य परमपिता परमात्मा से छिपा नहीं है। विश्व में केवल 7 % लोग ही नास्तिक हैं, ईश्वरीय सत्ता पर विश्वास करने वाले बाकि 93 %लोगों के परमार्थ कृत्यों के कारण ही इस संसार में अभी नकारात्मकता उस स्तर तक नहीं पहुँच पायी है जिससे यह सारा ब्रह्मण्ड Collapse होने के स्थिति पर जा पंहुचा हो। 
यहाँ पर हमें एक सन्देश अवश्य अपने अंतःकरण में उतार लेना चाहिए। 
हम 7 % नास्तिक लोगों के साथ हैं यां 93 % आस्तिक लोगों के साथ हैं, अवश्य ही हम 93% के साथ हैं। ऐसा इसलिए है कि चाहे हमें नास्तिक और आस्तिक में अंतर् करना न भी  आता हो, फिर भी Majority के साथ ही रहना उचित होता है।
ब्रह्मण्ड में तो अनवरत मानवीय विचारों की विद्युत् तरंगें भ्रमण कर रही है। यह मनुष्य पर निर्भर करता है कि  उसे  अपना जीवन किस  ढाँचे में डालना है। अक्सर यह मानसिक रुझान है कि मनुष्य अपनी प्रवृति के लोग ढूंढ ही लेता है। शराब पीने वाले अपने जैसी मंडली ढूंढ ही लेते हैं। सत्संगी जैसा भी करके मंदिर, सत्साहित्य आदि ढूंढ ही लेता है। यह तो हुई भौतिक जगत की बात, बिलकुल ऐसी ही बात ब्रह्मंडीय जगत में भी व्याप्त है। सत्संगी  जानता है कि कण कण में भगवान् का वास है, वह पेड़ पौधों से ही बात करके दिव्य विद्युत् तरंगें अपनी और खींच लेता है ,आकर्षित कर लेता है। 
गुरुदेव का आग्रह है कि हमें  प्रतिभाशाली लोगों के साथ  सत्संग करना चाहिए,उनके निकट श्रद्धा के साथ, आदरपूर्वक, विनम्र होकर जाना चाहिए। विनम्र  होने का तात्पर्य अपने अंदर अधिक “ग्राहक शक्ति” उत्पन्न करना है । गुरुदेव एक बहुत ही शिक्षित बिजनेसमैन की तरह हमें समझा रहे हैं कि अगर कोई कॉन्ट्रैक्ट sign करना हो तो कौन सी Strategy प्रयोग करनी चाहिए। 
ईश्वर के साथ बिज़नेस setup करने के लिए पूर्ण समर्पण करके,प्रणाम करके, सेवा करके और प्रश्न करके ज्ञान को प्राप्त करना ही एकमात्र साधन है । अहंकार युक्त उद्धत स्वभाव के साथ ईश्वर का सत्संग करने का अर्थ अपने अंदर नकारात्मक  शक्ति को भर लेना है,इससे कुछ भी लाभ नहीं मिलेगा। जिससे कुछ प्राप्त करना हो उस पर श्रद्धा करते हुए नम्रता पूर्वक निकट जाने से आकर्षण शक्ति में अवश्य ही बढ़ोतरी होती है। ऐसे आकर्षण से संतों  के आस-पास उड़ते हुए परमाणुओं को अपने अंदर आकर्षित किया जा सकता है। जिस घर में पूजा-पाठ, साधना, सदविचारों का आदान-प्रदान होता रहता है, वहां प्रवेश करते ही अपार  शांति प्राप्त होती है,ऐसा हम सबने अनेकों बार अनुभव किया  होगा। 


आज 11   युगसैनिकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है। आज का गोल्ड मैडल सुजाता बहिन जी को जा रहा है, बहुत बहुत बधाई ।सभी साथिओं  का योगदान के लिए धन्यवाद् ।
(1)संध्या कुमार-25 (2)सुमनलता-27,(3)वंदना कुमार-35 ,(4 )चंद्रेश बहादुर-31 ,(5 ) निशा भारद्वाज-26,(6)रेणु श्रीवास्तव-46  ,(7) सुजाता उपाध्याय-66,(8 ) नीरा त्रिखा-42  ,(9 ) अरुण वर्मा-49 ,(10 )मंजू मिश्रा-33 ,(11) सरविन्द पाल-26                     
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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