वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

गुरुदेव के आध्यात्मिक जन्म दिवस 2024 को समर्पित 12वां अनुभूति लेख- प्रस्तुतकर्ता पुष्पा सिंह, राजकुमारी कौरव, प्रेरणा कुमारी और संजना कुमारी 

“अनुभूति विशेषांक” श्रृंखला का समापन लेख 

14   मार्च 2024 

परमपूज्य गुरुदेव का आध्यात्मिक जन्मदिन मनाने हेतु ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवारजनों द्वारा लिए गए संकल्प  का दूसरा  पार्ट “अनुभूति विशेषांक” है जिसके अंतर्गत इस  परिवार के समर्पित साथिओं द्वारा एक-एक पुष्प चुन कर एक ऐसी माला अर्पण की जा रही है जिसकी सुगंध हम सबके अंतःकरण को ऊर्जावान किये जा रही है। 

आज के अनुभूति लेख में चार अनुभूतियाँ प्रस्तुत की गयी हैं ,सभी अनुभूतियाँ श्रद्धा एवं समर्पण की पराकाष्ठा वर्णन कर रही हैं।

हमारे साथी वंदेश्वरी साहू नाम से यूट्यूब पर अक्सर कमेंट देख रहे हैं, यह कमेंट बहिन उमा साहू जी  का होता है। उमा जी ने अपनी बेटी वंदेश्वरी के नाम से यह यूट्यूब अकाउंट सेव किया है। आज बहिन उमा जी की अन्य  बेटी हर्षा साहू का जन्म दिन है, हमारा कर्तव्य और दाइत्व बनता है कि बेटी को गुरुदेव की शक्ति से परिचित कराते हुए, गुरुदेव के तरीके से जन्म दिवस मनाने के लिए प्रेरित किया जाए। जन्म दिवस की बहुत बहुत शुभकामना।    

आज के लेख के साथ इस “अनुभूति विशेषांक” का समापन हो रहा है।  कल हमने लिखा था कि आज का लेख बहुत ही संक्षिप्त होगा लेकिन कल आँख खुलते ही जब आदरणीय पुष्पा बहिन जी का मुंबई अश्वमेध से सम्बंधित लेख प्राप्त हुआ तो हमारी ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। बहुत बहुत धन्यवाद बहिन जी। 

शब्द सीमा आज केवल इतना ही कहने की आज्ञा दे रही है कि बहिन संध्या जी  “युग की पुकार अनसुनी न करें” पर आधारित लेख हमें भेज दें, सोमवार को प्रकाशित करेंगें 

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पुष्पा बहिन जी की मुंबई अश्वमेध यज्ञ की अनुभूति:  

जय गुरुदेव माता जी कोटि-कोटि प्रणाम 

मैं अपने ग्रुप के लोगों के साथ रात 1:30 बजे यज्ञ स्थल पर पँहुची, हम सब  का रजिस्ट्रेशन और रहने का व्यवस्था होते-होते 2:30 बज गए। उसके बाद हम सभी लोग अपना-अपना बिस्तर लगाए और सो गए।  अगले दिन प्रातः  5:00 बजे उठकर, फ्रेश होने,नहाने आदि के बाद, हम सभी ने ध्यान-साधना की और उसके बाद लगभग दो घंटे भोजनालय में  समयदान किया। समयदान के बाद हमने  भी नाश्ता किया और फिर आराम करने अपने टेन्टहाउस में आ गए। 20 फ़रवरी को कोई प्रोग्राम न होने के कारण हम लोग थोड़ा घूमने चले गए। वैसे तो सारी मुंबई महानगरी ही एक मनोरम पर्यटन स्थली लेकिन हम केवल सिद्धि विनायक मंदिर, स्वयंभू हनुमान मंदिर, महालक्ष्मी मंदिर, ताज होटल एरिया में ही घूमकर वापिस आ गए।  

21 फ़रवरी को 5:00 बजे प्रभात फेरी निकली जिसमें जितने भी लोग आ चुके थे सभी ने भाग  लिया। भगवान महाकाल का नृत्य हुआ और एक साधिका ने  प्रभात फेरी के साथ-साथ माता रूप में नृत्य किया। त्रिशूल के साथ महादेव-मां पार्वती की जोड़ी देखकर बहुत आनंद आया और आत्मविभोर होकर  सभी लोग नाचने लगे, जय महाकाल, जय गुरुदेव। 

21 फ़रवरी को ही दोपहर 3:00 बजे भव्य कलश यात्रा शुरू हुई। 5 किलोमीटर लम्बी यात्रा का कुछ भी पता नहीं चला। कलश को वापिस यज्ञ स्थल में लेकर आए। बहुत से  लोग गाडिओं से भी गए थे। कलश यात्रा को  शिव-पार्वती, सीता-राम,शिवजी के गण-भूतप्रेत आदि अनेकों झांकियां सुशोभित कर रही थीं। 

प्रभातफेरी और कलश यात्रा में शामिल होकर ऐसा लगा मानो हम एक दिव्यलोक/देवलोक  में विचर  रहे हैं। यह तो सचमुच में “गूंगे के गुड़” जैसा अलौकिक अनुभव है जिसे केवल वहीँ जाकर अनुभव किया जा सकता है, शब्दों में कतई नहीं।  

22 फ़रवरी  से यज्ञ और प्रवचन का कार्यक्रम शुरू हुआ जिसमें श्रद्धेय जीजी, चिन्मय जी शेफाली जी सभी लोगों का आगमन हुआ।  हिमालय से लाई गई शांतिकुंज की अखंड अग्नि से यज्ञ कुंडों में अग्नि स्थापना हुई, यज्ञ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। सभी कर्मकांडों को लाइव कमेंट्री द्वारा समझाया भी जा रहा था।  

हम लोगों का ग्रुप समयदानी के रूप में गया था तो सुबह-शाम जब भी समय मिलता हम भोजनालय में कभी सब्जी काटने, कभी रोटी बेलने, कभी भोजन परोसने आदि में श्रमदान करते और फिर भोजन करके अपने तम्बू में आराम करने आ जाते। ग्रुप में  सामूहिक रूप से  काम करने में सुखद अनुभूति होती थी । शांतिकुंज से रोटी बेलने और सेंकने वाली मशीन भी आई थी। भोजनालय में 24 घंटे  काम चलता ही रहता था। मुंबई  के ट्रॉपिकल मौसम के कारण कुछ लोगों का स्वास्थ्य  भी खराब हो गया था। रात और सुबह में पूरी  ठंड होना और दिन को बहुत तेज गर्मी से मेरी तबियत भी बिगड़ गई।  24 फ़रवरी  की पूजा और दीपयज्ञ छूट गया क्योंकि मैं 23 की शाम को  अपने एक परिचित के यहां चली गई थी और 25  को पूर्णाहुति के दिन उन लोगो को साथ लेकर आई। वोह  लोग भी बहुत खुश हुए कि आपके कारण हमें भी इस विराट यज्ञ में शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। 

हिमालय पर्वत इस आयोजन का मुख्य आकर्षण था। ऋषि मुनि, देवी-देवताओं की प्रतिमाओं के साथ हिमालय एक दिव्य वातावरण का आभास प्रदान कर रहा था।

21 से 25 फ़रवरी  का समय कैसे बीत गया पता ही नहीं चला। गुरुदेव माता जी की कृपा से सारा  कार्यक्रम बहुत ही अच्छे से सम्पन्न हो गया।  इतने बड़े आयोजन में कोई छोटी-मोटी दुर्घटना भी  नहीं हुई। गुरुदेव के सैनिक 24 घंटे अपनी ड्यूटी बड़ी तत्परता से डटे थे। इस श्रद्धा का आभास मुझे तब हुआ जब एक दिन 12:30 बजे रात को  मुझे वॉशरूम जाने की जरूरत महसूस हुई तो मैंने देखा कि  सभी बहनें गहरी निद्रा में सो रही हैं, मैं अकेले ही निकल गई, हालांकि डर लग रहा था लेकिन थोड़ी दूर जाते ही पहरा  दे रहे अपने गुरुभाई लोगों  पर नज़र  पड़ी। वैसे सादी वर्दी में पुलिस भी ड्यूटी पर तैनात थी ।

पूर्णाहुति के दिन जब हम लोग यज्ञशाला जाने के लिए चलने को तैयार हुए तो 9:30 बज गए थे, धूप बहुत तेज़ थी, बुखार के कारण मुझे चलने की बिल्कुल शक्ति नहीं थी। जैसे ही मैंने सोचा कि  कोई ऑटोरिक्शा मिल जाता तो बहुत अच्छा होता, तभी  एक भाई साहब ऑटोरिक्शा लेकर आ गए।  हमने कहा: यज्ञशाला तक छोड़ देंगे तो बोले हाँ-हाँ चलिए।

इसे गुरुकृपा न कहें तो और क्या है? ऐसे हैं हमारे गुरुदेव।

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राजकुमारी कौरव जी की अनुभूति:

परम पूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक जन्म दिवस पर चल रही “अनुभूति श्रृंखला” में मैं अपनी दिव्य अनुभूति आत्मीय परिजनों के साथ साझा कर रही हूँ ।

बात अगस्त 2020 की  है, मूसलाधार बारिश हो रही और मेरी छोटी बहन की 18 वर्षीय बेटी की  तबीयत अचानक बिगड़ गई। हॉस्पिटल  लेकर गए, डाक्टर ने जांच की, कुछ समझ नहीं आया, इलाज किया,कोई  आराम नहीं मिला। आक्सीजन लगाकर एंबुलेंस से 100 किलोमीटर दूर जबलपुर रेफर किया, बेटी को सांस लेने में दिक्कत हो रही थी। मैं देखने गई तो मुझे  लगा कि बेटी बच नहीं पाएगी। परम पूज्य गुरुदेव से करुणा भरी पुकार लगाई, घी का दीपक प्रज्वलित कर चौबीस बार गायत्री चालीसा का पाठ शुरू कर दिया।  मेरी बहन भी गायत्री मंत्र जाप करने लगी । जबलपुर हास्पिटल में डाॅ ने श्वास नली में प्रेशर किया और थोड़ी दवाईयां दीं, कहा घर जाइए सब ठीक है।

हम लोगों  ने खबर पूछने के लिए  फोन किया  तो बिटिया के पिताजी बोले: ठीक है घर आ रहे हैं।  हमें तो विश्वास ही नहीं हुआ, जब बिटिया से बात हुई तब जाकर  भरोसा हुआ।

गुरुदेव हम बच्चों की हमेशा रक्षा करते हैं, हमें केवल  विश्वास, निष्ठा, समर्पण होना चाहिए।  परम पूज्य गुरुदेव वंदनीय माता जी हमेशा हमारे साथ हैं। हम लोग जब से गुरु सत्ता की शरण में आए हुए हैं तब से सब कुछ अच्छा हो रहा है 

जय गुरुदेव जय माता जी

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प्रेरणा बिटिया की अनुभूति: “मेरे जीवन में गुरुदेव का महत्व क्या है” 

सभी आत्मीय वरिष्ठ जनों को मेरा भाव भरा प्रणाम और छोटों  को ढेर सारा प्यार। 

मेरे जीवन में गुरुदेव उस धधकती मशाल के समान है जो निरंतर मेरी  बुराईयों को जलाने में मेरी मदद करते हैं। जब बुराई खत्म हो जाती है तो गुरूदेव एक दीपक की लौ बनकर मेरी अच्छाईयों को निखारते हैं।

गुरुदेव मेरे जीवन में एक ऐसे आइने के समान हैं जो केवल मेरी सुंदरता को ही नहीं बल्कि मलिनताओं को भी दिखाता  है।

गुरुवर उस मूर्तिकार  के समान हैं जो मुझ जैसे अनगढ़ मनुष्य को सुगढ़  बनाते हैं।

गुरुवर वो नाम है जिनके स्मरण मात्र से ही सारे दुःखों का शमन हो जाता है।

गुरूवर के सहारे से ही मैं साहसपूर्वक  सभी कठिनाइयों का सामना कर पाती हूँ । 

गुरुवर ही मेरे जीवन के आदि और अंत हैं ।

गुरुवर केवल  एक व्यक्ति का नाम नहीं है, वोह  तो एक विचार हैं और उन विचारों को जिसने भी पढ़ा और अपने जीवन में आत्मसात किया, वोह सचमुच मालामाल हो गया ।

गुरुवर मैं आपसे क्या कहूँ , मुझे आपसे जो कुछ  मिला,किसी और से कभी नहीं मिला।

गुरुवर आप मेरी  आत्मा हो, मेरे रोम-रोम में समाए हुए हो एवं आप मेरे वोह  जीवनसाथी हो जो मुझे कभी छोड़ कर नहीं कर जा सकते।

गुरुवर आप मेरे जीवन के साथ भी हो  और जीवन के बाद भी ।

गुरुवर आप मेरे जीवन में वसंत बन कर आए हो,आपने मुझे वो साहस प्रदान किया जिससे मैं अब किसी के सामने बहुत कुछ कह पाने में समर्थ हूँ ।

गुरुवर, अब बस यही प्रार्थना है:

 “न मैं रहुं,न मेरी आरजू रहे,बस तु रहे,तेरी आरजू रहे”

जय महाकाल

संजना बिटिया की अनुभूति: 

मैं जब भी किसी परिजन की अनुभूति सुनती हूँ  तो मेरी गहरी इच्छा होती है कि  “काश हम भी गुरु जी को सामने देख पाते एवं माता जी को गले लगाकर मिल पाते” 

हाल ही में जब हम घर से विश्वविद्यालय आने वाले थे तब एक दिन हमने स्वप्न में देखा कि

” हम अपने गायत्री मंदिर में  यज्ञ करवा कर परिजनों के पैर छू रहे हैं और माता जी मंदिर के गर्भगृह में बैठी हैं। हम दौड़कर माता जी के भी पैर छूने जाते हैं। जैसे ही हम वंदनीय माता जी के पास पहुंचे तो हमने  माता जी का चेहरा हम बच्चों की चिंता से भावुकता भरा देखा।  हमने प्रणाम करके डरते-डरते गले लगाने की इच्छा जाहिर की, माताजी बहुत खुश होकर हमारी तरफ घूमी,अपना पैर मचिया पर रखकर खुद को व्यवस्थित किया, मुझे अपने हाथों से गोद में उठाया और मुझे अपने छाती से लगा लिया। जैसे ही उन्होंने मुझे  छाती से लगाया,मुझे एक सुंदर जोड़ें की छवि दिखाई दी जो शंकर पार्वती जैसी दिखने लगी। मुझे असीम  आनंद की अनुभूति हुई। यह स्वप्न बहुत ही संक्षिप्त था और मेरी आँख खुल गई लेकिन जगने  के बाद भी जिस आनंद की अनुभूति हो रही थी वो बहुत ही सुखद था। उस  क्षण को याद करके अभी भी असीम आत्मबल और स्नेह का एहसास होने लगता है ।

जय गुरुदेव, जय महाकाल

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आज 11   युगसैनिकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है।आदरणीय सरविन्द  जी  एवं संध्या जी को गोल्ड मैडल जीतने की बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।      

(1),रेणु श्रीवास्तव-40  ,(2)संध्या कुमार-60 ,(3)अनुराधा पाल-42 ,(4  )सुमनलता-30  ,(5 ) नीरा त्रिखा-24  , (6 ) सुजाता उपाध्याय-36,(7 )वंदना कुमार-30  ,(8 ) चंद्रेश बहादुर-32 ,(9 )सरविन्द कुमार-60 , (10 ) राधा त्रिखा-26,(11)मंजू मिश्रा-28     

सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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