वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

मनुष्य शरीर एक अच्छा खासा बिजली घर  

26 मार्च 2024 का ज्ञानप्रसाद

आज आरम्भ हो रही लेख शृंखला रोचक तो है ही, इसमें तनिक भी शंका नहीं है, लेकिन रोचक होने के साथ ही बहुत ही ज्ञानवर्धक भी है। देवताओं ने जब भगवान को निवेदन किया कि हमारा वास मनुष्य शरीर में कराया  जाए ताकि हम अपनी आवश्यकताएं पूर्ण कर सकें वहीँ “प्राण शक्ति” का संचार भी करवाया। प्राण को इंग्लिश में Life कहते हैं और शक्ति को Power यां Energy कहते हैं। आने वाले लेखों में इसी प्राण शक्ति,Life energy जो हमें जीवित रखे हुए है, जिसके कारण हम सब बोल रहे हैं, चल फिर रहे हैं, वर्षों तक अनवरत जीवन के उच्च से उच्च, कठिन से कठिन कार्य भी कर रहे  हैं, उसका विस्तृत अध्ययन एवं विश्लेषण करने की योजना है। 

कुछ समय पूर्व जब संजना बेटी ने किसी कमेंट में इस पुस्तक का रेफरेन्स  दिया तो हमने इसे इंटरनेट पर ढूंढने का प्रयास किया। पुस्तक मिल गयी,जो तीन  भाषाओँ में ( इंग्लिश, हिंदी और गुजरती) में उपलब्ध थी। इंग्लिश पुस्तक का टाइटल Wonders of Human Bioelectricity था और हिंदी वाली पुस्तक का टाइटल था “मानवीय विद्युत् के चमत्कार।”

वर्षों से विज्ञान का विद्यार्थी होने के बावजूद Bioelectricity शब्द तो भारी भरकम और टेक्निकल सा  प्रतीत हुआ ही लेकिन उससे भी जटिल था हिंदी अनुवाद “मानवीय विद्युत्” यानि मनुष्य के अंदर दौड़ रही बिजली। जो भी हो डरते-डरते इंग्लिश पुस्तक पढ़नी आरम्भ कर दी, डरते-डरते इसलिए कि मेडिकल बैकग्राउंड होने के बावजूद ऐसा लग रहा था कि  यह पुस्तक कहीं इतनी जटिल,कठिन एवं अरोचक ही न हो कि 2-4 Introductory पन्ने पढ़ने के बाद ही छोड़नी पड़े। ऐसा हरगिज़ नहीं हुआ, बीच में छोड़ना तो क्या,गुरुदेव के आध्यात्मिक जन्म दिवस के उपलक्ष्य में संकल्प लिए 40 दिवसीय अनुष्ठान और  दिन भर की व्यस्तता में से  कुछ समय चुराकर इस पुस्तक के अनेकों पन्ने, अनेकों बार पढ़े। 

ऐसा इसलिए किया कि विज्ञान के विषय पर प्रकाशित हुई इस पुस्तक को ऐसे पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करना है जिन में से अनेकों ऐसे हैं जिनका विज्ञान के साथ कहीं  दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है। परम पूज्य गुरुदेव ने हमारे ह्रदय में उठ रही इस चुनौती का समाधान चुटकियों में ऐसे  कर दिया कि हम एक बार फिर से पंडित लीलापत शर्मा जी के golden words दोहराने पर विवश हो गए  “ऐसा लेखक हमने आज तक नहीं देखा।” हमारे विज्ञान की बैकग्राउंड एक तरफ धरी की धरी रह गयी और हमने निश्चय कर लिया कि जो भी साधन प्रयोग करने पड़ें इस पुस्तक को साथिओं के संग इक्क्ठे होकर गुरूकक्षा की अनेकों Classes में ही पढेंगें।   

2011 में प्रकाशित 66 पन्नों की इस दिव्य पुस्तक के दुसरे एडिशन  की भूमिका में परम पूज्य गुरुदेव ने हम जैसे नौसिखिओं,अनुभवहीन शिष्यों को मनुष्य शरीर की बिजली एवं उस बिजली से सम्पन्न होने वाले कार्यों से परिचित कराया है। गुरुदेव बताते हैं कि जिस प्रकार “स्वास्थ्य विज्ञान, Health science”  जानना हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है, उसी प्रकार उसे अपनी सबसे मूल्यवान वस्तु “शारीरिक बिजली, Bodily electricity”  के बारे में जानना चाहिए। गुरुदेव कहते हैं कि कितने दुःख की बात है कि हम में से बहुत से सुशिक्षित लोग भी इस “महत्त्वपूर्ण विज्ञान” की मोटी-मोटी बातों से भी  परिचित नहीं हैं। इस अज्ञानता का परिणाम यह होता है कि इस महत्वपूर्ण  जानकारी के अभाव में मनुष्य गलत मार्गों को अपनाकर जीवनभर दुःख उठाता रहता है। 

गुरुदेव द्वारा रचित अन्य पुस्तकों की भांति यह पुस्तक भी एक मास्टरपीस है लेकिन जिस “महाविज्ञान विषय” को परम पूज्य गुरुदेव ने मात्र 66 पन्नों में संजोया है, उस महाविज्ञान को न तो पूरी तरह से समझाया जा सकता है और न ही परिजनों के लिए अधिक रोचक साबित हो पाएगा। इसका अर्थ कतई नहीं है कि हम इसे जानने के लिए ज़रा सी भी गैर गंभीरता का प्राकट्य करें।    

गुरुदेव के निर्देशन और मार्गदर्शन में हमारा प्रयास यही रहेगा कि हम सब इतना तो समझ ही लें कि मानवीय बिजली क्या होती है,कहाँ से आती है, इसे कैसे घटाया, बढ़ाया जा सकता है,इसका off/on स्विच कहाँ पर होता है और इस बिजली का हमारे  रोज़मर्रा के जीवन पर क्या और कैसे  प्रभाव पड़ता है।   

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के साथिओं ने कल वाले संक्षिप्त से लेख में विज्ञान की प्रगति और मानवीय मूल्यों का बैलेंस करके ही जीवनयापन के सन्देश का अमृतपान किया  था। जो लोग हर बात को विज्ञान के तराजू से तोलने ही ज़िद करते हैं, उन्हें आने वाले लेखों में बहुत ही स्पष्ट सा मार्गदर्शन मिलने की सम्भावना है।  इन लेखों में So called वैज्ञानिक लोगों को धर्म और प्राचीन रीति-नीतियों के औचित्य का अनुभव करने का अवसर मिलेगा और वे स्वयं ही देख लेंगें कि “भारतीय धर्मशास्त्र एवं आचारशास्त्र” अंधविश्वास पर नहीं बल्कि गंभीर मनोविज्ञान पर निर्भर है।

हमारा विश्वास है कि परम पूज्य गुरुदेव द्वारा व्यक्त गूढ़ विज्ञान की व्याख्या करते हुए, किसी भी टेक्निकल पॉइंट् पर विशेष जोर न देते हुए यथासंभव सरलतम करने का प्रयास में हम सफल होंगें जिस पर सर्वसाधारण निष्पक्ष रूप से इस पर विचार कर सके। 

गुरुदेव बता रहे हैं कि अपने विषय की यह निराली पुस्तक हिंदी साहित्य के अंग को पूर्ण करेगी, ऐसा हमारा अनुमान है।

तो आइए गुरुचरणों में नतमस्तक होकर गुरुकक्षा का शुभारम्भ करें। 

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मनुष्य का शरीर एक अच्छा खासा बिजली घर है । जैसे बिजली घर में से सारे शहर के लिए तार लगे रहते हैं, उसी प्रकार मस्तिष्क में से निकल कर जो पतले-पतले तार समस्त शरीर में जाल की तरह फैले हुए  हैं, उन्हें “ज्ञान तंतु” Knowledge fibers कहा जाता है। यह ज्ञान तंतु एक टेलीफोन का काम करते हैं। देह को ज़रा सा भी कहीं छू दो तो यह तार फौरन मस्तिष्क को सूचना देंगे और मस्तिष्क एक आज्ञाकारी अधिकारी की भांति  क्षण भर में यह फैसला करेगा कि अब क्या करना चाहिए।इसी तथ्य को निम्नलिखित उदाहरण से समझा जा सकता है : 

अगर हमारे पाँव में मधु मक्खी  काट खाए तो ज्ञान तंतु फौरन इसकी रिपोर्ट मस्तिष्क में पहुँचायेंगे और मस्तिष्क बिना एक क्षण का विलंब किए, मधु मक्खी  के काटते ही  पैर फटकारने का निर्देश देता है ताकि मधु मक्खी  छूट जाए और अधिक नुक्सान न कर पाए। मस्तिष्क अगला कार्य, काटे हुए स्थान पर खुजली करने को कहता है। खुजली करने के  पीछे यही लॉजिक है कि खुजलाने से विष निकल जाएगा। जिस स्थान पर मधु मक्खी  ने काटा था वहां रगड़ करने से खून का प्रसारण  (Blood circulation) आरम्भ हो जाता  है और अगर घाव हो गया है तो उसे भरने में शीघ्रता हो जाती है। 

विज्ञान की भाषा में इस सारी प्रक्रिया को Reflex action कहते हैं जो आटोमेटिक और इंस्टेंट होती है। आंधी के समय आँखों का स्वयं ही बंद हो जाना, गल्ती से गर्म बर्तन को हाथ लगते ही हाथ का स्वयं पीछे खिच जाना, सर्दी में ठिठुरते हाथों को रगड़ कर गर्म करना जैसे Reflex action के हज़ारों उदाहरण दिए जा सकते हैं 

यह “ज्ञान तंतु” ही  मनुष्य को सर्दी, गर्मी, हवा, नमी आदि की भी सूचना पहुँचाते हैं, जिसके आधार पर मनुष्य  शरीर की रक्षा के लिए  कपड़े, छाते आदि का  प्रयोग करता है। कुछ तार ज्ञान तंतुओं से  मोटे होते हैं और उन्हें “नसें” कहते हैं। कहने को तो नसों को रक्त प्रवाह वाली नालियाँ कहा जाता है  लेकिन सूक्ष्म दृष्टि से देखने पर यह प्रमाणित होता है कि इन्हीं तारों के माध्यम से शरीर के प्रत्येक भाग में बिजली का प्रसार होता है।जब इन नसों की बिजली मंद पड़ जाती है, उस समय रक्त प्रवाह तो चलता रहता है लेकिन  शरीर में जड़ता या अकड़न आ जाती है, नसों में दर्द होने लगता है । गठिया  की बीमारी में या अन्य नसों संबंधी रोगों में कहीं रक्त  का बहना बंद नहीं होता (क्योंकि रक्त  न पहुँचने पर तो वह अंग मर ही जाएगा।) बल्कि नसों की बिजली मंद पड़ जाने के कारण वे निर्बल और कठोर हो जाती हैं । जब इन नसों  पर रक्त या अन्य कार्यों का दबाब पड़ता है तो उन्हें बरदाश्त नहीं होता और दर्द का अनुभव करने लगती हैं।

यहाँ एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न उठना स्वाभाविक है और वोह प्रश्न है कि हमारे शरीर में कितनी नाड़ियां होती हैं ? तो उत्तर मिलता है कि मनुष्य के शरीर में 72000 नाड़ियाँ होती हैं। इन्हीं  72,000 नाडिय़ों में  ऊर्जा का प्रवाह होता है और यह इतना  सन्तुलनकारी  होता है कि शरीर की सारी व्यवस्था इन्ही की आधार पर होती हैं। संलग्न चित्र में हम इन नाड़िओं

का अनुभव कर सकते हैं। यहाँ एक बात वर्णनयोग है कि 72000 नाड़ियों का अस्तित्व सूक्ष्म स्तर का है न कि  स्थूल स्तर का अर्थात इन्हें देखना संभव नहीं है।

अगर हम इन 72000 नाड़ियों तुलना  एक बहुमंजिली बिल्डिंग की Electric wiring के साथ करें तो शायद अतिश्योक्ति न होगी। जिस प्रकार प्रत्येक घर की बिजली( यहाँ तक कि घर के Equipment भी) मेन स्विच बोर्ड के रास्ते, मोहल्ले के ट्रांसफॉर्मर से होते हुए नगर के बिजली घर से कनेक्ट हुई होती है,  ठीक उसी तरह यह 72000 नाड़ियां मानव शरीर के छोटे से छोटे भाग से जुडी हुई हैं।        

मानवीय बिजली/ रक्त का प्रवाह/ प्राण शक्ति एक नदी की जलधारा की भांति इन्हीं ज्ञान तंतुओं अर्थात नसों में प्रवाहित होती रहती है। नदी एक निर्मल जलधारा की भांति अनवरत चलती रहती है एवं अनेकों का कल्याण करती है। ठीक उसी प्रकार हमारे शरीर में स्थित नसों में निर्मल शुद्ध प्राण धारा का प्रवाह जीवनपर्यन्त बिना रुके चलता रहता है। यहाँ एक चीज़ देखने वाली है: नदी में जब तक हम कूड़ा करकट, गंद न डालें, उसका जल निर्मल और शुद्ध रहेगा लेकिन यह संभव नहीं है। हम नदी को दूषित न भी  करें,नदी अपने मार्ग में आने वाली अनेकों  वस्तुओं को ग्रहण करती है जिससे जल  की प्रकृति  बदल जाती है। ठीक ऐसा ही प्राण के साथ भी होता है। प्राण शरीर में शुद्ध और स्वच्छ प्रवाहित होता है, किन्तु यह कब तक स्वच्छ रहता है, यह मनुष्य पर ही निर्भर है। मनुष्य की जीवन शैली, उसके आन्तरिक गुण,भावनाएं, भोजन का प्रकार,पर्यावरण, समाज आदि कुछ एक  parameters हैं जो मनुष्य के  जीवन का  निर्धारण करते हैं। ऐसे न जाने कितने और  parameters हैं जो हमारे जीवन को प्रभावित कर रहे हैं। इस उदाहरण और तथ्य को समझने के लिए एक नवजन्में बच्चे की  स्वयं से तुलना करने पर पता चल जाएगा कि कौन निर्मल एवं शुद्ध है और कौन Polluted है। बच्चे से लेकर जीवन यात्रा में हम कहाँ-कहाँ से Pollution का सेवन करते हैं इसकी चर्चा करना उचित न होगा क्योंकि हम सभी भलीभांति जानते हैं। 

इसी विषय को कल चालू रखेंगें।   

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आज 7 युगसैनिकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है। अति सम्मानीय सुजाता बहिन जी  को गोल्ड मैडल जीतने की बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।     

(1)संध्या कुमार-32,(2)सुमनलता-29,(3 ) नीरा त्रिखा-25 , (4 ) सुजाता उपाध्याय-39,(5)चंद्रेश बहादुर-25,(6)सरविन्द कुमार-26  ,(7)वंदना कुमार-25 

सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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