Source: मानवीय विद्युत् के चमत्कार
27 मार्च 2024 का ज्ञानप्रसाद
सबसे पहले निवेदन है कि सभी साथी अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें क्योंकि Health is Wealth.
दो दिन पूर्व Bioelectricity विषय पर आरम्भ हुई ज्ञानप्रसाद लेख श्रृंखला के अमृतपान से अब तक यह तो सुनिश्चित हो ही गया होगा कि मनुष्य का शरीर एक चलता फिरता बिजली घर है। प्राकृतिक बिजली हमारे शरीर के माध्यम से प्रवाहित होती है।
अक्सर यह धारणा बनी हुई है कि इस बिजली का प्रयोग मस्तिष्क एवं उसी तरह के अनेक यंत्रों को चलाने के लिए ही किया जाता है। हमारा मस्तिष्क और कार्यों के इलावा “एक मोबाइल फ़ोन” का कार्य भी संभाले हुए है जिसमें हर क्षण लाखों करोड़ों मैसेज आते रहते हैं, फॉरवर्ड और शेयर होते रहते हैं। अगर फ़ोन को चार्ज करने की आवश्यकता पड़ती है,पावर से कनेक्ट करना होता है, ठीक उसी तरह मस्तिष्क( एवं अन्य यंत्र) भी इस प्राकृतिक बिजली से चार्ज किये जाते हैं। गर्भ में हमारा विकास कैसे होता है, चोट लगने के बाद हमारा शरीर कैसे ठीक होता है, विभिन्न बीमारियां कैसे ठीक होती है,उनका नियंत्रण गड़बड़ाने से अनेकों विकृतियां यहाँ तक कि कैंसर भी हो सकता है, यह भी उस बिजली का ही कार्य है।
इसलिए हमारा निवेदन है कि वर्तमान ज्ञानप्रसाद लेख श्रृंखला को किसी MSc,PhD की कक्षा न समझ कर, सरल भाषा में समझने का प्रयास करना ही उचित होगा जिससे हम Bioelectricity को नियंत्रित करना सीख जाएँ।
आज के लेख का शुभारम्भ यहीं हो रहा है।
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मन, आत्मा की एक इंद्रिय है। मन का धर्म इच्छाएँ उत्पन्न करना है। इच्छा होना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन उन इच्छाओं को पूरा करना बहुत ही आवश्यक है। इच्छाओं को पूरा करने के लिए अन्य अनेकों parameters के साथ-साथ दृढ़ संकल्प शक्ति का बहुत बड़ा योगदान है, अगर कहा जाए कि सबसे बड़ा योगदान है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। संकल्प शक्ति के बिना इच्छा करना “हवाई किले” बनाने से अधिक कुछ नहीं होगा।
मन में इच्छा हुई कि दिल्ली का किला देखें, तुरंत ही उसकी सेविका “कल्पना शक्ति” ने किले का एक कल्पना चित्र खड़ा कर दिया। अब यदि मन की इच्छा निर्बल होगी तो वह चित्र कुछ क्षण बाद विलीन हो जाएगा और यदि इच्छा बलवान होगी तो किले के मानसिक चित्र को पोषण मिलेगा । “इच्छा शक्ति” की खाद यानि खुराक से यह चित्र कुछ ही समय में परिपुष्ट हो जाएगा और दिल्ली के किले की वास्तविक प्रतिमा के साथ अपनी घनिष्ठता स्थापित करने लगेगा । बुद्धि को अपनेआप ही अनेक बातें ऐसी सूझ पड़ने लगेंगी जो उस किले से संबंध रखती हैं।यदि उस मानसिक चित्र को इच्छा का पोषण बराबर मिलता रहे तो बाहर की परिस्थितियाँ कितनी ही विपरीत हों, धीरे-धीरे वह आकर्षक चित्र अपना काम करता रहेगा और परिस्थितियों को अनुकूल करते हुए एक दिन दिल्ली के किले का दर्शन करा कर ही छोड़ेगा ।
किसी कार्य के प्रति इच्छा उठने के क्षण से लेकर उस कार्य के पूरा होने तक, इस लक्ष्य पूर्ति के मार्ग में करोड़ों छोटी-मोटी बाधाएं अवश्य आएंगीं। निर्धारित लक्ष्य, निश्चित संकल्प और मंज़िल तक पहुँच पाने का “आकर्षण” एक ऐसा सुखद अनुभव देता है कि बड़ी से बड़ी बाधा भी ऐसे उड़ती जाती है जैसे कुछ हुआ ही नहीं है।
मन,जिसे अक्सर चंचल कहा गया है,मानवी ऊर्जा से,मानवी बिजली की सहायता से ऐसे-ऐसे संघर्ष कर जाता है जिसे सोच कर साधारण मानव केवल यही कह सकता है “पता नहीं कैसे हो गया, ईश्वर ही जानते हैं” चंचल का इंग्लिश अनुवाद Flighty, Restless, Unsteady होता है जिसका अर्थ होता है कि मन हमेशा उड़ता ही रहता है, अस्थिर रहता है, मन के लिए टिक पाना बहुत ही कष्टदायक होता है। मन की इन विशेषताओं का अपमान करते हुए यहाँ तक कहा जा चुका है “दिल तो बच्चा है, जी” एक बच्चे की भांति चंचल।
बॉलीवुड मूवी “इश्किया” के सुपरहिट गीत “दिल तो बच्चा है जी” को शब्दों में पिरोते समय महान लेखक गुलज़ार साहिब के मन में कौन-कौन से विचार आए होंगें, कौनसी Mental picture बनी होगी वोह तो वही जानते हैं लेकिन हम सभी माता पिता एक बात से तो अवश्य ही सहमत होंगें कि बच्चे की चंचलता ही वह विशेषता है जो उसे आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। इस लेख को पढ़ रहे ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के अनेकों सदस्य अवश्य ही बैकग्राउंड में अपने बच्चों की सुखद चंचलता में डूब गए होंगें। अनेकों सुखद घटनाएं उन्हें उन सुखद पलों का स्मरण करा रही होंगें जब उनके बच्चे घुटनों के बल चलने का प्रयास कर रहे होंगें। उस आयु में बच्चा कभी गिरता है ,कभी सोफे आदि का सहारा लेकर उठता है, फिर गिरता है, फिर प्रसन्न मुद्रा में पीछे बैठी माँ की ओर देखता है, सफल होने पर प्रसन्न होकर माँ की तरफ देखता है, माँ कहती है “गुड जॉब बेटे”, असफल होने पर रोते हुए माँ की तरफ देखता है तो माँ कहती है “कोई बात नहीं बच्चे, गिरते हैं शहसवार ही मैदानेजंग में वोह तिफ़्ल (शिशु) क्या गिरे जो घुटनों के बल चले।” इस नन्हें शिशु के मन में भी लक्ष्य तक पहुँचने का आकर्षण एक सुखद आभास है। हम सभी माता पिता इस बात से भी भलीभांति परिचित हैं कि बच्चे की चंचलता ही उसे सर्वप्रिय बनाती है, आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है। इसके विपरीत, ऐसा बच्चा जो चुपचाप, स्थिर होकर बैठा रहे “दब्बू” की श्रेणी में गिना जाता है।
हम अपने पाठकों से क्षमाप्रार्थी हैं कि यह विश्लेषण पूर्णतया हमारा व्यक्तिगत विश्लेषण है, इसके साथ सहमत/असहमत होने के लिए आप पूर्णतया स्वतंत्र हैं।
इच्छा का आकर्षण:
“इच्छा के आकर्षण से सफलता” मिलने में कितने मानसिक कार्य होते हैं, मानसिक विद्युत असंख्य प्रकार की शारीरिक, मानसिक तथा बाहरी परिस्थितियों को कितने बलपूर्वक चीर- चीरकर अपना रास्ता साफ करती है, इसे यदि मनुष्य की आँखें देख पातीं तो वोह समझ जाता कि ईश्वर ने मनुष्य के अंदर कितना शक्तिशाली चुंबक फिक्स किया हुआ है। मनुष्य तो केवल उसी को अनुभव करता है जो उसे प्रतक्ष्य दिख रहा है, जैसे कि भौतिक शरीर की सारी हलचलें। भौतिक शरीर को पूरी तरह फिट रखना, कायम रखना, उसी असीमित बिजली का कार्य है। मनुष्य के भौतिक शरीर के इलावा अप्रतक्ष्य भी तो बहुत कुछ है।
मनुष्य एवं अन्य प्राणीओं के शरीरों में इतनी गर्मी देखी जाती है जिस पर विश्वास करना शायद संभव ही न हो। मनुष्य शरीर की ही गर्मी को लें, बिजली के कारण उसके शरीर में इतनी गर्मी है एक घंटे में करीब एक मन बर्फ घुल सके।
यह गर्मी कहाँ से आती है ?
यह गर्मी शरीर के भीतर चलने वाले बिजली घर से ही आती है। मनुष्य के भीतर तो इतनी गर्मी है जिससे पृथ्वी पर पैदा होने वाला कोई भी जीव जिंदा नहीं रह सकता। कई मनुष्यों के चेहरे पर ऐसा “तेज़”(Aura) होता है जिसके आगे तलवार और बंदूकें कुंठित हो जाती हैं । यह तेज़ सफेदी या चमक नहीं है बल्कि प्रचंड विद्युत धारा है। जब कोई मनुष्य हज़ारों-लाखों विरोधियों के बीच सफलता प्राप्त करके निकलता है, तो यह कार्य उसके हाड़-मांस ( भौतिक शरीर) का नहीं बल्कि “आत्मतेज” का होता है।
ज्यों ज्यों Bioelectricity का अध्ययन होता जाएगा, हमारी जानकारी बढ़ती जाएगी आने वाले लेखों में हम समझने का प्रयास करेंगें की आत्म विद्युत को सूक्ष्म इद्रियों से ही नहीं बल्कि मोटी इंद्रियों, आँख, नाक, त्वचा आदि से भी अनुभव किया जा सकता है अभी तो हम इतना ही समझ लें, विश्वास कर लें कि शरीर की सारी हरकतें उस विद्युत के द्वारा हो रही हैं, जो “मन की महान विद्युत” का एक अंश है। परम पूज्य गुरुदेव ने 10 छोटे छोटे घरेलू प्रयोगों का वर्णन किया है जिनसे हम Bioelectricity को देख सकते हैं, अनुभव कर सकते हैं। आने वाले लेखों में इन Practicals की भी चर्चा करने की योजना है। हमारा विश्वास है कि अनेकों साथी इन Practicals को अपने घरों में Try करने के उत्सुक होंगें।
एक डाक्टर ने हिसाब लगा कर बताया कि हमारे शारीरिक और मानसिक कार्यों को चलाने में जितनी विद्युत शक्ति (Electrical energy) खर्च होती है, उतनी से एक बड़ी मिल चल सकती है। छोटे बच्चों में भी इतनी बिजली काम करती है, जितनी से रेल का इंजन दौड़ सके। शारीरिक कार्यों के लिए मन की एक तिहाई (33 %) से भी कम बिजली खर्च होती है, बाकि की (67 %) जीवन के अन्य कार्यों को पूरा करने में खर्च होती है।
“जो जैसा बनना चाहता है, वैसा बन जाता है।”
उपरोक्त स्टेटमेंट का रहस्य यह है कि “मन” जैसी इच्छा करता है, “कल्पना” वैसे ही मानसिक चित्र रचती है और लगातार की इच्छा से इन “काल्पनिक चित्रों” में ऐसा मैगनेट पैदा हो जाता है कि वैसी ही परिस्थितयां मन के निकट खिंची चली आती हैं।। किसी वस्तु को लाने, उठाने, ले जाने, प्राप्त करने में सदैव कुछ प्रयत्न करना पड़ता है । इच्छा की तीव्रता के अनुसार मन की धारा चारों ओर उड़ उड़ कर अनुकूल वातावरण तैयार करती है। शरीर में वैसी ही क्रिया उत्पन्न करती है, बुद्धि में तरकीबें उठाती है, संकटों का मुकाबला करने योग्य साहस मिलता है और ऐसी-ऐसी गुप्त सुविधाएँ उपस्थित हो जाती हैं जिनकी हम कल्पना भी नहीं कर पाते । फिर तो दांतों तले ऊँगली दबा कर लोग यही कहते हैं कि इस व्यक्ति ने असम्भव को संभव कर दिखाया । तत्वदर्शी (Philosopher) जानता है कि यह प्राप्ति उसके शरीर की नहीं बल्कि मन की है, क्योंकि इच्छा का बीजारोपण तो मन में ही हुआ था। यदि मन की तीव्र इच्छा न होती तो शायद लक्ष्य पूरा ही न होता । हम अक्सर देखते हैं कि कई आदमी मामूली से कामों को ठीक प्रकार से नहीं कर पाते, उन्हें छोटा-सा काम करने में घंटों लग जाते हैं, करने के बाद थकान अनुभव करते हैं या झुंझलाते हैं, समझना चाहिए कि इनके मन को इच्छा शक्ति ने इस कार्य को पूरा करने में सहयोग नहीं दिया उन्होंने केवल शरीर को घसीटा है, शरीर जितना कुछ कर सकता था, किया है। देह के पास तो अपना भीतर का काम करने के लिए काफी है, उसी से बाहर के काम भी लिए जायँ तो जरूर थकान झुंझलाहट आवेगी। इसीलिए याद रखना चाहिए कि किसी कार्य का सफलतापूर्वक होना, प्रसन्नतापूर्वक होना इस बात पर निर्भर करता है कि उसके लिए अधिक से अधिक मन से इच्छा-आकर्षण का उपयोग किया जाय, क्योंकि यही तो “उत्पादन का मूल स्रोत” है। इच्छा की तीव्रता से क्रिया उत्पन्न होती है और यदि क्रिया का बुद्धिमत्तापूर्वक उपयोग किया जाय तो कोई कारण नहीं कि कठिन से कठिन बाधाएँ भी मार्ग से न हट जाएँ। नेपोलियन कहा करता था “असंभव शब्द मूर्खों के शब्दकोश में है।” नेपोलियन के कथन Unreasonable भले ही लगे लेकिन सत्य का अंश अधिक है।
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आज 13 युगसैनिकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है। अति सम्मानीय चंद्रेश जी को गोल्ड मैडल जीतने की बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।
(1)संध्या कुमार-39 ,(2)सुमनलता-28,(3 ) नीरा त्रिखा-28,(4 ) सुजाता उपाध्याय-34 ,(5)चंद्रेश बहादुर-61 ,(6)सरविन्द कुमार-28,(7) रेणु श्रीवास्तव-27,(8) प्रेरणा कुमारी-26, (9 )निशा भारद्वाज-24,(10) विदुषी बंता-30,(11) अरुण वर्मा-32,(12) पुष्पा सिंह-25,(13) वंदना कुमार-31
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।
