Source: मानवीय विद्युत् के चमत्कार
27 मार्च 2024 का ज्ञानप्रसाद
https://youtu.be/1TBAMOnb2sA?si=bfIyeg2q7nhmI46n
कल ही आरम्भ हुई ज्ञानप्रसाद लेख श्रृंखला जो परम पूज्य गुरुदेव द्वारा रचित पुस्तक Wonders of Human Bioelectricity हिंदी version “मानवीय विद्युत् के चमत्कार।” पर आधारित है, उसका दूसरा लेख प्रस्तुत है। कुछ भी कहे बिना आज सीधा गुरु चरणों में समर्पित होना होगा।
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मनुष्य शरीर में विराजित “आत्मा” उसके शरीर में दौड़ रही इलेक्ट्रिकल एनर्जी का आद्य (आरंभिक) बीज है। छोटे से शरीर की थोड़ी सी शक्ति पर भी दृष्टिपात करने से “आत्मा” एक बहुत छोटी वस्तु प्रतीत होती है, क्योंकि उसके चलने फिरने, बोझ उठाने, काम करने, सोचने आदि की शक्तियाँ बहुत सीमित मालूम पड़ती हैं। कई बातों में तो मनुष्य की अपेक्षा अन्य जीव-जंतु अधिक शक्ति रखते हैं। कुत्तों की सूघने की शक्ति से कौन परिचित नहीं है,मनुष्यों की सूंघने की शक्ति से कई गुना अधिक है लेकिन “भाव संवेदनाओं” को पढ़ने की शक्ति में भी कुत्ते किसी से कम नहीं हैं। ईश्वर ने सभी प्राणियों को कुछ न कुछ विशेषता अवश्य दी है जो उन्हें स्पेशल बनाती है।
मोटी दृष्टि से देखने में कोई भी प्राणी चाहे कितना भी तुच्छ प्रतीत क्यों न हो लेकिन हर एक में एक बड़ा ही अद्भुत गुण है, और वह गन है उसकी “उत्पादन शक्ति।” बरगद का छोटा सा बीज अपने पेट में एक विशालकाय वृक्ष पैदा करने की शक्ति छिपाए रहता है। जब भी उस नन्हें से बीज को उपयुक्त अवसर मिलता है तो वह अपनी छिपी हुई शक्ति को वृक्ष के रूप में बना कर प्रकट कर देता है। जीव चैतन्य है अर्थात चेतना (Consciousness) से ओतप्रोत है और अपना पोषण एक ऐसी चेतना से प्राप्त करता है जिसका कोई अंत नहीं है यानि वह चेतना अनंत है। इसलिए उसके अंदर वह शक्ति है कि अपनी “आकर्षण शक्ति” को चाहे जितनी बढ़ा ले और फिर उसके जरिये जिस वस्तु को जितनी मात्रा में चाहे अपने पास खींच कर इकट्ठी कर ले।
“आकर्षण शक्ति” एक बहुत ही विस्तृत विषय है, यदि उसकी चर्चा यहाँ करनी आरम्भ कर दी तो हम हम अपने मूल लेख से भटक जायेंगें। इस रोचक विषय पर किसी अलग से चर्चा करेंगें, सच में बहुत कुछ सीखने को मिलेगा।
चलो आगे बढ़ते हैं।
यह तो हम सब जानते हैं कि बरगद के बीज में “महान वृक्ष” उत्पन्न करने की शक्ति है, लेकिन क्या सभी बीजों में इतने विशाल वृक्ष उत्पन करने की शक्ति है? नहीं ! कुछ बीज तो अनुपयोगी सिद्ध होने के कारण नष्ट हो जाते हैं। ऐसे बीज अंकुर निकलते ही झुलस जाते हैं यां फिर कुछ बढ़ने पर उनका पौधा मुरझा कर बरबाद हो जाता है। यहाँ दो महत्वपूर्ण प्रश्न उठते हैं :
i) क्या यह स्थिति बीज की अयोग्यता के कारण हुई है ?
ii) क्या उत्पादन क्रिया में कोई त्रुटि है?
असंख्य मनुष्य अपना जीवन बड़ी निकृष्टता, हीनता के साथ गुजारते हैं, उनका जीवन ऐसा दुःखमय और नारकीय होता है कि यह मानने में संदेह उठता है कि मनुष्य की आत्मा में न जाने कितने ही परमात्मा के दिव्य गुण भरे पड़े हैं ।
वेदांत कहता है कि “जीव और ईश्वर एक हैं”, दोनों में एक अटूट बंधन हैं। हमने अभी कुछ दिन पहले ही शुभरात्रि सन्देश में एक चित्र शेयर किया था जिसमें मनुष्य के अंदर कितने ही देवताओं का वास दर्शाया गया था, लेकिन मनुष्य का दुर्भाग्य है कि उसे इस तथ्य का विश्वास ही नहीं होता क्योंकि शंका करना/तर्क करना तो उसका स्वभाव है। ऐसा इसलिए है कि मनुष्य भौतिकवादी है,प्रतक्ष्यवादी है। वोह तो उसी पर विश्वास करेगा जो देख रहा है और तर्क करना उसकी प्रवृति बन चुकी है।
इसी सन्दर्भ में हमें एक घटना स्मरण हो आई तो सोचा यहाँ फिट बैठती है।
एक बार कहीं ईश्वर के अस्तित्व पर बहुत गर्मागर्म चर्चा हो रही थी। ईश्वर विरोधी पक्ष ईश्वर के अस्तित्व को ही मानने को तैयार नहीं था तो यह कैसे मान ले कि मनुष्य ईश्वर की संतान है। ईश्वर के अस्तित्व के पक्षधारी तरह-तरह के प्रमाण दे रहे थे लेकिन विरोधी पक्ष तो “मैं न मानूं” की प्रवृति होने के कारण टस से मस न हुआ । अंत में पक्षधरियों में से किसी ने विरोधियों से पूछा,“ यह क्या सबूत है कि तू अपने पिता की संतान है ?” तो तपाक से उत्तर मिला, “ DNA टेस्ट।” चर्चा बिना किसी निर्णय के यह कह कर समाप्त करनी पड़ी कि “अब भगवान को भी DNA टेस्ट कराना पड़ेगा, यही है कलयुग- कलपुर्ज़ों का युग, मशीनों का युग जहाँ मानव टेक्नोलॉजी का नौकर बना हुआ है।
आइए अब उपरोक्त दोनों प्रश्नों का उत्तर ढूंढने और समझने का प्रयास करें। जब तक मनुष्य स्वयं में परमात्मा के गुणों का अभाव देखता रहेगा उसे विश्वास ही नहीं होगा कि उसके अंदर कितनी शक्ति का वास है, उसे अपनी “उत्पादन शक्ति” पर विश्वास ही नहीं होगा। वर्तमान चर्चा में मनुष्य बीज है और परमात्मा वृक्ष । मोटे तौर से देखा जाए तो यही निष्कर्ष निकलेगा कि वृक्ष और बीज की बराबरी की तुलना हो ही नहीं सकती, कहाँ परमात्मा और कहाँ मनुष्य। लेकिन यह भेद सत्य नहीं है, कैसे ? आइए देखें।
ऊपरी पंक्तियों में हमने मनुष्य की निकृष्टता, हीनता पर Passing रेफेरेंस दिया। हमारे अधिकतर पाठक हमारे साथ सहमत होंगें कि वही मनुष्य मलीन अवस्था में पड़ा रहता है जिसने अपनी उत्पादन शक्ति का ठीक तरह से प्रयोग नहीं किया, जो उत्पादन शक्ति का ज्ञान न होने के कारण उसे ठीक से प्रयोग न कर सका,स्वयं का विकास नहीं कर पाया और बहानेबाज़ी में अन्यों की सहानुभति पर जीना उसका स्वभाव बन गया, Victim card खेल कर लोगों से अपने काम निकलवाना उसका चरित्र बन गया । ईश्वर ने उसे भी तो वही 30 trillion cell दिए हैं जो औरों को दिए हैं। उसे यह समझना होगा कि एक-एक cell अपनेआप में Electricity producing unit है। उसे यह समझना होगा कि ईश्वर ने उसे पूरी स्वतंत्रता दी है कि वह जितना चाहे, जिस भी दिशा में चाहे अपनी “उत्पादन शक्ति” को बढ़ावे।
उत्पादन शक्ति से ही सम्बंधित है संकल्प शक्ति, इच्छा शक्ति और न जाने क्या क्या ! यही है जीवन के प्रति Positive attitude, जिससे मनुष्य को ईश्वरीय अनुदान एवं सहायता मिलती है और साधारण सा मानव, महामानव से देवमानव बनता चला जाता है।
हमारे मस्तिष्क के स्मरण पटल पर इस समय एक ऐसा उदाहरण दस्तक दे रहा है जो मनुष्य की संकल्प शक्ति,इच्छा शक्ति एवं उत्पादन शक्ति से पैदा होने वाली बिजली को सार्थक करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा।
बात लगभग 100 वर्ष पुरानी 1933 है। वर्ष 1911 में ,इंदौर मध्य प्रदेश में जन्मीं बेटी कमला सोहनी की है। अक्सर कहा जाता है कि भगवान हमें कोई निश्चित कार्य देकर इस संसार में भेजते हैं। शायद कमला के साथ भी कुछ ऐसा ही था। कमला के पिता, नारायणराव भागवत, और उनके चाचा, माधवराव भागवत, बेंगलुरु में तत्कालीन टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेज (जो बाद मे Indian Institute of Science बन गया) के केमिस्ट्री के विद्यार्थी थे। कमला ने “पारिवारिक परंपरा” का पालन किया और 1933 में बॉम्बे विश्वविद्यालय से केमिस्ट्री/फिजिक्स में B.Sc. की डिग्री प्राप्त की।
इसके बाद कमला ने IISc में Research Fellowship के लिए आवेदन किया, लेकिन उनके आवेदन को तत्कालीन निर्देशक और नोबेल पुरस्कार विजेता प्रोफेसर सी वी रमन ने इस आधार पर खारिज कर दिया कि महिलाओं के पास शोध करने के लिए पर्याप्त क्षमता नहीं है। कमला ने इस अस्वीकृति का जवाब प्रो रमन के कार्यालय के बाहर सत्याग्रह करके दिया। इस सत्याग्रह ने कमला को प्रवेश देने के लिए निम्नलिखित शर्तों के साथ राज़ी किया :
i)कमला को नियमित छात्रा के रूप में प्रवेश नहीं दिया जाएगा।
ii)कमला पूरे प्रथम वर्ष तक Probation पर रहेगी।
iii)कमला की रिसर्च को तब तक आधिकारिक मान्यता नहीं मिलेगी जब तक सीवी रमन खुद उसकी गुणवत्ता से संतुष्ट नहीं हो जाते .
iv) कमला अपने पुरुष सहकर्मियों का ध्यान भटकाने वाली बनकर माहौल खराब नहीं करेंगी।
अपमान के बावजूद, कमला इन शर्तों पर रिसर्च करने के लिए सहमत हो गईं और इस 1933 में संस्थान में प्रवेश पाने वाली पहली महिला बन गईं। बाद में उन्होंने कहा,
“हालाँकि रमन एक महान वैज्ञानिक थे, लेकिन वह बहुत संकीर्ण सोच वाले थे। मैं कभी नहीं भूल सकती कि उन्होंने मेरे साथ यह व्यवहार सिर्फ इसलिए किया कि मैं एक महिला थी। रमन ने मुझे एक नियमित छात्र के रूप में प्रवेश नहीं दिया, यह मेरे लिए बहुत बड़ा अपमान था। अगर एक नोबेल पुरस्कार विजेता भी इस तरह का व्यवहार करेगा तो औरों से क्या आशा की जा सकती है?”
कमला के सत्याग्रह का यह प्रभाव हुआ कि एक वर्ष बाद कई महिलाओं को संस्था में प्रवेश मिल गया।
कमला ने 1936 में Distinction के साथ MSc की डिग्री प्राप्त की और उसके बाद उन्हें यूके की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में फ्रेडरिक जी हॉपकिंस प्रयोगशाला में डॉ. डेरेक रिक्टर के अधीन काम करने के लिए आमंत्रित किया गया जहाँ उन्होंने Electron transfer पर रिसर्च करके PhD डिग्री प्राप्त की। उनकी थीसिस में विशेष बात थी कि मात्र 14 महीनों में पूरी होने वाली थीसिस मात्र 40 पन्नों की थी जो आमतौर पर बहुत लंबी होती है।
कमला 1947 में मुंबई चली आई और रॉयल इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस के बायोकेमिस्ट्री विभाग में प्रोफेसर के रूप में शामिल हुईं। माना जाता है कि यहाँ भी वैज्ञानिक समुदाय में Gender bias के कारण डायरेक्टर पद पर उनकी नियुक्ति में 4 वर्ष की देरी हुई। लेकिन पग पग पर इस तरह की कठिनाई के बावजूद कमला अपने उद्देश्य की ओर अग्रसर होती गयी।
भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद के सुझाव पर कमला ने “नीरा” नामक पोषक ड्रिंक पर रिसर्च करनी आरम्भ की। ताड़ की विभिन्न प्रजातियों के फूलों से निकाले गए ड्रिंक में महत्वपूर्ण मात्रा में विटामिन ए, विटामिन सी और आयरन पाया जाता है।
बाद के अध्ययनों से संकेत मिला कि आदिवासी समुदायों के कुपोषित किशोर बच्चों और गर्भवती महिलाओं के आहार में इस सस्ते Food supplement के रूप में “नीरा ड्रिंक” को शामिल करने से स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण सुधार हुआ। इस विषय में उनके काम के लिए उन्हें राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
1998 में ICMR द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में डॉ कमला सोहनी अवार्ड लेते हुए collapse कर गईं। वर्ष 2023 में 18 जून वाले दिन सर्च इंजन गूगल ने उनकी 112वीं जयंती पर डूडल बनाकर याद किया।
To be continued
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आज 8 युगसैनिकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है। अति सम्मानीय चंद्रेश जी एवं सरविन्द जी को गोल्ड मैडल जीतने की बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।
(1)संध्या कुमार-27,(2)सुमनलता-25 ,(3 ) नीरा त्रिखा-25 , (4 ) सुजाता उपाध्याय-26 ,(5)चंद्रेश बहादुर-35 ,(6)सरविन्द कुमार-25,39,(7) रेणु श्रीवास्तव-27,(8) मंजू मिश्रा-24
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।



