वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

“अपने सहकर्मियों के कलम से” का 20 जनवरी 2024 का स्पेशल सेगमेंट राम लल्ला को समर्पित 

https://drive.google.com/file/d/1NVLhq–tAgXHfi6bDpnWSBpTkxdymDVO/view?usp=drive_link

आज के “स्पेशल सेगमेंट एपिसोड” के शीर्षक को देखकर ऐसा लग रहा है कि सम्पूर्ण विश्व की भांति ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार में भी राम लल्ला के बारे में चर्चा होने वाली है। हमारी इतनी पात्रता कहाँ कि हम मर्यादा पुरषोतम प्रभु राम के बारे में कुछ भी कह सकें, हाँ एक गिलहरी, रीछ वानर की भांति 22 जनवरी, 2024 को जब सम्पूर्ण विश्व राम मय होने को उत्सुक  है, उस दिन ज्ञानप्रसाद का एक अति स्पेशल लेख मर्यादा पुरषोतम राम और हमारे गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य जी को समर्पित होगा। हो सकता है हमारे साथिओं ने इस जानकारी को देखा हो, जाना हो क्योंकि यह जानकरी इतनी बहुचर्चित है कि बार-बार शेयर होने के कारण इसके मूलरूप में काफी तोड़ मरोड़ किया गया है। अपनी प्रवृति के अनुसार प्रयास करेंगें कि  जो भी प्रस्तुत किया जाए Error-free/ओरिजिनल  हो। अगर प्रयास के बावजूद भी कोई त्रुटि रह जाती है तो हम पहले से ही क्षमाप्रार्थी हैं, आखिर इंसान ही तो हैं -To err is human- वाली proverb को कम्पलीट फॉर्म में लिखते हुए ईश्वर का ध्यान बहुत ही आवश्यक है, क्षमा तो ईश्वर ही करते हैं। 

 ‘To err is human; to forgive, divine.’

1.इन्ही शब्दों के साथ सबसे पहले तो हम परम पूज्य गुरुदेव के अध्यात्मिक जन्म दिवस के लिए योगदान के लिए उसी pdf  फाइल से आग्रह करते  हैं जिसे हम पिछले कुछ दिनों से आपके समक्ष प्रस्तुत  कर रहे हैं। ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का शायद ही कोई साथी होगा जिसके पास  गुरुदेव से सम्बंधित कोई न कोई अनुभूति, यादगार, संस्मरण न  होगा। यह एक विस्तृत विषय है जिसके सम्बन्ध कुछ भी लिखा जा सकता है। 

बार-बार आग्रह करने का उद्देश्य मात्र इतना ही है कि आप अपने श्रद्धा सुमन गुरुदेव के चरणों में अर्पण करें। यह सौभाग्य वर्ष में एक ही बार हम सब को मिलता है। हमें तो बहिन सुजाता जी के शब्द स्मरण हुए जा रहे हैं जो उन्होंने अपने शांतिकुंज प्रवास की अनुभूति के सम्बन्ध में लिख कर भेजे हैं। हमने उन्हें मैसेज किया कि बहिन जी आप तो ओडिशा से होने के कारण हिंदी लिखने में इतनी सक्ष्म  नहीं हैं तो अब यह कैसे संभव हो रहा  है, उन्होंने इसका भी श्रेय हमें ही दे दिया। बहिन जी ने शुरू शुरू में हमें लिखा था कि हमें हिंदी लिखने में समस्या है। तो हमारा लिखने का उद्देश्य यही है कि आप एक कदम तो उठाइये बाकी गुरुदेव स्वयं संभाल लेंगें। 

जहाँ तक श्रेय की बात है तो यह सब परम पूज्य गुरुदेव की ही माया है,अभी कुछ दिन पूर्व ही पोस्ट की गयी वीडियो शार्ट आप सबने देखी  होगी जिसमें गुरुदेव दादा गुरु के बारे में बता रहे हैं “ मात्र लेखनी ही हमारी है, बाकी सब कुछ उस दिव्य सत्ता का ही है।” 

2.आज के स्पेशल सेगमेंट को रोचक और लोकप्रिय बनाने के लिए हमारी बेटी संजना, आदरणीय कौरव जी, आदरणीय संजय खरे जी और सुजाता जी का योगदान है जिसके लिए हम सभी का ह्रदय से धन्यवाद् करते हैं। इस स्पेशल सेगमेंट के साथ अटैच की गयी वीडियो सब कुछ वर्णन कर रही है इसलिए यहाँ पर इनके योगदान के बारे में कुछ भी लिखना उचित नहीं होगा। हाँ इतना अवश्य लिख देते हैं कि आदरणीय संजय जी, जो आदरणीय चंद्रेश जी के सह-कर्मचारी हैं अभी अभी ही हमारे साथ व्हाट्सप्प पर जुड़े हैं। जिस प्रकार हम सभी को व्हाट्सप्प की तुलना में यूट्यूब पर अधिक सक्रीय होने को कहते है, उन्हें भी निवेदन किया है क्योंकि यूट्यूब पर व्यक्त किये गए विचार अधिक विस्तृत सर्किल में जाते हैं जबकि व्हाट्सप्प पर केवल हम तक ही पंहुच पाते हैं। पहले भी बहुत बार लिख चुके हैं ,एक बार फिर निवेदन कर रहे हैं कि हमारे  व्हाट्सप्प ग्रुप पर पोस्ट हुआ  कोई भी मैसेज केवल हम तक ही पँहुच पाता है, इसे और कोई नहीं देख पाता, ऐसा इसलिए है कि यह ब्रॉडकास्ट ग्रुप है न कि व्हाट्सप्प ग्रुप। 

तो उचित रहेगा कि सभी साथी यूट्यूब का ही प्रयोग करें। हम ऐसा इसलिए निवेदन कर  रहे हैं कि हम सबका उद्देश्य स्वयं के परिष्कार के साथ साथ औरों का परिष्कार  भी महत्वपूर्ण है, तभी जाकर सच्ची गुरु भक्ति का  प्रमाण मिलेगा। 

3.इस दिशा में गुरुदेव के मार्गदर्शन में,हमारे द्वारा किये जा रहे अनेकों  प्रयासों  का एक ही उद्देश्य है, “अपने गुरु को घर घर में स्थापित करना” हम सबसे सरल step गुरुदेव का साहित्य, 500 पन्नों की पुस्तक का reference, लिंक सोशल मीडिया साइटस पर शेयर   कर दें और हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें कि कोई न कोई तो पढ़ ही रहा होगा। हो सकता है कुछ वर्ष पहले यह प्रक्रिया काम कर जाती होगी लेकिन आज तो एक व्यक्ति कितनी ही सोशल मीडिया  साइट्स,  कितने ही व्हाट्सप्प ग्रुप्स के साथ जुड़ा हुआ है और उसे अधिक से अधिक ग्रुप्स में जुड़ने में गर्व है, न कि उनके कंटेंट में। हमने यह दोनों extremes try कर के देख ली हैं। पुस्तक का रेफरन्स देना और  60 सेकण्ड्स की वीडियो शार्ट प्रकाशित करना बिलकुल अलग जैसे लगते हैं। वीडियो शार्ट  से गुरु ज्ञान प्रकाशित करने में  , 24  घंटे में  लगभग 2000 लोग देखते हैं, उसके बाद और लोग भी अपने समय अनुसार देखते ही रहते हैं।  इसके पीछे केवल एक ही विचारधारा काम कर रही है और वोह है “इंस्टेंट की विचारधारा”, यही है आज के युग की पुकार। Miniaturisation का युग,सब कुछ छोटे से छोटा हुआ जा रहा है, लेकिन यह कोई TV  आदि की बात नहीं है जब 70-80 में बड़े बड़े TV  हुआ करते थे,  यह विचारों की बात है, इनका  जितना अधिक विस्तार होगा उतना ही प्रभावशाली होगा। अभी कुछ दिनों से हम प्रतिदिन एक वीडियो शार्ट प्रकाशित कर रहे हैं, लोग देख भी रहे हैं, फॉलो भी का रहे हैं। जो कुछ भी हो समर्पण ही एकमात्र उद्देश्य है। 

4.आज शब्द सीमा ने कुछ और रोचक संस्मरण लिखने की आज्ञा दी है तो निम्नलिखित दो संस्मरण प्रस्तुत हैं : 

a )अखण्ड-ज्योति का प्राण यानि ऐसा साहित्य जिससे  असंख्य दिलों की धड़कनें स्पन्दित हो सकेंगीं। यही  वोह साहित्य होगा जो लोकजीवन का पथ प्रदर्शन करेगा । 

उस दिन गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति अपने एक दो सहयोगियों के साथ आये हुए थे। मौसम अपनी पूरी उष्णता पर था। सीढ़ियाँ चढ़कर जैसे ही कुलपति महोदय पहुँचे, तो देखा गुरुदेव टहल रहें हैऔर पंखा भी बंद है। उनका अभिवादन करते हुए गुरुदेव ने पंखा चालू कर दिया। बैठने के बाद वार्ता शुरू हुई। बात-चीत के बीच में कुलपति जी ने  इधर-उधर देखते हुए कहा: 

“यहाँ तो कूलर तक नहीं है, आपको एयरकंडीशनर तो लगवा ही लेना चाहिए। सारा  दिन पढ़ने लिखने जैसे  गम्भीर काम करने में कितनी परेशानी होती होगी?” 

सुनकर गुरुदेव ने  गम्भीर स्वर में कहा:

“जिस दिन सारे भारत को ए.सी. दे सकूँगा, उस दिन मैं भी लगवा लूँगा। अभी तो इस पंखे का उपयोग भी आने-जाने वालों के लिए ही होता है।” 

वार्ता समाप्ति के पश्चात जैसे ही वे लोग नीचे उतरने के लिए मुड़े, गुरुदेव ने स्वयं उठकर पंखा बंद कर दिया। उतरने वाले उनके हृदय की संवेदनशीलता में भारतीय जनजीवन के स्पंदन अनुभव कर रहे थे।

यह प्रामाणिकता ही उस अखण्ड-ज्योति का प्राण है जो आज तक अगणित व्यक्तियों में प्राण संचार करती आयी है। गुरुदेव “स्नेह से सनी एक सोने की लौ” अपने पास रखते थे जिसे ज्योति के रूप में अपने प्रियजनों तक हर माह एक पाती की तरह पहुँचा देते थे। इसी ने उन सभी को गुरुदेव का अपना बनाया।

b) निम्लिखित संस्मरण बहिन  कुमोदनी गौराहा जी ने कुछ समय पहले  भेजा था : 

आज के लेख में जो प्रज्ञा गीत दिया गया है उस गीत को लिखने वाली और गाने वाली लड़की का नाम वीणा पाणिकर है। यह लड़की कभी गुरुदेव के प्रमुख शिष्यों में एक हुआ करती थी। गुरुदेव इस लड़की की प्रतिभा से बहुत ही स्नेह करते थे और प्यार से उसे कोकिला बेन कहकर पुकारते थे किन्तु उस लड़की का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि  पता नहीं उसने क्या किया कि गुरुदेव को तपोभूमि मथुरा से उसे भगाना पड़ा। 

हम सामान्य इंसानों  की यही कमजोरी हैं एक तो कुछ आता जाता नहीं और कभी कुछ आ भी जाता हैं तों जल्दी ही अंहकार हावी हो जाता है और अंहकार में व्यक्ति  कुछ ऐसा कर बैठता है जो नहीं करना चाहिए। वास्तव में मानव जन्म पाते ही हम भूल जाते हैं हमारा जन्म क्यों हुआ है, हमारे जन्म लेने का उद्देश्य  क्या है। इस उद्देश्य को याद रखने के लिए ही ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की गुरुकक्षा में सत्संग जरुरी है, सत्संग अर्थात सत्य का संग।  जय गुरुदेव

5.आज के इस स्पेशल सेगमेंट के अंत में अपनी बेटी संजना का उस पुस्तक के लिए ह्रदय से धन्यवाद् करना चाहेंगें जो उसने कल वाले लेख पर कमेंट करके बताई है। Bioelectricity पर आधारित “मानवी विदूयत के अद्भुत चमत्कार” शीर्षक से यह पुस्तक भी गुरुदेव द्वारा रचित पुस्तकों की भांति मास्टरपीस है, अवश्य ही लेखों के माध्यम इसे भी परिवार के साथ शेयर करना चाहिए।

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आज 16  युगसैनिकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है। रेणु   जी को गोल्ड मैडल प्राप्त करने की बधाई एवं  सभी साथिओं का  संकल्प सूची में  योगदान के लिए धन्यवाद्।   

(1)सरविन्द कुमार-49(2)संध्या कुमार-42  ,(3 ) अरुण वर्मा-52  (4)मंजू मिश्रा-26 , (5 ) सुजाता उपाध्याय-26 ,(6) रेणु श्रीवास्तव-66   ,(7) सुमनलता-41,(8) निशा भारद्वाज-31  , (9 )नीरा त्रिखा-26,(10) चंद्रेश बहादुर-50  ,(11)विदुषी बंता-25,(12)प्रेरणा कुमारी-24, (13)संजना कुमारी-24,(14) राम लखनपाल-24,(15)पुष्पा सिंह-24,(16) वंदना कुमार-34                       

सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई। 


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