वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

गुरुदेव के आध्यात्मिक जन्म दिवस 2024 को समर्पित 14वां एवं समापन अनुभूति लेख- प्रस्तुतकर्ता विदुषी बंता,वंदना कुमार,चंद्रेश बहादुर और साधना सिंह   

March 21,2024

परमपूज्य गुरुदेव का आध्यात्मिक जन्मदिन मनाने हेतु ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवारजनों द्वारा लिए गए संकल्प के दूसरे पार्ट “अनुभूति विशेषांक” का आज के ज्ञानप्रसाद के लेख के साथ समापन हो रहा है। हमारे सुझाव का सम्मान एवं भरपूर समर्थन के लिए साथिओं के लिए “धन्यवाद्” एक बहुत ही छोटा शब्द है। 

बहिन विदुषी जी के कमेंट ने हमें अपने बाल्यकाल के बारे में लिखने के लिए  प्रेरित किया, हमने प्रयास करके कुछ शब्द  लिखे भी, लेकिन संकोच यही रहा कि कहीं इसे अपनी व्यक्तिगत “राम कहानी” ही न समझ लिया जाए। 

तो आइए गुरुचरणों में नमन करते हुए गुरुकक्षा का शुभारम्भ करें। 

***********************   

विदुषी बहिन जी ने बाढ़ का जो भयानक दृश्य वर्णन किया है उससे हम अनेकों बार जूझ चुके हैं:

1960s का दशक था, हमारे स्वर्गीय पिताजी गवर्नमेंट हाई स्कूल बरवाल जो कठुआ डिस्ट्रिक्टआता है, वहाँ हेडमास्टर के तौर पर कार्यरत थे।

हम पांच भाई बहिन,मम्मी पापा;  सात लोगों के इलावा, बरवाल गांव में हमाराऔर कोई नहीं था। इस कंडी ग्रस्त ऊबड़ खूबड़, पत्थरों के  गांव में जिन परिस्थिओं में हमने बाल्यकाल के कठिन दिन व्यतीत किए, कभी भुलाए नहीं भूलते। बिजली की तो क्या बात करें, पीने का पानी ताकि उपलब्ध नहीं था। घी के खाली कैनिस्टर में लगभग 5 किलोमीटर दूर से पूरे दिन के लिए पानी लाया जाता था। जिस स्कूल से शिक्षा प्राप्त करके हमने जम्मू कश्मीर बोर्ड में तीसरी पोजीशन प्राप्त की, नाम मात्र की बिल्डिंग थी, दसवीं तक स्कूल और मात्र 2-3 कमरे। दृढ संकल्प से ओतप्रोत हमारे पापा ने उस स्कूल का कैसे कायाकल्प किया, एक अलग विषय है। अपने पिताजी को श्रद्धांजलि देने के लिए ऐसी अनेकों  स्मृतिओं को एक पुस्तक फॉर्म में समेटने का प्रयास कर रहे हैं, कितना सफल हो पायेंगें ,परम पूज्य गुरुदेव ही जानते हैं।    

दादा दादी समेत लगभग सभी रिश्तेदार जम्मू नगर में रहते थे। 

गांव की कठिन परिस्थितियों से छुटकारा पाने के लिए गर्मियों की दो महीने की छुट्टियों में से कुछ दिन हम सब  दादा दादी के पास आ जाते थे।

उज्झ दरिया की जिस खड्ड का दृश्य विदुषी बहिन जी ने  किया है उसका सामना हमने  अनेकों बार किया होगा। हम तो बस में जाते थे लेकिन पाठकों को शायद विश्वास न हो, इतनी भारी भरकम, यात्रियों से भरी बस को भी पानी के तेज बहाव में से लेकर जाना कोई कम जोखिमभरा काम नहीं होता था। कई बार तो पानी का लेवल इतना ऊँचा होता कि  बस के अंदर पानी आ जाता था। 

बहिन जी एवम बाकी सभी को तो गुरुदेव ने सुरक्षा कवच प्रदान कर दिया लेकिन हम तो उस समय गुरुदेव से बिल्कुल ही अपरिचित थे।

******************

विदुषी बहिन जी की अनुभूति: 

गुरुदेव ने आखिरकार हमें  अपनी अनुभूति सांझा करने के लिए चुन ही लिया।

बात अगस्त 2023 की है।  हम पति पत्नि और  परिवार के सात और लोग कश्मीर भ्रमण के लिए कारों  से गए। एक कार में दो परिवार थे। हमारे साथ पति के दोस्त और उनकी पत्नि थीं। रास्ते में बारिश शुरू हो गयी । यात्रा का भरपूर आनंद लेते हुए हम श्रीनगर पहुंच गए। वापसी पर हम अपने साथियों से काफी आगे थे। मेरे पति कार  चला रहे थे। अंधेरा हो चला था। जम्मू पठानकोट रोड पर कठुआ से 8-10 किलोमीटर पहले उज्ज खड्ड दरिया, जो कि आगे जाकर रावि नदी से मिल जाता है, का पुल टूटा हुआ था। लोगों से पूछने पर पता चला कि गाड़ियां जा रही हैं तो हम भी चल पड़े। वहाँ  जाकर देखा कि गांव के लोग ट्रैक्टर में रस्सी बांध कर गाड़ियों को निकाल रहे हैं। पतिदेव ने कार बंद कर दी और स्थिति का जायज़ा लेने लगे। पानी का बहाव तेज था, खड्ड 150 से 200 फुट चौड़ी थी और पानी तकरीबन ढाई से तीन फुट गहरा था। मैने व पतिदेव के दोस्त ने कहा कि हम भी अपनी कार ऐसे ही निकाल लेते हैं, ऐसे निकालना खतरे से खाली नहीं था।  मेरे पति कुछ नही बोले । वो क्या सोच रहे थे,कुछ पता नही।

यात्रा आरंभ करते समय न जाने  मेरे दिमाग में क्या विचार आया कि मैने अखंड ज्योति पत्रिका के जनवरी अंक में  से, जिसमें वार्षिक कैलेंडर के साथ  परम पूज्य गुरुदेव,परम वंदनीय माता जी एवम मां गायत्री की फोटो प्रकाशित हुई थी, निकाल कर कार के डैशबोर्ड पर लगा दी थी। पहले अनेकों बार कार में  दूरस्थ यात्राएं की हैं लेकिन इस तरह फोटो लगाने का विचार कभी नहीं आया। 

खैर चलिए दृश्य को आगे बढ़ाते हैं।

हम देखते हैं कि पानी में  किसी की कार फंसी हुई थी। हम भी जाने का सोच ही रहे थे कि तभी मिलिट्री का एक ट्रक आता है और दरिया से निकलने का प्रयास करता है। मेरे पति ने  यह अवसर ठीक समझा और  झट से अपनी कार उस ट्रक के पीछे  लगा दी । आगे आगे ट्रक और उसके पीछे हम धीरे-धीरे ड्राइव करते रहे। मैं लगातार मना करती रही लेकिन बाद में चुप हो गई । मन ही मन आंखे बंद करके गुरुदेव से प्रार्थना करने लगी कि हे गुरुदेव हमें इस बाढ़ की स्थिति से सुरक्षित निकाल देना और गायत्री मंत्र का मानसिक जाप करने लगी। भय के कारण हम सबकी सांसें अटकी पड़ी थीं। गुरुदेव की कृपा से जब हम सब उस बाढ़ग्रस्त खड्ड को पार करते हुए निकल आए  तब कहीं जाकर हमारी जान में जान आई। 

पतिदेव  के मित्र एकदम बोले,

“भाभी जी आपके गुरु जी ने आज हमें  बचा लिया।”  मैने कहा, “बिल्कुल, भाई साहिब ।” फिर वह मेरे पति की तरफ इशारा करते हुए बोले कि मेरे बड़े भाई ने आज बहुत हिम्मत दिखाई । मैने कहा, “भाई साहिब,वोह तो सब ठीक है लेकिन हमारे गुरुदेव हमारे अंग संग थे, उन्हीं के आशीर्वाद से हम सुरक्षित निकल आए।”

धन्य हैं गुरूदेव, संकट की हर घड़ी में अपने बच्चों को सुरक्षा कवच प्रदान करते हैं। 

आज भी जब उस दृश्य को स्मरण करते हैं तो मन कांप उठता है। गुरुवर दया के सागर, तेरा दर जगत से न्यारा।

जय गुरुदेव 

*******************

वंदना बहिन जी की अनुभूति:

गुरुदेव के हमारे ऊपर इतने अनुदान हैं और बदले में उन्हें कुछ भी नही दे पाते हैं। समय दान या अंशदान किया जाता है तो वो भी गुरुदेव कई गुना करके वापस लौटा देते हैं। नवंबर 2023 पूर्णिमा का  दिन था, सोने से पहले यही बातें सोच रही थी। आंखों से आंसू निकल रहे थे कि मैं गुरुदेव के लिए कुछ नहीं कर पाती। 

अगले दिन मैं नन्ही परी को नहला रही थी, एक महिला भिक्षुक आकर दरवाज़ा पीटने लगी। मैंने दूर से ही पूछा कि कौन है, तो उत्तर  मिला कि  मैं मांगने वाली हूँ। मैंने कोई खास ध्यान नहीं दिया लेकिन वह  फिर से गेट पीटने लगती है।मैंने पूछा कि आपको क्या चाहिए? महिला बोली कि  कुछ भी दे दो। मैंने सोचा कि बिना लिए वोह जाएगी नहीं, 10 रुपए का नोट देकर विदा किया। जब उसको नोट दे रही थी तो वो मुझे आँख भर कर देख रही थी, निहार रही थी और मुस्कुरा रही थी। मुझे लगा कि  शायद मैंने इनको देखा है । गेट बंद करते हुए  सोच रही थी कि कहाँ  देखा है। पहले कभी अपने मुहल्ले में नहीं देखा, वो किसी और के घर भी नही गई और पता नही कहाँ  चली गईं ।

अचानक ध्यान आया कि उनका फेस  तो वंदनीय माता जी जैसा था। वही चेहरा। वही कद काठी, इसका मतलब माताजी आई थीं, मुझे प्यार से निहार रही थीं। मैं बेवकूफ उनको पहचान भी नही पाई,फिर रोई भी और बार-बार मन ही मन माफी मांगी। पतिदेव दिल्ली गए हुए  थे तो सारी घटना फोन पर बताई, पुष्पा दीदी को भी बताई। अगले ही दिन पतिदेव को शेयर मार्केट में बहुत ही ज्यादा मुनाफा हुआ। मैने कहा की माताजी ने 10 रुपए को कई गुना करके वापस लौटा दिया है।

*******************

चंद्रेश भाई साहिब की अनुभूति : 

ॐ सद गुरुवे नमामि सर्वदा।

मैं लगभग पांच दशक से गायत्री मंत्र का जाप  कर रहा हूँ, कई लाख संख्या का जाप  हो गया होगा।

इसका परिणाम यह है कि जब किसी को नज़र लगती है तो उसे चौबीस मंत्र पढ़कर फूँक  मार देता हूँ  और संबंधित व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है। यदि मोबाइल पर भी फूंक मार देता हूँ  तो जो व्यक्ति चाहे जितनी भी दूर हो, स्वस्थ हो जाता है।

नवंबर 2023 में कोलकाता जाते समय अचानक एक 20 वर्षीय लड़की की तबियत खराब हो गई।  शरीर में झनझनाहट होने लगी,चक्कर आने लगा, शरीर ढीला पड़ता जा रहा था। यह लड़की मेरे द्वारा फूँक  मारने से स्वस्थ हो गई। 

सभी वरिष्ठ आत्मीयजनों  से जानना चाहता हूँ  कि यह गुरुदेव की कृपा है या मेरा वहम है।

माँ गायत्री की जय ।

***************

साधना बहिन जी की अनुभूति :

गुरुदेव के प्रति  मेरा प्रेम यह कई जन्मों का है।  इस जन्म में मैं 1990 के  श्रद्धांजलि समारोह में पहली बार शांतिकुंज गई थी, माता जी से ही दीक्षा ले ली थी। मेरा विश्वास  है कि  माता जी से दीक्षा लेना, चरण स्पर्श करना, गुरुदेव का ही कोई आशीर्वाद था। 

जो लोग उस श्रद्धांजलि समारोह में गए होंगे उनको स्मरण होगा कि  कितनी भीड़ थी। भीड़ के बावजूद चरण स्पर्श का कार्य चल  रहा था। मैं अपनी माँ  के साथ गई थी। चरण स्पर्श करते माताजी पूछीं कि बताओ कैसी हो। मुझे याद है कि मैंने कोई व्यक्तिगत कष्ट बताया था। आज मुझे समझ आता है कि माता जी ने  जो आशीर्वाद दिया था  कितना फलित हुआ है। 

मेरी माँ  माताजी को बोली कि बेटी को आशीर्वाद दीजिए कि गायत्री परिवार के लड़के से  शादी हो जाए। माता जी बोली कि यह जहाँ भी जाएगी वहीं गायत्री परिवार बना लेगी।  

25 अप्रैल,1993  को ओमप्रकाश जी से मेरी शादी  हुई। यह परिवार, गायत्री परिवार से थोड़ा बहुत जुड़ा हुआ था लेकिन ज्यादा नहीं। ससुराल में मैंने सबको गायत्री परिवार से जोड़ा। अपने दोनों बच्चों, उपासना और संस्कार को एवं आस पास सभी को  मिशन से प्यार करना सिखाया। “प्रज्ञा बाल विकास विद्यालय”  नाम से जिस गाँव में मैं स्कूल चलाती हूँ वहाँ कोई  गायत्री के नाम से भी परिचित नहीं था लेकिन आज प्रत्येक निवासी गायत्री माँ  के बारे में जानता है। इस सप्ताह के स्पेशल सेगमेंट में इस स्कूल की एक विशेष उपलब्धि को स्थान मिलेगा।  

यह गुरुदेव का कृपा, माता जी का आशीर्वाद नहीं तो और क्या है जिसने मुझे यहाँ तक पँहुचा दिया। 

मेरा परिचय गुरुदेव का परिचय ही है। जब भी बोलती हूँ कि मैं गायत्री परिवार से हूँ तो सामने से यही रिएक्शन आता है कि आपका बस इतना ही परिचय काफी है। 

समापन 

*****************

आज 13   युगसैनिकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है।आदरणीय सरविन्द जी,सुजाता जी और संध्या जी  को गोल्ड मैडल जीतने की बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।      

(1)अरुण वर्मा-33,(2)संध्या कुमार-43,(3)सुजाता उपाध्याय-44 ,(4 )सरविन्द कुमार-44 ,(5)राधा त्रिखा-25 , (6) नीरा त्रिखा-29  ,(7) रेणु  श्रीवास्तव-39  ,(8) चंद्रेश बहादुर-39 ,(9)मंजू मिश्रा-28 , (10)सुमनलता-28,(11)निशा भारद्वाज-24,(12)पुष्पा सिंह-26,(13) वंदना कुमार-29          

सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


Leave a comment