9 अप्रैल 2024 का ज्ञानप्रसाद
ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से हम परम पूज्य गुरुदेव की अद्भुत रचना “मानवीय विद्युत के चमत्कार” को आधार मानकर जिस लेख श्रृंखला का अमृतपान कर रहे हैं, आज उस शृंखला का आठवां ज्ञानप्रसाद लेख अपने समर्पित साथिओं के समक्ष प्रस्तुत है।
2011 में प्रकाशित हुई 66 पन्नों की इस दिव्य पुस्तक के दूसरे एडिशन में परम पूज्य गुरुदेव हम जैसे नौसिखिओं,अनुभवहीन शिष्यों को मनुष्य शरीर की बिजली एवं उस बिजली से सम्पन्न होने वाले कार्यों से परिचित करा रहे है। गुरुदेव बताते हैं कि जिस प्रकार “स्वास्थ्य विज्ञान, Health science” जानना हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है, उसी प्रकार उसे अपनी सबसे मूल्यवान वस्तु “शारीरिक बिजली, Bodily electricity” के बारे में जानना चाहिए। गुरुदेव कहते हैं कि कितने दुःख की बात है कि हम में से बहुत से सुशिक्षित लोग भी इस “महत्त्वपूर्ण विज्ञान” की मोटी-मोटी बातों से परिचित नहीं हैं। इस अज्ञानता का परिणाम यह होता है कि इस महत्वपूर्ण जानकारी के अभाव में मनुष्य गलत मार्गों को अपनाकर जीवनभर दुःख उठाता रहता है।
हमारे विचार में इस विस्तृत एवं जटिल विषय को समझना सरल तो नहीं है लेकिन जितना भी समझ आ जाए लाभदायक ही होगा।
आज के ज्ञानप्रसाद दो दो खुशियां एवं शुभकामना लेकर आया है। एक तो चैत्र नवरात्रि के दिव्य पल और दूसरे हिन्दू नववर्ष का आगमन। हमारे साथिओं को दोनों पर्वों की हार्दिक शुभकामना।आज का प्रज्ञा गीत उसी पर आधारित है एवं साथ ही इसका महत्व दर्शाती एक वीडियो भी संलग्न की है।
ज्ञानप्रसाद में पेड़ पौधों पर चुम्बकत्व का प्रभाव बहुत ही संक्षेप में वर्णित किया गया है क्योंकि इतने विस्तृत विषय को समझ पाना कोई सरल कार्य नहीं है, इसलिए हम उतना ही लिख रहे हैं जितना आवश्यक है।
तो आइए चलते हैं आज के ज्ञानप्रसाद के अमृतपान के लिए गुरुचरणों में गुरुकक्षा की ओर।
***************
जड़ वस्तुओं पर चुम्बकत्व का प्रभाव
मनुष्य की नस-नस में व्याप्त एवं उसके शरीर में दौड़ रही विद्युत शक्ति केवल शरीरधारी जीवित प्राणियों पर ही असर नहीं डालती बल्कि निष्प्राण और जड़ कहे जाने वाले Lifeless पदार्थों पर भी असर करती है।
अगर हमें सही अर्थों में इस विषय को समझना है तो पहले जड़ और चेतन का अंतर् समझना पड़ेगा। नीचे दिए गए उदाहरण में पौधों और वृक्षों को “जड़” यानि Lifeless कहकर समझाया गया है लेकिन बेसिक बायोलॉजी में जब हम Living और Non-living की classification करते हैं तो पेड़-पौधे जड़ न होकर चेतन यानि Living हैं और पत्थर जिनमें जान नहीं होती है Non-living यानि जड़ हैं।
आगे चलने से पहले इस विषय को रोचक बनाने की दृष्टि से अपने साथिओं को यह बताना उचित होगा कि मनुष्य के शरीर में दौड़ रही बिजली पेड़ पौधों को तो प्रभावित करती ही है, निर्जीव, lifeless,ईंट और सीमेंट से घर भी इस बिजली से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते।
चलिए आगे चलते हैं।
जड़ को इंग्लिश में Root कहते हैं। पौधे का वह भाग जो बीजांकुर से विकसित होकर भूमि के भीतर प्रवेश करता है, जड़ कहलाता है। जड़ का काम पौधे को भूमि पर स्थिर रखना और उसके पोषण के लिए भूमि से Minerals और Salts (Nutrients) प्राप्त करना होता है। जड़ अगर जीर्ण-शीर्ण हो जाय यां पौधे को इससे अलग कर दिया जाय तो वह हरा-भरा नहीं रह सकता, नष्ट हो जाता है। किसी पौधे अथवा वृक्ष का अस्तित्व उसके जड़ के साथ जुड़ा होता है, ठीक उसी तरह जैसे हमारा अस्तित्व हमारे पुरखों से जुड़ा हुआ है, जैसे आत्मा परमात्मा से जुड़ी होती है।
लेकिन जड़ शब्द का केवल एक अर्थ नही है। जड़ शब्द को एक और शब्द के साथ जोड़कर देखा जाता है, वह है “मूल” । मूल शब्द किसी चीज़ के वास्तविक रुप को व्यक्त करने के लिए प्रयोग होता है। हम सबने डॉक्टर को कहते सुना होगा कि मुझे बिमारी की जड़ तक जानना है, इसका अर्थ यह है कि जब कोई रोगग्रस्त व्यक्ति किसी डॉक्टर के पास जाता है, तो डॉक्टर इलाज आरम्भ करने से पहले व्यक्ति से विस्तारपूर्वक रोग का कारण जानने का प्रयास करता है, भिन्न-भिन्न प्रकार से टेस्ट करवाता है और उसके बाद ही दवाई देता है। अगर डॉक्टर से पूछा जाय तो वह कहता है: पहले यह ज्ञात होना जरूरी है कि बीमारी की जड़ ( Root cause) क्या है। अगर डॉक्टर को रोग के मूल कारण (Basic reason) का पता नहीं चलता, तो चिकित्सा कार्य में वह असफल हो जाता है।
पौधों के सन्दर्भ में आगे बढ़ते हुए हम कहते हैं कि गहन अर्थों में “पूरे का पूरा वृक्ष ही जड़ है।”
वोह कैसे ?
वृक्ष का एक अंग जिसे हम जड़ कहते हैं, वृक्ष की पोषण क्रिया में सहायता करता है। सौर ऊर्जा से यह क्रिया संचालित होती है। इस ऊर्जा के अभाव में समस्त वृक्ष ही जड़ (Lifeless) है, ठीक उसी तरह जैसे आत्मा के बिना शरीर जड़ है, Lifeless है। शरीर में से आत्मा के निकलते ही वोह निर्जीव हो जाता है और हम एकदम उसे लाश कहना आरम्भ कर देते हैं। वृक्ष में जड़ का कार्य है भूमि से Nutrients लेकर तने के माध्यम से पतियों तक पंहुचाना है, और सुर्य के प्रकाश के सहायता से पत्तियां वृक्ष के लिए भोजन तैयार करती हैं। इस क्रिया को Photosynthesis कहते हैं। यह समस्त क्रिया किसी ऊर्जा (Sunlight) से संचालित होता है, जिसके न होने पर पूरे का पूरा वृक्ष ही मर जाता है । जड़, तना, पत्तियां आदि सभी वृक्ष के अंग हैं। वृक्ष की जड़ का जो कार्य है वही उसका उद्देश्य है और उसके सहयोग से ही वृक्ष के मूल में जो है, वृक्ष का जो उद्देश्य है, वह पूर्ण होता है। वृक्ष का उद्देश्य समस्त सृष्टि का पोषण करना और पर्यावरण को शुद्ध करना है। प्रकृति के द्वारा इसी के निमित्त उसका निर्माण किया गया है।
उत्तर प्रदेश स्थित इटावा जिले के कलेक्टर डॉ० श्रीधर नेहरू ने “इलैक्ट्रिक कल्चर” पद्धति से एक विशाल पैमाने पर निरीक्षण करके सिद्ध किया है कि चुंबक की विद्युत धारा का पौधों और वृक्षों पर बड़ा ही आश्चर्यजनक प्रभाव होता है। इलेक्ट्रिक कल्चर को इंग्लिश में Electroculture कहते हैं। डॉ श्रीधर के पिता बंसीधर नेहरू और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्वर्गीय पंडित जवाहर लाल नेहरू के पिता मोती लाल नेहरू भाई थे। डॉ श्रीधर ने लोहे की जाली द्वारा खेती की फसल को बिजली पहुँचायी, तो पाया कि वे पौधे दूसरे अन्य पौधों की अपेक्षा बहुत अधिक उन्नति कर गये और उनका विस्तार एवं फलने-फूलने का परिणाम बहुत ही संतोषजनक रहा। डॉ साहब ने अपना काम केवल यहीं तक सीमित नहीं रखा बल्कि पर्याप्त प्रमाणों सहित यह भी साबित किया कि “चुंबक शक्ति” का पानी पिलाकर या अन्य प्रकार से बिजली की सहायता पहुँचाकर कठिन से कठिन रोगों को अच्छा किया जा सकता है। उन्होंने बच्चों के गले में ताँबे के तार या ताँबे के ताबीज Electrify करके पहनाए जिससे बच्चों को दाँत निकालते समय होने वाले कष्ट तथा अन्य प्रकार की बिमारिओं से छुटकारा पाने में सहायता मिली। यह प्रयोग उन्होंने उस मामूली से मैग्नेट यंत्र की सहायता से किए थे, जो बिल्कुल हल्की सी ताकत का होता है और मोटर आदि में लगा होता है।
मनुष्य की शारीरिक चुंबक शक्ति उस मैग्नेट की शक्ति की तुलना में बहुत ही सूक्ष्म और गुणकारी प्रभाव रखती है। देखा गया है कि जिन वृक्षों के नीचे मनुष्यों या पशुओं का रहना होता है, वे बहुत बढ़ते और फलते-फूलते हैं। बाग के फूलदार पेड़ों में जैसे खाद, पानी आवश्यक होता है, उसी तरह मानव शरीर की गर्मी भी आवश्यक है नहीं तो उनकी फसल बहुत कमजोर हो जाती है। ऐसा भी देखा गया है जिन खेतों पर किसानों के झोंपड़े होते हैं और उनके आस-पास की खेती की हालत बहुत अच्छी होती है। कुछ वृक्ष जो मुरझाई हुई हालत में थे और सूख रहे थे, उनके नीचे जब मनुष्य और पशुओं का निवास हुआ तो वे कुछ ही दिनों में नवीन पल्लवों से लद गये। हर किसान जानता है कि जंगलों में सुनसान पड़े रहने वाले खेतों की अपेक्षा गाँव के निकटवर्ती खेतों की पैदावार अच्छी होती है। यही कारण है कि जिन पौधों की कोंपल साग (पालक, धनिया आदि) के लिए तोड़ ली जाती हैं, इससे फसल को नुकसान नहीं होता, क्योंकि “हाथ के स्पर्श” से जितना लाभ पहुँच जाता है, हानि उस लाभ की तुलना से बहुत कम होती है। इसके विपरीत यदि किसी हाँसिये से उसे काटा जाए तो अवश्य ही पौधे फिर उतने न बढ़ेंगें ।
यहाँ सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि बिजली चाहे तारों वाली हो यां मानव शरीर की, वनस्पतिओं के विकास में बहुत बड़ी भूमिका निभाती हैं। इन पंक्तियों को लिखते समय (2024) यह तथ्य बिल्कुल ही साधारण से लगते हैं क्योंकि खेतीबाड़ी के क्षेत्र में Electroculture आजकल बहुचर्चित बन चुका है।
यह अनुभव कितना अद्भुत होगा जब डॉ नेहरू ने 1933 में लगभग एक शताब्दी पूर्व अपने रिसर्च रिजल्ट्स रॉयल सोसाइटी ऑफ़ आर्ट्स के चेयरमैन Mr R Matthews के समक्ष प्रस्तुत किए होंगें। डॉ नेहरू के बारे में एक और बात जो देखने में आती है वोह है उनकी शिक्षा का विस्तृत दायरा। कहाँ एग्रीकल्चर और कहाँ प्रशासन। इन पंक्तियों को लिखने के लिए जिस रिसर्च पेपर की सहायता ली गयी है उसमें उनके नाम के साथ Ph.D,MA ,B.Sc, ICS,लिखा हुआ है। इंडियन सिविल सर्विस, Imperial Civil Service (ICS) कुछ गिने चुने लोगों का ही काम होता था। इंटरनल योग के गुरु अरविन्द भी ICS के लिए कैंब्रिज गए थे।
आज के लेख का यहीं पर समापन होता है, कल इसी विषय पर एक और रोचक लेख प्रस्तुत करने का प्रयास करेंगें।
जय गुरुदेव
***********
आज केवल 7 युगसैनिकों ने ही 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है। अति सम्मानीय संध्या बहिन जी को गोल्ड मैडल जीतने की बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्। (1)संध्या कुमार-39,(2)सुमनलता-24 ,(3)सुजाता उपाध्याय-35,(4 )चंद्रेश बहादुर-30 ,(5 )रेणु श्रीवास्तव-35,(6 ) मंजू मिश्रा-24 ,(7 )विदुषी बंता-24
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।