16 अप्रैल 2024 का ज्ञानप्रसाद
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से हम परम पूज्य गुरुदेव की अद्भुत रचना “मानवीय विद्युत के चमत्कार” को आधार मानकर जिस लेख श्रृंखला का अमृतपान कर रहे हैं आज उस शृंखला का 12 वां लेख प्रस्तुत है।
2011 में प्रकाशित हुई 66 पन्नों की इस दिव्य पुस्तक के दूसरे एडिशन में परम पूज्य गुरुदेव हम जैसे नौसिखिओं,अनुभवहीन शिष्यों को मनुष्य शरीर की बिजली से परिचित करा रहे है। यह एक ऐसा जटिल विषय है जिसे साधारण मनुष्य (Layman) के अंतर्मन में उतार पाना कोई आसान कार्य नहीं है। कल वाले लेख में हमने देखा कि अरुण वर्मा जी की समस्या का पता चलते ही कैसे सारा परिवार समाधान ढूंढ निकालने में कूद पड़ा, यही है परिवार भावना।
आज के लेख में “विचारों की फैक्ट्री मस्तिष्क” के बारे में सरल सी चर्चा की गयी है।
जिस प्रकार के विचार हम नित्य किया करते हैं उन्हीं “विचारों के अणुओं” का मस्तिष्क में संग्रह होता रहता है। हमारे आस पास अनेकों लोग दिख जाएंगें जो सारा दिन निठल्ले बैठे रह कर, गपशप लगा कर, ऐश मस्ती करके जीवन व्यतीत कर रहे हैं। अक्सर ऐसे ही लोग होते हैं जिन्हें कुछ सार्थक कार्य करने के लिए प्रेरित किया जाए तो पटाक से एक ही उत्तर मिलेगा “समय किसके पास है ?” जो लोग 35-40 वर्ष की आयु रेंज में हैं उनके लिए तो “समय न होने वाली” बात कुछ हद तक सच भी हो सकती है क्योंकि उन्हें परिवार को पालना है, 8-10 घंटे नियमितता से जॉब भी करना है, सामजिक ज़िम्मेदारियाँ भी निभानी हैं और न जाने क्या कुछ करना है, लेकिन जो सेवामुक्त हो चुके हैं,सभी जिम्मेदारिओं से मुक्त हैं, उनके मुखमण्डल से “समय किसके पास है” जैसे शब्द कुछ अटपटे से ही लगते हैं।
ऐसी केटेगरी के लोगों के मस्तिष्क में “फालतू विचारों” का कूड़ा-कर्कट इकट्ठा होता ही रहता है और सद्रुणों के अणु सूख जाते हैं। अध्यात्म, जो आम लोगों की समझ से बाहिर है और समझने के प्रयास और डर के कारण अक्सर नकारा जाता है वोह भी इस बात का समर्थन करता है कि जो व्यक्ति दुर्व्यसनों अथवा दुर्गुणों में फँसे रहते हैं, उनके मस्तिष्क में उसी प्रकार के अणुओं की वृद्धि होती रहती है, विज्ञान ने तो इस तथ्य को पहले से साबित कर रखा है। “खाली दिमाग शैतान का घर” की बात तो हम वर्षों से करते आए हैं लेकिन इसके सम्बन्ध में विज्ञान क्या कहता है ? नन्हें-मुन्हों बच्चों के ऊपर प्रयोग करके देखो। अगर उन्हें कहा जाए कि आज आपको कोई सुपरवाइज़ करने वाला नहीं है, अपनी इच्छा अनुसार आप जो चाहो कर सकते हो, तो उन पर एक और Proverb सार्थक होती दिखेगी कि “If you you give a long rope to the children, they will hang themselves” अर्थात अगर बच्चों को लम्बी रस्सी दे दी जाए तो वोह स्वयं को ही फाँसी लगा लेंगें।
परम पूज्य गुरुदेव जुलाई 1946 की अखंड जयोति में लिख चुके हैं कि मानसिक विकास केवल मस्तिष्क का उचित उपयोग करने से ही संभव है। मस्तिष्क को आलसी और निकम्मा छोड़ देने से मानसिक शक्ति क्षीण होती है। खाली दिमाग दुर्व्यसनों और बुरी आदतों के लिए “स्वर्ग” का कार्य करता है।
हमारे साथिओं को पता ही होगा कि सामान्य मनुष्य अपने सारे मस्तिष्क का उपयोग नहीं करता, केवल मस्तिष्क के आधे भाग को ही उपयोग में लाता है, मस्तिष्क के आधे भाग के अणु निष्क्रिय पड़े रहते हैं। मस्तिष्क के जिस भाग का प्रयोग नहीं होता, निष्क्रिय अणुओं के कारण वोह भाग संकुचित हो जाता है। ऐसे लोग मस्तिष्क का प्रयोग तो करते नहीं हैं, दूसरों के आदेश व सलाह पर ही जीवन का संचालन करते हैं। ऐसा करने पर उनकी बुद्धि इतनी सुस्त व मन्द हो जाती है कि वोह स्वयं विचार ही नहीं कर सकते। अपने विचार करने का कार्य दूसरों से करवाते हैं, किंचित मात्र भी अपने “विचार रूपी यन्त्र” (मस्तिष्क) का उपयोग नहीं करते। ऐसे लोगों के मस्तिष्क संकीर्ण हो जाते हैं और उनका सारा जीवन दासता के बन्धन में ही व्यतीत होता है,एक नौकर की भांति बॉस से जो-जो आर्डर मिलते जाते हैं चुपचाप बिना किसी तर्क के पालन करते रहते हैं, क्योंकि तर्क करने के लिए तो मस्तिष्क प्रयोग होता है और मस्तिष्क को तो कभी प्रयोग किया नहीं।
मस्तिष्क, मानव शरीर का बहुत ही महत्वपूर्ण अंग है, भगवान् ने इसे पिटारी में बंद करके, संभाल कर रखने के लिए नहीं दिया है क्योंकि वोह जानते हैं कि इसे उत्तम या निकृष्ट बनाना मनुष्य के हाथ में ही है। भगवान् ने मनुष्य को न सिर्फ मस्तिष्क ही दिया है, उसके सदुपयोग के साधन भी दिए हैं। अनेकों साधनों में से केवल तीन को ही समझ कर अपने जीवन में उतार लें तो बहुत कुछ हो सकता है : (1)सोचना, (2)विचार करना तथा(3) मनन करना।
मस्तिष्क में यह तीनों क्रियाएँ सारा जीवन अनवरत चलती रहती हैं इसीलिए मस्तिष्क को विचारों की फैक्ट्री की संज्ञा दी गयी है।
बड़ी फ़ैक्टरिओं की बात तो एक तरफ रख दें, एक रेहड़ी लगाने वाले का भी इतना दिमाग तो है ही कि अगर वोह ठीक से बिज़नेस करेगा तभी वोह परिवार के लिए पैसा कमाकर घर ला पाएगा, परिवार का पालन पोषण कर पाएगा। दूसरी तरफ जिसके पास दिमाग नहीं है उसने चाहे कितनी भी बड़ी-बड़ी-बड़ी डिग्रीयां प्राप्त कर ली हों, कितने ही बड़े-बड़े बैंक लोन लिए हों,bankrupt होते देर नहीं लगेगी।
यही है गुरुदेव का विचार क्रांति का सूत्र, सही-सकरात्मक विचारों का चिंतन, मनन, प्रचार-प्रसार। केवल “विचार क्रांति सफल हो सफल हो, हमारी युग निर्माण योजना सफल हो सफल हो” रटने से, नारेबाज़ी से कुछ भी नहीं होने वाला। जब तक सकारात्मक विचारों की ज्वाला हमारे अंतःकरण में न उठ पाएगी, ज्ञानप्रसाद लेखों में प्रकाशित हो रहे गुरुवचनों को, गुरुशिक्षा को स्वयं समझकर औरों को समझाने का प्रयास नहीं होगा, विचार क्रांति अभियान,युगनिर्माण योजना धरी की धरी रह जाएगी। ऐसी स्थिति में हमारे पास गुरु के सामने सिर झुका कर एक अभियुक्त की तरह खड़े होने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं बचेगा।
इसलिए आवश्यक है कि मनुष्य अपने मस्तिष्क में सकारात्मक विचारों वाले अणुओं का विकास करे। Law of attraction भी तो यही कहता है- मनुष्य जितना सकारात्मक सोच रखेगा,उसका चिंतन-मनन करेगा उतने ही अधिक नए सकारात्मक सोच वाले अणुओं का जन्म होगा। क्रोध जैसी नकारात्मक सोच से मस्तिष्क में क्रोध करने वाले अणुओं की संख्या की वृद्धि होती है। चिंता, शोक, भय व खेद करने से ऐसे ही कुविचारों के अणुओं का पोषण होता है और मस्तिष्क निर्बल होता है । भूतकाल की दुर्घटनाओं को स्मरण करके, खेद या शोक के वशीभूत होने से मस्तिष्क निर्बल होता है, ऐसे नकारात्मक विचार मस्तिष्क के लिए विष का कार्य करते हैं।
जिस प्रकार शरीर में बल होते हुए भी बल का उपयोग न करने से, बल क्षीण होता है, उसी प्रकार बिना विचार के मस्तिष्क भी क्षीण होता है। नवीन विचारों का मन में स्वागत करने से मस्तिष्क का मानस व्यापार व्यापक होता है तथा मन प्रफुल्लित हो जाता है, जीवन व बल की वृद्धि होती है, मन व बुद्धि तेजस्वी बनते हैं। जो विचार हमारे मस्तिष्क में हैं, वे ही हमारे जीवन को बनाने वाले हैं। मनुष्य जिस कला का विचार करता है, उसी का अभ्यास करता है, उसी में निपुणता प्राप्त करता है। बचपन से माता पिता बच्चे को उच्च शिक्षा के लिए प्रेरित करते रहते हैं, प्रोत्साहित करते रहते हैं यानि उसके मस्तिष्क में परिश्रम करने के विचारों की खेती करते रहते हैं। अगर बच्चा डॉक्टर बनना चाहता है तो पहले डॉक्टर बनने के विचारों का जन्म तो होना ही चाहिए,फिर वोह उसमें अभ्यास करता है, अथक परिश्रम करता है ,निपुणता प्राप्त करता है, तब कहीं जाकर उसकी सिलेक्शन होती है।
परम पूज्य गुरुदेव की कक्षा में भी सिलेक्शन का यही मापदंड है, यही प्रोसेस है।
कल वाले लेख में हमने Law of attraction की बात की थी जिसका अर्थ है Like attracts like यानि एक ही प्रवृति वाले मनुष्य अपने जैसे ढूंढ ही लेते हैं यां वोह स्वयं उनके पास खिंचे चले आते है।
ऐसा भी देखने में आया है कि कई महापुरुष प्रत्यक्षतः संसार की भलाई के लिए कोई अधिक काम नहीं करते, लेकिन वे उच्चकोटि की “पवित्र विचारधारा” संसार में प्रवाहित करते रहते हैं। ऐसे महापुरुष, जनसाधारण को इतना अधिक एवं उच्चकोटि का लाभ पँहुचा देते हैं जितना 1000 मनुष्यों के शारीरिक कार्यों से भी नहीं हो सकता। परम पूज्य गुरुदेव की भांति अनेक महात्मा पर्वतों की कंदराओं में तप करते रहते हैं,कभी कभार (यां कभी भी नहीं) जनसाधारण को उनके दर्शन तक नहीं होते। तो ऐसे महात्माओं के बारे में यह सोच लेना कि वे तो स्वयं की मुक्ति के लिए या स्वर्ग की कामना के लिए परिश्रम कर रहे हैं, कदापि नहीं सच नहीं है। सच तो यह है कि तप द्वारा महात्मा लोग अपनी “आत्म विद्युत” को तीव्र करते रहते हैं और समय आने पर अपने पवित्र विचारों को लोगों में ब्रॉडकॉस्ट करते हैं। महात्माओं के सन्देश (ब्रॉडकास्ट) ऐसे होते हैं जो केवल Like minded लोगों द्वारा ही रिसीव किये जा सकते हैं। सांसारिक मनुष्य अपने मन के रेडियो पर इन संदेशों को भली प्रकार सुन सकते हैं ।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच पर ब्रॉडकास्ट हो रहे परम पूज्य गुरुदेव के दिव्य सन्देश उन्हीं लोगों के रिसीवर पर रिसीव होते हैं जिन्होंने अपने रेडियो के स्विच ऑन किए हुए हैं। अगर हमें विविध भारती सुनना है तो अपने रेडियो की knob को घुमा-घुमा कर स्टेशन की Frequency से मैच करना पड़ेगा।
गुरुदेव की भांति, ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की भांति, महात्मा गाँधी स्वतंत्रता आंदोलन के लिए सेवकों की भीड़ नहीं इक्क्ठी करना चाहते थे। वे कहते थे कि पर्याप्त “आत्मशक्ति” वाले मुट्ठी भर मनुष्य हों तो भी स्वतंत्रता मिल सकती है। गुरुदेव ने अपने उद्बोधनों में कहा है, “काश मुझे एक विवेकानंद ही मिल जाता।” अगर बिना सोचे समझे भीड़ इक्क्ठी की जाए, तो हो सकता है नकारात्मक सोच वाले मनुष्य भी परिवार में घुस जाएँ, वोह उसी तरह के लोगों को अपनी ओर खींचेंगें जिससे परिवार का वातावरण ही दूषित हो जाए। ऐसी स्थिति में परिवार के सभी सदस्यों का जीवन दुःखमय होते देर न लगेगी। पापकर्म करने से उसका प्रभाव दूसरों के लिए उत्पन्न होता है जिससे बुराई का जन्म होता है। इसलिए मनुष्य को सदैव सावधान रहना चाहिए कि मन में पापमय विचार न घुसने पावें । जब उनका उदय हो तो उसी क्षण धकेल कर बाहर निकाल देना चाहिए।
विचार क्रांति के लिए,स्वयं की और संसार की सर्वोत्तम सेवा का एक ही सूत्र है। सदा पवित्र विचार किए जाएँ । प्रेम, दया, परोपकार, सहानुभूति के विचार अपनी सच्ची उन्नति और दूसरों की सच्ची सेवा करने का निश्चित मार्ग है।
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मानवीय मूल्य जिनका बार-बार प्रचार किया जाता है, इन्ही सूत्रों पर आधारित हैं।
आज 11 युगसैनिकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है। आज का गोल्ड मैडल चंद्रेश जी को जा रहा है, बहुत बहुत बधाई चंद्रेश जी । सभी का योगदान के लिए धन्यवाद् ।
(1)संध्या कुमार-46 ,(2)सुमनलता-28 ,(3)सुजाता उपाध्याय-31,(4 )चंद्रेश बहादुर-50 ,(5 )सरविन्द पाल-24 ,(6 )रेणु श्रीवास्तव-24,(7 )नीरा त्रिखा-24 ,(8 ) अरुण वर्मा-47 ,(9 )मंजू मिश्रा-26 ,(10 ) वंदना कुमार-24,(11) विदुषी बंता-29
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।