वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

1990  का वसंत पर्व एवं उसकी उपलब्धियां 

13 फ़रवरी 2024 का ज्ञानप्रसाद

ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवारजनों ने परमपूज्य गुरुदेव का आध्यात्मिक जन्मदिन मनाने हेतु  सम्पूर्ण फ़रवरी माह में मंगलवेला के ज्ञानप्रसाद से लेकर रात्रि को पोस्ट होने वाले शुभरात्रि सन्देश तक समस्त योगदान परम पूज्य गुरुदेव को ही समर्पित करने का संकल्प लिया है। इसी संकल्प के अंतर्गत 13 फ़रवरी 2024 का  ज्ञानप्रसाद लेख, इस संकल्प का छठा लेख प्रस्तुत है। 

आज का ज्ञानप्रसाद लेख आरम्भ करने से पहले अपने सभी साथिओं से विशेषकर आदरणीय सरविन्द जी से करबद्ध क्षमाप्रार्थी हैं कि कल 14 फ़रवरी को उन्हीं  के द्वारा प्रस्तुत किया जाने वाला लेख केवल एक दिन के लिए  आगे  करना पड़ रहा है। युग निर्माण योजना जनवरी 2022 पर आधारित यह लेख अब 15 फ़रवरी को ही प्रस्तुत हो पायेगा। 

हमारे साथ भलीभांति जानते हैं कि इस बदलाव का कारण वर्ष 1990 (गुरुदेव का अंतिम वसंत वर्ष ) पर आधारित  लेख लेख श्रृंखला ही है। दिसंबर 1989 और जनवरी 1990 की अखंड ज्योति के स्वाध्याय करते हुए मन में उत्सुकता हो रही थी कि गुरुदेव द्वारा आयोजित साधना सत्रों की उपलब्धियां भी अवश्य प्रकाशित हुई होंगी।  हमने फ़रवरी, मार्च अप्रैल 1990 की  अखंड ज्योति के पन्ने खंगालने आरम्भ कर दिए और गुरुदेव ने अप्रैल वाला  अंक सामने लाकर  रख दिया जिसमें एक लेख प्रकाशित हुआ था जिसका शीर्षक वही था जो आज के ज्ञानप्रसाद लेख का शीर्षक है। दो भागों में प्रकाशित होने वाले इस लेख का प्रथम भाग आज प्रस्तुत हैं। 

यहाँ साथिओं के बताना उचित समझते हैं कि परम पूज्य गुरुदेव के अध्यात्मिक जन्म दिवस पर आधारित साथिओं के योगदान की श्रृंखला का शुभारम्भ सरविन्द जी के लेख से ही हो रहा है। इस योगदान के लिए निमंत्रण अभी भी ओपन है, आग्रह अभी भी यही है कि गुरुकार्य में सहयोग देकर पुण्य के भागीदार बनें।

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लम्बी मंजिल लगातार चल कर पार नहीं की जाती। बीच में सुस्ताने के लिए विराम भी देना पड़ता है। रेलगाड़ी जंक्शन पर खड़ी होती हैं। पुराने मुसाफिर उतारे जाते हैं, नये चढ़ाये जाते हैं, ईंधन भरने और सफाई करने की भी आवश्यकता पड़ती हैं। अपनी-अपनी सुविधा एवं नियम के अनुसार वर्ष का एक निश्चित समय, आर्थिक वर्ष (Financial year ) का  पुराना हिसाब-किताब जांचने के लिए निर्धारित है, इसी निर्धारित समय में  नया बजट बनता हैं । भ्रूण माता के गर्भ में रहकर अंग प्रत्यंगों को इस तरह  योग्य बना लेता है कि शेष जीवन उसे  काम में लगाया जा सके। किसान हर वर्ष  नई फसल बोने और काटने का क्रम जारी रखता हैं। 

ब्रह्मकमल की एक फुलवारी 80 वर्ष तक हर वर्ष  एक नया पुष्प खिलाने की तरह अपनी मंजिल का एक विराम निर्धारण पूरा कर चुकी । अब नयी योजना के अनुरूप नयी शक्ति संग्रह करके नया प्रयास आरम्भ किया जाना है। यह “विराम प्रत्यावर्तन” जो लगभग निश्चित ही है, इसकी तुलना एक वयोवृद्ध शरीर से की जा सकती है जिसका त्याग करने के बाद ही  नये शिशु का नया जन्म हो सकता है। इस अद्भुत प्रत्यावर्तन प्रक्रिया के बाद ही ईश्वर की एक कृति का जन्म होता है जिसे नये नाम (शिशु)  से सम्बोधन किया जाता है। वयोवृद्ध से शिशु की प्रक्रिया जैसा ही लगभग “नवसृजन की सन्धिवेला” (Era of New Creation)  में  हो रहा है। विराम की अवधि 80  वर्ष रहे तो इसमें कुछ अनहोनी नहीं मानी जानी चाहिए। नवसृजन अभियान तथा उसके लिए नियमित रूप से काम करने वाले व्यक्ति (हमारे गुरुदेव) के सम्बन्ध में भी ऐसा ही सोचा जा सकता है।

उस दिन शांतिकुंज पधारे सभी परिवारजनों  को तो नहीं लेकिन  साथ में जुड़े हुए लोगों को इस आयोजन में छिपे  पूर्व संकेत का भलीभांति ज्ञान  था। सभी के ह्रदय में  भूतकाल के आश्चर्यजनक रहस्यों और भविष्य के अभूतपूर्व निर्धारणों के सम्बन्ध में विस्तार से जानने की उत्सुकता एवं जिज्ञासा थी लेकिन गुरुदेव जैसी शक्ति कहाँ सब कुछ से पर्दा उठाना चाहती थी। समय रहते अनेकों परिवारजनों ने  प्रत्यक्ष पूछताछ करने की आतुरता प्रदर्शित की। 

ज्यों ज्यों 1990 वसंत के दिन पास आ रहे थे,शांतिकुंज आने वालों का ताँता बढ़े जा रहा था। दिसंबर 1989 से ही गुरुदेव ने शांतिकुंज आने वाले परिजनों पर कण्ट्रोल सा लगाना शुरू कर दिया था, पर्यटन तो बिलकुल ही वर्जित कर दिया था। ऐसा इसलिए किया गया था कि 1990 के वसंत में गुरुदेव अपने बच्चों को कुछ अधिक ही प्रदान करना चाहते थे। आगमन का उद्देश्य वह लाभ उठाना  था जो किसी बड़े व्यवसायी के कारोबार में भागीदार बन जाने वालों को सहज ही मिलने लगता है। अनुसंधान अन्वेषण का भी एक ही कारण होता है। रहस्यों का पता लगाने की  सहज जिज्ञासा, इस उत्साह का निमित्त कारण गुरुदेव के प्रति जानने की जिज्ञासा भी  हो सकती है। 

जिज्ञासा जो भी हो लेकिन हम सब जो कल से इस लेख को पढ़ रहे हैं, जानते हैं कि दिसंबर 1989 से अप्रैल 1990 ( जब अखंड ज्योति का यह लेख लिखा गया था ) तक के महीने किस दुविधा में  बीते हैं। हालाँकि केवल एक चौथाई परिजनों को ही शांतिकुंज आने की आज्ञा प्राप्त हुई थी फिर भी  दुविधा  इस बात की थी कि उनके आवास, भोजन आदि में  किसी प्रकार की असुविधा न हो।   

युगतीर्थ शांतिकुंज में जितने  प्रज्ञापुत्रों का आगमन हुआ इतना  इस आश्रम के निर्माण (1971)  से लेकर अब (1990) से पहले वर्षों में कभी भी नहीं हुआ। बहुसंख्य परिजनों के आगमन से भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह रही कि जिज्ञासुओं ने आग्रह करके परम पूज्य गुरुदेव से वह सब कुछ उगलवा लिया जो रहस्यमय समझा जाता रहा था यां गुरुदेव लुका- छिपी में कभी कभार किसी को बता देते थे। ऐसे महत्वपूर्ण अवसर पर जब गुरुदेव कुछ ही माह बाद अपनी स्थूल काया को समेट देंगें,सहज सौम्यता बाधित भी तो करती ही है कि चलते समय तो गोपनीयता के  आश्चर्य असमंजस का समाधान कर ही दिया जाय। सो कुशलक्षेम सहज आतिथ्य के अतिरिक्त ऐसा भी बहुत कुछ पूछा बताया गया जिनका  दूर रहने वालों को कभी अनुभव भी नहीं हुआ होगा। जो परिजन शांतिकुंज नहीं आ सके यां जिन्हें गुरुदेव के प्रतक्ष्य सानिध्य का सौभाग्य नहीं प्राप्त हुआ, उन्हें भी उस रहस्यमयी चर्चाओं की जानकारी प्राप्त करने से वंचित न रहना पड़े।  यह विचार करते हुए गुरुदेव के मन में आया कि शांतिकुंज आये इन व्यक्तियों में आवश्यक रहस्यों का लिपिबद्ध कर देना उचित ही है ताकि इस उपयोगी जानकारी से वे लोग भी वंचित न रहें जो अभी न सही अगले दिनों संपर्क में आएंगें  और अतीत के संबंध में उपयोगी जानकारी प्राप्त करने के लिए उत्सुक होंगे। 

इन पंक्तिओं को  लिखते समय हमें ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार जैसे छोटे से परिवार के ही अनेकों साथिओं के कमैंट्स एवं स्पेशल सेगमेंट से जानकारी मिलती रहती है वोह सभी परम पूज्य गुरुदेव के बारे में जानने के लिए कितने उत्सुक रहते हैं। यही कारण है कि हम अपनी रिसर्च प्रवृति से प्रेरित  होकर गुरुदेव का दुर्लभ साहित्य प्रस्तुत करने के  लिए तत्पर रहते हैं। अगर हम यह कहें कि गुरुदेव के मार्गदर्शन ने हमसे  ऐसे दुर्लभ विषयों पर लिखवा दिया जिन पर पहले कभी कुछ नहीं लिखा गया था तो शायद अतिश्योक्ति न हो। ऐसा लिखते समय हम सावधान रहने को वचनबद्ध हैं कि इसे हमारी आत्मप्रशंसा  न समझ लिया जाए।     

सभी को यही अनुमान   था कि गायत्री परिवार  की प्रायः सभी महत्वपूर्ण गतिविधियों का प्रथम दिन वसंत पंचमी हैं सो उस मुहूर्त को विशेष महत्व देने वाले आगन्तुकों की संख्या निश्चय ही पहले दिनों की अपेक्षा निश्चित रूप से अधिक रहेगी, हुआ भी ठीक ऐसा वैसा ही।  मिशन के साथ जुड़े हुए परिजन इस वसन्त पर्व पर इतनी अधिक संख्या में आए  जितने कि विगत दस वर्षों में कुल मिलाकर भी नहीं आये थे। आश्रम की परिधि और आगन्तुकों के लिए साधनों की तुलनात्मक दृष्टि से कमी होने के कारण शांतिकुंज  के आश्रमवासी इस आपत्तिकालीन समस्या से निपटने में जुट गये। भूमि न मिल सकी तो जितना स्थान पास में था उसे बहुमंजिला और सघन बनाया गया। लगभग सारा काम श्रमदान से हुआ और जितनों के लिए जगह थी उससे प्रायः ढाई-तीन गुना के लिए जगह बना दी गई। भोजन व्यवस्था के लिए बड़े आधुनिक यंत्र उपकरण नये सिरे से लगाये गये और ऊपरी मंजिल पर बने भोजनालय से नीचे खाद्य पदार्थ लाने के लिए एक गुड्स लिफ्ट को फिट किया गया। बिछाने के लिए फर्शों का अतिरिक्त प्रबंध किया गया। फिर भी असुविधा रहने की आशंका थी लेकिन किसी प्रकार काम  चल ही  गया ठीक उसी प्रकार  जैसे ईश्वर पर आश्रित लोगों का चल जाया करता है।

इस लेख का दूसरा भाग कल प्रस्तुत करने की योजना है। 

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आज 9   युगसैनिकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है। रेणु  जी को गोल्ड मैडल जीतने  की बधाई एवं  सभी साथिओं का  संकल्प सूची में  योगदान के लिए धन्यवाद्।   

(1)सरविन्द कुमार-25,(2)संध्या कुमार-24,(3) अरुण वर्मा-24 ,(4)रेणु श्रीवास्तव-46,(5 ) सुमनलता-25,(6 ) निशा भारद्वाज-30 ,(7 ) नीरा त्रिखा- 24 ,(8 ) चंद्रेश बहादुर-37 ,(9 )अनुराधा पाल-25   

सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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