वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

सद्गुरु बिना किसी को सद्ज्ञान कब मिला है-पार्ट 1

15 फ़रवरी 2024 का ज्ञानप्रसाद  

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवारजनों ने परमपूज्य गुरुदेव का आध्यात्मिक जन्मदिन मनाने हेतु  सम्पूर्ण फ़रवरी माह में मंगलवेला के ज्ञानप्रसाद से लेकर रात्रि को पोस्ट होने वाले शुभरात्रि सन्देश तक समस्त योगदान परम पूज्य गुरुदेव को ही समर्पित करने का संकल्प लिया है। इसी संकल्प के अंतर्गत 14  फ़रवरी 2024 का  ज्ञानप्रसाद लेख, इस संकल्प का आठवां लेख प्रस्तुत है।

आज का ज्ञानप्रसाद प्रस्तुत करने से पहले जहाँ हम अपने साथिओं के साथ  एक बहुत ही बड़ी खुशखबरी शेयर कर रहे हैं वहीँ अपनी बेटी प्रेरणा से समस्त परिवार की ओर  से क्षमा याचना भी करते हैं कि 13 जनवरी को पोस्ट हुए कमेंट को हमने कैसे मिस कर दिया। हमें तो समझ ही नहीं आया कि हम सभी कमैंट्स और काउंटर कमैंट्स को दिन भर देखते रहते हैं, यह कैसे मिस हो गया। 

कनाडा समानुसार बिटिया ने 12:38 दोपहर को इस शुभ समाचार से अवगत कराया कि 16 फ़रवरी को बिटिया की मंगनी निश्चित हुई है। सभी परिवारजनों से  प्रेरणा और अमित के लिए  आशीर्वाद की आशा करते हैं । शब्द सीमा कुछ भी अधिक कहने से रोक रही है, इसलिए स्पेशल सेगमेंट तक पोस्टपोन करते हैं। 

इसी के साथ आज के  ज्ञानप्रसाद का शुभारम्भ होता है। 

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परम पूज्य गुरुदेव की कृपा एवं ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के सहकर्मियों के  सामूहिक आशीर्वाद से 2024 की वसंत पंचमी के शुभ अवसर पर परम पूज्य गुरुदेव के आध्यात्मिक व क्रान्तिकारी विचारों को आत्मसात् करने के लिए उनके आध्यात्मिक जन्म दिवस पर दो भाग में यह लेख समर्पित कर रहे हैं l यह दिव्य लेख नियमित स्वाध्याय प्रक्रिया के अंतर्गत गम्भीरतापूर्वक स्वाध्याय करने के उपरांत युग निर्माण योजना मासिक पत्रिका के जनवरी 2022 अंक से लिया गया है ।

गुरुदेव बताते हैं  कि वसंत पंचमी का पावन दिन हमारे जीवन में लगभग 100 वर्ष पूर्व 1926 में आया जब हमारे हिमालयवासी गुरुदेव का सुक्ष्म शरीर से हमारी पूजास्थली में अवतरण हुआ। इस पावन दिन का महत्व तभी पूरा होगा जब आप आत्मनिरीक्षण करके अपनी पात्रता और अंतःकरण की पवित्रता को और अधिक निखार पाएंगें। गुरु के आशीर्वाद-अनुदान- वरदान पाने के लिए इससे कम में कुछ नहीं बन पायेगा।

कल रात के शुभरात्रि सन्देश में परम पूज्य गुरुदेव आग्रह कर रहे थे कि हमारे जन्म दिन पर बधाई देकर, शाब्दिक शुभकामना देकर समय बर्बाद करने से बेहतर है आप लोगों को हमारा साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करें, अगर आपको हमारे प्रति श्रद्धा है तो हमारा इतना कार्य तो कर ही दीजिये।   

इस लेख के माध्यम से गुरुदेव बता रहे हैं कि सूर्य में कितना ही प्रकाश क्यों न हो लेकिन यदि आँख की पुतली काम ही  न करे, तो  सर्वत्र अंधेरा ही अंधेरा दिखाई देगा,एक ऐसा अंधेरा जिसका  दिन/रात तो क्या, कभी भी अंत न होगा l  यही बात शिष्य के संदर्भ में भी सत्य है l गुरू चाहे कितना भी समर्थ व योग्य क्यों न हो,यदि  शिष्य के अंतःकरण में शिष्यत्व की भावना समाहित न हो तो गुरू की योग्यता किसी काम की नहीं होती l गुरू बीज बोता है, खाद-पानी की व्यवस्था जुटाता है, लेकिन फलित होने के लिए भूमि की उर्वरता भी तो चाहिए। अगर भूमि उर्वर न हो तो  बोये हुए बीजों का ढेर, खाद-पानी का जखीरा, अनुपजाऊ ऊसर-बंजर ज़मीन  में यों ही बेकार चला जाता है और परिणाम कुछ भी नहीं मिलता है l 

हमारा  परम सौभाग्य है कि परम पूज्य गुरुदेव को हमने सद्गुरू के रूप में पाया है। हम सब  गुरुदेव के  ज्ञान और तप से अनुप्राणित हुए हैं,उनकी प्राण-ऊर्जा से पोषित, पल्लवित व परिपालित हुए  हैं l आइए ज़रा गुरुदेव से ही  पूछें कि वोह  स्वयं को किस रूप में पहचानते थे? अक्सर सभी साधकों के मन-मष्तिष्क में उठने वाली इस जिज्ञासा का समाधान करते हुए गुरुदेव कहते हैं :  

सद्गुरू की प्राप्ति एक अद्भुत अनुदान है, एक अनवरत सौभाग्य है, लेकिन यह सौभाग्य और अनुदान केवल उनके लिए ही हैं जो स्वयं को शिष्य के रूप में ढाल सकें एवं अपनी  क्षुद्रता को गुरू की गुरूता में विसर्जित करने को तत्पर हों l गुरू की खोज में तो असंख्य लोग इधर उधर भटक रहे हैं एवं  बुरे, नकली व कुसंस्कारी गुरुओं के चंगुल में फँस रहे हैं l 

“कैसे पता चले कि गुरु असली है यां नकली ?”  

सद्गुरू को पहचानने के लिए अलौकिक दृष्टि चाहिए और ऐसी दृष्टि केवल एक समर्पित शिष्य में ही होती है l परम पूज्य गुरुदेव समेत, समर्पित शिष्यों से इतिहास भरा पड़ा है।  

सूफी फकीर शेख फरीद के जीवन की एक अद्भुत घटना है, घटना के समय वह किशोर आयु के थे। घूमते-फिरते शेख फरीद  एक पेड़ के पास जा पहुँचे, जहाँ एक सन्यासी  एकाग्रचित्त ध्यान कर रहा था। 

शेख फरीद ने उस ध्यानमग्न सन्यासी को झकझोरकर उठाते हुए पूछा : क्यों बाबा! हमें भी भगवान से मिलाएगा l 

सन्यासी ने उत्तर दिया: बेटा ! भगवान से तो, गुरू मिलाता है l 

फकीर ने कहा: “बता मेरा गुरू कौन है?” 

सन्यासी ने उत्तर दिया: मैं पहचान बताए देता हूँ, तू खोज लेना l

फकीर ने कहा: ठीक है तू पहचान ही बता दे l

सन्यासी बताने लगा: तेरे गुरू एक पेड़ के नीचे बैठे होंगे और उनका चेहरा दिव्य प्रकाश से ओतप्रोत होगा, आँखें तेजपूर्ण होंगी व शरीर से खुशबू आ रही होगी l 

सन्यासी की बात समाप्त होते ही सूफी फकीर शेख फरीद गुरू की खोज में निकल पड़ा।  जैसे-जैसे दिन गुजरते गए,गुरु खोजने और पाने की प्यास गहरी होती गई l फकीर इधर-उधर भटकता रहा लेकिन गुरू को खोज नहीं पाया। इस घटना को लगभग 20 वर्ष बीत गए l थक-हारकर फकीर घर की तरफ लौट चला और घर लौटने पर देखा कि एक पेड़ के नीचे एक साधु महात्मा बैठा है और उसके चारों ओर प्रकाश का एक चक्र है, आँखें तेजपूर्ण हैं और शरीर से भीनी-भीनी सुगंध आ रही है l  सन्यासी द्वारा बताए गए एक-एक लक्षण मेल खा रहे थे। फकीर को विश्वास हो गया कि जिस गुरू की खोज में मैं  20 वर्ष इधर-उधर भटकता रहा , यही वोह  गुरू हैं। गुरू को पाकर फकीर का अंतःकरण गदगद हो गया और आँखों में खुशी के आँसू आ गए। 

फकीर  खुशी के मारे साधु महात्मा के श्री चरणों में नतमस्तक होकर लोट-पोट हो गया l साधु महात्मा ने प्रसन्न होकर फकीर की पीठ पर अपना हाथ रखा, फकीर ने उठकर उस साधु महात्मा जी के चेहरे की ओर देखा और बोला कि अरे! यह क्या? यह तो वही सन्यासी हैं जिन्होंने  गुरू के लक्षण बताए थे l 

सूफी फकीर शेख फरीद ने उस साधु महात्मा से पूछा:  बाबा, आप हमें 20  वर्ष तक क्यों  भटकाते रहे? 

सन्यासी बोले: बेटा, उस समय  मेरे पास एक कौतुकी उद्धत लड़का फरीद आया था और अब  20 वर्ष  की कठोर तपस्या से निखरकर समर्पित शिष्य फरीद आया है l बेटे, गुरू केवल शिष्य को मिला करते हैं और जैसे ही तुम शिष्य बन गए, हम तुम्हें मिल गए l

सद्गुरू को समर्पित शिष्य इसी  तरह मिलते हैं  गुरु-शिष्य एक-दूसरे के पूरक होते हैं l सद्गुरू बिना परीक्षा के अपना शिष्य नहीं बनाते हैं और बिन शिष्यत्व के सद्गुरू नहीं मिलते हैं l यह परीक्षाएं विचित्र, विलक्षण और अधिकांशतः बहुत ही कठोर व जटिल होती हैं l 

गुरू जिएफ के बारे में उनके एक शिष्य ने लिखा है कि वह किसी नए आने वाले के साथ बहुत कटु व्यवहार किया करते थे l यदि वह नवागंतुक प्रसन्नतापूर्वक सब कुछ सहन कर जाता, तो उनके द्वारा करायी जाने वाली गोपनीय साधनाओं का अधिकारी होता था  l एक बार उनके किसी पुराने शिष्य ने उनसे पूछा कि आपका व्यक्तित्व इतना प्रेममयी है, फिर भी आप इतना कठोर कैसे हो जाते हैं? गुरु जिएफ का जवाब था कि कठोर कहाँ होता हूँ, मैं तो पत्थरों में हीरे छाँटता हूँ और हीरे छाँटकर उन्हें तराशने  लगता हूँ, पत्थरों को फ़ेंक  देता हूँ l

स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानन्द के सामने उस समय अपनी समस्त सिद्धियाँ देने का प्रस्ताव रखा, जिस समय स्वामी विवेकानन्द व उनका परिवार एक-एक अन्न-कण के लिए तरस रहा था और ऐसी विषम परिस्थिति में स्वामी विवेकानन्द ने उपेक्षा के स्वरों में कहा था कि उन्हें ईश्वरीय प्रेम चाहिए, तुच्छ सिद्धियाँ नहीं l

विजयकृष्ण ने शिष्य बनने के लिए उत्सुक एक व्यक्ति से कहा था कि बेटा, 12 वर्ष तक लगातार गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा कर 13वें  वर्ष मेरे पास आना l दूसरे व्यक्ति द्वारा कारण पूछने पर उन्होंने कहा कि जिसमें 12 वर्षों का भी  धैर्य नहीं, वह मेरा शिष्य नहीं बन सकता। 

परम पूज्य गुरुदेव के अपने जीवन में ऐसे एक नहीं,अनेकों  अवसर आए, जब उन्हें कठोर से कठोरतम स्थिति से गुजरना पड़ा।  इन विचित्र व विलक्षण परीक्षाओं का जिक्र करते हुए परम पूज्य गुरुदेव ने एक स्थान पर लिखा है : 

गुरुदेव बताते हैं कि हमारे समूचे जीवन में इस तरह की परीक्षाओं का क्रम अनवरत चलता रहा एवं गुरु के आस्तित्व से एक ही ध्वनि झंकृत होती रही l गुरू-सो-गुरू, आदेश-सो-आदेश, अनुशासन-सो-अनुशासन, समर्पण-सो-समर्पण, मार्गदर्शक सत्ता पर विश्वास किया और उसे स्वयं को  सौप दिया, तो उखाड़-पछाड़ क्रिया में, तर्क, संदेह व संशय कैसा। 

एक अन्य स्थान पर परम पूज्य गुरुदेव के शब्द हैं : 

भाग 1 का समापन-

प्रस्तुतकर्ता-आदरणीय सरविन्द पाल 

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आज  13 युगसैनिकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है। सरविन्द  जी   को गोल्ड मैडल प्राप्त करने की बधाई एवं  सभी साथिओं का  संकल्प सूची में  योगदान के लिए धन्यवाद्।   

(1)सरविन्द कुमार-53  (2)संध्या कुमार-39   ,(3) पिंकी पाल-35,(4)मंजू मिश्रा-27  ,(5 )रेणु श्रीवास्तव-42 ,(6) मीरा पाल-29 , (7) सुमनलता-37,(8) निशा भारद्वाज-25 ,(9) नीरा त्रिखा- 30  ,(10) चंद्रेश बहादुर-25  ,(11) विदुषी बंता-34 ,(12 )आयुष पाल-25,(13)प्रेरणा कुमारी-26  

सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई। 


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