वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

धर्म और विज्ञान के मिलन पर कुछ और चर्चा 

18 जनवरी 2023 का ज्ञानप्रसाद

आज गुरुवार है, हमारे गुरु का दिन। यह एक ऐसा दिन होता है जब गुरु साहित्य पर आधारित ज्ञानप्रसाद लेख के साथ-साथ प्रज्ञागीत भी गुरु-आधारित ही होता है। यह सुझाव हमारी अति समर्पित आदरणीय बहिन सुमनलता जी द्वारा प्रस्तुत किया गया था और किसी भी साथी के सुझाव एवं योगदान का पालन करना हमारा परम कर्तव्य एवं धर्म है क्योंकि अपने साथिओं के बिना हमारा कोई अस्तित्व नहीं है। 

कल की भांति आज एक बार फिर से अपने साथिओं से क्षमा याचना कर रहे हैं कि धर्म और विज्ञान पर चल रही लेख श्रृंखला का समापन कल यानि शुक्रवार को ही हो पायेगा जिसके कारण कल प्रकाशित होने वाली वीडियो को स्थगित करना पड़ रहा है। इसी परिणामवश गुरुकुल की वीडियो कक्षा भी स्थगित रहेगी, नार्मल ज्ञानप्रसाद गुरुकक्षा ही होगी। 

आज के ज्ञानप्रसाद लेख में सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के निष्कर्ष का संक्षिप्त वर्णन है जिसमें आइंस्टीन प्रयोगशाला में कार्यरत वैज्ञानिक की तुलना हिमालय में साधनारत साधक से कर रहे हैं। उनके अनुसार दोनों ही साधक हैं और दोनों अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुनते हुए वोह उच्चस्तरीय कार्य कर जाते हैं जिनके लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं रहती। ऐसे कार्यों की पुष्टि के लिए हमने गुरुदेव के 1952 वाले जल उपवास का उदाहरण दिया है। 

आज का विषय भी जटिल होने के बावजूद अति रोचक है, जितना भी समझ आ जाए  लाभदायक ही रहेगा।  कल वाले लेख में केवल कुछ उदाहरण ही हैं, जिस कारण लेख  बहुत ही संक्षिप्त रहेगा 

तो आइए गुरुचरणों को समर्पित होकर गुरुकक्षा की ओर प्रस्थान करें। 

ॐ असतो मा सद्गमय ।तमसो मा ज्योतिर्गमय ।मृत्योर्मा अमृतं गमय ।ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ 

अर्थात 

हे प्रभु, मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो ।मुझे अन्धकार से प्रकाश की ओर ले चलो ।

मुझे मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो ॥

*****************

मध्य युग (5वीं से 15वीं शताब्दी तक)  के अनेक विज्ञानवेत्ताओं ने धर्म की आलोचना की और उसे मानवीय प्रगति का अवरोध तक ठहराया। उनका कहना था  

“जब तक “ईश्वर और आत्म-चेतना का विज्ञान” इतना विकसित नहीं हो जाता कि उसे स्थूल पदार्थों की तरह ही पढ़ाया और प्रमाणित किया जा सके, तब तक इन मान्यताओं को शिरोधार्य नहीं किया जा सकता।”

मनुष्य जीवन के लिए धर्म एक  आन्तरिक और भावनात्मक प्रक्रिया है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके  निश्चित परिणामों के लिए “विचारों की एकाग्रता और आत्मचिन्तन” बहुत ही आवश्यक होते हैं। धर्म जैसे विषय को  एक स्वतंत्र रूप में अध्ययन का विषय बनाया जाना चाहिये था, जैसा कि भारतवर्ष में पुरातन युग में  किया गया। भारतीय अध्ययन की  विशेषता है कि शताब्दियों से Physical science और Yogic science,दोनों के समन्वय से शिक्षा प्रदान कराई जाती रही है।  

सुप्रसिद्ध अमरीकी भौतिक विज्ञानी RA Millikan को इलेक्ट्रान में इलेक्ट्रिक चार्ज (Current) साबित करने के लिए 1923 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। यह रिसर्च  तो मात्र एक शताब्दी पूर्व की ही बात है लेकिन ब्रह्माण्ड में एनर्जी/चार्ज/ऊर्जा आदि की बात तो भारतीय आध्यात्मिक विज्ञान हज़ारों वर्ष पूर्व सिद्ध कर चुका है। जब सृष्टि के प्रत्येक कण (इलेक्ट्रान) में चार्ज होती है तो यह कहना सरल हो जाता है कि सारा ब्रह्मण्ड ही ऊर्जा का स्रोत है।  ऐसा इसलिए कहा जा रहा है कि हमारा भौतिक शरीर, वनस्पतियां,जो कुछ भी दिखाई दे रहा है सभी में अन्य कणों के इलावा इलेक्ट्रान  तो हैं हीं। यहाँ यह भी सरलता से कहा जा सकता है कि मनुष्य शरीर भी अपनेआप में “ऊर्जा की विशाल फैक्ट्री” है। प्राचीन ग्रंथों में सदियों पूर्व महर्षि कणाद ने आत्मा, ऊर्जा ,पदार्थ, शक्ति आदि की बात की थी 

अक्सर ऐसी मान्यता  है कि नास्तिक विचारधारा के मनुष्य  धर्म और ईश्वरीय आस्थाओं में विश्वास नहीं रखते लेकिन अलबर्ट आइंस्टीन  जैसे महान् वैज्ञानिक को भी यह मानना पड़ा कि वैज्ञानिक अनुसन्धान (Scientific research) भी  मनुष्य की “आध्यात्मिक भावनाओं” पर निर्भर करते हैं।  एक वैज्ञानिक प्रयोगशाला में अपने चिन्तन में इतना डूब जाता है कि उसे अपने “शरीर की आवश्यकताओं” का भी ध्यान नहीं रहता। उनका कहना था कि प्रयोगशाला में चिंतन में डूबा  वैज्ञानिक अगर अनुभव करे कि मेरा ईश्वर यहीं  विद्यमान है तो कोई हैरानगी नहीं होनी चाहिए। आइंस्टीन आगे कहते हैं कि अवश्य ही कोई शक्ति तो है जो “उच्च कार्य” करने को प्रेरित करती है, यही चिन्तन मनुष्य को अपने चंगुल में  में बाँध लेता  है जिसे हम आत्मा, ईश्वर, शक्ति आदि कोई भी नाम दे दें। धार्मिक चिन्तन एवं तप शक्ति के  द्वारा इस शक्ति को और प्रगाढ़ बनाया जाता है। 

कल वाले ज्ञानप्रसाद लेख में आदरणीय सुमनलता जी के कमेंट पर काउंटर कमेंट करते हमने लिखा था कि नींद जैसी भौतिक आवश्यकता न होती तो शायद हम कई रातें बिना सोए, इस रोचक विषय का अध्ययन करते रहते। हमारे लिए बहुत बड़ा चैलेंज रहता है कि ज्ञानप्रसाद लेख इतने सरल हों कि जिस व्यक्ति को  विषय की A,B,C  का ज्ञान भी नहीं है, वोह भी न केवल इसे समझ ले बल्कि इसमें डूब ही जाए। यही एकमात्र प्रक्रिया है जिससे हम सब ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार के प्रयास से परम पूज्य गुरुदेव का अथाह सागररूपी साहित्य जन जन तक पंहुचा सकते हैं। 

हमारे विचार में अल्बर्ट आइंस्टीन जिस  प्रयोगशाला और वैज्ञानिक के दृश्य का वर्णन कर रहे हैं, उसकी तुलना हिमालय में साधना कर रहे सन्यासी से की जा सकती है। दोनों को लगभग एक जैसी ही अनुभूति हो रही है, एक जैसी ही कठिन साधना एवं चिंतन कर रहे हैं।   आइंस्टीन जिस अनुभूति की बात कर रहे हैं उस “अनुभूतिवाद के सिद्धांत” को ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक Gilbert Murray बाज़ (एक पक्षी)  का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि तेज़ी   से उड़ता हुआ बाज़ (Hawk) अपने शिकार की ऐसी ताक करता है कि वह उसके चंगुल से बच नहीं पाता, कुत्ता सुगन्ध लेता हुआ, उन्हीं गलियों से चलता हुआ चोर का पता लगा लेता  है, जहाँ हम कई बार चलते हुए भी कुछ समझ नहीं पाते, हिरन इतनी तेज़ी  से भागता है कि और कोई हो तो पीछे की आवाज सुन भी न सके, किन्तु वह सब कुछ सुनता भी जाता है। 

इस चर्चा से गुरुकुल की गुरुकक्षा के विद्यार्थी यह समझने का प्रयास कर रहे हैं कि मनुष्य अपने सामान्य जीवन में अनेकों  कार्य करता है लेकिन अनेकों बार  ऐसी अजीबोगरीब घटनाएं घटित तो हो रही होती हैं लेकिन दिखाई नहीं देती। वैज्ञानिक तो इस थ्योरी को मानेगें ही नहीं क्योंकि वोह तो प्रत्यक्षवाद के पक्षधर ठहरे लेकिन  विलक्षणताओं से इंकार  नहीं किया जाना चाहिए । कई बार वह बहुत मूल्यवान और आध्यात्मिक होती हैं, इसलिए धर्म को मानव-जीवन से हम कभी भी अलग नहीं कर सकते । धर्म एक ऐसी विधा है जो हमें आत्मिक शक्ति प्राप्त  करने को प्रेरित करता है। 

हमारे साथिओं को स्मरण होगा कि 29 मार्च 2023 को हमने एक लेख प्रकाशित किया था जिसका शीर्षक था,”यह एटॉमिक शक्ति नहीं आत्मिक शक्ति है।” युगतीर्थ शांतिकुंज से मात्र आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान पर आधारित इस लेख में गुरुदेव बता रहे हैं कि 

“ब्रह्मवर्चस एक फैक्टरी है, एक कारखाना है, एक भट्टी है । इस भट्टी में गलाई होगी, ढलाई होगी। भट्टियाँ कई तरह की होती हैं, कोई काँच को गलाने की तो कोई लोहे को गलाने की। हमने जो भट्टी बनाई है उसमें मनुष्यों के व्यक्तित्व की गलाई और ढलाई के दोनों काम हम ही करेंगे। हम इस फैक्टरी में दो चीजें तैयार करेंगे – एक का नाम है पावर और दूसरी का नाम है करंट | इन्ही दो वस्तुओं के आधार पर नए युग का ढाँचा खड़ा होगा। प्रत्येक मशीन, प्रत्येक क्रिया-कलाप किसी न किसी पावर से ही चलते हैं। चाहे कोई भी यंत्र हो, पावर न हो तो वह चलेगा ही नहीं । जिस पावर के द्वारा नए युग का निर्माण – तंत्र चलने वाला है, वह पावर एटामिक पावर नहीं बल्कि आत्मिक पावर है।”

जिस आत्मिक पावर एवं ऊर्जा की बात इन पंक्तिओं में हो रही है गायत्री परिवार के परिजन परम पूज्य गुरुदेव के शरीर में प्रतक्ष्य देख चुके हैं। हम बात कर रहे हैं 1952 और 1976 को दो जल उपवासों की जिसमें गुरुदेव ने अपने शरीर को इतना तपा लिया था कि गुरुदेव को स्वयं ही साधकों पर कठिन प्रतिबंध लगाने पड़े थे। वैशाख पूर्णिमा,30 मई को हम सब अनुमान लगा सकते हैं कि  कितनी भीषण गर्मी होगी , गुरुदेव ने 24 दिनों का जल उपवास आरम्भ किया था। ताई जी को चिंता थी कि एक टाइम भोजन करने से तो गुज़ारा हो सकता है, 24 दिन बिना जल के व्यतीत करने, कैसे संभव होगा, उन्होंने गुरुदेव को मना भी किया था लेकिन कुछ नहीं हो सका।  इस उपवास से प्राप्त  हुई शक्ति  से साधकों का कोई नुक्सान न हो,गुरुदेव ने उन्हें चरण स्पर्श, निकट आने पर प्रतिबंध लगा रखा था। 

हमारे साथी जल उपवास पर प्रकाशित 9 लेख पढ़ चुके हैं जो मई 2022 में प्रकाशित हुए थे।

वैसे तो परम पूज्य गुरुदेव (जिन्होंने अपने शरीर को एक लेबोरेटरी के रूप में प्रयोग किया) जैसे  व्यक्तित्व को जानने के बाद किसी और उदाहरण की आवश्यकता ही नहीं रहती फिर भी भौतिकवादिता के पुजारिओं के लिए हम कल वाले लेख में कुछ ऐसे तथ्य प्रस्तुत करेंगें जिनके शरीर में से इस प्रकार की  बिजली की करंट निकलती है कि छूने वाला व्यक्ति झटके से कितनी ही दूर जाकर गिरता है।        

हमने कल वाले लेख में भी देखा था कि वैज्ञानिकों की मान्यताओं का वैज्ञानिकों द्वारा ही खण्डन होता चला जा रहा है। हमारे समक्ष  यह प्रश्न उपस्थित होता है कि किसे स्वीकार करें और किसे नकार दें। ऐसी स्थिति में  अन्तिम निर्णय हमें  स्वयं ही  लेना चाहिये लेकिन  यदि यह कहा जाये कि मनुष्य जीवन में धर्म और अध्यात्म की महत्ता भौतिक विज्ञान  से बढ़कर है तो उसमें किसी को आश्चर्य या नाराज़गी  नहीं प्रकट करनी चाहिये।

शेष कल वाले लेख में 

**************

आज 16  युगसैनिकों ने 24 आहुति संकल्प पूर्ण किया है। चंद्रेश  जी को गोल्ड मैडल प्राप्त करने की बधाई एवं  सभी साथिओं का  संकल्प सूची में  योगदान के लिए धन्यवाद्।   

(1)सरविन्द कुमार-49 ,(2)संध्या कुमार-45,(3 ) अरुण वर्मा-24,(4)मंजू मिश्रा-26 , (5 ) सुजाता उपाध्याय-41,(6) रेणु श्रीवास्तव-37  ,(7) सुमनलता-42 ,(8) निशा भारद्वाज-32, (9 )नीरा त्रिखा-25 ,(10) चंद्रेश बहादुर-64 ,(11) पुष्पा  सिंह-28 ,(12)वंदना कुमार-27 , (13)विदुषी बंता-25, (14)प्रेरणा कुमारी-25, (15)राधा त्रिखा-25,(16)पिंकी पाल-25                   

सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


Leave a comment