12 मार्च 2024
परमपूज्य गुरुदेव का आध्यात्मिक जन्मदिन मनाने हेतु ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवारजनों द्वारा लिए गए संकल्प का दूसरा पार्ट “अनुभूति विशेषांक” है जिसके अंतर्गत इस परिवार के समर्पित साथिओं द्वारा एक-एक पुष्प चुन कर एक ऐसी माला अर्पण की जा रही है जिसकी सुगंध हम सबके अंतःकरण को ऊर्जावान किये जा रही है।
आज के इस अनुभूति लेख में हमारी बेटी संजना की मम्मी और ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की समर्पित सहकर्मी पूनम जी अपनी चार अनुभूतियाँ प्रस्तुत कर रही हैं। चारों अनुभूतियाँ ऐसी हैं जिन्हें पढ़ने के बाद अन्य अनुभूति लेखों की भांति गुरुदेव के प्रति श्रद्धा एवं समर्पण और भी दृढ़ होता है।
हमारे साथी इन अनुभूतिओं का अमृतपान करें, उससे पहले यह बताना अपना कर्तव्य समझते हैं कि बेटी संजना ने कल रात ही अपनी मम्मी के जन्म दिवस की सूचना हमें भेजी थी और साथ में क्षमा याचना की थी कि यूनिवर्सिटी के उत्सव समारोह में व्यस्त होने के कारण शायद उसका कमेंट करना कठिन हो। अनुभूति लेख के साथ ही पूनम जी एवं अशोक जी की 25वीं मैरिज एनिवर्सरी के चित्र भी शेयर कर रहे हैं। जन्म दिवस एवं एनिवर्सरी की हार्दिक बधाई।
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पहली अनुभूति:
मेरा दुर्भाग्य है कि परम पूज्य गुरुदेव के जन्म शताब्दी महोत्सव (जिसका भव्य आयोजन 2011 में हुआ था) के बाद शांतिकुंज आने में पूरे 11 वर्ष की तपस्या करनी पड़ी। गुरुदेव की कृपा तो तब हुई जब 2022 में हम सभी का सपरिवार वैष्णो देवी और शांतिकुंज हरिद्वार जाने का प्रोग्राम बन गया । यह प्रोग्राम तब बना जब संजना बिटिया की नवोदय स्कूल में इंटरमीडिएट की परीक्षा समाप्त हुई थी और आगे एडमिशन के लिए अनेकों कम्पटीशन टेस्ट दे रही थी। संयोगवश वैष्णो देवी मंदिर में दर्शन तब हुए जब गुप्त नवरात्रि का पावन समय चल रहा था और उसके बाद जब शांतिकुंज पहुँची तब गुरु पूर्णिमा थी । संजना बिटिया घर से ही देवस्थापना और परम पूज्य गुरुदेव की दो स्केच तस्वीरें बनाकर ले गई थी। परम आदरणीय चिन्मय भैया जी से मिलकर बेटी ने दोनों तस्वीरें भेंट की,बहुत सराहना हुई। चिन्मय जी ने अभी भी इन चित्रों को संभाल कर अपने ऑफिस में लगाया हुआ है ।
यहाँ एक बात बहुत ही महत्वपूर्ण वर्णन करने योग्य है : जब चिन्मय जी से मिलने गये तो उनके श्रीमुख से पहला शब्द यही निकला कि इतने दिनों बाद आना हुआ, दोनों बच्चों को बोले कि पढ़ने के लिए यहीं DSVV में आ जाओ । कभी सुना था, किताबों में पढ़ा था कि तपस्वी/दूरदर्शी कई बार बहुत ही गूढ़ बातें बोल जाते हैं जिनका हम अज्ञानी तो सीधा अर्थ ही निकालते रहते हैं लेकिन वे अन्तःचक्षु से कुछ और ही देख रहे होते हैं । ठीक यही हमारे साथ भी हुआ। संजना बिटिया ने नवोदय की शिक्षा से ही JEE क्लियर कर लिया, कोई अलग से कोचिंग वगैरह नहीं ली। घर आने पर DSVV में प्रवेश के लिए Psychology के लिए ऑनलाइन फॉर्म भरा, लिखित परीक्षा हुई, फिर इन्टरव्यू। सभी का रिजल्ट आ गया और एडमिशन हो गई ।
मैं जब भी अखंड ज्योति पत्रिका में देव संस्कृति विश्वविद्यालय के बारे में पढ़ती थी तो मेरे में यही भाव उठाते थे, काश मेरे बच्चे भी वहीँ शिक्षा ग्रहण करते। गुरुदेव ने कैसे-कैसे सारे मार्ग बना दिए,सोचकर सौभाग्य एवं परम पूज्य गुरुदेव का धन्यवाद् करती हूँ ।
दूसरी अनुभूति:
यह अनुभूति बेटे शुभम की एडमिशन से सम्बंधित है जिसे परिवार में, आप सबसे साझा कर रही हूँ । बेटे शुभम ने एडमिशन के लिए अनेकों फॉर्म भरे लेकिन देव संस्कृति विश्वविद्यालय के लिए नहीं भरा क्योंकि इंजीनियरिंग और गणित में रूचि होने के कारण इसी फील्ड में करने का कुछ इरादा था। एक दिन संजना बिटिया बहुत ही उदास थी और शायद इस परेशानी के कारण परम पूज्य गुरुदेव एवं परम वंदनीय माताजी उसके स्वप्न में शुभम का एडमिशन देव संस्कृति विश्वविद्यालय में करवाने के लिए बोले । संजना ने सुबह-सुबह उठकर जब अपने स्वप्न के बारे में मुझे बताया तो मेरा मन भी बदल गया। एडमिशन के लिए भी फॉर्म भरते समय बिटिया के मन में योग विषय का चुनाव करने की बात आई और सफलता मिलती ही गई। परम पूज्य गुरुदेव ने मेरे दोनों बच्चों को अपने दिव्य संरक्षण में बुला लिया और अब दोनों ही DSVV में अपनी प्रतिभा दर्शा रहे हैं। मेरे लिए इससे बड़ी सौभाग्य की बात क्या हो सकती है कि जो सपने मैं कभी अखंड ज्योति पढ़ते समय देखती थी कैसे साकार हो गए। गुरुदेव कैसे कैसे रास्ता बनाते गए और दोनों बच्चे DSVV पहुँच गये। अवश्य ही गुरुदेव को इन बच्चों से कुछ अधिक ही अपेक्षा है, इसलिए तो बुलाये हैं क्योंकि पारस की कीमत तो जौहरी ही समझ सकता है।
तीसरी अनुभूति:
छठ पर्व आस्था का महापर्व है। चाहे कोई भी पर्व हो बच्चों के बिना तो सूना सूना ही लगता है। हमारे यहां छठ पर्व की बहुत महिमा है, इसे सूर्यषष्ठी व्रत भी कहते हैं अर्थात गायत्री उपासना भी मान सकते हैं । परम पूज्य गुरुदेव की कृपा से इस बार हम दोनों ने छठ व्रत बच्चों के साथ पहली बार शांतिकुंज में रहकर सम्पन्न किया। गंगा जी अर्घ्य सूर्य भगवान को दिए । बहुत अच्छी सुखद अनुभूति हुई। सभी का अपार स्नेह और अपनत्व मिला,बहुत बड़ा परिवार, माता वंदनीय माता जी पिता गुरुदेव और शांतिकुंज के परिजन भाई बहन के रूप में हमारे साथ उपस्थित थे ।
साधन न होते हुए भी सारे काम स्वयं ही हुए जा रहे हैं और पता नहीं कैसे सब समय पर ही होते जा रहे हैं। ऐसी है हमारे गुरुवर की महिमा, अपने बच्चों को कभी निराश नहीं करते । परम पूज्य गुरुदेव के श्री चरणों में कोटि-कोटि नमन
चौथी अनुभूति:
यह अनुभूति हमारी शादी की 25वीं एनिवर्सरी, यानि रजत जयंती की है। एनिवर्सरी के बहुत पहले से ही मेरा शौक था कि हम 25 वीं एनिवर्सरी बच्चों के साथ दीपयज्ञ के माध्यम से मनाएंगे, लेकिन दोनों बच्चों के घर पर नहीं रहने की वजह से बहुत निराशा थी । संयोगवश मुंबई अश्वमेध 21 से 25 फरवरी का जानकार मन में विचार उठा हुई कि वहीं चलते हैं । यज्ञ में रजिस्ट्रेशन तो करवा ली लेकिन टिकट न मिलने के कारण मुंबई नहीं पहुँच पाए । 21 फरवरी को मैं बहुत निराश और उदास भी थी। इसी उधेड़ बन में उस रात हम दोनों पति-पत्नी को नींद नहीं आ रही थी। भांति भांति के प्रोग्राम बना रहे थे कि अचानक से मेरे पतिदेव ने कहा कि कल शांतिकुंज चलते हैं और वहीं बच्चों के साथ विवाह वर्षगांठ मनाएंगें । ऐसा लगा मानो आपातकालीन स्थिति में सब कुछ छोड़कर जैसे तैसे हम खिंचें चले जा रहे थे, सचमुच नमन है गुरु सत्ता को, मैं बहुत खुश हुई। दूसरे दिन सुबह टिकट के लिए गए लेकिन रिजर्वेशन टिकट नहीं मिला । 22 फरवरी को जनरल टिकट लेकर हम दोनों को हरिद्वार के लिए सफर करना पड़ा। ट्रेन में 20 घंटे का सफर, पाठक समझ सकते हैं कि जनरल कम्पार्टमेंट में कैसे यात्रा की होगी। हम लोगों को अपने माता-पिता के घर शांतिकुंज, अपने घर, बच्चों के पास जाने की ख़ुशी थी इसलिए ट्रेन का कष्ट बहुत ही कम लग रहा था। गुरुदेव कैसी-कैसी परीक्षा भी लेते हैं। अभी 5 फरवरी को ही मेरे पतिदेव बच्चों को यूनिवर्सिटी पहुंचाने के लिए हरिद्वार आये थे। 23 फरवरी को फिर से आना हुआ।
पिछले साल मेरे पति देव ने अनुभूति में लिखा था कि अब शांतिकुंज “घर द्वार” हो गया है । वह बात मुझे पूरी तरह चरितार्थ होते दिख रही थी। 23 फरवरी की शाम नादयोग के समय हम शांतिकुंज पहुंचे ।वहां आवास की व्यवस्था कर फ्रेश हुए, फिर जाकर समाधि स्थल के दर्शन किए । मुझे केवल रोना आ रहा था । मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मैं शांतिकुंज आई हुई हूँ । संजना बिटिया भी यहीं बात बोल रही थी ।मेरे दोनों बच्चों को खुशी का ठिकाना नहीं था ।गायत्री मंदिर बंद हो गया था। उसके बाद भोजनालय जाकर प्रसाद ग्रहण किये। फिर आराम किये । दूसरे दिन 24 फरवरी के दिन इतना अच्छा संयोग था, माघी पूर्णिमा थी ।हम दोनों सप्त ऋषि घाट जाकर गंगा स्न्नान किये और फिर शांतिकुंज आकर हवन किया। समाधि स्थल, महाकाल, गायत्री मंदिर, अखंड दीप के दर्शन किए, साधना की फिर माता भगवती भोजनालय में प्रसाद ग्रहण किया ।उधर यूनिवर्सिटी में दोनों बच्चे हम लोगों का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे, फिर हम लोग यूनिवर्सिटी पहुंचे। दोनों बच्चों से मिले, खुशी का ठिकाना नहीं रहा । हम सब ने साथ में प्रगेश्वर महाकाल के दर्शन किए । वहां के पुजारी जी को जब पता चला कि हमारी शादी की 25वीं वर्षगांठ है तो स्वयं ही कहने लगे कि शाम की आरती से पहले यहीं पर दीपयज्ञ करवा देते हैं।संजना बिटिया बार-बार पूछ रही थी कि क्या प्रगेश्वर बड़े महाकाल पर दीपयज्ञ होगा तो पुजारी जी बोल रहे थे हां यहीं पर होगा । बेटी को आश्चर्य हो रहा था क्योंकि जब से बेटी वहां पर है किसी का भी दीपयज्ञ बड़े महाकाल पर नहीं देखा है, सभी सिद्धेश्वर छोटे महाकाल पर ही होता है।
4:30 बजे दीपयज्ञ के कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ, सभी बच्चे साथ में थे ।गठबंधन करने के लिए मेरे पतिदेव की एक बहन भी बन गई । इतना भरा पूरा परिवार लग रहा था, खुशी का ठिकाना ही नहीं था। एक साथ इतनी खुशियां मिल गईं । हम लोगों की तरफ से कोई भी पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम नहीं था लेकिन परम पूज्य गुरुदेव की तरफ से सारे कार्यक्रम निर्धारित कर दिए गए। खुद ब खुद सब व्यवस्था बनती गयी ।
ऐसे हैं हमारे गुरुदेव, अंतर्यामी ।
परम पूज्य गुरुदेव का कहना है :
“तू करता वही है जो तू चाहता है, परंतु होता वही है जो मैं चाहता हूँ। इसलिए तू कर वही जो मैं चाहता हूँ तब होगा वही जो तू चाहता है।”
मैं तो यही कहना चाहूंगी कि परम पूज्य गुरुदेव के प्रति पूर्ण श्रद्धा, विश्वास और समर्पण की भावना होनी चाहिए, परम पूज्य गुरुदेव स्वयं ही सारी व्यवस्था बना देते हैं ।
ऑनलाइन ज्ञान रथ गायत्री परिवार के सभी सदस्यों को कोटि-कोटि नमन। आप सभी का इतना स्नेह, प्यार और आशीर्वाद मिला जिससे हम सपरिवार धन्य हो गए। अपना परिवार कितना बड़ा है, बहुत प्रसन्नता होती है ।
अंत में मैंआप सभी से क्षमा प्रार्थी हूँ कि काउंटर कमेंट नहीं कर पाती हूँ क्योंकि मोबाइल की वजह से सिर दर्द करने लगता है। आशा करती हूँ की आप सभी मेरी परेशानी को समझेंगे। लिखने में कोई भी त्रुटि हुई हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ, परम आदरणीय बड़े भैया जी को कोटि-कोटि नमन ।परम पूज्य गुरुदेव के श्री चरणों में कोटि-कोटि नमन जय गुरुदेव
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आज 15 युगसैनिकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है।आदरणीय सरविन्द जी को गोल्ड मैडल जीतने की बधाई एवं सभी साथिओं का योगदान के लिए धन्यवाद्।
(1),रेणु श्रीवास्तव-45 ,(2)संध्या कुमार-34,(3)मंजू मिश्रा-25 ,(4 )सुमनलता-30 ,(5 ) नीरा त्रिखा-26, (6 ) सुजाता उपाध्याय-40,(7 ) अरुण वर्मा-37,(8 )निशा भारद्वाज-32 ,(9 )पुष्पा सिंह-26, (10) विदुषी बंता-28, (11 )वंदना कुमार-26 ,(12) चंद्रेश बहादुर-47,(13)पूनम कुमारी-25,(14) सुधा बर्णवाल,(15) सरविन्द कुमार-53
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।




