परमपूज्य गुरुदेव का आध्यात्मिक जन्मदिन मनाने हेतु सम्पूर्ण फ़रवरी माह में मंगलवेला के ज्ञानप्रसाद से लेकर शुभरात्रि सन्देश तक समस्त योगदान परम पूज्य गुरुदेव को ही समर्पित करने का संकल्प लिया गया है, गुरुदेव इसे पूर्ण करने में अवश्य मार्गदर्शन करेंगें, ऐसा हमारा अटूट विश्वास है।
इसी संकल्प के अंतर्गत 7 फ़रवरी 2024 का यह ज्ञानप्रसाद लेख इस संकल्प का तीसरा अद्वितीय लेख है। आज का लेख भी फ़रवरी 2002 की अखंड ज्योति में प्रकाशित उस लेख पर आधारित है जिसमें एक कैंसर रोगी गुरुदेव को आकर कहता है कि डॉक्टरों ने अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए कह दिया है कि अब इंसान कुछ नहीं कर सकता, भगवान ही कुछ कर सकते हैं। गुरुदेव ने रोगी को कहा कि अब भगवान् ही करेंगें। कैसे उस रोगी का कैंसर समाप्त हुआ और क्या उपचार किया गया, गुरुकक्षा में हम सब शिष्य गुरुचरणों में समर्पित होकर जानने का प्रयास करेंगें।
साथिओं से आग्रह है कि गुरुदेव द्वारा रचित अथाह “साहित्य सागर” में से चुन चुन कर लाए जा रहे मोतियों का श्रद्धापूर्वक अमृतपान करके अपने जीवन को अवश्य सुखमय बनाएं।
तो विश्वशांति की कामना के साथ आज की गुरुकक्षा का शुभारम्भ करते हैं।
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मई 1988 का महीना होगा,दोपहर के दो बजे थे, ग्रीष्म ऋतू अपने पूरे यौवन पर थी। परमपूज्य गुरुदेव अपने कमरे में पलंग पर बैठे हुए थे, उनके सामने फर्श पर दो लोग बैठे हुए थे। यह दोनों लोग लेखन के सिलसिले में गुरुदेव के पास नियमित आया जाया करते थे, आज भी शायद उसी उद्देश्य से आए हुए थे। इनमें से एक ने अपना लेख पढ़कर गुरुदेव को सुनाना शुरू किया ही था कि तभी अचानक गुरुदेव ने बीच में रोकते हुए कहा, “बेटा,ज़रा नीचे से शिवप्रसाद को बुला देना।” जी,अच्छा, कहकर वह नीचे बुलाने चला गया। थोड़ी ही देर में शिवप्रसाद मिश्रा जी सीढ़ियाँ चढ़कर ऊपर आए। शिवप्रसाद जी से मिशन का हर वह व्यक्ति परिचित है, जो शांतिकुंज आकर गुरुदेव से मिला है क्योंकि इन पर सदा से आगंतुकों को गुरुदेव से मिलाने की ज़िम्मेदारी रही है। वंदनीय माता जी ने भक्त को भगवान् से मिलाने का पुण्यकार्य इन्हीं को सौंप रखा था। शिवप्रसाद जी ने ऊपर आकर कहा, “गुरुजी आपने बुलाया है?” गुरुदेव ने कहा, “हाँ शिवप्रसाद ! आज कोई मिलने वाला नहीं है ?” शिवप्रसाद जी ने उत्तर दिया,“नहीं गुरु जी, आज कोई मिलने वाला व्यक्ति नहीं आया है। कुछ लोगों को माताजी से मिलना था, वे मिल लिए हैं।” शिवप्रसाद जी की बात सुनी-अनसुनी करके एक मीठी झिड़की के साथ गुरुदेव बोले,
“क्या बात करता है। तुझे दिखाई नहीं देता, एक आदमी अपने हाथ में मोटी-सी फाइल लिए नीचे बैठा है। जा उसे मेरे पास ऊपर भेज दे।”
मिश्रा जी थोड़ा अचकचाए, उन्हें ध्यान आया कि शायद एक व्यक्ति नीचे बैठा तो है लेकिन उसने तो गुरुदेव से मिलने की कोई इच्छा व्यक्त ही नहीं की। वह कुछ सोचते हुए नीचे उतरे, देखा एक अकेला व्यक्ति नीचे प्रतीक्षालय में पड़ी बेंच पर बैठा हुआ है। उन्होंने गुरु आज्ञा के अनुसार उस व्यक्ति से कहा, “आपको गुरुजी ने मिलने के लिए ऊपर बुलाया है।” उस व्यक्ति के चेहरे पर खुशी के भाव तैर गए एवं अगणित आशाएँ उसके चेहरे पर जगमगा उठीं। वह बड़े ही आतुर भाव से उठा और लपकते हुए सीढ़ियाँ चढ़कर गुरुजी के सामने जाकर खड़ा हो गया। अभी भी उसके हाथों में वह फाइल थमी थी। गुरुदेव ने उसकी ओर देखते हुए कहा, “हाँ बेटा ! बोलो क्या परेशानी है तुम्हें।” वोह व्यक्ति बोला, “गुरुदेव आप अंतर्यामी हैं। प्रेम के सागर हैं। आप सब कुछ जानते हैं। अब मैं क्या बताऊँ आपको “
अपनी बात पूरी करते-करते उसका गला रुँध आया। आँखें भर आईं। शायद उसे यह नहीं समझ में आ रहा था कि वह अपनी बात कहाँ से शुरू करे या फिर भावों के अतिरेक में वह अपनी बात कह नहीं पा रहा था। गुरुदेव ने अपनी नीली झील-सी पारदर्शी आँखों से उसकी ओर देखा, गुरुदेव की आँखों में बड़े ही सजल रूप में प्रेम उमड़ रहा था । उन्होंने बड़े ही ममत्वपूर्ण स्वर में उस व्यक्ति को सांत्वना दी और कहा,
“परेशान न हो। अपनी बात को तुम अपने मुँह से कह दो तुम्हारा जी हल्का हो जाएगा।”
गुरुदेव से आश्वासन पाकर उसने अपनी बात कहना शुरू किया। वह व्यक्ति बोला, “गुरुजी मुझे कैंसर हो गया है।” सचमुच ही उसकी ठोढ़ी के पास का बायाँ हिस्सा गला हुआ था और कैंसर का यह घाव उसकी बढ़ी हुई खिचड़ी दाढ़ी में साफ-साफ झाँक रहा था। उसके बोलने के साथ उसकी वेदना भी मुखर हो रही थी। उसने अपनी बीमारी के बारे में बताते हुए कहा,”मैंने अपना बहुत इलाज कराने की कोशिश की। टाटा मेमोरियल कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट मुंबई में भी दिखाया। जो कुछ बना सब कुछ किया लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि अब कुछ नहीं हो सकता। वह कुछ थर्ड स्टेज की बात कर रहे थे। उनका कहना है, अब इंसान नहीं भगवान् ही कुछ कर सकता है। गुरुजी, मेरी बेटियाँ हैं,उनकी शादी करनी है,अगर मैं मर गया, तो मेरे परिवार का क्या होगा ?” आशंका और दुःख उसकी आँखों से झरने लगा।
गुरुदेव बड़े ही प्रेम भरे स्वरों में उसे आश्वस्त करते हुए बोले,
“अरे रोता क्यों है। तेरे डाक्टरों ने यही तो कहा है न कि अब इंसान नहीं भगवान् ही कुछ कर सकता है, तो बेटा भगवान् ही करेगा। वह ही सब कुछ करने में सक्षम हैं। “
फिर गुरुदेव उसकी फाइल की ओर इशारा करते हुए बोले,”तेरे हाथों में क्या है?” व्यक्ति ने उत्तर दिया, गुरुजी यह मेडिकल रिपोर्ट्स हैं। यह सुनकर गुरुदेव हल्के से मुस्कराए और बोले,
“अब जब भगवान् ही सब कुछ करेगा तो । इनका क्या काम ?”
फिर उन्होंने पास में रखी हुई छोटी मेज पर पड़ा एक गुलाब का फूल उठाया और बोले, “इसे ले बेटा! यह तेरे लिए भगवान् का आशीर्वाद है। इसकी एक पंखुड़ी प्रतिदिन भगवान् का स्मरण करके खा लेना और नीचे जाकर माता जी से भस्म ले लेना। उस भस्म को अपने इस घाव पर लगा लेना। सब ठीक हो जाएगा और हाँ, इस फाइल को जाकर गंगा जी में फेंक देना।”
फिर अपनी बात का समापन करते हुए बोले, “शिवप्रसाद ! इसे ले जाकर माताजी से मिला देना ।”
अनोखे चिकित्सक की बहुत ही अनोखी चिकित्सा।
मिश्रा जी तो उसे ले जाकर वंदनीय माताजी से मिलवाने चले गए लेकिन अभी तक गुरुदेव के पास बैठकर लेख सुनाने की तैयारी कर रहे शिष्य की जिज्ञासा थमी नहीं। वह अभी तक अपने प्रभु के सजल प्रेम की महिमा के बारे में सोच रहा था। अभी उसके सामने जो बातें हुई थीं, उनसे उसके अंदर कई जिज्ञासाएँ उपजीं। अपने सारे लेख गुरुजी को सुनाकर, प्रणाम करके वह नीचे चल पड़ा, उसे कैंसर के रोगी व्यक्ति से मिलना जो था ।
स्वागत कक्ष से उस व्यक्ति के कमरे की जानकारी प्राप्त कर वह उससे मिला। अपनी जिज्ञासा की शांति के लिए उसने रोगी से पूरी बातें फिर से सुनाने का आग्रह किया। रोग के असाध्य और भयावह होने की बातें तो यथावत् थीं। हाँ इनमें एक विशेष बात भी थी। उसने बताया कि मैंने सुन रखा था कि गुरुदेव अंतर्यामी हैं । आज मैं जानना चाहता था कि सचमुच में ऐसा है। इसीलिए मैं प्रतीक्षालय तो गया लेकिन मैंने वहाँ गुरुदेव से मिलने की अपनी कोई इच्छा जाहिर नहीं की। मिश्रा जी को भी नहीं बताया। हाँ, वहाँ पर बैठा-बैठा यह सोच जरूर रहा था कि यदि गुरुदेव सचमुच में अंतर्यामी हैं, तो स्वयं ही बुला लेंगे। सचमुच में गुरुदेव ने बुला ही लिया। लेखन सीख रहे कार्यकर्त्ता ने कैंसर रोगी से अनुरोध भी किया कि आप जब भी शांतिकुंज आएँ, मैं आपसे मिलना चाहूँगा । शायद उसके मन में अपने अंतर्यामी गुरुदेव की अनोखी चिकित्सा का परिणाम जानने की जिज्ञासा थी। रोगी ने इस पर हामी भरी और कालचक्र चल पड़ा।
दिन- सप्ताह-महीने बीतने लगे। शायद इस बात को हुए चार-पाँच महीने बीत चुके होंगे । तभी एक दिन शाम को वही रोगी व्यक्ति मिलने आया। अब की बार वह बहुत ही खुश था । उसने दिखाया कि सचुमच में उसका कैंसर समाप्त हो गया है। शंकाग्रस्त डॉक्टर इसे अविश्वसनीय, आश्चर्यजनक किन्तु सत्य मान रहे हैं। उसने अपनी ठोड़ी के पास की जगह भी दिखाई जहाँ अब मात्र एक निशान ही बचा था। उसके घर-परिवार की स्थिति में भी काफी बदलाव आ चुका था एवं खुशियाँ ही खुशियाँ थीं ।
वह व्यक्ति अपनी कथा का उपसंहार करते हुए बोला, “संसार में योगी- तपस्वी, सिद्ध-समर्थ, ज्ञानी महात्मा पहले भी हुए हैं और बाद में भी होंगे लेकिन गुरुजी इन सबसे अलग हैं। वह तो भगवान् का ही साकार रूप हैं। उनकी सबसे बड़ी खासियत उनका अलौकिक प्रेम है, जो उनके कृपापात्रों-आश्रितों पर सोते-जागते दिन-रात बरसता रहता है। सुनने वाले को अचानक गुरुदेव की एक दिन की बात याद हो आई जो निम्नलिखित है :
“बेटा! यदि लोग कहें कि तुम्हारे गुरु से बड़ा कोई ज्ञानी है, तो मान लेना। यदि कोई कहे तुम्हारे गुरु से बड़ा कोई दूसरा तपस्वी और सिद्ध-समर्थ है, तो भी मान लेना, लेकिन यदि कोई कहे कि तुम्हारे गुरु से ज़्यादा प्यार करने वाला है, तो कभी मत मानना । मेरा यह प्यार तुम लोगों के साथ हमेशा रहेगा, मेरे शरीर के रहने पर और शरीर के न रहने के बाद भी।”
और सचमुच ही अपने अंतर्यामी प्रभु के प्रेम का सजल स्पर्श आज भी है। सभी के दिल की गहराइयों में उनके शब्दों की गूँज आज भी है, “चिंता क्यों करते हो, मैं हूँ न ।” हाँ वे हैं शाश्वत् और सर्वव्यापी, बिना कहे मन की बात जानने वाले अंतर्यामी ।
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आज 18 युगसैनिकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है।सरविन्द जी को गोल्ड मैडल प्राप्त करने की बधाई एवं सभी साथिओं का संकल्प सूची में योगदान के लिए धन्यवाद्।
(1)सरविन्द कुमार-62,(2)संध्या कुमार-45 ,(3) अरुण वर्मा-56 ,(4)मंजू मिश्रा-31, (5 )सुजाता उपाध्याय-31 ,(6) रेणु श्रीवास्तव-49 ,(7) सुमनलता-31 ,(8) निशा भारद्वाज-28 ,(9 ) नीरा त्रिखा-38 ,(10) चंद्रेश बहादुर-32 ,(11)वंदना कुमार-37 ,(12 ) विदुषी बंता-32 , (13)बबिता तंवर-27,(14)पुष्पा सिंह-27 , (15)आयुष पाल-37 ,(16)राम लखनपाल-27 , (17)अनुराधा पाल-25,(18)पिंकी पाल-24,
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।
