वेदमाता,देवमाता,विश्वमाता माँ गायत्री से सम्बंधित साहित्य को समर्पित ज्ञानकोष

दिल की भाषा सुनने की प्रक्रिया है अध्यात्म

9 जनवरी 2024 का ज्ञानप्रसाद

https://youtu.be/9cBqVkPhIH4?si=CguV-d31Z4ZyK6gl

आज सप्ताह का दूसरा दिन मंगलवार है, मंगल के दिन सभी के लिए मंगल कामना करना ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार का कर्तव्य है, धर्म है। इसी मंगल धारणा को दर्शाती  दिव्य, मंत्रमुग्ध कर रही रामचरितमानस की चौपाई हम सबका मन मोह रही है। आदरणीय सुमनलता बहिन जी के सुझाव अनुसार पहले भजन फिर ज्ञानप्रसाद। 

आज के ज्ञानप्रसाद का शीर्षक “दिल की भाषा सुनने की प्रक्रिया” स्वयं ही सब कुछ कह रहा है। अगर हम दुःखी होते हैं तो आंसू आते हैं जिन्हें हम देख सकते हैं, अगर हमारा दिल दुःखी होता है तो ECG से ह्रदय की स्थिति का ही पता चलता है, स्वयं देखने वाली कोई indication नहीं होती, फील हो सकती है  

आज संसार में हर कोई सफल होने की भयंकर दौड़ में लगा हुआ है, लेकिन सही मायनों में सफलता है क्या, किसे पता है, क्या अध्यात्म इस प्रश्न का उत्तर दे सकता है ?

आज के लेख में  परम पूज्य गुरुदेव के मार्गदर्शन में देव संस्कृति यूनिवर्सिटी में हो रहे प्रयासों की एक छोटी सी झलक प्रस्तुत की गयी है। बहुत साहस करके विशाल ज्ञान में से मात्र इतना ही जानने का प्रयास किया है कि जीवन आखिर है क्या, जीवन प्रबंधन है क्या। 

आज सीधा गुरुकक्षा  में ही जाना होगा

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Humans are God’s best creation, लेकिन यह बेस्ट क्रिएशन तब तक ही संभव है, जब तक रचियता के कड़े कानून का पालन होता रहे। कानूनों की अवहेलना होते ही यही बेस्ट क्रिएशन बेस्ट दानव बनने में एक क्षण की देर नहीं करती। 

ईश्वर द्वारा रची गई अनेकों रचनाओं में से मानव से अधिक श्रेष्ठ उपलब्धि कोई भी  नहीं मानी जा सकती है। ईश्वर ने तो मनुष्य की रचना करके स्वयं पर इतना गर्व अनुभव किया कि उसने मानव को अपना “राजकुमार” ही कह डाला, अपने जैसा ही बना डाला।

ईश्वर ने मानव को अनेकों  संपदाएं प्रदान करके ऐसा अवसर दिया है जिससे  वह जो चाहे प्राप्त कर सकता है।

जो मनुष्य इस सुरदुर्लभ मानव जीवन को पाकर उसे सुचारु रूप से संचालित करने की कला नहीं जानता है अथवा उसे जानने में आलस्य  करता है, उसे मानव का दुर्भाग्य ही कहा जायेगा। 

कल वाले लेख पर कॉमेंट करते हुए ऑनलाइन ज्ञानरथ गायत्री परिवार की समर्पित सहकर्मी आदरणीय वंदना कुमार जी ने इसी तरह के “दुर्भाग्य” की चर्चा की थी। बहिन जी किसी मनुष्य  को पूजा का महत्व समझा रही थीं तो उन्हें तपाक से उत्तर मिला कि न तो हम ईश्वर में विश्वास रखते हैं और न ही कभी पूजा करेंगें। यह दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है? बहिन जी जिनके साथ बात कर रही थीं शायद “खाओ,पियो,ऐश करो” वाली प्रवृति के मानव होंगें। ऐसे लोगों के साथ बात करना अपने अमूल्य समय को बर्बाद करना ही है। यही कारण है कि  हम बार-बार कहते रहते हैं कि  OGGP  के साथ जुड़ने का अर्थ है गुरुदेव की अपार कृपा, अनुकंपा। यह सौभाग्य किन्हीं विरलों को ही प्राप्त होता है and we are some of the luckiest ones selected by Param Pujya Gurudev from a vast pool of applicants . 

ईश्वर ने न सिर्फ मानव को अपने जैसा बनाया बल्कि उसके जीवनरूपी  पवित्र क्षेत्र में  वोह सारी विभूतियां बीज रूप में रख दीं जिनका विकास करके नर से  नारायण बनते देर नहीं लगती। यहाँ एक बेसिक बात समझने वाली है कि ईश्वर द्वारा प्रदान की गयी विभूतियों का विकास तभी होता  है जब “जीवन का संचालन” व्यवस्थित रूप से  किया जाता है। अव्यवस्थित जीवन, जीवन का ऐसा दुरुपयोग है, जो विभूतियों के स्थान पर दरिद्रता की वृद्धि कर देता है।

जीवन को व्यवस्थित रूप से चलाने की एक वैज्ञानिक पद्धति ( Scientific method ) है जिसे अपनाकर एवं उस पद्धति पर चलने से मनवांछित फल प्राप्त  किये जा सकते हैं। अगर यह पद्धति न अपनाई जाए  तो मनुष्य की वही दुर्गति होती है जो पशु-प्राणियों की होती है। जीवन को सुचारु रूप से चलाने की इस वैज्ञानिक पद्धति का नाम ही “अध्यात्म” है, जिसे “जीवन जीने की कला(Art of living )” भी कहा जा सकता  है। इस सर्वश्रेष्ठ कला का ज्ञान प्राप्त किए  बिना जो मनुष्य जीवन इस दुर्लभ जीवन  को अस्त-व्यस्त ढंग से बिताता रहता है, उसे उनमें से कोई  भी ऐश्वर्य उपलब्ध नहीं हो सकते। यहाँ जिस ऐश्वर्य की बात हो रही है, ईश्वर ने हमारे लिए लोक से लेकर परलोक तक बिखेर रखे हैं। जिस मनुष्य को  “जीवन कला” की बेसिक जानकारी हो गयी वही इन ऐश्वर्यों को प्राप्त करने के  काबिल हो सकता है, अर्थात जिसकी पात्रता विकसित हो चुकी है  उसे ही ईश्वर से समस्त अनुदान प्राप्त होते हैं।

“जीवन जीने का कला” का ज्ञान प्राप्त करने के लिए कोई गुरुकुल, कोई विद्यालय जैसी कोई संस्था है जो हम जैसे अनगढ़ विद्यार्थिओं  को सरल और बेसिक ट्रेनिंग प्रदान कराने में सक्ष्म हो ? अवश्य है, परम पूज्य गुरुदेव हमारे लिए ऐसी संस्था की रचना कर दिए हैं जिसका नाम है देव संस्कृति विश्वविद्यालय। इसी  विश्वविद्यालय में चल रहे दो महत्वपूर्ण, compulsory  कोर्स, “जीवन प्रबंधन-Life management” और “वैज्ञानिक अध्यात्मवाद-Scientific spirituality” हैं।  हमें पूर्ण विश्वास है कि जिस व्यक्ति के साथ आदरणीय वंदना बहिन जी की बात हो रही थी, उन्हें अगर इन courses की A,B,C का भी ज्ञान होता तो ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण प्रतिक्रिया न व्यक्त करते। इसके साथ ही हमें यह भी विश्वास है कि हम में से भी अनेकों ऐसे होंगें जिन्हें जीवन जीने की कला के वैज्ञानिक पक्ष का ज्ञान न हो, कोई बात नहीं, अज्ञानता स्वीकारने में कोई शर्म नहीं आनी चाहिए, उद्देश्य तो मात्र इतना ही है कि हम कुछ सीख कर जाएँ और औरों को भी सिखाएं। 

इसी उद्देश्य को सामने रखते हुए हमने देव संस्कृति  यूनिवर्सिटी में चल रहे “जीवन प्रबंधन कोर्स” की आउटलाइन दर्शाने  का निम्नलिखित साहस किया है, साथिओं के लिए सरलता से प्रस्तुत करना हमारे रक्त में रचा हुआ  है। इन पंक्तियों को लिखने से पहले हमने तो इस डिपार्टमेंट  से प्रकाशित हुए कितने ही रिसर्च पेपर पढ़ डाले क्योंकि अध्यात्मिकता का राग तो कई दिनों से अलाप रहे हैं, apply कैसे किया जाए। 

Life management course की outline:            

जीवन स्वयं एक कला है।  जो व्यक्ति अपने समय, प्रयास और क्षमता का सही दिशा में उपयोग करते हैं वे मानव जीवन का गौरव प्राप्त करते हैं। प्रभावी और रचनात्मक जीवन के लिए जीवन का उचित “प्रबंधन” आवश्यक है। हालाँकि यह आसान नहीं है क्योंकि हमारे जीवन में दृश्य और अदृश्य दोनों आयाम हैं, और अदृश्य को पहचानना कठिन है। इस भौतिक संसार में जहाँ सब कुछ दिखाई देता है,प्रबंधन अपेक्षाकृत आसान है। इसलिए जब हम जीवन प्रबंधन की बात करते हैं तो केवल बौद्धिक होना ही पर्याप्त नहीं है; हमें हर स्तर पर उत्कृष्ट बनना चाहिए ।

सच्ची सफलता के लिए हमें सबसे पहले स्वयं  को प्रबंधित करना होगा। यदि हम गहराई से सोचें और जागरूक रहें  तो हम अपने “दिल की भाषा” सुन सकते हैं, अपनी इच्छाओं को जान सकते हैं और अपनी भावनाओं को समझ सकते हैं और उन्हें प्रबंधित भी कर सकते हैं। जीवन प्रबंधन का अर्थ है : ऐसे प्रश्नों के  उत्तर देने की क्षमता रखना जो हमारे जीवन की समस्याओं से जन्म लेते हैं।

जीवन प्रबंधन कोर्स  देव संस्कृति विश्वविद्यालय का अनिवार्य,Compulsory पाठ्यक्रम है। इस विश्वविद्यालय का लक्ष्य छात्रों का समग्र विकास है और इसलिए,जीवन प्रबंधन इस विश्वविद्यालय का मुख्य मॉड्यूल है, जो सभी छात्रों के पाठ्यक्रम का एक अनिवार्य और अभिन्न अंग है।

जीवन प्रबंधन का अर्थ मानव जीवन की क्षमताओं को पहचानना और उनका विकास करना है। जीवन प्रबंधन के दो भाग हैं- जीवन का दृष्टिकोण और जीवन शैली। जीवन के दृष्टिकोण से मनुष्य अपनी क्षमताओं और संभावनाओं के बारे में सीखता है और परिस्थितियों के संदर्भ में अपने जीवन का आकलन भी करता है; दूसरी ओर, जीवन शैली व्यक्तित्व के उद्देश्य और आदर्शों को प्रदर्शित करती है। बिना किसी लक्ष्य के जीवन शैली निरर्थक है और जीवन में अंतर्दृष्टि के बिना लक्ष्य का चयन करना असंभव है। सही मायने में यही जीवन प्रबंधन की मूल बातें हैं।

जीवन प्रबंधन सभी के लिए एक गरिमामय एवं आकर्षक शब्द है क्योंकि इसका सीधा संबंध सभी के जीवन से है। वास्तव में यह युग प्रबंधन का युग है और समय की मांग भी है। समस्याओं, संघर्षों, इच्छाओं और महत्वाकांक्षाओं की भीड़ मानव जीवन पर भारी पड़ रही है। सफलता पाना एक बड़ी चुनौती है और सबसे बड़ी चुनौती है “सफलता का सही मतलब” जानना। अतः मानव चेतना के विशेषज्ञ जीवन प्रबंधन की विभिन्न तकनीकें सुझाते हैं, जिन्हें इस कोर्स  में शामिल किया गया है।

आइए अब लेख की और बढ़ें : 

आमतौर पर  लोगों में  यह भ्रम फैला हुआ है कि अध्यात्मवादी का लौकिक सांसारिक जीवन से कोई लेना देना नहीं है। वह तो योगी तपस्वियों का क्षेत्र है, जो जीवन में दैवी वरदान प्राप्त करना चाहते हैं, जो सांसारिक जीवनयापन करना चाहते हैं, घर-बाहर  बसाकर रहना चाहते हैं, उनसे अध्यात्म का सम्बन्ध नहीं। इसी भ्रम के कारण बहुत से गृहस्थ भी, जो दैवी वरदान की लालसा के फेर में पड़ जाते हैं, अध्यात्म मार्ग पर चलने का प्रयत्न करते हैं । किन्तु अध्यात्म का सही अर्थ न जानने के कारण थोड़ा-सा पूजा-पाठ कर लेने को ही अध्यात्म मान लेते हैं।

यह बात सही है कि अध्यात्म मार्ग पर चलने से, साधना करने से दैवी वरदान भी मिलते हैं और ऋद्धि-सिद्धि की भी प्राप्ति होती है, किन्तु वह उच्च स्तरीय सूक्ष्म-साधना का फल है। कुछ दिनों पूजा-पाठ करने अथवा जीवन भर यों ही कार्यक्रम के अन्तर्गत पूजा करते रहने पर भी ऋषियों वाला ऐश्वर्य प्राप्त नहीं हो सकता। उस स्तर की साधना कुछ भिन्न प्रकार की होती है। वह सर्व सामान्य लोगों के लिये सम्भव नहीं। उन्हें इस तप- साध्य अध्यात्म में न पड़कर अपने “आवश्यक कर्त्तव्यों में ही आध्यात्मिक निष्ठा” रख कर जीवन को आगे बढ़ाते रहना चाहिए। साधारण पूजा-पाठ,जो जीवन का एक अनिवार्य अंग होना ही चाहिए, अपनी तरह से लाभ देता ही  रहेगा।

थोड़ी सी साधारण पूजा, उपासना करके जो जीवन में अलौकिक ऋद्धि-सिद्धि पाने की लालसा रखते हैं, वे किसी जुआरी की तरह नगण्य-सा धन लगाकर बहुत अधिक लाभ उठाने चाहते हैं, बिना श्रम के मालामाल होना चाहते हैं। ऐसे लोभी उपासकों की यह अनुचित आशा कभी भी पूरी नहीं हो सकती और यह भी हो  सकता है कि इस लोभ के कारण उनको अपनी उस सामान्य उपासना का भी कोई फल न मिले। देवताओं का वरदान वस्तुतः इतना सस्ता नहीं होता जितना कि लोगों ने समझ रखा है। मन्दिर में जाकर हाथ जोड़ देने, अक्षत-पुष्प जैसी तुच्छ वस्तुयें चढ़ा देने से देवता  प्रसन्न हो जायेंगे और अपने वरदान लुटाने लगेंगे, ऐसा सोचना अज्ञान के सिवाय और कुछ नहीं है। मनुष्य को सामान्य पूजा पाठ का जो उचित  पुरस्कार है, वही मिलेगा, उससे अधिक कुछ नहीं।

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आज 7 युगसैनिकों ने 24 आहुति  संकल्प पूर्ण किया है। संध्या जी आज की  गोल्ड मैडल विजेता हैं । सभी को हमारी हार्दिक बधाई एवं संकल्प सूची में योगदान के लिए धन्यवाद्।   

(1)सरविन्द कुमार-35,(2) सुमनलता-38, (3 )अरुण वर्मा-32 ,(4) संध्या कुमार-56,(5) सुजाता उपाध्याय-47,(6)चंद्रेश बहादुर-38   ,(7) निशा भारद्वाज-30       

सभी साथिओं को हमारा व्यक्तिगत एवं परिवार का सामूहिक आभार एवं बधाई।


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