25 जनवरी 2024 का ज्ञानप्रसाद
Source: रंगों की बहुरंगी विलक्षण दुनिया
हमारे साथिओं को स्मरण होगा कि कुछ दिन पूर्व हमने इंटरनेट आर्काइव पर “हमारे शरीर में स्थित सात चक्रों की संक्षिप्त जानकारी” शीर्षक से एक बहुत ही सरल पुस्तक अपलोड की थी। इस पुस्तक में हमने बहुत ही सरल भाषा में चक्रों के साथ-साथ रंगों की बहुत ही बेसिक जानकारी प्रस्तुत की है। आज के लेख में हम देख सकते हैं/अनुभव कर सकते हैं कि रंग हमारे जीवन के किस-किस पक्ष को प्रभावित कर रहे हैं। हमारे ड्राइंग रूम/बेड रूम का कलर, हमारी ड्रेस का कलर, हमारा विवाहित जीवन आदि कोई भी ऐसा फील्ड दिखाई नहीं देता जिसे रंग प्रभावित नहीं करते। करें भी क्यों न,यह सारा खेल चक्रों और प्रकृति का ही तो है।
आज गुरुवार है और गुरु के दिन (वार) हम अन्य दिनों की तुलना में, गुरु आधारित प्रज्ञागीत से और भी अधिक श्रद्धामय हो जाते हैं, बहिन सुमनलता जी का इस दिव्य सुझाव के लिए धन्यवाद् करते हैं।
साथिओं को आने वाली वसंत पंचमी का स्मरण कराते हुए निवेदन कर रहे हैं कि वर्ष में एक ही बार प्राप्त होने वाले सौभाग्य को भूल न जाएँ।
अब चलते हैं गुरुकक्षा की ओर
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रंगों में अपार आकर्षण होता है। वे सहज ही मन को अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। प्रकृति के हर घटक में रंगों की बहार बिखरी पड़ी है। नीले विशाल आकाश में छा जाने वाली “इंद्रधनुषी आभा” सभी के मन को लुभाती है। सावन की “हरी मखमली धरती” किसी चित्रकार की चित्रकला जैसी लगती है। हिमालय की चाँदी जैसी चमकती बरफीली चोटियाँ एवं उनसे झरते दूध जैसे झरनों से अंतर्मन आह्लादित हुए बिना नहीं रहता।
प्रकृति के रंगों की छटा इतने मनोरम दृश्य प्रस्तुत करती है जिसे निहारना केवल आँखों को ही तृप्त नहीं करता बल्कि “स्वास्थ्य एवं मन” पर भी अपना गहरा प्रभाव डालती है।
आखिर ये रंग हैं क्या ? जो आकर्षण का केंद्रबिंदु बने हुए हैं। इन्हें देखने एवं परिभाषित करने का सभी का अपना-अपना दृष्टिकोण है। जहाँ मनोवैज्ञानिक इसे मन को प्रभावित करने वाला कारक मानते हैं, वहीं वैज्ञानिक इसके अस्तित्व को ही नकारते हुए कहते हैं कि वस्तुतः रंग जैसी कोई चीज नहीं है। यह तो प्रकाश तरंगों (Light waves) का छोटा-बड़ा होना है, जो हमारी आँखों को रंगों के रूप में दिखाई देता है।
जो भी हो रंग सात प्रकार के होते हैं और उनमें से तीन मूल रंग( Three basic colours) होते हैं जिनके मिश्रण से बाकि के सभी रंग बनते हैं। लाल, हरा और नीला तीन मूल रंग हैं। रंगों के मिलाने की यह प्रक्रिया बिल्कुल एक चित्रकार की प्रक्रिया से मेल खाती है जो अपने ब्रश से दो विभिन्न रंगों का सम्मिश्रण करके एक तीसरे रंग को जन्म देता है।
प्राचीन भारतीय दार्शनिकों के अनुसार मानव शरीर पांच तत्वों “वायु, पृथ्वी,अग्नि, आकाश और जल” से बना है। उनके अनुसार, सजीव और निर्जीव (Living and Nonliving) दोनों का निर्माण इन्हीं पंचतत्वों से मिलकर होता है। जिन तत्वों, धातुओं और अधातुओं से पृथ्वी बनी, उन्हीं से हमारे भौतिक शरीर की भी रचना हुई है। यही कारण है कि आयुर्वेद में शरीर को निरोग और बलशाली बनाने के लिए “धातु की भस्मों” का प्रयोग किया जाता है।
इन पाँच तत्त्वों के अपने विशिष्ट रंग हैं और इन्हें देखने के लिए उच्चस्तरीय ध्यान में उतरना पड़ता है। पृथ्वी तत्व का रंग पीला, जल तत्व का श्वेत, अग्नि तत्व का लाल, वायु तत्व का हरा और आकाश तत्व का रंग नीला होता है। जिस तत्त्व का ध्यान किया जाता है वही रंग झिलमिलाता है। हम जैसे अल्प बुद्धि वालों के लिए तो यह मानना भी सम्भव नहीं है कि पृथ्वी का “तत्व रंग” पीला होता है
जिस प्रकार इस विराट् जगत् में अनेकों प्रकार के रंग बिखरे पड़े हैं, ठीक उसी तरह मानव शरीर के पंचकोषों एवं चक्रों में भी इन रंगों को देखा जा सकता है। अंतर और बाहरी दोनों जगत् में रंगों की अपूर्व झलकियाँ दिखाई देती हैं। स्थूल जगत् में सूर्य को रंगों का उद्भव स्थल माना जाता है। सौर परिवार के विभिन्न ग्रह उपग्रह भी अपने ‘रंगों के माध्यम से जाने-पहचाने जाते हैं। चंद्रमा का रंग श्वेत होता है। लाल रंग मंगल की पहचान है। बुध हरे रंग का प्रकाश बिखेरता है। पीला रंग बृहस्पति का परिचायक हैं, तो शुक्र का रंग नीलाभ श्वेत,शनि का रंग नीला होता है। ये रंग ग्रहों की शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं ।
रंगों का भावना से गहरा संबंध अनुभव किया गया है। इसी कारण रंग के संदर्भ में हरेक की पसंद भिन्न-भिन्न होती है। किसी को उषा का सुनहला रंग पसंद है, तो किसी को संध्या का सिंदूरी रंग। कोई आसमानी रंग का चुनाव करता है, तो कोई धरती की हरियाली को। हर व्यक्ति अपने ढंग से रंगों का चुनाव करता है। अपनी रुचि रंग के अनुरूप ही वह कपड़े पहनता है, दैनिक आवश्यकता की वस्तुओं का चयन करता है। मनोवैज्ञानिक रंगों के इस रुझान से मनुष्य के व्यक्तित्व का आंकलन कर लेते हैं।
अक्सर कहा गया है कि इस बहुरंगी संसार का सुनहला स्वरूप आँखों के माध्यम से ही दृष्टिगोचर होता है लेकिन यही सत्य नहीं है क्योंकि “मन की आँखों” से भी ईश्वर के ऐश्वर्य एवं वैभव को देखा जा सकता है। अभी कुछ दिन पहले ही ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के मंच से एक शुभरात्रि सन्देश प्रकाशित किया गया था जिसमें एक नेत्रहीन व्यक्ति लालटेन लेकर राहगीरों को आगे आने वाले गड्ढे से सावधान कर रहा था। जब लोगों ने पूछा कि आपकी तो आँखें ही नहीं है तो आप रास्ता कैसे बता रहे हो। नेत्रहीन मनुष्य ने उत्तर दिया “मेरे माथे की आँखें फूटी हैं,हृदय की आँखें तो खुली हैं।” नेत्रहीनों के पराक्रम से इतिहास भरा पड़ा है, आवश्यकता है तो केवल ढूंढने की, समझने की और समझाने की। परम पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन में हम अनवरत इसी दिशा में प्रयासरत हैं।
“महामंत्र णमोकार-एक वैज्ञानिक अन्वेषण” नामक ग्रंथ में एक अंधी रूसी महिला का वर्णन आता है, जो रंगों का स्पर्श करके ही उससे उत्पन्न भावों को अनुभव कर लेती थी। छूने के थोड़ी देर बाद वह उस रंग को पहचान देती थी। रंगों को छूने पर किस रंग में किस प्रकार का अनुभव होता है, इस बारे में वह कहती है कि लाल रंग को छूने से गर्मी का अहसास होता है, हरे रंग में प्रसन्नता का बोध होता है। इस प्रकार हर रंग के संबंध में अपने अनुभव का वर्णन करते हुए वह कहती है कि भावों का विकास कर बिना देखे भी रंगों की पहचान की जा सकती है। संभव है सूरदास जी ने अपनी भावनाओं को कुछ इसी तरह से विकसित करके कान्हा के सुंदर रूप-रंग का अनुभव किया होगा, जो उनके काव्य में अभिव्यक्त हुआ है।
प्रत्येक रंग की अपनी-अपनी महत्ता एवं विशेषता होती है। लाल रंग में गर्मी,उत्तेजना, शूरता, कठोरता, तेज, प्रभावशीलता, चमक, स्फूर्ति होने के साथ- साथ इसमें क्रोध, ईर्ष्या, द्वेष एवं कामुकता के भाव भी निहित होते हैं। नीले रंग में विचारशीलता, बुद्धि, सूक्ष्मता, विस्तार, सात्विकता, प्रेरणा, व्यापकता, संशोधन, संवर्द्धन, सिंचन, आकर्षण आदि गुण होते हैं। सबको सम्मोहित एवं आकर्षित करने वाले भगवान् कृष्ण का रंग नीला माना जाता है। नीले रंग में विस्तार एवं व्यापकता होने के कारण इस रंग से रँगा हुआ मकान बड़ा दिखाई देता है, जबकि लाल रंग के कारण वही कमरा छोटा आभासित होता है। हरे रंग की विशेषता है, चंचलता, चपलता, कल्पना, स्वप्नशीलता, जकड़न,दर्द , अपहरण, धूर्तता, । गतिशीलता, विनोद, प्रगतिशीलता। इस रंग की विशेषताएँ । वायु तत्त्व, गतिशीलता एवं प्राण-पोषण को दर्शाती हैं। पीले रंग में क्षमा, गंभीरता, उत्पादन, स्थिरता, वैभव,मजबूती, संजीदगी एवं भारीपन का गुण है। पृथ्वी तत्त्व का रंग पीला होता है इसलिए इसमें उत्पादन की क्षमता होती है। धरती माता की क्षमा एवं स्थिरता भी इस रंग की विशेषता की सूचक है। श्वेत रंग में शांति, रसिकता,कोमलता, शीघ्र प्रभावित होना, तृप्ति, शीतलता, सुंदरता, वृद्धि एवं प्रेम का भाव छिपा रहता है। जल तत्त्व में यही रंग होने के कारण यह शांति, कोमलता एवं तृप्ति का प्रतीक माना जाता है।
रंगों के इन्हीं प्रभावों के आधार पर ही आज के युग में रंग चिकित्सा (Colour therapy) का प्रादुर्भाव हुआ है। पश्चिमी देशों में यह काफी लोकप्रिय भी है और भारत में भी यह प्रचलित हो रहा है। इस थेरेपी के अंतर्गत रोगों के उपचार के लिए विशिष्ट रंग एवं उसके सम्मिश्रण का प्रयोग किया जाता है। रंगों की विशेषता के अनुसार रोगों को देखा/परखा जाता है।इसमें काफी सफलता भी मिल रही है।
रंग चिकित्सा के अनुसार लाल रंग गर्म होने के कारण इसे उदासी, निराशा आदि मनोरोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है। यह रंग चोट एवं मोच में बड़ा ही लाभदायक सिद्ध हुआ है। यौन-दौर्बल्य-जनित ( Sexually weak) रोगों में भी लाल रंग प्रभावी होता है। नारंगी रंग की प्रकृति भी गर्म होती है, इसे भी विभिन्न प्रकार के दर्द में उपयोग किया जाता है। पीले रंग का प्रभाव हृदय संस्थान पर पड़ता हैं। इससे मानसिक दुर्बलता दूर होती है। तनाव, उदासी, उन्माद आदि मनोविकारों से मुक्ति पाने के लिए इस रंग का प्रयोग किया जाता है। हरे रंग को दृष्टिवर्द्धक माना जाता है। इससे आँखों को बड़ा सुकून मिलता है। यह रंग फोड़ों एवं जख्मों को भरने में यह मलहम जैसा कार्य करता है। यह रंग पेट के रोगों के लिए भी लाभकारी पाया गया है। विशेषज्ञों की मान्यता है कि नीला रंग दर्द एवं खुजली को दूर करता है। पेट की बीमारी के निमित्त आसमानी रंग का भी उपयोग होता है। इससे पाचन क्रिया में तेजी आ जाती । बदहज़मी से परेशान रोगी इसका प्रयोग करते हैं। यह तपेदिक को भी ठीक करता है। बैंगनी रंग का असर दमा, सूजन,अनिद्रा आदि में अधिक होता है। इतना ही नहीं यह रंग नींद की दवा जैसा लाभदायक है।
इस तरह रंगों से शारीरिक रोग एवं मानसिक विकास को दूर करने में पर्याप्त सहायता मिलती है, परन्तु इस रंग की महत्ता तब और बढ़ जाती है जब जीवन में ध्यान-साधना रूपी रंग चढ़ जाता है। साधना के रंग से रँगा जीवन ही सार्थक एवं सफल होता है। साधु संत, महात्माओं के जीवन में भगवद् भक्ति का रंग चढ़ा होता है, इसलिए उन्हें सर्वत्र एक उसी रंगरेज का रंग दिखाई देता है। तभी तो उनमें उस साँवले का रंग उतरता ही नहीं था और तभी मीरा अपने कृष्ण कन्हैया के रंग में ऐसी घुल जाती हैं कि उसे केवल सांवला रंग ही दिखाई देता था।
हमें भी स्वयं को परम पूज्य गुरुदेव के न मिटने वाले रँग में रंग देना चाहिए, जो जीवन में एक बार चढ़े तो फिर कभी उतरे ही नहीं। ऐसा अद्भुत रंग ही वरेण्य है और इसका आकर्षण भी अपार है।
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आज 10 युगसैनिकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है। चंद्रेश जी, अरुण जी और सरविन्द जी को गोल्ड मैडल प्राप्त करने की बधाई एवं सभी साथिओं का संकल्प सूची में योगदान के लिए धन्यवाद्।
(1)सरविन्द कुमार-54 ,(2)संध्या कुमार-46,(3) अरुण वर्मा-51,(4)मंजू मिश्रा-25,(5 ) सुजाता उपाध्याय-28,(6) रेणु श्रीवास्तव-45 ,(7) सुमनलता-41,(8) निशा भारद्वाज-24 ,(9 ) चंद्रेश बहादुर-50 ,(10)राम नारायण कौरव-25
सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।