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हमारे शरीर में बिजली कैसे पैदा होती है?

10 अप्रैल 2024 का ज्ञानप्रसाद

Source: मानवीय विद्युत के चमत्कार

 https://youtu.be/rLyk2o1AA3s?si=-iRTcW9vWjvzyqcQ

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से हम परम पूज्य गुरुदेव की अद्भुत रचना “मानवीय विद्युत के चमत्कार” को आधार मानकर जिस  लेख श्रृंखला का  अमृतपान कर रहे हैं, आज माँ ब्रह्मचारिणी के चरणों में नमन करते हुए उस  शृंखला का नौवां लेख   प्रस्तुत है।  

2011 में प्रकाशित हुई 66 पन्नों की इस दिव्य पुस्तक के दूसरे  एडिशन  में परम पूज्य गुरुदेव हम जैसे नौसिखिओं,अनुभवहीन शिष्यों को मनुष्य शरीर की बिजली एवं उस बिजली से सम्पन्न होने वाले कार्यों से परिचित करा रहे  है। Bodily electricity के बारे में अज्ञानता के अभाव में मनुष्य गलत मार्गों को अपनाकर जीवनभर दुःख उठाता रहता है।

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मानवीय विद्युत् के बारे में हम पिछले कईं दिनों से थोड़ी-थोड़ी मात्रा में ज्ञानार्जन का प्रयास कर रहे हैं। यह एक ऐसा जटिल विषय है जिसे साधारण मनुष्य (Layman ) के अंतर्मन में उतार पाना कोई आसान कार्य नहीं है। हम भांति-भांति के प्रयासों (वीडियो आदि) से  इस विषय को समझने के यथासंभव प्रयास कर रहे हैं। विषय की जटिलता( Complexity) का मुख्य कारण है कि मानव शरीर, जिसके अंदर की बिजली की चर्चा की जा रही है, कोई अलग यूनिट नहीं है, इकाई नहीं है। मानव का शरीर, वायुमंडल एवं दृष्टि में आ रहे सभी घटकों (units) के साथ ऐसे गुंथा हुआ है जैसे दूध में जल। इसलिए जब पृथ्वी के आकर्षण/चुम्बकत्व की बात की जाती है तो उसमें भी मानवी विद्युत् का बहुत बड़ा योगदान होता है। 

आज के लेख के साथ मात्र 3 मिंट की एक वीडियो संलग्न की गयी है जो हमारे मूल  प्रश्न का उत्तर दे रही है “हमारे शरीर में बिजली कैसे पैदा होती है।” हम यह भलीभांति जानते हैं कि इस वीडियो के कंटेंट को समझने में दो समस्याएं आ सकती है। पहली समस्या यह है कि यह  विज्ञान का विषय है और दूसरी समस्या कि यह वीडियो इंग्लिश में है। यह बात हमने पहले भी लिखी थी लेकिन साथिओं के कमैंट्स ने दर्शा दिया कि समझने में कोई समस्या नहीं अनुभव हुई थी। 

मानव के शरीर में बिजली कैसे पैदा होती है, उसका बहुत ही सरल उत्तर है कि जब हम भोजन करते हैं तो केमिकल एनर्जी, मैकेनिकल एनर्जी, इलेक्ट्रिकल एनर्जी में बदल जाती है, जिससे हमें ऊर्जा प्राप्त होती है। यह ऊर्जा ही शरीर की बिजली है जो बिजलीघर की तरह  शरीररूपी विशाल पावर प्लांट में जमा रहती है। 

इस बिजली से शायद ही कोई क्षेत्र (जड़ चेतन आदि)अछूता रहा हो।

तो आइए देखें मकानों पर क्या प्रभाव पड़ता है       

मानवीय विद्युत का चमत्कार है कि यह  जड़ पदार्थों में भी शक्ति  का संचार करती है। मकानों में निवास कर रहे व्यक्तियों  के विचारों का वातावरण भी अपना प्रभाव डालता है। जिस घर में जैसी प्रकृति के लोग रहते हैं उनके विचारों की श्रृंखला उस स्थान से गुंजित हो जाती है। ऐसे  लोग घर छोड़ कर चले भी जायँ तो भी बहुत देर तक उनके गुण, स्वभाव वहाँ डेरा डाले रहते हैं। यहाँ यह कहना बहुत ही उचित होगा कि जिस किसी मनुष्य को “आध्यात्म तत्त्व” की थोड़ी भी जानकारी है, वह किसी भी मकान में प्रवेश करते ही बता सकता है कि यहाँ पर कैसे स्वभाव के लोगों का रहना होता है या हुआ था। भले विचारों से परिपूर्ण मकान में प्रवेश करते ही एक अद्भुत शांति एवं  शीतलता का अनुभव होता है, यह दिव्य तरंगें घर में प्रवेश करते ही आगुन्तक का स्वागत करने को आतुर होती हैं। जिन घरों में दिव्य लोगों का निवास हो, वहाँ उसी प्रकार की तरंगों का प्रादुर्भाव होने लगता है। 

इसके बिल्कुल उल्ट जिस घर में दुराचारी लोग रहे हों, वहां थोड़ी देर के बाद ही बेचैनी होने लगेगी और मनुष्य का वहाँ से  भागने को मन करेगा । जिस स्थान पर कोई भयंकर या वीभत्स कार्य हुए हैं, उन जगहों का वातावरण मुद्दतों तक नहीं बदलता । जिन मकानों में अग्निकांड, भ्रूण हत्या, कत्ल या ऐसे ही जघन्य कार्य हुए हैं, उन घरों की ईंटें रोती हैं और उन स्थानों पर सताये गये प्राणी की करुणा कभी-कभी जागृत होकर बड़े डरावने दृश्य या स्वप्न उपस्थित करती है। ऐसे ही घरों को भूतों का डेरा कहा जाता है, उनमें जो कोई रहता है, उसे कष्ट होता है, डर लगता है या अन्य उपद्रव होते हैं। ऐसे स्थानों के संबंध में उनके कुछ पहले का इतिहास तलाश किया जाय तो पता चल जाता है कि ऐसे घरों में  जरूर कोई खटकने वाली घटना हुई होगी। कोई मनुष्य शारीरिक और मानसिक कष्टों से कराहता हुआ उसमें पड़ा रहा होगा या उस स्थान पर किसी की हाय पड़ी रही होगी। उग्र मानसिक अनुभूतियाँ जिन स्थानों में मँडराती रहती हैं, उनमें रहने वाले सुखी नहीं रह सकते। ऐसे मकानों में  प्रबल मनस्वियों को छोड़कर साधारण कोटि के मनुष्यों का कलेजा  काँपता रहता है।

बहुत दिनों तक खाली पड़े रहने वाले मकानों में उससे किसी समय विशेष मनोयोग से रहे हुए व्यक्तियों के “विद्युत कण,Electrical particles”  जागृत हो उठते हैं। मनुष्य शरीर के एक-एक कण में स्वतंत्र सृष्टि रच डालने की शक्ति भरी है। जब उसके लिए किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं होती तो वे अवसर पाकर अपने पूर्व रूप की भूमिका में एक स्वतंत्र अव्यक्त व्यक्ति की रचना करने लगते हैं । एक कण का एक अव्यक्त शरीर बन सकता है। कोई मृत व्यक्ति चाहे वह अन्यत्र जन्म ले चुका हो, फिर भी उसके पिछले कण यदि जागृत होने की स्थिति में आ जायें तो वे प्रकट हो सकते हैं । मृतात्मायें, भूत, प्रेत, पिशाच, बेताल अक्सर किसी भूतपूर्व व्यक्ति के थोड़े से विद्युत परमाणुओं की एक स्वतंत्र सृष्टि होती है। बहुत सी बातें उनमें अपने पूर्व रूप से मिलती-जुलती होती हैं और बहुत सी बिल्कुल स्वतंत्र होती हैं। इस प्रकार बने हुए भूत-प्रेतों के लिए यह आवश्यक नहीं कि उनके सारे स्वभाव और सारा ज्ञान पूर्व शरीर की भाँति हो ।

ऐसा भी देखा/सुना गया  है कि बहुत दिनों से खाली पड़े मकानों में ऐसे विद्युत कण अक्सर मूर्तिमान होते हैं । यह जरूरी नहीं है कि यह अव्यक्त प्रेत आत्माएं  उसी मनुष्य की हों जो उसमें रहा हो। इधर-उधर उड़ते-उड़ाते कोई बीज कण वहाँ ठहर जाये और उपयुक्त अवसर पा जावे तो उस स्थिति तक विकास कर सकता है, जिसे लोग कभी-कभी-प्रेत के रूप में देखने या मानने लगते हैं। यह प्रेत आत्माएं  कई बार अपने पूर्व स्मरण की भूमिका जाग पड़ने पर वैसी ही क्रिया दोहराने लगती हैं जैसी उनकी पूर्व जन्म की रही हों। उदाहरण के लिए अगर किसी को पूर्वजन्म में  गाने का शौक रहा हो तो उस  मकान में संगीत आदि भी गूँज सकता है  । खाली पड़े मकान में यदि थोड़े से व्यक्ति आकर रहें तो उनके शरीर की गर्मी  उन प्रेत आत्माओं को गर्मी देती हैं जिसके  फलस्वरूप वे अधिक सक्रिय हो जाती हैं और अपने कार्यों को अधिक वेग से दोहराने  लगती हैं, किंतु यदि अधिक व्यक्ति वहाँ आकर रहें तो उनकी बढ़ी हुई गर्मी उन प्रेत आत्माओं  को खदेड़ बाहर कर सकती  है । 

जब ऐसी घटनाएँ उपस्थित हों कि अमुक स्थान में भूत दिखा  या उसकी अमुक हरकत हुई तो समझना चाहिए कि किसी जीवित या मृत व्यक्ति का कोई “विद्युत कण” चेतना के स्तर  तक विकास कर चुका है। यह प्रेत आत्माएं यदि अधिक कठोर न हों, तो आसानी से हटाई जा सकती है। घर की पूरी सफाई, अग्नि की गर्मी, अधिक लोगों का निवास उन्हें हटाने पर मजबूर कर सकता है।

मानवी विद्युत् का आभूषणों पर प्रभाव:

स्त्रियां  आभूषण बहुत पसंद करती हैं क्योंकि उनसे स्त्रियों के   सौंदर्य में वृद्धि होती है । विज्ञान बताता है कि वायु के साथ “आकाशीय विद्युत” की एक धारा भी बहती रहती है। धातुओं में बिजली को आकर्षित करने का गुण है। चाँदी और सोना आकाश की सूक्ष्म बिजलियों को आकर्षित करते हैं। चाँदी द्वारा शीतलता, गंभीरता और मंदता उत्पन्न होती है। स्त्रियों की बढ़ी हुई “कामशक्ति” को घटाने के लिए चाँदी के आभूषण  पहनने  चाहिए पैरों में चाँदी के भारी कड़े पहन कर विधवाएँ अपने सतीत्व की रक्षा आसानी से कर सकती हैं। जिनके पति परदेस  में हों, ऐसी स्त्रियों को भी चाँदी के कुछ जेवर जरूर पहनने चाहिए, जिससे उनका मन शांत रहे। सोना उत्साह, तेज और चमक प्रदान करता है चेहरे पर तेज या चमक होना स्त्रियाँ विशेष रूप से पसंद करती हैं। 

इस दृष्टि से नाक कान में कुछ पहनना अच्छा है। कान के निचले भागों में ही सोना पहनना चाहिए जिससे कनपटी और गालों से संबंध रखने वाली मांस पेशियों से छूता रहे। कान के ऊपरी भाग में सोना पहनने से उसका संपर्क मस्तिष्क की ऊपर की मांस पेशियों से होता है, जिससे चित्त में चंचलता उत्पन्न होती है। 

धातुएँ अपने आकर्षण से आकाश की उपयोगी बिजली खींचकर पहने हुए शरीर में देती हैं। इससे न केवल सौंदर्य की, वरन् स्वास्थ्य की वृद्धि होती है। ताँबा भी सोने जैसा ही गुणकारी है, परंतु न जाने उसके जेबर क्यों नहीं पहने जाते। सोने के पोले जेवर जिनके अंदर लाख आदि भरवाई जाती है, यदि ताँबा भरवा दिया जाय तो गुणों वह में सोने के समान ही रहेगा। सोने में थोड़ा ताँबा मिलाकर ” गिन्नी गोल्ड” जैसी मिश्रित धातु के आभूषण  और भी उत्तम होंगे। छाती, हृदय, कंठ के आस-पास कोई जेवर पहनना हृदय को बल देता है। पुरुष जो खुद जेवर पहनना ठीक नहीं समझते यदि सोने या ताँबे की एक अँगूठी पहने रहें तो अच्छा है। ताँबे और चाँदी के तारों से गुँथी हुई अँगूठी सात्विक विचारों को आकर्षित करती है। उचित मात्रा में अष्ट धातुओं के मिश्रण से बने हुए आभूषण  एक प्रकार से “जीवित मैग्नेट” हैं। अष्ट धातुओं के आभूषणों  में बहुत उच्च  “आकर्षण धारा” होती है लेकिन  स्मरण रहे, अष्ट धातु का कोई बहुत बड़ा आभूषण  न पहना जाय अन्यथा निद्रा-नाश, रक्त, पित्त, उन्माद जैसे रोग हो सकते हैं । उनका लाभ अँगूठी जैसे छोटे आभूषण  पहनने में ही है।

विज्ञान ने स्त्रियों द्वारा सोना पहनने के पीछे वैज्ञानिक स्पष्टीकरण भी दिया है जिसका सीधा सम्बन्ध,पुरषों की तुलना में कम शारीरक शक्ति से जोड़ा है। नथनी से लेकर कान की बाली तक, कंगन से लेकर मंगल सूत्र तक सभी आभूषणों को शरीर में दौड़ रही बिजली के साथ जोड़ दिया गया है। 

शब्द सीमा आज आज्ञा नहीं दे रही, कल वाले लेख में जानने का प्रयास करेंगें कि विभिन्न अंगों में पहने गए आभूषणों का स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव होता है। 

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आज भी  केवल 7 युगसैनिकों ने ही 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है। आज सभी साथी  गोल्ड मैडल विजेता हैं । सभी का योगदान के लिए धन्यवाद् एवं बधाई । 

(1)संध्या कुमार-28,(2)सुमनलता-24 ,(3)सुजाता उपाध्याय-24,(4 )चंद्रेश बहादुर-27,(5 ) अनुराधा पाल-25,(6) सरविन्द पाल-24,(7) साधना सिंह-24        

सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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