11 मार्च 2024
परमपूज्य गुरुदेव का आध्यात्मिक जन्मदिन मनाने हेतु ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवारजनों द्वारा लिए गए संकल्प का दूसरा पार्ट “अनुभूति विशेषांक” है जिसके अंतर्गत इस परिवार के समर्पित साथिओं द्वारा एक-एक पुष्प चुन कर एक ऐसी माला अर्पण की जा रही है जिसकी सुगंध हम सबके अंतःकरण को ऊर्जावान किये जा रही है।
आज इसी शृंखला का नौंवा अंक प्रस्तुत किया जा रहा है जिसमें हमारी दो अति समर्पित /अति आदरणीय बहिनें रेणु श्रीवास्तव और सुमनलता अपने दिव्य विचारों से हमारा मार्गदर्शन कर रही हैं। टोटल तीन अनुभूतियाँ प्रस्तुत की गयी हैं जिसमें दो रेणु बहिन जी के लेखनी से प्रकट हुई हैं और एक सुमनलता जी की प्रस्तुति है।
पाठक देख सकते हैं कि जब हम गुरु के साथ आत्मिक स्तर से जुड़ जाते हैं, सब कुछ उन्हें ही समर्पित कर देते हैं तो छोटी से छोटी घटना भी उन्हीं की कृपा से घटित होती अनुभव होती है वोह चाहे प्लेन सीट लेने से सम्बंधित क्यों न हो। इसी को कहते हैं अटूट सम्बन्ध, उच्चस्तरीय समर्पण।
आज के ज्ञानप्रसाद लेख के साथ हम एक पोस्टर संलग्न कर रहे हैं जिसमें यूट्यूब द्वारा प्रकाशित कुछ नंबर प्रस्तुत किये गए हैं , इन उत्साहवर्धन numbers के लिए माँ सरस्वती से हमने बहुत प्रार्थना की ताकि हमें साथिओं का धन्यवाद् करने के लिए कोई उचित शब्द सुझा दें लेकिन हम असफल रहे। बहुत बहुत एवं ह्रदय से सभी का आभार करते हैं।
तो आइए दोनों बहिनों की अनुभूतियों का अमृतपान करें।
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रेणु जी की अनुभूति नंबर 1
गुरुदेव हमारे जीवन में एक चमत्कार बन कर आए । “कहां कहौ लगि नाम बडाई” अर्थात गुरुनाम की कहाँ तक बढ़ाई करूँ।
एक- एक क्षण गुरुदेव के अनुदान से भरा है। जबतक गुरु नहीं मिले थे उनकी महत्ता समझ नहीं पाई लेकिन जब मिले तो अनुदानों के बोझ तले दबती चली गई। काश! मुझमें उन अनुदानों तथा गुरु कर्ज चुकाने की क्षमता होती। गुरुदेव सदैव कहते हैं “तू मेरा काम कर मैं तुम्हारा कार्य करूँगा।”
समझ नहीं आता,कहाँ से आरंभ करूँ। अखंड ज्योति तो राजस्थान में हमारे पड़ोसी के आग्रह पर मैं लेकर पढ़ने लगी लेकिन सही मायनों में गुरुदेव से मैं 1993 में जुड़ी तथा युगतीर्थ शान्तिकुंज जाने का सिलसिला 1998 से आरंभ हुआ, फिर वहीँ दीक्षा ली। हमारे पड़ोसी बचपन में ही गुरुदेव से दीक्षा ले चुके थे। उनके माता पिता को भी गुरुदेव ने ही दीक्षा दी थी। गुरुदेव उनके घर आते भी थे। उनके कहने पर ही पहली बार हमारे घर पर गायत्री यज्ञ हुआ तथा दक्षिणा के लिये मेरे पति कुछ पैसे निकाले तो उन्होंने कहा हमारे गुरुदेव को दक्षिणा में अपनी एक बुराई अर्पित करें तथा उसके बदले में कोई एक अच्छा कार्य करने का संकल्प लें। उन्होंने प्रसाद में गायत्री चालीसा की एक प्रति दी, तबसे आज तक गायत्री चालीसा और मंत्र जप मेरा नियम बन गया। उसके बाद हमारे आसपास जहाँ कहीं भी दीपयज्ञ या यज्ञ होता मैं अवश्य भाग लेती तथा आगन्तुकों में गायत्री चालीसा बांटती । इससे पहले मुझे दीपयज्ञ की कोई जानकारी नहीं थी। कुछ महीने बाद हमारे पड़ोसी ने कहा कि हम लोग दीपयज्ञ आरंभ करने जा रहे हैं आपका मकान न.1 है तो यहीं से आरंभ करते है। मैंने हामी भर दी लेकिन कहा कि मेरे पति यहाँ नहीं रहते (उस समय झांसी में पोस्टिंग थी) अत:मैने कहा कि सारा प्रबंध आपको ही करना पड़ेगा। मैं सिर्फ पैसे दे सकती हूँ। शायद 1994 जनवरी का महीना होगा । पहले सप्ताह में हमारे घर दीप यज्ञ का कार्यक्रम हुआ,काफी लोग आये। यज्ञ का संचालन श्री एस. पी. मिश्रा जी ने किया। उस समय उनकी पोस्टिंग लखनऊ में ही थी तथा थोडी दूर पर ही रहते थे। बाद में देव संस्कृति विश्वविद्यालय के कई सालों तक उपकुलपति रहे। उसके बाद तो गुरुदेव का प्रभाव मेरे जीवन में बढता ही गया तथा पग-पग पर गुरुदेव का अनुग्रह मिलता रहा जिसे शब्दों में वर्णन करना कठिन है।
बेटी की शादी के लिये मेरे पति कई जगह गये लेकिन लोगों की मांग सुनकर कहने लगे कि मैं अब कहीं नहीं जाऊंगा, शादी हो न हो। मैंने गुरुदेव से प्रार्थना की तथा दीक्षा लेने के बाद नवरात्र अनुष्ठान भी शुरु कर चुकी थी। गुरुदेव की ऐसी कृपा हुई कि हमारे घर से करीब 200 मीटर की दूरी पर ही शादी तय हुई। बात यूं हुई कि किसी के कहने पर पहली बार मेरे पति पड़ोसी के घर बातचीत के लिये गए। वहां जाकर पता चला कि उनके ऑफिस से लेकर परिवार तक सब मेरे पति के परिचित निकले। लड़के के नाना-नानी और मेरे माता पिता के बहुत अच्छे संबंध थे। एक ही मुहल्ले में रहते थे अतः आना जाना भी था। बस गुरुदेव की कृपा से बात बन गई और शादी काफी धूम धाम से, दहेज की मांग के बिना गुरुदेव की कृपा से सम्पन्न हुई जिसकी रजत जयन्ती पर गुरुदेव तथा आप सभी का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।
जीवन में कोई ऐसा क्षण न होगा जब गुरुदेव की अनुकम्पा न मिली हो। क्या मैं गुरुदेव के कर्ज को कभी चुका पाऊँगी? शायद कभी नहीं ।
धन्य हैं हमारे गुरुदेव। आज भी, जब कभी भी मन विचलित होता है, गुरुदेव स्वयं ही आकर मार्गदर्शन देते हैं, सहारा देते हैं एवम सुरक्षा कवच प्रदान करते हैं।
जय गुरुदेव।
रेणु जी की दूसरी अनुभूति :
जयगुरूदेव,सभी सहयोगियों को सादर नमन। गुरुदेव के चरणों में समर्पित
सभी सहयोगियों का ज्ञात है कि गुरुदेव कैसे हर क्षण अपने बच्चों के साथ उपस्थित होकर अन्तरात्मा में समाये रहते हैं तथा बच्चों की आवाज़ सुनकर सहायता करते हैं।
इस अति संक्षिप्त अनुभूति में मैं अमेरिका के आस्टिन नगर से स्वदेश लौटने का अनुभव शेयर करना चाहती हूँ और बताना चाहती हूँ कि गुरुदेव किस प्रकार हमारे मन के भावों को भांप कर उसी के अनुरूप कार्य करवाते हैं।
ऑस्टिन एयरपोर्ट पर मेरे दामाद ट्राली में सामान रखकर गाड़ी पार्किंग के लिये चले गये । मेरे पति और बेटी ट्राैली में सामान लेकर आगे बढ़ने वाले ही थे कि एक अमेरिकन ने ट्राली ले ली और साइड से फीता हटाकर सीधे चेक इन काउन्टर तक लाकर छोड़ा जबकि लाइन के अनुसार घुमावदार पैसेज था। उसने हमें काउन्टर पर छोडने के बाद “नमस्ते” तथा “जय श्रीराम” भी कहा। मैंने भी मुस्कुराते हुए हाथ जोड़ कर नमस्ते किया। किसी विदेशी से ऐसा व्यवहार देखकर मैं गदगद हो गई।
ऑस्टिन से जब हमारा प्लेन चला तो दो-अढ़ाई घंटे के बाद कुछ अनाउंसमेंट हुआ जो मैं समझ न पाई। बाद में स्क्रीन पर आ रहे मैप को देखने पर पता चला कि हमारा प्लेन वापिस अमेरिका के बोस्टन सीटी की ओर कुछ कारणवश लौट रहा था, शायद fuel की समस्या हुई थी। बोस्टन लैंड करने के बाद,लगभग डेढ़ घंटे बाद प्लेन फिर टेक आफ हुआ।
लन्दन तक हमारी खिड़की वाली सीट थी , दो सीटों पर मैं और पतिदेव थे और तीसरी Aisle seat पर कोई और था। 9 घंटे की इस यात्रा में टॉयलेट वगैरह जाने के लिए हमें बार-बार किनारे वाले से आग्रह करना पडता था। मैंने अपने पति से कहा कि अगर लंदन से दिल्ली की फ्लाइट में इसी प्रकार की खिड़की वाली सीट हुई तो Aisle seat में जो भी आयेगा उसे विण्डो सीट देकर हम दोनों Aisle सीट और बीच की सीट ले लेंगे। हालाकि कि मैं इन छोटी-छोटी बातों के लिये गुरुदेव को कष्ट नहीं देना चाहती लेकिन गुरुदेव ने हमें बात करते सुन लिया। संयोगवश तीसरी सीट खाली रही, 8 माह पहले बुकिंग होने के बावजूद उस सीट पर कोई आया ही नहीं। हम दोनों बारी-बारी लगभग 9 घंटे की यात्रा आराम की मुद्रा में पैर फैलाकर बैठे दिल्ली पंहुच गए।
ऐसी है हमारे गुरुदेव की कृपा। मैं हमेशा गुरुदेव की स्तुति कर प्रणाम कर ही अपनी यात्रा प्रारंभ करती हूँ तथा गुरुदेव को ही स्मरण करती रहती हूँ। गुरुदेव अपने बच्चों को कभी परेशान नहीं देख सकते। मैं गुरुदेव के चरणों में नतमस्तक हो गई। लम्बी यात्रा में थकान तो होती है लेकिन सुरक्षित स्वदेश, अपने घर तक पहुँच गई।
गुरुचरणों में कोटि-कोटि नमन। जय माँ गायत्री।
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सुमनलता जी की अनुभूति :
वर्ष 2020 आरंभ से अंत तक अनेक घटनाओं से भरा हुआ था। 2020 माह फरवरी के अंत में शांतिकुंज की यात्रा हुई थी, जिसमें गुरुदेव की असीम अनुकम्पा मिली। सोचे हुए सभी कार्य यथावत पूर्ण हो गए तो मन बहुत प्रसन्न था। मार्च माह का अंत आते-आते पूरा विश्व कोरोना की चपेट में आ गया जिसके कारण कार्यालयों में work from Home लागू कर दिया गया था, क्योंकि बचाव ही सुरक्षा थी। जून 2020 में हमारे बेटे की सेवाएं समाप्त कर दी गई। यह वोह समय था जब आर्थिक कारणों से अनेकों लोगों की सेवाएं समाप्त हो गई थी। औरों की तरह हमारे लिए भी यह एक गंभीर चिंता का विषय बन गया था लेकिन मुंह से निकला कि शायद गुरुदेव कुछ और चाह रहे हैं।
ऐसी कठिन परिस्थिति में भी हमारा और बेटे का विश्वास गुरुदेव से जरा भी विचलित नहीं हुआ, पता था कि वो यह स्थिति अधिक समय नहीं रहने देंगे,और हुआ भी यही। लगभग चार महीने बाद बेटे को देहरादून में नौकरी मिल गई और हम दोनों देहरादून आ गए। बेटे की नौकरी जाने से पहले हमारा एक छोटा सा फ्लैट था,जो बिक नहीं पा रहा था,वो भी बिक गया। ऐसा लगता था कि जैसे हमारे महाकाल गुरुदेव हमें कठिन समय के लिए तैयार कर रहे थे। मैंने तब तक दीक्षा भी नहीं ली थी। सोचती थी कि मुझे यज्ञ, अनुष्ठान आदि ठीक प्रकार से करने नहीं आते, प्रतिदिन की पूजा भी सही प्रकार से कर पाती हूं या नहीं, फिर भी गुरुदेव किस प्रकार से अदृश्य होते हुए भी इतना प्रेम देते हैं।
हम 21 दिसंबर 2020 को सामान लेकर देहरादून आ गए। उस दिन रात्रि समाप्त होने को थी अर्थात पहली भोर थी । समय प्रातः 3 या 4 बजे का रहा होगा। स्वप्न हुआ। देखती हूं कि हम सब लोग गुरुदेव के पास जमा हैं। गुरुदेव कह रहे हैं कि मैं तो अब अगले अनुष्ठानों के लिए जा रहा हूं,आप सब का ध्यान अब माता जी रखेंगी। इसके बाद गुरुदेव प्रस्थान कर जाते हैं। हमारी वंदनीय माता जी,जो अपने वास्तविक स्वरूप से भिन्न दिखाई दे रही थी,वो सबसे अलग-अलग पूछती हैं कि किसी को कोई परेशानी तो नहीं है। जब सब मना कर देते हैं तो वो कहती हैं बच्चों मैं आश्रम जा रही हूं,जिसको भी जरूरत पड़े मुझे आवाज़ दे देना, मैं आ जाऊंगी। ऐसा कह कर वो हम सब को फल और भोजन दें कर प्रस्थान कर जाती हैं।
इसी के साथ हमारी नींद खुल जाती है। ऐसे प्रेम करने वाले थे हमारे परमपूज्य गुरुदेव और परम वंदनीय माता जी।
दोनों को कोटि कोटि नमन।
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रेणु जी,सरविन्द जी,सुजाता जी एवं संध्या जी को गोल्ड मैडल जीतने की हार्दिक बधाई एवं सभी को सहयोग के लिए धन्यवाद्
(1),रेणु श्रीवास्तव-63 ,(2)सरविन्द पाल-62 ,(3)सुमनलता-42,(4) नीरा त्रिखा-26, (5 ) सुजाता उपाध्याय-62,(6) राधा त्रिखा-35,(7)चंद्रेश बहादुर-43,(8) विदुषी बंता-27, (9) अरुण वर्मा-36,(10)प्रशांत सिंह-26,(11)निशा भारद्वाज-29,(12) संध्या कुमार-63,(13) मंजू मिश्रा-24,(14) पुष्पा सिंह-27,(15) आयुष पाल-24,(16) वंदना कुमार-32
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


